-सुभाष मिश्र
भारत आज विकास के जिस सुनहरे दौर से गुजर रहा है, वह अभूतपूर्व है। सड़कें, रेल, बंदरगाह और स्मार्ट शहर हर क्षेत्र में बुनियादी ढांचे का विस्तार हो रहा है। भारतमाला परियोजना जैसी महत्वाकांक्षी योजनाए3 देश के सुदूर कोनों को जोड़ रही हैं, आर्थिक गलियारे बना रही हैं और ग्रामीण भारत को मुख्य धारा से जोड़ रही हैं लेकिन इस चमकती तस्वीर के पीछे एक कड़वा सच भी है। भ्रष्टाचार का साया जो विकास की इस रफ्तार को धीमा कर रहा है। छत्तीसगढ़ में भारतमाला परियोजना के तहत भूमि अधिग्रहण और मुआवजे में हुए घोटाले इसका ताजा उदाहरण हैं। सवाल उठता है कि क्या हम विकास की कीमत भ्रष्टाचार से चुकाएंगे, या इस बीमारी का इलाज ढूंढ पाएंगे?
भारतमाला: विकास का एक नया अध्याय
भारतमाला परियोजना भारत की सड़क अवसंरचना को नई ऊंचाइयों पर ले जाने का एक साहसिक कदम है। 2017 में शुरू हुई इस परियोजना का लक्ष्य 83,677 किलोमीटर नए राजमार्गों का निर्माण करना है, जिसमें 44 आर्थिक गलियारे शामिल हैं, जो 26,200 किलोमीटर तक फैले हैं। यह परियोजना 550 जिला मुख्यालयों को न्यूनतम चार-लेन राजमार्गों से जोड़ेगी। जो पहले केवल 300 जिलों तक सीमित था। आर्थिक गलियारों की संख्या 6 से बढ़ाकर 50 करने का लक्ष्य है। इसके तहत सुरंगें, पुल, फ्लाईओवर, बाईपास, और रिंग रोड बनाए जा रहे हैं ताकि जाम-मुक्त और तेज कनेक्टिविटी सुनिश्चित हो।
28 फरवरी 2025 तक 26,425 किलोमीटर की परियोजनाओं को मंजूरी मिल चुकी है और 19,826 किलोमीटर का निर्माण पूरा हो चुका है। यह परियोजना महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा से लेकर हिमालयी राज्यों जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड—और पूर्वोत्तर के सिक्किम, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम तक फैली है। रायपुर-विशाखापट्टनम इकोनॉमिक कॉरिडोर इसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो छत्तीसगढ़ में 124 किलोमीटर सड़क निर्माण को कवर करता है।
इस परियोजना के लाभ स्पष्ट हैं। यह रसद लागत को 15-20 प्रतिशत तक कम करेगी, व्यापार और निर्यात को बढ़ावा देगी और सीमावर्ती व ग्रामीण क्षेत्रों में रणनीतिक और आर्थिक विकास को गति देगी लेकिन इस विकास की नींव में भ्रष्टाचार की दीमक लग चुकी है और छत्तीसगढ़ इसका जीता-जागता सबूत है।
छत्तीसगढ़ में मुआवजा घोटाला: भ्रष्टाचार का नंगा नाच
छत्तीसगढ़ में भारतमाला परियोजना के तहत रायपुर-विशाखापट्टनम कॉरिडोर के लिए भूमि अधिग्रहण में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं सामने आई हैं। अभनपुर, तारखेल, उरला जैसे क्षेत्रों में मुआवजा वितरण में घोटाले ने स्थानीय किसानों और भूस्वामियों को ठगा है। आर्थिक अपराध शाखा की जाँच में चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं।
यह घोटाला न केवल पैसों की हेराफेरी का मामला है बल्कि एक सुनियोजित साजिश का परिणाम है। अधिकारियों, ठेकेदारों और भूमाफियाओं ने मिलकर एक ऐसा तंत्र बनाया, जिसमें फर्जी दस्तावेजों, खसरा हेरफेर और गलत नामांतरण के जरिए करोड़ों रुपये का बंदरबांट किया गया। उदाहरण के लिए भूमि अधिग्रहण नियम 2013 के तहत 500 वर्गमीटर से कम जमीन के लिए अधिक मुआवजा देने का प्रावधान है। इस नियम का दुरुपयोग करते हुए एक एकड़ जमीन, जिसका मुआवजा 20 लाख रुपये होना चाहिए था, को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटकर 1 करोड़ रुपये तक का मुआवजा बांटा गया।
अभनपुर में 330 करोड़ रुपये के घोटाले की बात सामने आई है, जिसमें 1.3929 हेक्टेयर जमीन के 17 भूस्वामियों को 97 भूस्वामियों में बदल दिया गया। रायपुर-विशाखापट्टनम कॉरिडोर के लिए 600 करोड़ रुपये का मुआवजा वितरित किया गया, लेकिन कई किसानों को अभी तक उनका हक नहीं मिला। नरेंद्र पारख जैसे भूस्वामियों ने बताया कि उनकी 39 डिसमिल जमीन का 1.36 करोड़ रुपये का मुआवजा हृदय लाल गिलहरे नामक व्यक्ति को दे दिया गया, जिसने पैसा निकालकर खाता बंद कर लिया। अमित पाण्डेय को 29 करोड़ के बजाय 17 करोड़ रुपये मिले और बाकी 12 करोड़ का कोई अता-पता नहीं।
ईओडब्ल्यू ने 11 जिलों रायपुर, धमतरी, कांकेर, कोंडागांव, कोरबा, रायगढ़, जशपुर, राजनांदगांव, दुर्ग, बिलासपुर और जांजगीर-चांपा—में जाँच का दायरा बढ़ाया है। अप्रैल 2025 में 20 ठिकानों पर छापेमारी के बाद 4 अधिकारियों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें पूर्व एसडीएम निर्भय साहू, तहसीलदार, पटवारी, और ठेकेदार शामिल हैं। बीजेपी नेता ननकीराम कंवर ने 28 नवंबर 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर इस घोटाले की शिकायत की थी, जिसमें भू-माफियाओं को प्रोजेक्ट की जानकारी लीक करने और अधिकारियों की मिलीभगत का आरोप लगाया गया।
भ्रष्टाचार: विकास का सबसे बड़ा रोड़ा
यह पहली बार नहीं है जब किसी बड़े प्रोजेक्ट में भ्रष्टाचार का मुद्दा सामने आया हो। भारतमाला जैसी परियोजनाएं जो देश की आर्थिक रीढ़ को मजबूत करने का वादा करती हैं, भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रही हैं। छत्तीसगढ़ का घोटाला सिर्फ एक क्षेत्र तक सीमित नहीं है, यह एक व्यवस्थागत समस्या की ओर इशारा करता है। राजस्व अधिकारियों, ठेकेदारों और भू-माफियाओं का गठजोड़ न केवल सरकारी खजाने को नुकसान पहुँचा रहा है बल्कि उन किसानों और भूस्वामियों का विश्वास भी तोड़ रहा है, जिनकी जमीनें विकास के नाम पर अधिग्रहित की जा रही हैं।
यह विडंबना है कि एक तरफ सरकार पारदर्शिता और सुशासन की बात करती है, और दूसरी तरफ ऐसे घोटाले सामने आ रहे हैं। ईओडब्ल्यू की कार्रवाई और सीबीआई में दर्ज शिकायतें उम्मीद की किरण जरूर हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या ये कार्रवाइयाँ जड़ तक जाएंगी? कई बड़े अधिकारी अभी भी जांच के दायरे से बाहर हैं, और घोटाले की राशि के और बढऩे की आशंका है।
विकास और भ्रष्टाचार: दो कदम आगे, एक कदम पीछे
भारत का सड़क नेटवर्क तेजी से विकसित हो रहा है। 2014 में जहाँ राष्ट्रीय राजमार्ग 91,287 किमी थे, वहीं 2024 तक यह 146,195 किमी हो चुके हैं। निर्माण की गति 12.1 किमी/दिन से बढ़कर 33.8 किमी/दिन हो गई है। भारतमाला, पीएमजीएसवाय और हाई स्पीड कॉरिडोर जैसे प्रोजेक्ट इस बात का सबूत हैं कि सरकार अवसंरचना पर भारी निवेश कर रही है लेकिन भ्रष्टाचार इस विकास को एक कदम पीछे खींच रहा है।
छत्तीसगढ़ में हुए घोटाले से कई सबक मिलते हैं। पहला भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाने की जरूरत है। डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिए मुआवजा वितरण की निगरानी होनी चाहिए। दूसरा भ्रष्ट अधिकारियों और भू-माफियाओं पर सख्त कार्रवाई जरूरी है ताकि भविष्य में ऐसे कांड दोबारा न हों। तीसरा स्थानीय समुदाय को प्रोजेक्ट में शामिल करना चाहिए ताकि उनकी शिकायतें समय पर सुनी जाए।
आगे की राह
भारतमाला परियोजना जैसे प्रोजेक्ट भारत को वैश्विक आर्थिक शक्ति बनाने की दिशा में अहम कदम हैृ लेकिन अगर भ्रष्टाचार का यह सिलसिला जारी रहा तो विकास की चमक फीकी पड़ जाएगी। सरकार को चाहिए कि वह न केवल जांच को तेज करे, बल्कि ऐसी नीतियाँ बनाए जो भ्रष्टाचार की गुंजाइश को खत्म करें। छत्तीसगढ़ के किसानों और भूस्वामियों को उनका हक दिलाना समय की मांग है।
विकास और भ्रष्टाचार का यह टकराव नया नहीं है, लेकिन इसे खत्म करने की इच्छाशक्ति नई होनी चाहिए। भारतमाला परियोजना एक सपना है एक ऐसे भारत का, जहाँ सड़कें न केवल शहरों को, बल्कि सपनों को भी जोड़ें लेकिन इस सपने को साकार करने के लिए भ्रष्टाचार रूपी दीमक को जड़ से उखाडऩा होगा। क्या हम इसके लिए तैयार हैं?