-सुभाष मिश्र
छत्तीसगढ़ को बने 25 साल हो रहे हैं। इन 25 सालों में निर्माण, पुनर्निर्माण और पुर्नविकास का दौर चल रहा है। सौंदर्यीकरण के नाम पर चौक-चौराहों को अपने मनमर्जी से बनाना, फिर तोडऩा, डिवाइडर बनाना, साइकल ट्रैक बनाना, बनी बनाई सड़कों को तोडऩा फिर डामर की परत चढ़ाना फिर उखाडऩा। इसका यदि ताजा उदाहरण देखना है तो कचना की रोड सड़क चौड़ीकरण के रूप में देखा जा सकता है, जहां कुछ माह पहले सड़क बनाई गई अब फिर से उसे उखाड़ दी गई और उसे मजबूत करने के नाम पर बड़े बड़े बोल्डर डाले गए हैं। पब्लिक पहले भी परेशान थी और अब भी परेशान हैं। जिनको माल काटना है उनकी चांदी है। सड़क चौड़ीकरण के नाम पर जिनकी जमीन आ रही है उनको बड़ी-बड़ी राशि दिलाना, फिर उस पर सड़क बनाना, फिर उसी सड़क पर चौड़ीकरण के बाद उन्ही की दुकान सजाने का रिवाज बन गया है। जहां कहीं निर्माण की संसाधनों और उपकरणों की जरूरत नहीं है वहां निर्माण के नाम पर बिल्डिगें बनाना स्वास्थ्य से शिक्षा तक की उपकरण सामाग्री खरीदना तथा खरीदी और निर्माण के लिए पैसा कम पड़ जाए तो डीएमएफ (खनिज संपदा मद) से पैसा लेकर इसे पूरा करना अभिसरण के नाम पर मनरेगा के पैसे को अन्य मदों में खर्च करना। बगीचों में व्यायाम के नाम पर ओपन जिम बनाना और उसका बाद में फिर उसका रखरखाव नहीं करना। ऐसे बहुत सारे उदाहरण हैं जहां पर बिना पब्लिक इनवालमेंट और जरूरत के सामान अनाप-शनाप दरों पर खरीदे गए, निर्माण किए गए। नया रायपुर का करोड़ों रूपए से बना इमरसिव डोम सिनेमा पार्क है जो वर्षो से बंद पड़ा है। छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन (सीजीएमएससी) के रिएजेंट किट, दवा खरीदी में 750 करोड़ के घोटाले। नवा रायपुर में 40 करोड़ की लागत से बना सायकल ट्रैक बर्बाद। यह सब नए छत्तीसगढ़ में ठेकेदारी और सप्लायर की चैन को मजबूत करके आपसी साठगांठ कर विकास के नाम पर पैसा बनाने का नया खेल है। इस खेल में सरकार भले ही बदल जाए खिलाड़ी वहीं रहते हैं। इसी के बीच नेताओं और उनकी जी-हुजूरी करने वाले अधिकारियों की बल्ले-बल्ले हो गई है। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि राजधानी रायपुर समेत कई जिलों में पहले सड़कें बनाई जाती है, फिर उसे उखाड़ा जाता है और फिर से उसका निर्माण कराया जा रहा है।
शायद ऐसे ही दिनों के लिए जानेमाने कवि दुष्यंत कुमार ने लिखा था-
‘ख़ास सड़कें बंद हैं तबसे मरम्मत के लिए
यह हमारे वक्त की सबसे सही पहचान है।।
प्रदेश का शहरी विकास इसी ढर्रे पर चल रहा है। शहरी विकास के लिए सरकार तो लगातार प्रयास कर रही है पर नया करने के फेर में पहले से बनी बनाई सड़कों, चौक-चौराहों को उखाड़कर नया बनाती है। नया बनाने के इस खेल में नेता अधिकारी तो मालामाल हो जाते हैं, पर भुगतना पड़ता है आम जनता को। निर्माणाधीन स्थल पर सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं होती और लोग हादसे का शिकार हो जाते हैं बावजूद इसके अधिकारियों को कोई फर्क नहीं पड़ता।
राज्य सरकार ने अपने बजट में सड़क चौक-चौराहों, पुलिया निर्माण के लिए अरबों रूपए का बजट जारी किया है तो रायपुर नगर निगम ने भी राजधानी के विकास के लिए 15 सौ 29 करोड़ 53 लाख 28 हजार का बजट पेश किया है। इसमें ट्रैफिक व्यवस्था सुधारने के लिए 25-25 करोड़ रुपये में 2 मल्टीलेवल पार्किंग, 2 कॉमर्शियल कॉम्प्लेक्स, रायपुरा से महादेव घाट तक गौरव पथ का निर्माण किया जाएगा।18 प्रमुख चौराहों का पुनर्विकास किया जाएगा।
सौंदर्यीकरण के नाम पर राजधानी की सड़कों पर प्रयोग के नाम पर करोड़ों रूपए के वारे-न्यारे कर दिए गए। अगर इस मामले की जड़ में उतरें तो बड़ा भ्रष्टाचार भी उजागर हो सकता है।
छत्तीसगढ़ में स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत तीन शहरों को चुना गया है। जिसमें रायपुर, बिलासपुर, अटल नगर (नवा रायपुर) शामिल है। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत इन शहरों के नागरिकों को बेहतर सड़क बेहतर सुविधा और बेहतर उपचार उपलब्ध कराना है। तीनों के लिए ही अलग-अलग मानदंड तय कर वैसा ही काम शुरू भी किया था। हालांकि, परियोजनाओं को लागू करने में समय पर पूरा करने में देरी और धन की कमी सामने आई है। अकेले नया रायपुर अटल नगर में 200.84 करोड़ रुपये के खर्च का उल्लेख मिलता है, और विकास कार्य अभी भी जारी है। स्मार्ट सिटी के बड़े-बड़े साइनबोर्ड के अलावा ऐसा कुछ स्मार्ट नहीं हुआ जिसका जिक्र गर्व से किया जाए। स्मार्ट सिटी में आगे पाठ-पीछे सपाट जैसी कार्यप्रणाली जरूर विकसित हुई है।
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट भारत सरकार द्वारा भारत सरकार द्वारा चुनिंदा शहरों को तकनीकी रूप से उन्नत, पर्यावरण के अनुकूल और नागरिकों के लिए बेहतर जीवन स्तर प्रदान करने वाला बनाना है। इसकी शुरुआत 25 जून 2015 को हुई थी और इसका लक्ष्य भारत के 100 शहरों को स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित करना है। इस प्रोजेक्ट के तहत आधारभूत संरचना को मजबूत करने, डिजिटल और सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग करने और शहरी नियोजन में सुधार करने पर ध्यान दिया जाता है। इसका मुख्य मकसद शहरों में जलापूर्ति, विद्युत आपूर्ति, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और सार्वजनिक परिवहन जैसी सेवाओं को बेहतर करना है। यदि आप रायपुर बिलासपुर के रहवासी हैं तो आप महसूस करेंगे कि क्या वाकई में यहां सब स्मार्ट तरीके से हुआ है कुछ तालाबों के आसपास चमकीली लाईट लगवाने और पाथवे बनाने और उन्हें ईवेंट स्थल बनाकर चौपाटी में तब्दील करना इसका उद्देश्य है तो हमें फिर कुछ नहीं कहना है।
Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – विकास के नाम पर ये कैसा विकास ?

30
Mar