-सुभाष मिश्र
भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध के हालात को लेकर विदेश सचिव विक्रम मिसरी और सेना की ओर से कर्नल सोफिया क़ुरैशी और व्यमिका सिंह को प्रतिदिन ब्रीफिंग करते देखकर देश के लोगों को अच्छा लगता है। खासकर उन लड़कियों को जो घर की चारदीवारी से बाहर निकलकर हर क्षेत्र में तरक्की की ऊँची उड़ान भरना चाहती हैं। बहुत बार चीज़ें उतनी सहज, सरल नहीं होती जितनी दिखती हैं। हम देवी पर्व मनाते हैं। स्त्री स्वरूप देवियों की विधि विधान से पूजा अर्चना करते हैं और कहते भी हैं कि यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:॥ यानी जहां स्त्रियों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं और जहां स्त्रियों की पूजा नही होती, उनका सम्मान नही होता, वहां किए गए समस्त अच्छे कर्म भी निष्फल हो जाते हैं। इस परंपरा और व्यवहार में हम इसका उल्ट देखते हैं। सेना में महिलाओं की स्थिति इसका ज्वलंत उदाहरण है। सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला। सेना में महिलाओं के लिए शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) और स्थायी कमीशन (पीसी) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 17 फरवरी 2020 को भारतीय सेना में शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) के तहत कार्यरत महिला अधिकारियों के लिए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्स्ष्ट के तहत कार्यरत सभी महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन (परमानेंट कमीशन) का अधिकार है, चाहे वे कितने समय से सेवा में हों। यह फैसला 2010 के दिल्ली हाईकोर्ट के निर्णय को बरकरार रखता है जिसे केंद्र सरकार ने चुनौती दी थी। इस फैसले में कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि महिलाओं को कमांड पोस्टिंग में तैनात करने का पूरा अधिकार है।
सरकार की दलील कि पुरुष सैनिक, खासकर ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाले, महिला अधिकारियों के नेतृत्व को स्वीकार नहीं करेंगे, को भेदभावपूर्ण और स्टीरियोटाइप आधारित बताकर खारिज कर दिया गया। लैंगिक समानता पर ज़ोर देते हुए कोर्ट ने कहा है की महिलाओं को स्थायी कमीशन और कमांड भूमिकाओं से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन है। जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि यह धारणा कि महिलाएं पुरुषों से कमजोर हैं, गलत और अस्वीकार्य है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा, मौजूदा स्थिति में हमें उनका मनोबल नहीं गिराना चाहिए। वे प्रतिभाशाली अधिकारी हैं, आप उनकी सेवाएं कहीं और ले सकते हैं, यह समय नहीं है कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट में इधर-उधर भटकने के लिए कहा जाए. उनके पास देश की सेवा करने के लिए एक बेहतर जगह है।
शीर्ष अदालत में याचिकाकर्ता महिला सैन्य अधिकारी कर्नल गीता शर्मा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी ने कर्नल सोफिया कुरैशी के मामले का उल्लेख किया, जो उन दो महिला अधिकारियों में से एक थीं जिन्होंने 7 और 8 मई को ऑपरेशन सिंदूर के बारे में मीडिया को जानकारी दी थी।
गुरुस्वामी ने कहा कि कर्नल कुरैशी को स्थायी कमीशन से संबंधित इसी तरह की राहत के लिए इस अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा था और अब उन्होंने देश को गौरवान्वित किया है। 17 फरवरी 2020 को शीर्ष अदालत ने कहा था कि सेना में स्टाफ नियुक्तियों को छोड़कर सभी पदों से महिलाओं को पूरी तरह बाहर रखा जाना अक्षम्य है और बिना किसी औचित्य के कमांड नियुक्तियों के लिए उन पर पूरी तरह से विचार न करना कानूनी रूप से सही नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने महिला अधिकारियों द्वारा हासिल की गई उपलब्धियों का भी उल्लेख किया तथा कर्नल कुरैशी की उपलब्धियों का उदाहरण भी दिया। 2020 के फैसले के बाद से, शीर्ष अदालत ने सशस्त्र बलों में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन के मुद्दे पर कई आदेश पारित किए हैं और इसी तरह के आदेश नौसेना, भारतीय वायु सेना और तटरक्षक बल के मामले में पारित किए गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिए कि अगली तारीख तक सभी महिला अधिकारियों को सेवा में रखा जाएगा। उनको रिलीव नहीं किया जाए। हालांकि ,यहां पर अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि इस निर्देश का मतलब सेवारत याचिकाकर्ताओं को राहत मिलना नहीं है। इस मामले में जो भी निर्णय लिया जाएगा, मेरिट के आधार पर तय किया जाएगा।
यहां यह बताना लाजि़मी है कि महिला अधिकारियों ने पहला सेवा विस्तार 1997 में प्राप्त किया, लेकिन 1999 में पेंशन योग्य सेवा के लिए सहमति पूछने का विकल्प ही समाप्त कर दिया गया और नई नीति के कारण केवल चार वर्ष का विस्तार दिया गया। इसके विरुद्ध महिला अधिकारियों ने दिल्ली हाईकोर्ट में मुकदमा दायर किया और 12 मार्च 2010 को ऐतिहासिक जीत हासिल की। वहीं, सरकार ने वायु सेना की महिला अधिकारियों को अगस्त 2010 में पेंशन योग्य सेवा के लिए पात्र घोषित किया क्योंकि उनकी भर्ती रक्षा मंत्रालय के नीति पत्र से समर्थित थी। थल सेना और नौसेना की महिला अधिकारियों के मामले सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचे और 2020 से 2023 के बीच उनके पक्ष में भी निर्णय आए।
सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार से फैसले का कार्यान्वयन तीन महीने के भीतर कर इस फैसले को लागू करने का निर्देश दिया गया। यह फैसला युद्धक भूमिकाओं को छोड़कर सभी शाखाओं पर लागू है, जैसे सिग्नल्स, इंजीनियर्स, आर्मी सर्विस कॉप्र्स, ऑर्डनेंस, इंटेलिजेंस आदि। 9 मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिए कि एसएससी की उन महिला अधिकारियों को सेवा से मुक्त न किया जाए, जिन्होंने स्थायी कमीशन से वंचित किए जाने के निर्णय को अदालत में चुनौती दी है। यह अगली सुनवाई तक लागू रहेगा।
हम यदि भारतीय सेना में महिलाओं की स्थिति की स्थिति और वर्तमान भागीदारी पर नजऱ डालें तो 2023 तक भारतीय सेना में लगभग 1,733 महिला अधिकारी और 100 अन्य रैंक की महिला कर्मी कार्यरत हैं। मेडिकल कोर में 1,212, डेंटल कोर और मिलिट्री नर्सिंग सर्विस में 3,841 महिलाएं सेवाएं दे रही हैं।2023 में, 128 महिला अधिकारियों को कर्नल जैसे उच्च पदों के लिए चुना गया, जो स्थायी कमीशन के बाद पदोन्नति का परिणाम है। 108 महिला अधिकारी विभिन्न हथियारों और सेवाओं में इकाइयों की कमान संभाल रही हैं, जो लैंगिक समानता की दिशा में एक बड़ा कदम है। महिलाएं अब राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए, सीडीएस, एएफसीएटी जैसे माध्यमों से सेना में प्रवेश कर रही है। 2021 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद एनडीए में महिलाओं के लिए प्रवेश खुल गया। सेना ने आर्टिलरी कोर में महिलाओं के लिए दरवाजे खोले हैं, हालांकि इन्फेंट्री और आर्मर्ड कोर में अभी प्रवेश नहीं है। कर्नल सोफिया कुरैशी जिनका नाम और चेहरा अब महिला सशक्तिकरण की मिसाल बन गया है, ऑपरेशन सिंदूर का सह-नेतृत्व करने वाली पहली महिला अधिकारी, जिनकी उपलब्धियों को सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में विशेष रूप से सराहा।
कैप्टन दिव्या अजित कुमार: 21 साल की उम्र में स्वॉर्ड ऑफ ऑनर जीतने वाली पहली महिला कैडेट।
मेजर मिताली मधुमिता: 2010 में काबुल में भारतीय दूतावास पर आतंकी हमले के दौरान लोगों की जान बचाने के लिए सेना मैडल पाने वाली पहली महिला।
कैप्टन तानिया शेरगिल: 2020 में गणतंत्र दिवस परेड में पुरुष सैनिकों के दल का नेतृत्व करने वाली पहली महिला।
हर तस्वीर के दो पक्ष होते हैं यही स्थिति कामकाजी महिलाओं के साथ सब जगह है। महिलाओं को पुरुष प्रधान मानसिकता वाले देश और समाज में कई तरह के जुर्म, अन्याय और शोषण से गुजरना पड़ता है। सेना का क्षेत्र इससे अछूता नहीं है सेना में महिलाओं की बढ़ती संख्या के साथ यौन उत्पीडऩ के मामले भी सामने आए हैं, जिन्हें संबोधित करने के लिए स्वतंत्र जांच आयोग की आवश्यकता बताई गई है। कमांड भूमिकाओं में महिलाओं की स्वीकार्यता को लेकर भी पुरुष प्रधान मानसिकता उजागर हो चुकी है। 2024 में एक विवादास्पद रिपोर्ट में लेफ्टिनेंट जनरल पुरी ने 8 महिला कमांडिंग अधिकारियों की क्षमताओं पर सवाल उठाए, जिसे सेना ने उनके व्यक्तिगत अनुभवों पर आधारित बताया।
यदि हम दुनिया भर में सेना में महिलाओं की भूमिका की पड़ताल करें तो हम पाते हैं कि संयुक्त राज्य अमेरिका में 2015 में सभी सैन्य भूमिकाएं, जिसमें युद्धक भूमिकाएं (काम्बेट रोल्स ) शामिल हैं, महिलाओं के लिए खोल दीं। आज, महिलाएं रेंजर्स, स्पेशल फोर्सेज और मरीन कॉप्र्स में सेवा दे रही हैं। 2020 तक, अमेरिकी सेना में 16 प्रतिशत से अधिक सैनिक महिलाएं थीं। मिशेल हॉवर्ड पहली महिला फोर-स्टार एडमिरल बनीं। अपनी रक्षा प्रणाली और युद्ध क्षमता को लेकर हमेशा दो चार करने वाले इजऱाइल में सैन्य सेवा पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए अनिवार्य है। महिलाएं इन्फेंट्री, टैंक यूनिट्स और फाइटर पायलट के रूप में कार्य करती हैं। करीब 33 प्रतिशत इजऱाइली रक्षा बल में महिलाएं हैं, और कई उच्च पदों पर हैं, जैसे मेजर जनरल ओरना बार्बिवाई। जर्मनी में 2001 से महिलाएं जर्मन सेना में सभी भूमिकाओं में शामिल हो सकती हैं, जिसमें युद्धक भूमिकाएं भी शामिल हैं। 2023 तक, जर्मन सेना में 13 प्रतिशत सैनिक महिलाएं हैं। ऑस्ट्रेलिया की बात की जाए तो 2013 में, ऑस्ट्रेलिया ने युद्धक भूमिकाओं में महिलाओं की भर्ती शुरू की। आज महिलाएं रॉयल ऑस्ट्रेलियन नेवी और आर्मी में कमांडिंग ऑफिसर के रूप में सेवा दे रही हैं। कैथी केली पहली महिला ब्रिगेडियर बनीं, जो एक युद्धक इकाई की कमान संभाल रही थीं। नॉर्वे में 1985 से महिलाओं को युद्धक भूमिकाओं में शामिल कर रहा है और 2015 से सैन्य सेवा को लैंगिक रूप से तटस्थ ([जेंडर न्यूट्रल) बना दिया। महिलाएं नॉर्वेजियन विशेष बलों में भी कार्यरत हैं। इसी तरह अमेरिका से लगे कनाडा में 1989 से कनाडाई सेना में महिलाएं युद्धक भूमिकाओं में शामिल हैं। जेनी कैरिग्नन 2021 में पहली महिला बनीं, जो कनाडाई सेना की युद्धक शाखा की कमांडर बनीं। हमारे मित्र राष्ट्र रूस में महिलाएं मुख्य रूप से सपोर्ट रोल्स (मेडिकल, लॉजिस्टिक्स) में हैं, लेकिन हाल के वर्षों में स्नाइपर और टैंक क्रू में उनकी भागीदारी बढ़ी है। हालांकि, युद्धक भूमिकाओं में उनकी संख्या सीमित है।
सुप्रीम कोर्ट का 2020 का फैसला भारतीय सेना में महिलाओं के लिए एक मील का पत्थर है, जिसने स्थायी कमीशन और कमांड भूमिकाओं के द्वार खोले। भारतीय सेना में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है और वे इंजीनियर्स, सिग्नल्स, ऑर्डनेंस और अब आर्टिलरी जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। विश्व स्तर पर अमेरिका, इजऱाइल, जर्मनी जैसे देशों में महिलाएं युद्धक और नेतृत्वकारी भूमिकाओं में अग्रणी हैं जो भारत के लिए प्रेरणा का स्रोत हो सकता है। हालांकि, भारत में अभी भी यौन शोषण और सामाजिक धारणाओं जैसे मुद्दों को संबोधित करने की आवश्यकता है ताकि पूर्ण लैंगिक समानता हासिल की जा सके।