Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – जल विवाद- भारत में गहराता पेयजल संकट

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

भारत, जहां नदियों को जीवनदायिनी माना जाता है, आज जल संकट के गंभीर दौर से गुजर रहा है। हाल के दिनों में हरियाणा और पंजाब के बीच भाखड़ा नहर के पानी को लेकर छिड़ा विवाद इस संकट की एक ताजा मिसाल है। यह विवाद न केवल दो राज्यों के बीच तनाव का कारण बना है, बल्कि देश में पेयजल और सिंचाई जल प्रबंधन की व्यापक चुनौतियों को भी उजागर करता है। इस संकट की जड़ें गहरी हैं और इसके समाधान के लिए तत्काल, समन्वित और दीर्घकालिक प्रयासों की आवश्यकता है।
पंजाब और हरियाणा के बीच जल बंटवारे का विवाद कोई नया नहीं है। सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर को लेकर दशकों से चली आ रही कानूनी और राजनीतिक खींचतान अब भाखड़ा नहर के पानी के आवंटन तक पहुंच गई है। हाल ही में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने हरियाणा को अतिरिक्त पानी देने से इनकार करते हुए कहा कि पंजाब स्वयं जल संकट से जूझ रहा है और हरियाणा अपने कोटे का 44 लाख एकड़ फीट पानी पहले ही उपयोग कर चुका है। दूसरी ओर, हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने पंजाब पर पानी रोकने का आरोप लगाते हुए केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है। पंजाब का दावा है कि उसके डैमों में पानी की कमी है, जबकि हरियाणा का कहना है कि भाखड़ा नहर से उसे प्रतिदिन 8,500 क्यूसेक पानी मिलना चाहिए, जो अब घटकर 4,000 क्यूसेक रह गया है।
इस विवाद का असर हरियाणा के कई जिलों, जैसे हिसार, फतेहाबाद, सिरसा, जींद और कैथल में दिखाई दे रहा है, जहां पेयजल और सिंचाई के लिए पानी की भारी किल्लत हो गई है। टैंकर माफिया का बोलबाला बढ़ गया है और पानी की कीमतें आसमान छू रही हैं। दिल्ली भी इस विवाद की चपेट में आ गई है, जहां जल मंत्री ने पंजाब पर यमुना का पानी रोकने का आरोप लगाया है। यह स्थिति न केवल जल प्रबंधन की कमी को दर्शाती है, बल्कि राज्यों के बीच समन्वय और विश्वास की कमी को भी उजागर करती है।
हरियाणा-पंजाब विवाद भारत में जल संकट का केवल एक पहलू है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, देश के 60 करोड़ से अधिक लोग पानी की गंभीर कमी का सामना कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि भारत के कई राज्य, विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा और राजस्थान, भूजल के अत्यधिक दोहन के कारण चरम संकट की ओर बढ़ रहे हैं। भारत दुनिया में भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के संयुक्त उपयोग से भी अधिक है। पंजाब और हरियाणा जैसे कृषि प्रधान राज्यों में धान और गन्ने जैसी जल-गहन फसलों की खेती ने भूजल स्तर को खतरनाक रूप से नीचे धकेल दिया है।
शहरी क्षेत्रों में भी स्थिति गंभीर है। दिल्ली, चेन्नई, बेंगलुरु और हैदराबाद जैसे शहर शून्य भूजल स्तर की ओर बढ़ रहे हैं। अनियोजित शहरीकरण, कंक्रीट के जंगल और वर्षा जल संचयन की कमी ने इस संकट को और गहरा दिया है। जल प्रदूषण भी एक बड़ी समस्या है, क्योंकि नदियां और जलाशय औद्योगिक और घरेलू कचरे से दूषित हो रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में, पुरानी सिंचाई तकनीकों और जल प्रबंधन की कमी ने पानी की बर्बादी को बढ़ावा दिया है।
इस संकट से निपटने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। सबसे पहले, राज्यों के बीच जल बंटवारे को लेकर एक पारदर्शी और वैज्ञानिक तंत्र विकसित करना होगा। भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) जैसे संस्थानों को राजनीतिक दबाव से मुक्त रखते हुए उनकी भूमिका को मजबूत करना चाहिए। केंद्र सरकार को हरियाणा-पंजाब जैसे विवादों में तटस्थ मध्यस्थ की भूमिका निभानी होगी।
दूसरे, जल संरक्षण और प्रबंधन पर ध्यान देना होगा। ड्रिप इरिगेशन और स्प्रिंकलर जैसी आधुनिक सिंचाई तकनीकों को बढ़ावा देना, कम पानी वाली फसलों को प्रोत्साहित करना और वर्षा जल संचयन को अनिवार्य करना आवश्यक है। शहरी क्षेत्रों में रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को सख्ती से लागू करना होगा, जैसा कि 2016 में दिल्ली हाईकोर्ट ने आदेश दिया था।
एक पुरानी कहावत है- बिन पानी सब सून ! 15 अधिक नदियों वाले छत्तीसगढ़ की हालत कुछ ऐसी ही होने वाली है। ये हम नहीं कह रहे हैं बल्कि आंकड़े और हालात बयां कर रहे हैं। राज्य में कहीं लोग पानी को लेकर भूख हड़ताल पर बैठ रहे हैं तो कहीं शादियां टूट रही हैं। कई जगहों पर लोगों के लिए साफ पानी एक सपना जैसा बन चुका है। राज्य की प्रमुख नदियों में शामिल अरपा सूखने के कगार पर पहुंच चुकी है। दुर्ग जिले के अंजोरा ढाबा गांव में तो संकट इतना भीषण है कि लोग पानी के लिए अनिश्चित कालीन भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं। राजधानी रायपुर के रीवां गांव में कोई लड़की बहू बनकर नहीं आना चाह रही है क्योंकि वो अपनी प्यास से समझौता नहीं करना चाहती।
गर्मी के बढ़ते प्रकोप के बीच बिलासपुर की अरपा नदी खुद अपनी सूखती धारा में अपना ही अक्स ढूंढ रही है। आने वाले वक्त में अरपा को ढूंढना भी मुश्किल हो जाएगा। बेमेतरा जिले के गाँव भी जल समस्या से बुरी तरह प्रभावित हैं। यहां की नदियां भी करीब-करीब सूख गई हैं। नदी सूखने के कारण नल, बोरिंग कुछ नहीं चल रहा है। ऐसा पहली बार हुआ है कि यहां नदी सूख गई है।
छत्तीसगढ़ में इंद्रावती जल विवाद मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ और ओडिशा राज्यों के बीच है। यह विवाद इंद्रावती नदी के जल बंटवारे को लेकर है, जो दोनों राज्यों की सीमा से होकर बहती है। ओडिशा इंद्रावती नदी के पानी को अपने राज्य में ही उपयोग करना चाहता है, जबकि छत्तीसगढ़ राज्य अपनी आवश्यकता के अनुसार नदी के पानी का उपयोग करना चाहता है। छत्तीसगढ़ के अनुसार, ओडिशा राज्य ने जोरा नाला नामक एक नाले के माध्यम से इंद्रावती नदी के पानी को छत्तीसगढ़ की सीमा में प्रवेश करने से रोक दिया है। दोनों राज्यों के बीच इंद्रावती नदी के जल बंटवारे को लेकर कई समझौते हुए हैं, लेकिन ओडिशा ने इन समझौतों का पालन नहीं किया है। छत्तीसगढ़ सरकार ने इंद्रावती जल विवाद को लेकर ओडिशा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।
छत्तीसगढ़-ओडिशा के बीच महानदी जल विवाद भी कई सालों से जारी है।
महानदी का उद्गम छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के सिहावा पर्वत से होता है। यह नदी 885 किलोमीटर लंबी है और छत्तीसगढ़ में 285 किलोमीटर तक बहती है। इसकी प्रमुख सहायक नदियों में पैरी, सोंढुर, शिवनाथ, हसदेव, अरपा, जोंक और तेल शामिल हैं। इस नदी पर छत्तीसगढ़ में रुद्री बैराज व गंगरेल बांध, जबकि ओडिशा में हीराकुंड बांध स्थित है। विवाद की जड़ हीराकुंड बांध से जुड़ी है। यह बांध ओडिशा के संबलपुर जिले में स्थित है, जिसे केंद्र सरकार ने बनवाकर ओडिशा को सौंपा था। जब भी गर्मियों में इस बांध में जलस्तर कम होता है, ओडिशा सरकार छत्तीसगढ़ से अधिक पानी की मांग करती है। यह विवाद 1983 से चला आ रहा है और वर्तमान में यह सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बीच महानदी जल विवाद को लेकर बीते 42 वर्षों से जारी तनाव को सुलझाने के लिए दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री सकारात्मक पहल की ओर बढ़ रहे हैं। दोनों मुख्यमंत्रियों के बीच महानदी विवाद के मुद्दे पर चर्चा हुई, जिसमें सौहार्दपूर्ण समाधान निकालने पर सहमति बनी। इस दिशा में जल्द ही दोनों राज्यों के अधिकारियों की उच्च स्तरीय बैठक होने की संभावना है।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कहा कि आपराधिक मुकदमों या कानूनी लड़ाई से बेहतर है कि दोनों राज्य आपसी सहमति से इसका समाधान निकालें।
तीसरे, जल प्रदूषण को रोकने के लिए सख्त कानूनों और उनकी प्रभावी निगरानी जरूरी है। उद्योगों को अपशिष्ट जल के शोधन और पुन: उपयोग के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। साथ ही, जन जागरूकता अभियान चलाकर पानी को मुफ्त संसाधन समझने की मानसिकता को बदलना होगा।
हरियाणा-पंजाब जल विवाद और देश में गहराता पेयजल संकट हमें चेतावनी दे रहा है कि जल प्रबंधन में देरी अब और बर्दाश्त नहीं की जा सकती। यह केवल हरियाणा, पंजाब या दिल्ली का मसला नहीं है, बल्कि पूरे देश की भविष्य की सुरक्षा का सवाल है। केंद्र और राज्य सरकारों को राजनीतिक लाभ से ऊपर उठकर एकजुट होकर काम करना होगा। अगर आज हमने ठोस कदम नहीं उठाए, तो आने वाली पीढिय़ों को पानी के लिए तरसना पड़ सकता है। जल है तो जीवन है—इस सत्य को हमें अब आत्मसात करना होगा।

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