23 मार्च 1931 का दिन भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा गया है। इसी दिन भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर ने हंसते-हंसते फांसी के फंदे को गले लगाया। ये तीनों युवा क्रांतिकारी न सिर्फ अपनी शहादत से अमर हुए, बल्कि अपने विचारों और बलिदान से भारत की आज़ादी की लड़ाई को एक नई दिशा दी। आज, जब हम आज़ादी का सुख भोग रहे हैं, इन वीरों की कहानी हर भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
शहादत की कहानी
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) के सक्रिय सदस्य थे। 1928 में लाला लाजपत राय की शहादत का बदला लेने के लिए भगत सिंह और राजगुरु ने ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जे.पी. सांडर्स को गोली मारी। इसके बाद, 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम फेंका, लेकिन इसका मकसद किसी को मारना नहीं, बल्कि अंग्रेजी हुकूमत के कानों तक अपनी आवाज़ पहुंचाना था। उनके नारे “इंकलाब ज़िंदाबाद” ने पूरे देश में गूंज पैदा कर दी।
इसके बाद इन तीनों को गिरफ्तार किया गया। मुकदमे के दौरान उन्होंने न सिर्फ अपने अपराध को स्वीकार किया, बल्कि कोर्ट को एक मंच बनाकर अपने क्रांतिकारी विचारों को दुनिया के सामने रखा। 23 मार्च 1931 को लाहौर जेल में उन्हें फांसी दे दी गई। उस वक्त भगत सिंह की उम्र मात्र 23 साल, राजगुरु की 22 साल और सुखदेव की 23 साल थी।
भारत की आज़ादी में योगदान
इन तीनों शहीदों का योगदान केवल हथियार उठाने तक सीमित नहीं था। उन्होंने युवाओं में आज़ादी की अलख जगाई और अंग्रेजी शासन के खिलाफ एकजुटता का संदेश दिया। भगत सिंह ने अपने लेखों और पत्रों के जरिए बताया कि आज़ादी सिर्फ अंग्रेजों को भगाने से नहीं मिलेगी, बल्कि इसके लिए सामाजिक और आर्थिक बराबरी भी जरूरी है। सांडर्स की हत्या और असेंबली में बम कांड ने ब्रिटिश हुकूमत को हिला दिया और देश भर में क्रांतिकारी आंदोलन को बल मिला। उनकी शहादत ने गांधीजी के अहिंसक आंदोलन के साथ-साथ क्रांतिकारी मार्ग को भी मजबूती दी, जिससे आज़ादी की लड़ाई और तेज़ हुई।
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उनके विचार: आज भी प्रासंगिक
1 भगत सिंह: “मज़दूरों और किसानों की मुक्ति ही असली आज़ादी है।” वे समाजवाद के समर्थक थे और मानते थे कि बिना सामाजिक न्याय के आज़ादी अधूरी है। उनका मानना था कि क्रांति का मतलब सिर्फ हथियार उठाना नहीं, बल्कि लोगों के दिमाग में बदलाव लाना है।
2 राजगुरु: कम बोलने वाले, लेकिन कर्म में अडिग। उनका जीवन इस बात का सबूत था कि देश के लिए जान देने में भी गर्व है।
3 सुखदेव: संगठन और योजना के मास्टरमाइंड। वे मानते थे कि आज़ादी के लिए एकजुटता और साहस सबसे बड़ी ताकत है।
इनके विचार आज भी हमें सोचने पर मजबूर करते हैं। भगत सिंह ने कहा था, “बम और पिस्तौल से क्रांति नहीं आती, क्रांति आती है लोगों के विचारों से।” यह संदेश आज के युवाओं के लिए भी उतना ही जरूरी है।
आज का संदेश
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने अपनी जान देकर हमें आज़ादी का मूल्य सिखाया। उनकी शहादत हमें याद दिलाती है कि आज़ादी सिर्फ हासिल करना ही काफी नहीं, इसे बनाए रखने के लिए भी जिम्मेदारी चाहिए। आज जब हम भ्रष्टाचार, गरीबी और असमानता से जूझ रहे हैं, उनके सपनों का भारत बनाने की ज़िम्मेदारी हमारी है।
इन शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि तब होगी, जब हम उनके विचारों को अपनाकर एक ऐसा देश बनाएं, जहां हर इंसान को बराबरी और सम्मान मिले। “इंकलाब ज़िंदाबाद” का नारा आज भी हमारे दिलों में गूंजता है—यह नारा अब बदलाव की पुकार है।