-सुभाष मिश्र
क्या वजह है कि छत्तीसगढ़ हाऊसिंग बोर्ड सहित आरडीए, नगर निगम और तमाम सरकारी अर्धसरकारी संस्थाओं द्वारा निर्मित मकान, दुकान, व्यवसायिक काम्पलेक्स को बेचने में कठिनाई होती है। दरअसल, सरकारी लेटलतीफी, भ्रष्टाचार, निर्माण के दौरान मानिटरिंग की कमी तथा निर्माण के पश्चात रखरखाव का संकट इसका एक बड़ा कारण है। न्यूनतम शुल्क देकर महंगी से महंगी और बड़ी-बड़ी जगहें अधिग्रहित करने वाली सरकार से पोषित ये संस्थाएं घाटे में हैं या फिर जैसे-तैसे सरवाईव कर रही है। आवास संघ लगभग बंद होने की कगार में है। हाऊसिंग बोर्ड के मकानों में 30 प्रतिशत छूट के ऑफर के बावजूद कोई लेवाल नहीं है। आरडीए का कमल विहार प्रोजेक्ट 15 साल बाद भी आधा-अधूरा है। नगर निगम के ईडब्ल्यूएस वर्ग के लिए बनाये गये मकान किसी झुग्गी-झोपड़ी सा ही फील देते हैं। इंदिरा आवास, प्रधानमंत्री आवास और सरकार या उसकी आश्रित संस्थाओं द्वारा किये गये निर्माण उस गुणवत्ता के नहीं होते जैसे प्रायवेट बिल्डरों के होते हैं। बिल्डर महंगे में जमीन खरीदकर बिल्डिंग, कैंपस कॉलोनी, मार्केट बनाते हैं और लाभ कमाकर दूसरे प्रोजेक्ट में लग जाते है किन्तु सरकारी एजेंसियों मुफ्त की जमीन के बावजूद घाटे में ही रहती है। ठेकेदार, नेता, अधिकारी फलते-फूलते हैं और इनके जर्जर मकान, गंदी कॉलोनियों मुंह चिढ़ाती दिखती है। सरकार ने आवास प्रदान करने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जैसे इंदिरा आवास योजना (ग्रामीण क्षेत्रों के लिए) और प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाय, शहरी और ग्रामीण दोनों के लिए)। इन योजनाओं का उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस), कम आय वाले समूह (एलआईजी) और मध्यम आय वाले समूह (एमआईजी) को किफायती घर उपलब्ध कराना है।
राज्य आवास बोर्ड विभिन्न राज्यों में आवास बोर्ड जैसे सीजीएचबी, ने किफायती आवास परियोजनाएं शुरू की है। सीजीएचबी 2004 में गठित हुआ था और विभिन्न योजनाओं जैसे अटल आवास योजना और दीनदयाल आवास योजना के माध्यम से ईडब्ल्यूएस और एलआईजी परिवारों को लक्षित करता है। ऐसे नहीं है कि आवास समस्या के निराकरण के लिए सरकारी स्तर पर गंभीर प्रयास न हुए हों। इसके अलावा सस्ती दरों पर आवासीय ऋण और राज्य आवास बोर्ड जैसे छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड (सीजीएचबी) भी हैं।
हालांकि, लालफीताशाही, भ्रष्टाचार और अन्य चुनौतियां जैसे भूमि की कमी, निर्माण सामग्री की उच्च लागत और अनौपचारिक आवास विकल्पों की बढ़ती संख्या के कारण सरकारी एजेंसियां गुणवत्तापूर्ण घर नहीं बना पा रही है। यह विशेष रूप से छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड के मामले में स्पष्ट है, जहां 2,651 घर बिक नहीं रहे, भले ही 10-30 फीसदी तक की छूट दी जा रही हो और इनकी कुल कीमत 380 करोड़ रुपये है। छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड ने पिछले 15 वर्षों में 100,000 से अधिक घर बनाए हैं, जिनमें से 85 फीसदी ईडब्ल्यूएस और एलआईजी परिवारों के लिए है और इसे कई राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले हैं। सीजीएचबी के पास वर्तमान में 2,651 घर बिक्री के लिए उपलब्ध हैं, जिनकी कुल अनुमानित कीमत 380 करोड़ रुपये है। इन घरों पर 10-30 फीसदी तक की छूट दी जा रही है लेकिन फिर भी खरीदार नहीं मिल रहे हैं। मार्च 2025 तक भी 113 करोड़ रुपये के घर खाली पड़े हैं, जो जर्जर हो रहे हैं। यह संभावना है कि इन घरों की गुणवत्ता, स्थान या अन्य कारक जैसे कि बाजार की मांग और ग्राहक वरीयताएं बिक्री में बाधा डाल रही हैं।
भारत में आवास उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने कई महत्वपूर्ण पहल की हैं, लेकिन इनके कार्यान्वयन में कई चुनौतियां हैं। इंदिरा आवास योजना मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों को आवास उपलब्ध कराने के लिए शुरू की गई थी। इसके तहत वित्तीय सहायता प्रदान की जाती थी, लेकिन इसे बाद में प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) द्वारा प्रतिस्थापित किया गया। प्रधानमंत्री आवास योजना यह 2015 में शुरू की गई थी, जिसमें शहरी (पीएमएवाय-शहरी) और ग्रामीण (पीएमएवाय-ग्रामीण) दोनों क्षेत्रों को कवर किया गया। पीएमएवाय-शहरी का लक्ष्य 2022 तक सभी योग्य शहरी परिवारों को पक्का घर देना था, जबकि पीएमएवाय-ग्रामीण का लक्ष्य 2025 तक 4.95 करोड़ ग्रामीण परिवारों को आवास प्रदान करना है। हाल के आंकड़ों के अनुसार, 2.69 करोड़ घर पूरे किए जा चुके हैं और 2024-25 से 2028-29 के दौरान अतिरिक्त 2 करोड़ घर बनाने की योजना है। सस्ती दरों पर आवासीय ऋ ण के तहत क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी स्कीम (सीएलएसएस) के तहत, ईडब्ल्यूएस, एलआईजी और एमआईजी को ब्याज सब्सिडी प्रदान की जाती है, जिससे घर खरीदना आसान हो जाता है।
दूसरी ओर रायपुर, बिलासपुर दुर्ग आदि जगहों पर निजी बिल्डरों की अपनी सफलता और विस्तार गतिविधियों के झंडे गाड़ रहे हैं। निजी बिल्डर विश्वस्तरीय गुणवत्ता, बेहतर स्थान, और प्रभावी मार्केटिंग के साथ आगे बढ़ रहे हैं। वे सरकारी विनियमों से अधिक लचीले हैं और ग्राहकों की मांग के अनुसार घर बनाते हैं, जिससे उनकी परियोजनाएं अधिक आकर्षक हो जाती हैं। आवास संबंधी मामलों को जनहितकारी और जनसुविधाओं से लैस करके नियमानुसार कार्यवाही के लिए रेरा बनाया गया। रेरा (रियल एस्टेट विनियमन और विकास अधिनियम) 2016 में लागू हुआ था, जिसका उद्देश्य रियल एस्टेट क्षेत्र को विनियमित करना और खरीदारों की रक्षा करना था। लेकिन इसकी प्रभावकारिता सीमित रही है। इसके कार्यान्वयन में समस्याएं और निजी बिल्डरों द्वारा खामियों का फायदा उठाना, इसकी प्रभावशीलता को कम करता है। सरकारी एजेंसियां भी रेरा के मानकों का पूरी तरह से पालन नहीं कर पातीं, जिससे उनकी परियोजनाओं पर असर पड़ता है।
आवास बनाने में आने वाली चुनौतियों में विकसित और बिना विवाद वाली शहरी भूमि की कमी से निर्माण लागत बढ़ जाती है, जिससे आवास अधिक महंगा हो जाता है। निर्माण सामग्री की उपलब्धता और उसकी उच्च लागत भी एक बड़ी चुनौती है, जिससे परियोजनाओं की लागत बढ़ती है। अवैध बस्तियों और किराए पर उपलब्ध आवास विकल्पों की बढ़ती संख्या के कारण भी आवास की मांग कम हो जाती है, जिसके कारण सरकारी परियोजनाओं की बिक्री प्रभावित होती है। शहरी क्षेत्रों में एक व्यवहारिक किराये का बाजार न होने से, विशेष रूप से अल्पकालिक निवासियों, एकल कामकाजी महिलाओं, छात्रों, और अस्थायी नौकरी चाहने वालों के लिए रहने की समस्या बढ़ जाती है। लोगों की खरीदने की क्षमता कम होने और सस्ते ऋण के अभाव में, औपचारिक आवास तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है। तेजी से बढ़ते शहरों में भूमि उपयोग योजनाएं अक्सर पुरानी हो जाती हैं, जिससे अवैध बस्तियों और असुरक्षित भूमि स्वामित्व की समस्याएं पैदा होती हैं। इस तरह के क्षेत्रों में अक्सर कम फ्लोर एरिया रेशियो (एफएआर), मनमाने पिछवाड़े, इमारत ऊंचाई, और पहुंच सड़क, चौड़ाई जैसे प्रावधान होते हैं, जो निम्न गुणवत्ता वाले आवास और बाजार मांग में गिरावट का कारण बनते हैं।
भारत में आवास उपलब्ध कराने के लिए किए गए प्रयास, जैसे आईएवाय, पीएमएवाय और राज्य आवास बोर्ड महत्वपूर्ण हैं, लेकिन लालफीताशाही, भ्रष्टाचार और अन्य संरचनात्मक चुनौतियों के कारण इनका प्रभाव सीमित है। विशेष रूप से, सीजीएचबी जैसे बोर्डों को अपने घर बेचने में कठिनाई हो रही है, भले ही छूट दी जा रही हो, जो गुणवत्ता, स्थान और बाजार की मांग से संबंधित हो सकती है। निजी बिल्डर बेहतर गुणवत्ता और लचीली योजनाओं के साथ आगे बढ़ रहे हैं, जबकि रेरा की प्रभावकारिता अभी भी एक चिंता का विषय है।
हम मकान नहीं घर बनाते हैं का स्लोगन रचने वाले हाऊसिंग बोर्ड को गुणवत्ता के साथ मांग और पूर्ति के सिद्धांत को याद रखना होगा। जो कॉलोनी बनी हुई है या बनाई जा रही है उनकी साफ-सफाई पेयजल, प्रकाश व्यवस्था और रखरखाव सही ढंग से हो यह भी देखना होगा।