-सुभाष मिश्र
इस समय देश में हर तरफ लड़कियों के बढ़ते हुए हौसले हर क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाती लड़कियों को देखकर सहज ही नये भारत का अनुमान लगाया जा सकता है। मई-जून का महीना परीक्षाओं के परिणाम का महीना होता है जिनमें दसवीं बारहवी बोर्ड से लेकर नीट, आईआईटी और बहुत सारी प्रतियोगी परीक्षाओं के परिणाम आते है। छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल द्वारा घोषित परिणामों में लड़कों की तुलना में लड़कियों ने बाजी मारी है। 10 वीं और 12 वीं की मेरिट में टाप 20 में से 15 स्थान पर लड़कियां आगे है एसे नही कि टाप करने वाली लड़कियां संपन्न अभिजात्य वर्ग की हैं। उनमें मंदिर हसौद रायपुर में हमाली करने वाले भगवा यादव की बेटी धनेश्वरी यादव भी है जिसने 12 वीं बोर्ड में 94.40 प्रतिशत अंक हासिल कर सांतवा स्थान पाया है। धनेश्वरी की तहर बिना कोचिंग के परीक्षा में 96.40 प्रतिशत लाने वाली रूचिका साहू भी है। इसी तरह बहुत सी लड़कियों की कहानी है।
नए भारत की एक ऐसी तस्वीर उभर कर सामने आ रही है जिसमें लड़कियां और महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। शिक्षा, खेल, विज्ञान, तकनीक, राजनीति, और उद्यमिता जैसे विविध क्षेत्रों में उनकी उपलब्धियां न केवल प्रेरणादायक हैं, बल्कि समाज में लैंगिक समानता की दिशा में एक बड़ा कदम भी हैं। खास तौर पर प्रतियोगी परीक्षाओं में लड़कियों का प्रदर्शन उल्लेखनीय रहा है, जहां वे न सिर्फ लड़कों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं, बल्कि कई बार उनसे आगे निकल रही हैं।
भारत की सशस्त्र सेनाओं और रक्षा क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी हाल के वर्षों में उल्लेखनीय रूप से बढ़ी है। कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह जैसी महिलाएं इस बदलाव का प्रतीक हैं, जो न केवल सेना में नेतृत्वकारी भूमिकाएं निभा रही हैं, बल्कि रक्षा क्षेत्र में लैंगिक समानता को बढ़ावा दे रही हैं।
सेना में महिलाओं की संख्याओं भागीदारी की बात की जाये तो सशस्त्र सेनाओं में 2023 तक, भारतीय सशस्त्र सेनाओं में महिलाओं की संख्या 9,000 से अधिक हो गई है, जो 2014 में लगभग 3,000 थी। रक्षा मंत्रालय के अनुसार, 1 जनवरी 2023 तक थल सेना में 1,733 महिला अधिकारी और 100 अन्य रैंकों में महिला कर्मी कार्यरत हैं। वायु सेना में 1,654 महिला अधिकारी। नौसेना में 580 महिला अधिकारी और 726 महिला नाविक (अग्निवीर)। तीनों सेनाओं में कुल 11,414 महिलाएं तैनात हैं, जिनमें से 4,948 गैर-चिकित्सा/नर्सिंग भूमिकाओं में हैं। 2021 में, 83 महिलाओं को पहली बार थल सेना के मिलिट्री पुलिस कोर में सिपाही के रूप में शामिल किया गया, और 2023 में नौसेना में 273 महिलाएं नाविक के रूप में शामिल हुईं। वायु सेना में 2018 में 13.09फीसदी अधिकारी महिलाएं थीं, जो 2014 में 8.50फीसदी थी। 2020 में, तीन महिला अधिकारियों को लेफ्टिनेंट जनरल (या समकक्ष) रैंक प्राप्त थी, सभी मेडिकल सर्विसेज में। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है। टेसी थॉमस, जिन्हें ‘मिसाइल वुमन ऑफ इंडियाÓ कहा जाता है, ने अग्नि मिसाइल कार्यक्रम में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। महिलाएं अब केवल सहायक भूमिकाओं तक सीमित नहीं हैं। 2016 में, अवनी चतुर्वेदी, शिवांगी सिंह, और मोहना सिंह जैसी महिलाओं को वायु सेना में फाइटर पायलट के रूप में शामिल किया गया।
यदि हम प्रतियोगी परीक्षाओं में लड़कियों की उपलब्धियों की बात करें तो सिविल सेवा परीक्षा में हाल के वर्षों में लड़कियों ने शीर्ष स्थान हासिल किए हैं। उदाहरण के लिए, 2019 में कनिष्का कटारिया (एआईआर 1) के साथ-साथ सृष्टि जयंत देशमुख (एआईआर5, महिलाओं में प्रथम) ने अपनी मेहनत और लगन से देशभर में चर्चा बटोरी। 2020 में भी बिहार की श्रुति शर्मा ने ्रएआईआर1 हासिल कर यह साबित किया कि मेहनत और प्रतिभा के सामने कोई बाधा नहीं टिकती। लड़कियों की बढ़ती भागीदारी और सफलता दर ने सिविल सेवाओं में महिलाओं की उपस्थिति को और मजबूत किया है। नीट और जेईई जैसी प्रवेश परीक्षाएं मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं में भी लड़कियां शीर्ष रैंक हासिल कर रही हैं। 2020 में नीट टॉपर शोयब आफताब के साथ-साथ कई लड़कियों ने टॉप 10 में जगह बनाई। जेईई एंडवास में भी लड़कियों की रैंकिंग में सुधार देखा गया है, और आईआईटी में उनकी भागीदारी बढ़ रही है। विशेष रूप से, लड़कियों के लिए सुपरन्यूमेरेरी सीटों की शुरुआत ने इस दिशा में सकारात्मक बदलाव लाया है। कर्मचारी चयन आयोग (एसएसी) और बैंकिंग परीक्षाओं जैसे आईबीपीएसपीओ में भी लड़कियां शानदार प्रदर्शन कर रही हैं। इन क्षेत्रों में उनकी बढ़ती संख्या सरकारी नौकरियों में लैंगिक संतुलन को बढ़ावा दे रही है।
अन्य क्षेत्रों में महिलाओं की उपलब्धियों की बात की जाये तो शिक्षा और अनुसंधान की बात करें तो भारतीय विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों में महिलाएं न केवल शैक्षणिक उत्कृष्टता हासिल कर रही हैं, बल्कि एसटीईएम (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित) जैसे क्षेत्रों में भी योगदान दे रही हैं। खेल के क्षैत्र में महिलाओं ने बहुत से परचम फहराए हैं। पी.वी. सिंधु, साइना नेहवाल, मिताली राज, और मैरी कॉम जैसी खिलाडिय़ों ने वैश्विक मंच पर भारत का नाम रोशन किया है। हाल ही में, 2024 पेरिस ओलंपिक में महिला पहलवानों और निशानेबाजों ने पदक जीतकर देश को गौरवान्वित किया। उद्यमिता के क्षैत्र में फाल्गुनी नायर (नायका), किरण मजूमदार-शॉ (बायोकॉन), और इंद्रा नूयी (पूर्व पेप्सिको के सीईओ) जैसी महिलाएं कॉर्पोरेट और स्टार्टअप जगत में नेतृत्व की मिसाल पेश कर रही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में भी, स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) के जरिए लाखों महिलाएं आर्थिक स्वतंत्रता की ओर बढ़ रही हैं।
यदि हम भारत में लड़कियों की साक्षरता दर, शिक्षा स्तर, और आर्थिक स्थिति का आकलन करें तो 2011 की जनगणना के अनुसार कुल साक्षरता दर 74.04फीसदी थी। जिसमें पुरुष साक्षरता दर 82.14फीसदी महिला साक्षरता दर 65.46फीसदी (कुछ स्रोतों में 65.5फीसदी का उल्लेख) केरल में सबसे अधिक महिला साक्षरता दर (93.91फीसदी), जबकि बिहार (51.50फीसदी) और राजस्थान (52.12फीसदी) में सबसे कम है। 2021-22 में, उच्च शिक्षा में महिला नामांकन 2.07 करोड़ था, जो कुल नामांकन (4.33 करोड़) का लगभग 50फीसदी है। महिला संकाय और पुरुष संकाय का अनुपात 2014-15 में 63:100 से बढ़कर 2021-22 में 77:100 हो गया। ऐसा नहीं है की सारा परिदृश्य उजाला या कहें की सकारात्मक ही है कुछ अँधेरे पक्ष हैं बहुत सी चुनौतियॉं भी है। जिनमें ग्रामीण क्षेत्रों में, 40फीसदी से अधिक लड़कियां पांचवीं कक्षा से पहले पढ़ाई छोड़ देती हैं, और केवल 1फीसदी लड़कियां 12वीं कक्षा तक पहुंचती हैं। स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं (जैसे शौचालय, पेयजल) की कमी और रूढि़वादी सामाजिक मान्यताएं साक्षरता में बाधक हैं। ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओÓ ने स्कूलों में लड़कियों के नामांकन को बढ़ाया और ड्रॉपआउट दर को कम किया है। कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय योजना (2004) ने कम साक्षरता वाले क्षेत्रों में प्राथमिक शिक्षा को बढ़ावा दिया।
नए भारत की तस्वीर में लड़कियां और महिलाएं न केवल अपनी प्रतिभा और मेहनत से आगे बढ़ रही हैं, बल्कि समाज को भी प्रेरित कर रही हैं। प्रतियोगी परीक्षाओं में उनकी सफलता इस बात का प्रतीक है कि अवसर और समर्थन मिलने पर वे किसी भी क्षेत्र में शीर्ष पर पहुंच सकती हैं। यह बदलाव न सिर्फ उनके लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक उज्ज्वल भविष्य की नींव रख रहा है।
प्रसंगवश-
तेरे माथे पर ये आंचल बहुत ही खूब है लेकिन
तू इस आंचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था
-मजाज