
Chanakya-like thinking is needed to protect the borders: Manoj Joshi
जनधारा समाचार
रायपुर। रंगमंच और सिनेमा के जाने-माने अभिनेता मनोज जोशी संस्कार भारतीय के तीन दिवसीय समारोह के समापन अवसर पर रायपुर आए थे। इस दौरान उन्होंने रायपुर के महाराष्ट्र मंडल, प्रेस क्लब और रंगमंदिर से जुड़े कई लोगोंं के बहुत सारे सवालों के जवाब दिए और अपने बहुचर्चित चाणक्य का संवाद भी सुनाया। 36 साल से लगातार चाणक्य नाटक के 1724 शो हो चुके हंै।
14 दिसंबर 1965 को जन्मे मनोज जोशी को फिल्म, थिएटर और टेलीविजन में अपने उत्कृष्ट योगदान के लिए 2018 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। गुजरात के अडालज में जन्मे मनोज जोशी ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत थिएटर से की और बाद में बॉलीवुड और टेलीविजन में अपनी पहचान बनाई। उन्होंने 1998 से अब तक 70 से अधिक फिल्मों में काम किया है और कई लोकप्रिय टीवी धारावाहिकों में भी अभिनय किया है।
मनोज जोशी कहते हैं कि रंगमंच का कलाकार फिल्मों में अंतिम क्षण तक सीन को और बेहतर बनाने की दिशा में काम करता है। डबिंग करते समय भी अपनी आवाज के माध्यम से वो सीन को इंप्रोवाइज करता है क्योंकि उस सीन को वो डबिंग के समय महसूस करता है। मनोज जोशी कहते हैं कि चाणक्य नीति कहती है देश की सीमाओं को मजबूत करें। सीमाओं को मजबूत कर हम देश को सुरक्षित कर सकते हैं। मनोज जोशी नाटकों के बारे में कहते हैं कि मैं हूं इसलिए फिल्मों में भी हूं, ऐसा कहना गलत है। बल्कि मेरे लिए तो नाटकों में काम करना गंगा स्नान की तरह है। रंगमंच मेरे लिए प्राण वायु है।
0 नये परिदृश्य में चाणक्य नीति को किस तरह से देखते हैं ?
मनोज जोशी- मैं कोई इतिहास वेत्ता नहीं हूं। एक अभिनेता जब किसी भी पात्र को आत्मसात करने का प्रयत्न करता है तभी वह सफल होता है। ना चाणक्य की कोई फोटो है, ना चाणक्य की कोई रील है, ना चाणक्य की कोई वीडियो है। ढाई हजार वर्ष पूर्व एक शिक्षक थे जो आज के अफगानिस्तान हंै वह गांधार राज्य से सटी हुई सीमा से था। वहां का राजा आम्भी था। जहां तक्षशिला विद्यापीठ था, तक्षशिला विद्यापीठ में बहुत लोग वहां पढऩे जाते थे। चाणक्य भी वहां पढ़ाते थे। वो चाणक्य ऋषि के पुत्र थे। उनका कौटिल्य नाम का गोत्र था इसलिए कौटिल्य अर्थशास्त्र के नाम से बाद में लिखा। चाणक्य के अनुसार अर्थशास्त्र क्या है? राजा अपनी प्रजा के साथ कैसा व्यवहार करें और जो अंतिम पंक्ति में बैठा हुआ व्यक्ति है उसे सारी सुविधाएं प्राप्त हो।
राज्य की प्रजा के सुख में ही राजा का सुख है। ऐसा मानने वाला व्यक्ति कैसा होगा और सारे नीति शास्त्र जितने उनके पहले के है उसका चाणक्य ने खंडन करके अपने मत को प्रदर्शित किया। कौटिल्य अर्थशास्त्र में उन्होंने मंत्री का व्यवहार कैसे होना चाहिए? संतरी का व्यवहार कैसे होना चाहिए? कर कैसे लेने चाहिए प्रजा से? किस प्रकार के कर लेने चाहिए, कौन से कृषकों से कर लेने चाहिए? कूटनीति और युद्ध नीति के बारे में सारी जानकारी लिखी है। अब आप सोचिए कि ईसा पूर्व 320 बीसी में जब सिकंदर अलेक्जेंडर ग्रीक से निकलता है जो एरिस्टोटल के शिष्य प्लूटो का शिष्य था। विश्व विजेता बनने के लिए और मिस्र में आता है। मिस्र को ऐसा लगता है कि ये तो बहुत बड़ा आदमी आया है। उस समय चाणक्य वहां के कुलपति थे। उन्होंने कहा भाई ये आएगा और तुम्हें भी समाप्त करेगा और अंदर जाएगा तो पहले सीमाएं सुरक्षित करो। मिस्र ने पर यह बात नहीं मानी। उसके बाद गांधार से जो आज का पाकिस्तान है तब तक पोरस का राज्य था और पोरस पराक्रमी थे। उन्होंने 11 बार आम्बे को हराया।
मैं ये इसलिए कह रहा हूं कि एक शिक्षक क्या सोचता है कि ये सीमा ही सुरक्षित नहीं रही तो ये अंदर घुसेगा, कल्चर नष्ट करेगा, संस्कृति नष्ट करेगा। यह जो खंड-खंड में बंटा हुआ राष्ट्र है जिसका राजा केवल अपने स्वार्थ में ही मगन है। ऐसे में इस राष्ट्र को एकछत्र राष्ट्र या उसकी संकल्पना जो है, वह प्रथम है। आज जो जाति भेद और जातियों का जो विभक्तिकरण हुआ है वो उस समय नहीं था। भगवत गीता में भी कर्म के आधार पर चार वर्ण बताए गए हैं। ना वेदों ने लिखा है, ना भगवत गीता ने लिखा है ना चाणक्य ने लिखा है जातियों के बारे में। दासी पुत्र को जिसे शूद्र माना जाता है। उस शूद्र को शूद्र मतलब दासी पुत्र चंद्रगुप्त को क्या वो सम्राट बनाते? क्या ये विचार करने जैसी बात मतलब आज के परिपे्रेक्ष्य में भी हैं। वो बात कितनी सामयिक है। चाणक्य का मानना था कि जितनी युद्ध नीति है, कूटनीति है उसके अनुसार शत्रु को कभी भी सामान्य नहीं समझना चाहिए। मित्रता किससे की जाए और किसे मित्र बनाया जाए और हमेशा सजग रह के मित्रता करनी चाहिए। तो ये सारी बातें उन्होंने अपने अर्थशास्त्र में लिखी है। अब आप सोचिए कि कौटिल्य अर्थशास्त्र या कौटिल्य नीति या चाणक्य नीति का पाठ ऑक्सफोर्ड में भी पढ़ाया जाता है। पाकिस्तान का सैन्य भी चाणक्य नीति की बात करता है लेकिन हमारा दुर्भाग्य क्या है कि हमें हमारी ही चीजें कभी नहीं पढ़ाई गई। हमको कभी बताया ही नहीं गया। रोमिला थापर की लिखी पुस्तक इतिहास में उस जरासंध को मानती है लेकिन महाभारत काल्पनिक मानती है। अपने को जो चाहिए वैसा इतिहास पढ़ाया गया। ऐसे महापुरुष है जिन्होंने इस राष्ट्र को बहुत कुछ दिया। चाणक्य कौटिल्य अर्थशास्त्र में लिखते हैं कि यह शुक्र की नीति है। यह बृहस्पति ऐसा बोलता है। ये विदुर ऐसा बोलता है। मैं ऐसा बोलता हूं। यह मेरा मत है। यह नीति केवल चाणक्य की अकेले की नहीं है, ये वर्षों से हमारे सनातन काल से चलती हुई आई नीतियां है। उस नीति के अनुसार उन्होंने सीमाओं को सशक्त बनाने के लिए कहा। एक अकेले शिक्षक ने इस विचार को भारतवर्ष को कैसे संगठित किया जाए, कैसे एकत्रित किया जाए और कैसे एकछत्र शासन दिया जाए यह संदेश दिया। यह एक सोच एक विचार था इसीलिए सिकंदर आया है उसको भगाना पड़ा। फिर पोरस के पास यहां वहां सब कुछ था फिर भी वह सेंटर मगध को चुना वनवासियों को पहला सैनिक बनाया। अंग्रेजों ने ही जातिवाद दिया। सब कुछ उन्होंने किया। चाणक्य की बात उस समय भी प्रासंगिक थी और आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। आज भी सीमाओं को सुरक्षित करने की जरूरत है जो उन्होंने उस समय कही थी। यह बात स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने कही थी कि सीमाओं को पहले सुरक्षित करो। नेहरू जी ने चाइना के ऊपर जो विश्वास किया वो विश्वास कितना भयानक था। उसका जो नुकसान है वो आज तक हम भुगत रहे हैं कि जो प्लेसमेंट हमको चाहिए थी वो हमने लेते हुए चाइना को दे दी उदार मतवाली क्या भुगता हमने। आज वही चाइना पाकिस्तान की मदद कर रहा है तो मित्रता किससे की जाए किससे करनी चाहिए, किससे नहीं करनी चाहिए।
Related News
आज कूटनीतिक दृष्टि से भारत पहले देखिए और मैं वापस चाणक्य के पास आता हूं कि चाणक्य ने चंद्रगुप्त को सम्राट बनाया। उसके बाद बिंदुसार उसके बाद अशोक के कार्यकाल तक मतलब एक 150 वर्ष का जो काल था वो काल तक कोई भी आक्रांता भारत पर आक्रमण करके नहीं आया था। उसके बाद सारे आए। चाणक्य ने व्यवस्था दी किग्रीकों के साथ किस प्रकार का व्यवहार किया जाए। ग्रीकों के पास से क्या लेना है, हमको ग्रीकों को क्या देना है। वैसे अगर देवताओं के साथ या उनके साथ जुड़ा जाए तो बहुत साम्यता है हमारी और ग्रीक संस्कृति में मिलता है। जैसे भीम का विवाह हिडम्बा से करवाया, भगवान श्री कृष्ण ने विदर्भ से रुक्मणी के साथ स्वयं विवाह किया। अर्जुन का विवाह किससे करवाया? ये अगर सोचे तो चंद्रगुप्त का विवाह किससे करवाया? सेलुलस की बेटी के साथ। क्यों करवाया? ये सारी चीजें हैं जो युद्ध नीति कूटनीति और हमारे देश के संरक्षण के लिए अगर पढ़ेंगे तो वो उतना ही चाणक्य आज भी सामयिक है।
0 जिस तरह से बंगाल, महाराष्ट्र, गुजरात में थियेटर होता है और लोग देखने आते हैं, वैसी स्थिति हिन्दी पट्टी में क्यों नहीं है?
ऐसा है कि हिंदी मेरी मातृभाषा नहीं है। दूसरा जो प्रांतीय ब्रिज है जैसे अभी संस्कार भारती ये काम कर रही है। उदाहरण के लिए अभी मुंबई एक उद्योग भूमि है। इसलिए वहां हिंदी थिएटर भी होता है, गुजराती भी होता है, मराठी भी होता है। तो मैं ऐसा कहूं कि थिएटर को लोकभोग्य बनाने के लिए हम और क्या कर सकते हैं? कोई भी चीज की शुरुआत हमसे हो। मैं ऐसा बोल रहा हूं कि 10 प्रेक्षक थे पर उनके सामने एक प्लेटफार्म मुझे मिला। मैं वहां पर काम करता हूं। अब वो 10 के 50 होंगे। पर 50 के 100 होगें क्या? यहीं हम हार जाते हैं। हार के फिर छोड़ देते हैं। ये भी अनेक कारणों में से एक कारण है। दूसरा अगर उसके अंदर का सत्व अगर सुपर हो, सॉलिड हो तो वो 10 प्रेक्षक से 100 प्रेक्षक बन जाएगें, ऐसा मेरा अनुभव है। यदि हमारा रंगमंच अभी तक प्रोफेशनल नहीं पाया है। हमनें उसे उस तरह से कभी देखा ही नहीं। ये भी एक पक्ष है। मैं ऐसा कहता हूं चलो मराठी यहां ऑडियंस है पर महाराष्ट्र मंडल में लोग हिंदी भी देखेंगे। मराठी ठीक देखेंगे ऐसा नहीं है। तो हम उसको उस प्रकार से छोटे-छोटे एक-एक घंटे के दो नाटक और ऐसे विषय जो टच करेंगे दिखाने होगें। यहां के रंगकर्मी ठीक है। कोई बाहर का एक निर्देशक बुलाओ बोलो कि नाटक आप क्रिएट करो चाहे वो एमपी से बुलाओ, चाहे वो महाराष्ट्र से बुलाओ दूसरा उनके साथ में उनके अंदर एक प्रोफेशनलिज्म है। हर साल वर्कशॉप भी 10-10 दिन की और उसका सत्व रहना चाहिए तभी एक मूवमेंट बनेगा। वो मूवमेंट थी जब मैंने चाणक्य किया। तब मेरा कोई नाम भी नहीं था। मैं खुद के पैसे जो भी कमाता था वो डाल कर मैंने नाटक की एक स्पोंसरशिप शुरु की। आर्थिक मैं सहायता करता हूं। 36 वर्षों में 1724 प्रयोग हुए उसको और ईश्वर की दया से सत्व पूर्ण जो एक नियम था कि करना ही उसकी वजह से कहीं भी मैं शो करता हूं तो वो हाउसफुल ही होता है। आज आप बोलेंगे कि नहीं नहीं आपने फिल्मों में काम किया इसलिए नहीं मेरी प्रतिमा बनी है। मैं आज जो कुछ भी हूं रंगमंच के कारण। फिल्मों के कारण हम नहीं आए तो मुझे ऐसा लगता है कि हमको भी प्रोफेशनल बनाना पड़ेगा। लोगों को यहां पर और थोड़ा आदान-प्रदान भी करना पड़ेगा। कौन सा नाटक कहां चल रहा है क्या हो रहा है किसको बुलाए ये करना पड़ेगा और तब जाकर एक मूवमेंट बनेगा। मैं बहुत सकारात्मक आदमी हूं। ऐसा नहीं है वो होगा आज नहीं होगा कल होगा।
0 क्या फिल्म की शूटिंग के बाद डबिंग हो है किस तरह करनी चाहिए?
लोग करते शूटिंग करते हैं उसके बाद रिकॉर्डिंग होती है वॉइस रिकॉर्डिंग की शूटिंग होने के बाद डबिंग होती है तो उसका इम्पैक्ट कायम रखने के लिए तीन बातों का ध्यान रखना चाहिए। रिकॉर्डिंग स्टूडियो जो पात्र आपने निभाया है डबिंग में आप उसकी जो त्रुटियां को पूर्ण कर सकते हैं। उस कैरेक्टर को और भी निभा सकते हैं और अच्छा कर सकते हैं। वो आपको इनक्टमेंट उसी धार का करना पड़ता है। जिसकी भूख बहुत है जो संतुष्ट नहीं जो असंतुष्ट है वो अच्छा करेगा। ऐतिहासिक घटनाएं उन पर जो पिक्चर बनी है उनको छोड़ दिया जाए तो मौलिकता करीब-करीब आपको नहीं लगती खत्म हो गई। हिंदी फिल्मों में हमने चोरी की है। मैं कह रहा हूं कि हमने हॉलीवुड से लिया है। पहले इंग्लिश पिक्चरों की कॉपी होती थी, फिर दक्षिणा के पिक्चरों की कॉपी होती थी। रिमेक चला फिर कापीे होना बंद हो गया तो बोले अभी दुकान नंबर वन, दुकान नंबर दो, एक दुकान नंबर और दो दुकान नंबर और तीन वो जलने लगे। क्योंकि फिर उसमें क्या होता था कि जो चंदन था वो तो घिस गया फिर लकड़ी घिस रहे हैं तो चंदन की सुगंध कहां से आएगी। मैं इसलिए बोल रहा हूं कि मौलिकता नहीं है। ऐसा नहीं है कि मौलिक चिंतन करने वाले लोग नहीं हैं संख्या कम है। ना संगीत में है, ना गीतों में सभी के सभी कट करो पेस्ट करें पर चल रहें है।
जिसको आप कमर्शियल मूवी मानते है आपकी कुछ ज्वलंत विषय रहते हैं और कुछ काल्पनिक विषय रहते हैं। उसमें जब आप काम करते हो तो आप अपने आप को कैसे प्रेजेंट करना है यह सब निर्देशक पर डिपेंड करता है। निर्देशक के लिएहम कठपुतली मात्र है। ऐसा नहीं है कि एक्टर को बुद्धि नहीं होती, एक्टर को बुद्धिमान ही होना चाहिए, पढ़ा लिखा होना चाहिए। पढ़ा लिखा इन द सेंस वेल रेड होना चाहिए तभी यह कैरेक्टर उसको पकड़ेगा। अपना आंकलन करेगा अपना अनुमान लगाएगा, अपना ऑब्जरवेशन लगाएगा और उस पात्र को चिंता करेगा।
0 आपने बहुत सारे थिएटर में काम किया ऐसा कोई कैरेक्टर है जो आप करना चाहते हो और आज तक आप नहीं कर पाए। आगे आप करना चाहेंगे? चाहे कचरा से हो मनु भाई गांधी हो चाहे कॉलेज प्रोफेसर का कैरेक्टर हो। सर 2018 में आपने एक मूवी की थी गुजराती मूवी नट सम्राट उसमें आपका अनुभव कैसा था?
ये एक ऐसी मूवी है जो स्टेज और कैमरा दोनों के बीच में थी। वो मराठी फिल्म की रिमेक थी और मराठी नाटक का एक्सटेंशन था। यदि मुझे कोई पूछेगा तो मुझे नाटक ही अच्छा लगा।
0 हमारी हिन्दी फिल्म में मौलिक क्यों नहीं बन रही है?
अभी मौलिकता की बात हो रही थी। मौलिक फिल्में जो बनती है वो अपेक्षा से कम बजट की बनती है। इसमें जाने-माने उतने बड़े स्टार नहीं होते। नतीजा ये होता है कि जब ये फिल्में रिलीज होती है बड़े बजट की फिल्में ज्यादा स्क्रीन कवर करती है। ज्यादा उनकी ही मोनोपली रहती है। स्थिति ये हो गई है कि संजय दत्त और सन्नी देवल को यह तक कहना पड़ता है कि इंडस्ट्री दो भाग में बंट गई है। किसी की भी दादागिरी चलती है तो ऐसे में फिर मौलिक फिल्में या इस तरह की फिल्में कैसे अपना स्थान कैसे हासिल करेंगीं। वो दादाओं को मैंने तो देखा नहीं है लेकिन वो काल्पनिक हैं। स्त्री हट एक होता है, बाल हट एक होता है, राज हट और एक होता है स्टार हट। आई थिंक आपको जवाब मिल गया होगा।
0 उत्तर प्रदेश फाइल फिल्म के बारे में बताइए?
नहीं वो आई नहीं फिर सेंसर में भी उसके कुछ प्रॉब्लम्स थे और अभी वो ओटीपी पर हैं।
0 अभी तक आपने जितनी भी भूमिकाएं या नाटक में हो या फिल्में हो उसमें आप मन से कौन सी आपको अच्छी लगी और अभी आगे आप कौन सा करना चाहते हैं?
मैं एक बात बोलूं जितना भी काम करता हूं मैं मन से, दिल से और दिमाग से ही काम करता हूं। यह प्रश्न ही नहीं उठता कि मुझे कौन सा कैरेक्टर अच्छा लगा।
0 कौन सी ऐसी कोई भूमिका है जो आप करना चाहते हैं अभी?
मैंने कहा अभी नाटक में काम करना करना कर रहा हूं। इच्छा है मेरी कि में विवेकानंद का किरदार निभाउं।
0 चाणक्य ने एक जगह लिखा है कि हमारे भारतवर्ष में कितने जगह में हीरे पाए जाते हैं उन्होंने उल्लेख किया है।
अब कैसे उन्होंने स्टडी की बिना एरोनोटिक सर्वे को यहां हीरे हैं यहां मटेरियल है ये बड़ी अद्भुत बात है।