Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – राहुल गांधी का राम पौराणिक हैं.. बयान और भारतीय राजनीति में धर्म

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

कांग्रेस नेता राहुल गांधी का हालिया अमेरिका दौरा एक बार फिर विवादों का केंद्र बन गया है। ब्राउन यूनिवर्सिटी के वाटसन इंस्टीट्यूट में दिए गए उनके बयान, जिसमें उन्होंने भगवान राम को पौराणिक चरित्र कहा और हिंदू धर्म को क्षमाशील, सहिष्णु और समावेशी विचारधारा के रूप में प्रस्तुत किया, उनके इस बयान ने भारत में तीखी राजनीतिक प्रतिक्रियाएं उत्पन्न की है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस बयान को हिंदू विरोधी और राम विरोधी करार देते हुए कांग्रेस पर निशाना साधा है। यह पहली बार नहीं है जब राहुल गांधी के बयानों ने धार्मिक भावनाओं को लेकर विवाद खड़ा किया हो। उनकी अमेरिका यात्राओं के दौरान दिए गए वक्तव्यों ने अक्सर भारतीय राजनीति में तूफान खड़ा किया है और यह घटना उसका नवीनतम उदाहरण है।
राहुल गांधी ने अपने भाषण में हिंदू राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्ष राजनीति के बीच संतुलन पर चर्चा करते हुए कहा, हमारे सभी पौराणिक चरित्र, भगवान राम ऐसे ही थे, वो क्षमाशील थे, वो दयालु थे। मैं भाजपा की बातों को हिंदू विचार नहीं मानता। मैं मानता हूं कि हिंदू विचार सबको साथ लेकर चलने वाला है। उनका यह कथन हिंदू धर्म की समावेशी और उदार प्रकृति को रेखांकित करने का प्रयास प्रतीत होता है। उन्होंने भाजपा को फ्रिंज ग्रुप (सीमांत समूह) कहकर यह दावा किया कि उनकी विचारधारा भारत की बहुसंख्यक जनता के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करती।
हालांकि, पौराणिक चरित्र शब्द का उपयोग भाजपा के लिए एक अवसर बन गया। पौराणिक चरित्र यानी जिसका पुराणों में उल्लेख है। भाजपा प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने सोशल मीडिया पर इस बयान का एक क्लिप साझा करते हुए आरोप लगाया कि राहुल गांधी ने भगवान राम को काल्पनिक कहकर हिंदू आस्था का अपमान किया है। यह विवाद उस समय और गहरा गया जब भाजपा ने 2007 के उस हलफनामे का जिक्र किया, जिसमें यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में राम सेतु को मानव-निर्मित मानने से इनकार किया था। हालांकि, उस हलफनामे को भारी विरोध के बाद वापस ले लिया गया था।
क्या राहुल गांधी ने राम को काल्पनिक कहा?
राहुल गांधी के बयान को सावधानी से देखें तो यह स्पष्ट है कि उन्होंने भगवान राम को काल्पनिक नहीं, बल्कि पौराणिक कहा। अंग्रेजी में मायथोलॉजिकल ( पौराणिक ) और फिक्शिनल (काल्पनिक) दो अलग-अलग शब्द हैं। मायथोलॉजिकल का अर्थ है पौराणिक कथाओं से संबंधित जो धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखती है, जबकि च्च्फिक्शिनलज्ज् का अर्थ काल्पनिक या मनगढ़ंत होता है। राहुल ने अपने भाषण में हिंदू धर्म की उदारता और सहिष्णुता को रेखांकित करने के लिए भगवान राम का उदाहरण दिया न कि उनके अस्तित्व पर सवाल उठाया।
फिर भी भाजपा ने इस बयान को तोड़-मरोड़कर इसे हिंदू आस्था के खिलाफ एक हमले के रूप में प्रस्तुत किया। भाजपा की यह रणनीति नई नहीं है। राहुल गांधी के पिछले बयानों, जैसे कि 2019 में मोदी सरनेम टिप्पणी या 2024 में लोकसभा में हिंदू धर्म पर की गई टिप्पणी को भी इसी तरह विवाद का रूप दिया गया था। भाजपा ने राहुल के बयान को तुरंत हिंदू विरोधी करार दिया। पार्टी प्रवक्ता सीआर केसवन ने 2007 के हलफनामे का हवाला देते हुए दावा किया कि कांग्रेस की हिंदू विरोधी मानसिकता अब खुलकर सामने आ रही है। यह आरोप भी लगाया गया कि राहुल गांधी ने राम मंदिर निर्माण का विरोध किया और भगवान राम के अस्तित्व पर सवाल उठाए। यहां यह समझना जरूरी है कि राहुल गांधी ने राम मंदिर के प्रति कांग्रेस की स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा था कि पार्टी मंदिर निर्माण का समर्थन करती है, लेकिन वह इसे राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाना चाहती। फिर भी भाजपा ने इस बयान को हिंदू भावनाओं के खिलाफ एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया।
जबकि इस मुद्दे को हाईकोर्ट में लाने वाले का नाम पेरियार और ललई सिंह यादव हैं, जिन्होंने रामायण को एक काल्पनिक ग्रंथ कहा था। सुप्रीम कोर्ट का मुकदमा नंबर 291/1971, जिसका निर्णय 16 सितंबर 1976 को दिया गया था, उत्तर प्रदेश राज्य बनाम ललई सिंह यादव से संबंधित था। इस मामले में, न्यायालय ने यह माना कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को विशिष्ट शर्तों के सख्त और स्पष्ट अनुपालन के बिना प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है।
सोशल मीडिया के दौर में किसी भी भाषण के किसी भी अंश का वीडियो क्लिप बनाकर विरोध में इस्तेमाल करना आम हो गया है। अधिकांश राजनीतिक दल ऐसा करते हैं। भाजपा इसे बेहद प्रिय अचूक हथियार की तरह इस्तेमाल करती है क्योंकि राजनीति में अब नैतिकता तो कब से विदा हो चुकी है। यह रणनीति 2024 के लोकसभा चुनावों में भी देखी गई, जब फैजाबाद (अयोध्या) सीट पर भाजपा की हार को राहुल ने राम की जन्मभूमि का संदेश बताया था।
राहुल गांधी के बयान अक्सर विवादों का कारण बनते हैं, खासकर जब वे विदेशी धरती पर दिए जाते हैं। 2023 में सैन फ्रांसिस्को में उन्होंने भारत में लोकतंत्र पर खतरे की बात की थी, जिसे भाजपा ने देश को बदनाम करने की कोशिश बताया। इन विवादों का एक पैटर्न यह है कि राहुल के बयानों को संदर्भ से हटाकर प्रस्तुत किया जाता है। उदाहरण के लिए 2024 में लोकसभा में उनके हिंदू हिंसा करते हैं, वाले बयान को भाजपा ने हिंदू धर्म के खिलाफ बताया, जबकि राहुल का इशारा भाजपा की नीतियों की ओर था। बाद में यह बयान सदन की कार्यवाही से हटा दिया गया।
राहुल गांधी के बयानों पर कानूनी कार्रवाई भी होती रही है। हाल ही में वीर सावरकर पर उनकी टिप्पणी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें फटकार लगाई और स्वतंत्रता सेनानियों का मजाक न उड़ाने की चेतावनी दी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में जारी समन को रद्द करने से इनकार कर दिया था। अलबत्ता सावरकर के बारे में इतिहासकार अशोक कुमार पांडे ने अपनी पुस्तक सावरकर काला पानी और उसके बाद में अनेक तथ्य दिए हैं। इधर, राहुल गांधी की नागरिकता को लेकर भी याचिकाएं दायर की गई हैं, जिन पर हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से स्पष्ट जवाब मांगा है।
राहुल गांधी का राम पौराणिक हैं बयान न तो भगवान राम के अस्तित्व को नकारता है और न ही हिंदू धर्म का अपमान करता है। उनका उद्देश्य हिंदू धर्म की समावेशी और सहिष्णु प्रकृति को उजागर करना था। फिर भी भाजपा ने इसे हिंदू आस्था के खिलाफ एक हमले के रूप में प्रस्तुत कर राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश की। यह भारतीय राजनीति में ध्रुवीकरण का एक और उदाहरण है, जहां धार्मिक भावनाओं को वोट बैंक के लिए हथियार बनाया जाता है।
राहुल गांधी को भी यह समझना होगा कि उनके बयानों को संदर्भ से हटाकर तोड़ा-मरोड़ा जा सकता है, खासकर जब वे विदेशी मंचों पर बोलते हैं लेकिन बौद्धिक जगत में इस बात की चर्चा होती है कि भारत ही नहीं वैश्विक बौद्धिक जगत में भी राहुल गांधी की इस बात के लिए प्रशंसा होती है कि भारतीय राजनीति के इस कथित दूषित और हिंसक समय में वे अपनी बात को साहस के साथ रखते हैं। दूसरी ओर भाजपा को भी यह विचार करना चाहिए कि हर बयान को धार्मिक आस्था से जोड़कर विवाद खड़ा करना क्या लंबे समय में देश के सामाजिक ताने-बाने को नुकसान नहीं पहुंचाएगा? भारतीय राजनीति को धार्मिक संवेदनशीलता के बजाय विकास और समावेशिता के मुद्दों पर केंद्रित करने की जरूरत है।

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