-सुभाष मिश्र
( क्या विजय शाह पार्टी और जन भावनाओं से बड़ा है ? )
मध्य प्रदेश के मंत्री विजय शाह ने भारतीय सेना की पहली महिला इंफेंट्री अधिकारी कर्नल सोफिया कुरैशी को ‘आतंकवादियों की बहन कहकर संबोधित किया। यह टिप्पणी 12 मई 2025 को इंदौर के रायकुंडा गांव में एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान दी गई थी। इस बयान ने न केवल कर्नल सोफिया, बल्कि भारतीय सेना और राष्ट्रीय एकता का अपमान किया। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए शाह के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया और इसे गटर छाप भाषा कहा। संभवत: दुनिया में किसी अदालत द्वारा किसी नेता के बारे में पहली बार ऐसा कहा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी जिम्मेदारी पर सवाल उठाए और विजय शाह को फटकार लगाई। हाई कोर्ट ने विजय शाह की माफी को नाकाफी माना है और कहा गटर छाप भाषा बर्दाश्त नहीं कर सकते। यह सेना का अपमान है। विपक्षी दलों (कांग्रेस, सपा, बसपा) और कुछ बीजेपी नेताओं (जैसे उमा भारती) ने उनकी बर्खास्तगी की मांग की। मध्य प्रदेश पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर पर हाई कोर्ट ने सख्त नाराजगी जताई है। ‘ऐसा लगता है कि जानबूझकर ऐसी एफआईआर ड्राफ्ट हुई जिससे केस खारिज हो जाए।
मंत्री विजय शाह के खिलाफ दर्ज एफआईआर को पढ़कर ये हाईकोर्ट जस्टिस अतुल श्रीधरन का पहला रिएक्शन था। मध्यप्रदेश के एडवोकेट जनरल प्रशांत सिंह ने गुरुवार को जब मंत्री विजय शाह की एफआईआर उनके सामने रखी तो जस्टिस श्रीधरन ने कहा कि आपके कृत्य से नीयत का अंदाजा हो रहा है, इसलिए अब नए सिरे से एफआईआर दर्ज होगी। साथ ही इस केस की पूरी जांच भी हमारी निगरानी में होगी।
दरअसल, हाईकोर्ट के आदेश के बाद सरकार की तरफ से विजय शाह के खिलाफ एफआईआर तो दर्ज की गई, मगर इसमें ये नहीं लिखा कि विजय शाह ने सार्वजनिक तौर पर कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर क्या कहा था? जो कहा था वो किन-किन धाराओं के तहत किस अपराध की कैटेगरी में आता है।
एफआईआर को लेकर हाईकोर्ट ने तीखे सवाल रखे। एफआईआर में विजय शाह के कृत्य का जिक्र क्यों नहीं? एफआईआर में बदजुबान मंत्री विजय शाह के नाम के आगे ‘श्रीÓ का उल्लेख क्यों? 20 घंटे बाद भी गिरफ्तारी क्यों नहीं? एफआईआर पढ़कर स्पष्ट नहीं हो रहा है कि शाह की क्या गलती है? हाईकोर्ट के सवाल पर सरकार ने लीपा पोती वाले तर्क दिये। सरकार की ओर से पेश एडवोकेट जनरल प्रशांत सिंह ने तर्क दिया गया कि हाईकोर्ट के आदेश के अनुरूप ही एफआईआर हुई है। मगर, डबल बैंच एडवोकेट जनरल के तर्कों से सहमत नजर नहीं आईं। कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि एफआईआर मंत्री विजय शाह को बचाने के लिए है।
डबल बेंच ने एफआईआर पर इस तरह उठाए सवाल किये-जस्टिस अनुराधा शुक्ला पूछा- क्या अपराध हुआ? किन-किन धाराओं का अपराध हुआ, कहां है वो बात एफआईआर में? एडवोकेट जनरल ने कहा-मैं कोई सबमिशन नहीं करूंगा। आपका जो आदेश होगा, उसका पूरा पालन किया जाए। जस्टिस श्रीधरन ने कहा-नए सिरे से एफआईआर हो, इस केस में जांच की निगरानी हम करेंगे।
देश के कानून और राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि भाजपा और मध्य प्रदेश सरकार की नीयत अच्छी नहीं है। वह बदजुबान मंत्री को बचाना चाहती है। वरना क्या कारण है कि जिस महत्वपूर्ण केस में मध्य प्रदेश के डीजीपी तक को शामिल किया गया वहां एफआईआर इतनी कमजोर लिखी गई। क्या पुलिस के इतने वरिष्ठ अधिकारी नाकाबिल हैं? धाराएं लगाईं, मगर कृत्य का जिक्र नहीं।
एफआईआर लिखने में छल यह किया गया कि विजय शाह ने मानपुर के रायकुंड में हलमा कार्यक्रम को संबोधित किया था। उन्होंने जो भाषण दिया उसके अंश प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रसारित हुए थे। शाह ने क्या बोला था? इसका जिक्र ही नहीं किया। एफआईआर पढ़कर कोई भी कोर्ट कहेगा ये संज्ञेय अपराध नहीं है। जब कोर्ट ने ये मुद्दा उठाया तो सरकार की तरफ से एडवोकेट जनरल प्रशांत सिंह ने कहा कि सरकार की नीयत पर शंका न की जाए। इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि नीयत कृत्य से निकाली जाती है। आप जो एफआईआर बनाकर लाए हैं, वो साफ बताती है कि आप विजय शाह को बचाना चाहते हैं। इस पर एडवोकेट जनरल को चुप रहना पड़ा। दरअसल ऐसी छल से लिखी गई एफआईआर को लेकर विजय शाह किसी भी कोर्ट में जाकर कह सकते हैं कि एफआईआर पढऩे से पता नहीं चलता कि कोई संज्ञेय अपराध हुआ है। वे एफआईआर रद्द करने की एप्लिकेशन दे सकते हैं।
विजय शाह ने अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने मंत्री विजय शाह की याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि आप हाईकोर्ट क्यों नहीं गए। आप किस तरह के बयान दे रहे हैं? देखना चाहिए कि कैसे हालात हैं? आप जिम्मेदार पद पर हैं, जिम्मेदारी निभानी चाहिए। इस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के चार दिग्गज वकील इंटरविनर के तौर पर शामिल होंगे। उनमें से एक राज्यसभा सांसद और सीनियर एडवोकेट विवेक तन्खा हैं। श्री तन्खा ने कहा कि विजय शाह पहले भी ऐसी अमर्यादित बातें करते रहे हैं। ये कोई पहला मामला नहीं है। हम सुप्रीम कोर्ट को बताएंगे कि विजय शाह आदतन महिलाओं के प्रति ऐसी भाषा का इस्तेमाल करते रहे हैं। हम उनके पुराने विवादित बयान भी सुप्रीम कोर्ट को विस्तार से बताएंगे।
विजय शाह ने 2013 में कार्यक्रम में शिवराज सिंह चौहान की पत्नी साधना सिंह पर डबल मिनिंग टिप्पणी की थी। विजय शाह ने साधना सिंह को लेकर कहा था कि भैया के साथ तो रोज जाती हो कभी देवर के साथ भी चलो। विवाद बढऩे के बाद उन्होंने माफी भी मांगी थी। इसी विवाद में विजय शाह से मंत्री पद से इस्तीफा ले लिया गया था।
इसी तरह एक कार्यक्रम में लड़कियों को टी-शर्ट बांटते हुए कहा था कि ‘इनको दो-दो दे दो, मुझे नहीं पता ये नीचे क्या पहनती हैं।Ó राहुल गांधी के अविवाहित होने पर भी की थी टिप्पणी। सितंबर 2022 में राहुल गांधी के अविवाहित होने पर टिप्पणी की थी। खंडवा में एक सभा में कहा था 50-55 साल की उम्र होने पर भी शादी न हो तो लोग पूछने लगते हैं कि लड़के में कुछ कमी है क्या? नवंबर 2023 में बालाघाट में शूटिंग करने आई अभिनेत्री विद्या बालन से शाह ने रात में मिलने की इच्छा जताई थी। इसके बाद शाह ने वन विभाग के जरिए फिल्म की शूटिंग रुकवा दी थी।
एडवोकेट जनरल संवैधानिक पद होता है। कोर्ट ने जो कहा है, वो कोर्ट की भाषा में बड़ी टिप्पणी कहलाती है। उन्हें सरकार की गलती के लिए इतना सुनना पड़ा है। इन घटनाओं ने सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर तीखी प्रतिक्रियाएँ उकसाईं। मायावती, अखिलेश यादव, मल्लिकार्जुन खरगे, और जीतू पटवारी जैसे नेताओं ने इसे बीजेपी की ‘महिला विरोधीÓ और ‘सांप्रदायिकÓ मानसिकता का सबूत बताया। सोशल मीडिया पर भी प्तछ्वह्वह्यह्लद्बष्द्गस्नशह्म्स्शद्घद्बड्ड जैसे हैशटैग ट्रेंड किए, जो जनता की नाराजगी को दर्शाते हैं।
राजनीति में अभद्र और अशालीन भाषा का प्रयोग अब आम होता जा रहा है। भाजपा के नेता तो जैसे इस अभद्रता और बदजुबानी में होड़ लगा रहे हैं। प्रदेश में भाजपा सरकार के मंत्री विजय शाह का मामला अभी उफान पर ही है और अब खबर है कि ‘मध्यप्रदेश शासन के डिप्टी सी एम जगदीश देवड़ा ने कहा है कि यशस्वी प्रधानमंत्री को धन्यवादÓ देश और सेना और सैनिक प्रधानमंत्री के चरणों में नतमस्तक हैं। प्रधानमंत्री ने जो जवाब दिया उसकी जितनी सराहना की जाये कम है। कथित चापलूसी और चरण वंदना में निर्लज्जता और अभद्रता की सीमा के पार चले जाने में भाजपा सरकार के मंत्रीगण यह भूल जाते हैं कि यह देश की सेना का अपमान है। इससे आमजन की भावनाएं आहत होती हैं और पार्टी की छवि धूल में मिल रही है। विपक्ष को मौका मिल गया है। कांग्रेस ही नहीं भाजपा में भी इन भाषण वीरों के खिलाफ आक्रोश है। कांग्रेस विजय शाह के साथ ही जगदीश देवड़ा के इस्तीफ़े की माँग कर रही है। भाजपा ही नहीं समाजवादी पार्टी के नेता भी ऐसे मामले में पीछे नहीं हैं। भारतीय सेना में कर्नल सोफिया कुरैशी पर एमपी के मंत्री विजय शाह के विवादित बयान के बाद अब वायुसेना की विंग कमांडर व्योमिका सिंह को लेकर समाजवादी पार्टी के महासचिव रामगोपाल यादव ने जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल किया है। रामगोपाल यादव मुरादाबाद में ऑपरेशन सिंदूर की चर्चा करते हुए इसमें शामिल अधिकारियों में भी पीडीए की गिनती करने लगे। रामगोपाल ने विंग कमांडर व्योमिका सिंह को लेकर कहा कि वह हरियाणा की जाटव हैं। व्योमिका के लिए रामगोपाल ऐसा जातिसूचक शब्द बोल गए जिसे लिखने में हमें संकोच है। ऐसे शब्द हमारी संस्कृति और मर्यादा के बाहर है। रामगोपाल ने कहा कि एयर मार्शल भारती भी पूर्णिया के यादव हैं। तीनों तो पीडीए के हैं। एक मुसलमान, दूसरा जाटव और तीसरा यादव। ये तीनों पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) ही हैं। ये पूरा युद्ध तो पीडीए ने ही लड़ा। भाजपा किस आधार पर इसका श्रेय लेने की कोशिश कर रही है।
हाईकोर्ट ने विजय शाह के केस में बहुत सख्त है और कहा जा रहा है कि उसपर राजद्रोह का मामला दर्ज किया है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा है कि हम कोर्ट के निर्देश पर काम करेंगे। महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या मध्य प्रदेश सरकार या मोदी सरकार जगदीश देवड़ा और विजय शाह के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेगी? उनसे इस्तीफा लेगी?
विजय शाह से इस्तीफा लिया जाता है तो यह विपक्ष की जीत होगी और यदि नहीं लिया जाता है तो भाजपा की छवि बेहद धूमिल होगी। आमजन में है संदेश जाएगा कि भाजपा या सरकार सेना विरोधी है। सेना की छवि धूमिल होते देख सकती है लेकिन एक बदजुबान और कथित उद्दण्ड विचारों के मंत्री को बचाना चाहती है। जन भावनाओं के खिलाफ जा रही है। राजनीति में मोदी को जिद्दी माना जाता है वह विपक्ष को किसी भी तरह का श्रेय लेने का अवसर नहीं देना चाहते हैं लेकिन यह ऐसा विवाद हो गया है जिसमें भाजपा की स्थिति साफ-छछूंदर जैसी हो गई है। यदि उगल दो तो नुकसान है और निगल जाओ तो भी नुकसान है। लेकिन इस समय आमजन से लेकर मीडिया और पूरी राजनीति में विजय शाह के खिलाफ माहौल बन चुका है। भाजपा को अपनी पार्टी की छवि बचाने की सोचना चाहिए। नेता तो पार्टी से होता है, पार्टी नेता पर निर्भर नहीं होती है। यदि पार्टी या सरकार विजय शाह से इस्तीफा नहीं लेती है तो यह विजय शाह को और अराजक बना देने की छूट भी होगी। इस पूरे प्रकरण में भाजपा की छवि स्त्री विरोधी, सेना विरोधी और आमजन विरोधी बनती जा रही है। यह स्थिति भाजपा के लिए अच्छी नहीं है क्योंकि भाजपा हमेशा आदर्श ,संस्कृति और सेना और देश को सर्वोच्च मानने की बातें कहती है। ज्यादातर राजनीतिज्ञ सामान्य और व्यवहारिक ज्ञान से कोरे हैं। वह मोदी भक्ति और मुस्लिम विरोध में बयान देने में इतना जोश में आ जाते हैं कि समझ नहीं पाते कि कब वे अनर्गल और पार्टी और देश के खिलाफ बोलने लगते हैं।
ऑपरेशन सिंदूर जैसे राष्ट्रीय गौरव के मुद्दे को भी सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की गई। यह न केवल सेना और राजनयिकों का अपमान करता है, बल्कि सामाजिक एकता को भी नुकसान पहुंचाता है। कर्नल सोफिया और मिसरी की बेटी के खिलाफ अभद्र टिप्पणियाँ नारी सम्मान और समानता के दावों को खोखला करती हैं। यह एक ऐसे समाज की ओर ले जाता है, जहां महिलाओं को उनकी उपलब्धियों के बजाय उनकी पहचान के आधार पर आंका जाता है। दूसरी ओर, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख, विपक्ष का विरोध, और समाज के बड़े हिस्से की नाराजगी दिखाती है कि भारत का सामाजिक-नैतिक ढांचा अभी भी मजबूत है। उमा भारती जैसे बीजेपी नेताओं का शाह के खिलाफ बोलना और जनता का सोशल मीडिया पर विरोध इस बात का सबूत है कि लोग एक समावेशी और सम्मानजनक भारत चाहते हैं।