Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – कभी दुनिया से तो कभी खुद से जूझता मजदूर
-सुभाष मिश्र दोपहर करीब 12.30 बजे 42 डिग्री तापमान और झुलसा देनी वाली गर्म हवा के बीच भी मजदूरों को सड़क पर डामर बिछाते और कुछ महिला मजदूरों को डामर बिछाने से पहले सड़क की सफाई करते देखा तो प्रसंगवश मुझे सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की रचना याद आती है- वह तोड़ती पत्थर; देखा मैंने उसे […]
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