Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – नागपुर दंगा: छावा और औरंगजेब या फिर कोई और…?

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

सुभाष मिश्र

मनुष्य स्मृतिजीवी होता है। उसके अनुभव, अध्ययन और आसपास की उपलब्ध जानकारी, सूचनाएं जिसमें फिल्में सोशल मीडिया आदि शामिल है, उसे इतिहास का बोध कराती है। घृणा और वैमनस्यता पर आधारित सूचनाएं, इतिहास कब हिंसा का रूप धारण कर लेती है पता ही नहीं चलता। नागपुर में हुए हालिया दंगे इसका ज्वलंत उदाहरण है। शिवाजी सावंत के बहुचर्चित उपन्यास मृत्युजंय में ऐसे कोई तत्व नहीं थे जिस पर फिल्म मेकर फिल्में बनाकर वैमनस्यता के बाजार को भुना सकें। किन्तु उनके दूसरे उपन्यास छावा में इसकी संभावना देखकर फिल्म मेकर ने औरंगजेब फिल्म बनाई जिसके बाद पूरे देश में खास करके महाराष्ट्र की राजनीति और सामाजिक ताने-बाने में जो उबाल आया है, वह संभाले नहीं संभल रहा है। एक तरफ अंतरिक्ष से अमेरिका के नासा द्वारा सुनीता विलियम्स और उसके साथियों को सफलतापूर्वक धरती पर लैंड किया जा रहा है और सारी दुनिया अंतरिक्ष की ओर देख रही है तब हमारे देश में कब्रें खोदने, खुदाई कर पुरानी चीजों को ढूंढने की कवायद हो रही है। हम विश्व गुरु बनना चाहते हैं किंतु हमारा दायरा संकीर्ण होता जा रहा है।
औरंगजेब की कब्र को लेकर फैली अफवाहों के बाद नागपुर के दस थाना क्षेत्रों में कफ्र्यू लगा है, लोग सनातन की दुहाई देकर मुसलमानों से किसी तरह का व्यवसायिक, सामाजिक लेन-देन पर प्रतिबंध की बात कर रहे हैं। भाईचारा शब्द में हिन्दू वर्ग के कुछ लोग संधि विच्छेद करके कह रहे हैं कि वे हमारे लिए भाई रहे और हम उनके लिए चारा। नफरत फैलाने के जितने टूल्स हो सकते हैं, उन सबका उपयोग इस समय में किया जा रहा है। इस आग में घी डालने का काम सोशल मीडिया बखूबी कर रहा है।
नागपुर बाबा साहेब आम्बेडकर की दीक्षा भूमि है। नागपुर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का मुख्यालय है। नागपुर एक समय सेंट्रल प्रोविंस और बरार की राजधानी रही है। अभी भी नागपुर में महाराष्ट्र विधानसभा का सत्र होता है। नागपुर से ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़णवीस और नितीन गडकरी जैसे नेता आते है। आरेंज सिटी के नाम से जाने जाना वाला नागपुर अब कब्र की राजनीति से क्यों सुलग रहा है, ऐसे बहुत सारे सवाल हैं। नागपुर की घटना के संक्षिप्त इतिहास की तरफ जाएं तो अब तक एफआईआर के जरिए 51 लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है। दंगे के मास्टर माइंड फहीम खान के रूप में पहचान कर उसकी गिरफ्तारी की गई है। महिला पुलिस कर्मियों के साथ अभद्रता की बातें भी सामने आई है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री कहते हैं कि मुस्लमानों की कलमे की चादर को जलाने वाली बातें जानबूझकर फैलाई गई। सुल्तान औरंगजेब जिंदाबाद के नारे लगाए गये। जानबूझकर हिंसा फैलाई गई। चादर पर कुरान की आयत नहीं थी। सीएम फडणवीस के अनुसार हिंसा प्रायोजित थी। आरएसएस औरंगजेब की कब्र का मुद्दे को अप्रासंगिक बता रहा है।
महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर जिले के खुल्ताबाद में औरंगजेब की कब्र को हटाने की मांग के बीच प्रशासन ने मुगल शासक की कब्र को ड्रोन प्रतिबंधित क्षेत्र घोषित कर दिया है। मुगल सम्राट औरंगजेब की कब्र छत्रपति संभाजीनगर से 25 किमी दूर खुल्दाबाद में है। इतिहासकारों के मुताबिक, 1707 में जब औरंगजेब की मौत के बाद बादशाह की इच्छा के अनुसार उसे खुल्दाबाद में उसके आध्यात्मिक गुरु शेख जैनुद्दीन की दरगाह के पास दफनाया गया था। औरंगजेब की कब्र साधारण मिट्टी की बनी हुई थी, जिसमें बाद में ब्रिटिश वायसरॉय कर्जन ने संगमरमर लगवाया था। इस स्थान को ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है, जहां लोग आज भी श्रद्धांजलि देने पहुंचते हैं।
पूरा विवाद महाराष्ट्र के सपा विधायक अबू आजमी के बयान से शुरू हुआ। उन्होंने 3 मार्च को कहा कि हमें गलत इतिहास दिखाया जा रहा है। औरंगजेब ने कई मंदिर बनवाए हैं। मैं उसे क्रूर शासक नहीं मानता। अगर कोई कहता है कि यह लड़ाई हिंदू-मुसलमान को लेकर थी, तो मैं इस पर विश्वास नहीं करता। विवाद बढऩे पर अबू आजमी ने 4 मार्च को अपना बयान वापस ले लिया। उन्होंने कहा मेरे शब्दों को तोड़-मरोड़ कर दिखाया गया है। फिर भी मेरी बात से कोई आहत हुआ है तो मैं अपना स्टेटमेंट वापस लेता हूं।
शिवसेना उद्धव गुट के समाचार पत्र सामना ने लिखा कि नागपुर का 300 साल पुराना इतिहास है और वहां कभी दंगे नहीं हुए, लेकिन अब शहर को हिंसा की आग में झोंक दिया गया है। सामना ने पूछा है कि जब फडणवीस खुद होम मिनिस्ट्री संभाल रहे हैं तो फिर दंगाइयों को शहर में घुसने और आगजनी करने की परमिशन कैसे मिली? शिवसेना यूबीटी का कहना है कि भाजपा शिवाजी से ज्यादा औरंगजेब को महत्व दे रही। सत्तारूढ़ पार्टी मुगल सम्राट को छत्रपति शिवाजी महाराज से ज्यादा महत्वपूर्ण मानती है।
‘छावाÓ फिल्म के प्रदर्शन के बाद से संघ, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल जैसे संगठनों और भाजपा के नवहिंदुत्ववादी तत्वों ने औरंगजेब की कब्र के खिलाफ राजनीतिक रौद्र रूप दिखाया और महाराष्ट्र का माहौल खराब कर दिया। संभाजी नगर से औरंगजेब की कब्र को हटाने की वीएचपी और अन्य संगठनों की मांगों के बीच, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रवक्ता सुनील आंबेकर ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि मुगल बादशाह आज के समय में प्रासंगिक नहीं हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि किसी भी तरह की हिंसा को हतोत्साहित किया जाना चाहिए। किसी भी तरह की हिंसा को प्रोत्साहन मिलना सही नहीं है। प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर का कहना है कि किसी भी तरह की हिंसा समाज के लिए ठीक नहीं हैं।
17 मार्च 2025 को नागपुर में हुए दंगे की शुरुआत विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के प्रदर्शन से हुई। यह प्रदर्शन औरंगजेब की कब्र को हटाने की मांग को लेकर था, जो महाराष्ट्र के औरंगाबाद (अब छत्रपति संभाजी नगर) में स्थित है। प्रदर्शन के दौरान औरंगजेब का पुतला जलाया गया, जिसके बाद एक अफवाह फैली कि किसी धार्मिक ग्रंथ को जलाया गया है। इस अफवाह ने दो समुदायों के बीच तनाव पैदा कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप हिंसा भड़क गई। सोशल मीडिया और मौखिक संदेशों से अफवाह तेज़ी से फैली, जिसने हिंसा को बढ़ावा दिया। हिंसा में पथराव, आगजनी और वाहनों को नुकसान पहुँचा। कई लोग घायल हुए जिनमें पुलिसकर्मी भी शामिल थे।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा और यह हिंसा सुनियोजित हो सकती है। उन्होंने शांति की अपील की। कांग्रेस और एनसीपी ने सरकार पर नाकामी का आरोप लगाया। राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के बीच हमें इतिहास में जाकर कब्रें खोदने और घृणित इतिहास की स्मृतियों को खंगालने की बजाय देश मिल-जुलकर अपनी साझा संस्कृति के जरिए कैसे आगे जाए, इस पर सोचना होगा।
नागपुर दंगे का मूल कारण धार्मिक भावनाओं का उफान और अफवाहों का तेज़ प्रसार था। भविष्य में इसे रोकने के लिए प्रशासनिक सख्ती, सामाजिक जागरूकता और तकनीकी सहायता का संतुलित उपयोग ज़रूरी है। अगर इन उपायों को लागू किया जाए तो नागपुर जैसे शहरों में साम्प्रदायिक सौहाद्र्र बना रह सकता है। वहां हम देश भर में यहां-वहां खुदाई ही करते रह जाएंगे और बाकी दुनिया हमें पाताल लोक में छोड़कर अंतरिक्ष की ओर बढ़ जाएगी।

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