Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – धर्म की राजनीति अब सड़क पर

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र
इस समय उत्तर प्रदेश में रोज एक न एक ऐसे बयान आदेश आ रहे हैं, जो देश में हिन्दू मुस्लिम सौहार्द को कम कर रहे हैं। योगी आदित्यनाथ इस समय संघ की सीख को एकतरफ रखकर ऐसी बातें कर रहे हैं जिसे लेकर आरएसएस ने बीच-बीच में अपना स्पष्ट मत व्यक्त किया है। अयोध्या की बाबरी मस्जिद विवाद से शुरू हुई उत्तर प्रदेश की धार्मिक राजनीति अब व्हाया संभल, मथुरा, काशी की ओर जाती दिख रही है। लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से भाजपा को उतनी सफलता नहीं मिली जो अपेक्षित थी। अब 2027 में उत्तरप्रदेश चुनाव के लिए धार्मिक, सांप्रदायिक वैमनसत्ता की बिसात बिछाई जा रही है। इस राजनीति में अब बिहार के चुनाव की आँच भी आने लगी है। एक ओर भाजपा के नेता सड़क पर नमाज़ का विरोध कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर बिहार में मुस्लिमों को सौग़ातें ए मोदी के रूप में सैंवईयां कपड़े पैकेट में रखकर बाँटे जा रहे हैं।
सड़क पर नमाज़ को लेकर हाल के दिनों में भारत के कई हिस्सों, खासकर उत्तर प्रदेश, दिल्ली और अब बिहार में, राजनीतिक विवाद बढ़ता जा रहा है। यह मुद्दा सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक स्तर पर बहस का केंद्र बन गया है। इसे बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में आगामी चुनावों के संदर्भ में ध्रुवीकरण की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।
सड़क पर नमाज़ का मुद्दा तब सुर्खियों में आया जब कुछ राज्यों में प्रशासन ने इसे रोकने के लिए कदम उठाए, जैसे उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा सार्वजनिक स्थानों पर नमाज़ पढऩे पर पाबंदी और लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर सख्ती की बात कहीं है। दिल्ली और अब बिहार में भी इस पर सियासी बयानबाजी शुरू हो गई है। भाजपा इसे ‘सार्वजनिक व्यवस्थाÓ और ‘समान नियमÓ के नाम पर उठाती है, जबकि विपक्षी दल जैसे राजद, सपा और कांग्रेस इसे अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव और धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला करार देते हैं। बिहार में नीतीश कुमार की सरकार और तेजस्वी यादव जैसे नेताओं के बयानों ने इसे और गरमा दिया है। बिहार और उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हमेशा से जाति और धर्म के समीकरणों पर लड़े जाते रहे हैं। सड़क पर नमाज़ का मुद्दा उठाकर कुछ राजनीतिक दल धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने की कोशिश कर सकते हैं। भाजपा और सहयोगी दल इसे ‘माइनॉरिटिज्मÓ के खिलाफ अपनी नीति के तौर पर पेश करते हैं, जिससे हिंदू वोटों का एकीकरण हो सके। दूसरी ओर, विपक्ष इसे मुस्लिम समुदाय के बीच अपनी पैठ मजबूत करने के लिए इस्तेमाल कर रहा है। उदाहरण के तौर पर, उत्तर प्रदेश में 20फीसदी से अधिक मुस्लिम आबादी है, और बिहार में भी यह 17फीसदी के करीब है। ऐसे में, यह मुद्दा दोनों पक्षों के लिए वोट बैंक को प्रभावित करने का हथियार बन सकता है।
मेरठ में काफी सालों से सड़कों पर ईद की नमाज पढ़ी जा रही है। इस बार पुलिस का कहना है कि अगर कोई आदेश का उल्लंघन करता है तो एफआईआर के साथ-साथ पासपोर्ट निरस्तीकरण की रिपोर्ट भी दी जाएगी, जिससे वह मक्का-मदीना की यात्रा न कर सकें। पुलिस ने साफ कर दिया है कि ईदगाह के सामने सड़क पर नमाज अदा न करें। इसी तरह की मांग बिहार से भी हुई है।
बिहार में बीजेपी विधायक नीरज कुमार बबलू ने मुस्लिमों के सड़क पर नमाज पढऩे पर रोक लगाने की मांग की है। साथ ही उन्होंने नवरात्रि पर नानवेज खाने पर भी प्रतिबंध की मांग की है। नीरज बबलू ने कहा कि ज्यादातर हिंदू समाज नवरात्रि में नॉनवेज नहीं खाते हैं। बैन हो जाए तो दिक्कत क्या है? पूजा-पाठ में नॉनवेज नहीं खाना चाहिए। बंद रहे तो दिक्कत नहीं है।
नेताओं से दो कदम आगे बढ़कर संभल के सीओ अनुज चौधरी ने कहा- सेवइयां खिलानी है तो गुझिया खानी पड़ेगी। संभल में घर की छतों और सड़कों पर नमाज पढऩे पर रोक लगा दी गई है। मस्जिद एवं ईदगाह के अंदर ही नमाज अदा की जाएगी। एएसपी ने कहा कि नियम के अनुसार ही सभी पर्व मनाए जाएंगे। कहीं भी कोई अशांति नहीं होगी।
दिल्ली, महाराष्ट्र में भी बीजेपी ने सड़कों पर नमाज का विरोध किया है। रमजान महीना चल रहा है और ईद-उल-फितर आने वाली है। दिल्ली के बीजेपी विधायक मोहन सिंह बिष्ट, बीजेपी विधायक शिखा राय ने कहा कि हमें किसी की नमाज से समस्या नहीं है लेकिन नमाज मस्जिद में पढि़ए। सड़क पर नमाज पढ़कर लोगों को परेशान न करें। बीजेपी विधायक तरविंदर मरवाह ने कहा कि नमाज़ तो मस्जिद में पढ़ी जाती है। कई जगह पर सड़क पर भी नमाज पढ़ते हैं लेकिन सड़क पर नमाज पढ़ी जाती है तो लोगों को असुविधा होती है। आम लोगों को परेशानी न हो, किसी को नमाज से समस्या नहीं है बस लोगों को असुविधा न हो। जहां नमाज पढ़ी जाती है, वहीं पर पढ़ें। आम आदमी पार्टी के विधायक चौधरी जुबैर अहमद ने कहा कि दिल्ली में सड़कों पर नमाज नहीं होती है। कुछ जगह सड़क पर मजबूरी में होती होगी क्योंकि कई बार मस्जिद में जगह नहीं होती है। रमजान चल रहा है, बीजेपी के पास कोई काम नहीं है। कभी मीट, कभी अजान, कभी नमाज पर बोलते रहते हैं।
सड़क पर नमाज पढऩे को लेकर संसद में भी विवाद गरमाया हुआ है। आरजेडी सांसद मनोज कुमार झा कहा कि यह कैसा शासन है? आपको (सरकार को) शर्म आनी चाहिए कि कौन सा निजाम चल रहा है। क्या उन्हें संविधान का ज्ञान है? उन्हें शर्म आनी चाहिए। समाजवादी पार्टी के सांसद आनंद भदौरिया ने सीएम योगी पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि यूपी में महंगाई, बेरोजगारी, महिलाओं पर अत्याचार, किसानों की समस्या और गन्नों का भुगतान बड़ी समस्याएं हैं। इन सभी मुद्दों से ध्यान हटाने और सवालों से बचने के लिए भाजपा के पास कोई जवाब नहीं है। इसलिए यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ का प्रिय विषय हिंदू-मुसलमान है और इसी वजह से वे बयानबाजी कर रहे हैं। मुझे लगता है कि जैसे-जैसे 2027 का चुनाव नजदीक आता जाएगा, तो इस तरीके के और भी बयान देखने को मिलेंगे। कुछ लोग शमशान में जाकर नमाज़ पढऩे की सलाह दे रहे हैं।
मेरठ पुलिस की अलविदा नमाज़ यानी ईद के समय जुम्मे की आखऱी नमाज़ जिसमें सारा मुस्लिम समाज जुटता है उस ईद की नमाज को लेकर जो फरमान जारी किया है। वह चर्चा में है। सड़क पर नमाज बैन करने के फरमान एनडीए की सहयोगी और केंद्र सरकार में मंत्री जयंत चौधरी भड़क गये और उन्होंने उत्तर प्रदेश पुलिस के इस आदेश की तुलना जॉर्ज ऑरवेल के प्रसिद्ध उपन्यास 1949 में वर्णित पुलिसिंग से की है। यह उपन्यास एक काल्पनिक देश की निरंकुश सत्ता को केन्द्र में रखकर लिखी गई है जिसकी पुलिस भी निरंकुश है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है, लेकिन यह अधिकार ‘सार्वजनिक व्यवस्था, स्वास्थ्य और नैतिकताÓ के अधीन है। सड़क पर नमाज़ से यातायात और सार्वजनिक सुविधा में बाधा की शिकायतें उठती रही हैं, जिसे सरकारें नियंत्रित करने का दावा करती हैं। दूसरी ओर, संविधान का अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार देता है, जिसके तहत नियम सभी धर्मों पर एक समान लागू होने चाहिए। मिसाल के तौर पर, कांवड़ यात्रा ,रथ यात्रा, भंडारा, गणेश पंडाल, दुर्गा पंडाल या होली जैसे हिंदू आयोजनों में भी सड़कें प्रभावित होती हैं, लेकिन उन पर वैसी सख्ती नहीं दिखती तब लोगों को सरकार और प्रशासन की नियत पर संदेह होता है। होली पर मस्जिदों को ढकने के बाद अब इस तरह के ऊलजलूल आदेश देना। सरकार बार-बार अपने विज्ञापनों और अलग-अलग अवसरों पर सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास का नारा देती है तो ये क्या सबका विकास और विश्वास है? सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों (जैसे चर्च ऑफ गॉड फुल गॉस्पेल बनाम के.के.आर. मजेस्टिक कॉलोनी वेलफेयर असोसिएशन, 2000) में कहा है कि धार्मिक प्रथाओं को सार्वजनिक व्यवस्था में बाधा नहीं डालनी चाहिए। सरकार की भूमिका निष्पक्ष और तर्कसंगत नीतियां बनाने की होनी चाहिए।
सड़क पर नमाज़ का मुद्दा निश्चित रूप से बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में चुनावी ध्रुवीकरण को हवा दे सकता है, खासकर जहाँ वोट बैंक की राजनीति हावी है। सरकार को संविधान और कानून के दायरे में रहते हुए निष्पक्षता दिखानी चाहिए, ताकि धार्मिक स्वतंत्रता और सार्वजनिक व्यवस्था में संतुलन बना रहे। अगर यह सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल हो रहा है, तो यह सामाजिक सौहार्द के लिए नुकसानदायक हो सकता है।

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