Vinod kumar shukla
विनोद कुमार शुक्ल को मिला ज्ञानपीठ सम्मान
लेखक , कवि आलोचक रमेश अनुपम ने फ़ेसबुक पर एक पोस्ट की है जिसमें उन्होंने संस्कृति विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि ज्ञानपीठ पुरस्कार की इतनी बड़ी घोषणा के बाद संस्कृति विभाग की ओर से कोई नुमाइंदा विनोद कुमार शुक्ल के घर नहीं गया ना उनसे मिला ।
Related News
ज्ञातव्य है की ज्ञानपीठ की घोषणा के बाद विनोदजी के घर जाकर बधाई देने वालों का ताँता आज तक लगा हुआ है । मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ,

विनोद कुमार शुक्ल को बधाई देते सीएम साय
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल , केन्द्रीय राज्य मंत्री तोखन साहूं , सांसद ब्रजमोहन अग्रवाल , छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज सहित ना जाने अलग-अलग क्षैत्र के कितने लोग विनोदजी को घर जाकर या देश विदेश से फ़ोन करके , सोशल मीडिया पर पोस्ट लिखकर बधाई दे चुके हैं ।
छत्तीसगढ़ में लंबे अरसे से वन विभाग के अधिकारियों का क़ब्ज़ा है । वर्तमान संचालक विवेक आचार्या के पास ना जाने कौन सा जुगाड़ है की वे कांग्रेस की सरकार से लेकर भाजपा की सरकार में संस्कृति की दुर्गति करने के बाद भी क़ाबिज़ हैं । वे अपने आंकाओं को ख़ुश रखने को ही वर्क कल्चर समझते हैं ।
पढ़िए क्या कह रहे हैं रमेश अनुपम –
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित विनोद कुमार शुक्ल : समाचार पत्र , लेखक संगठन और संस्कृति विभाग
विनोद कुमार शुक्ल को ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जाना हममें से बहुतों के लिए कोई आश्चर्य की बात नहीं है, यह तो देर सबेर कभी होना ही था । हिंदी में पिछले छह दशक से भी अधिक समय से विनोद कुमार शुक्ल ने जो कुछ रचा है, वह इतना विपुल और विलक्षण है जिसे कहीं से भी अनदेखा नहीं किया जा सकता था । उन्हें तो देश विदेश के महत्वपूर्ण पुरस्कारों से नवाजा जाना ही था । हालांकि विनोद कुमार शुक्ल किसी पुरस्कार या सम्मान की लालसा में कभी नहीं लिखते हैं । विनोद कुमार शुक्ल क्या कोई भी गंभीर रचनाकार किसी सम्मान की लालसा में नहीं लिखता है।
कविता ,कहानी ,उपन्यास , संस्मरण ,बच्चों तथा किशोरों के लिए कविता ,कहानी उपन्यास इतना सारा कुछ विनोद कुमार शुक्ल के खाते में दर्ज है कि हम केवल और केवल आश्चर्य ही कर सकते हैं । हिंदी साहित्य में इतना विपुल और विलक्षण साहित्य संभवतः अब तक किसी भी रचनाकार द्वारा नहीं रचा गया है।
मैं पूरी जिम्मेदारी और गंभीरता के साथ यह कहना चाहूंगा कि समकालीन हिंदी साहित्य में विनोद कुमार शुक्ल की तरह का एक भी साहित्यकार नहीं है, जिन्हें देश और पूरे विश्व में इस तरह की अपार ख्याति प्राप्त हुई हो और जिन्होंने इतनी प्रचुर मात्रा में लेखन किया हो ।
अपनी अल्प बुद्धि से कहूं तो मुझे संपूर्ण भारतीय साहित्य में इस तरह के साहित्यकारों में केवल कवि गुरु रवींद्र नाथ ठाकुर ही दिखाई देते हैं ।
जिस साहित्यकार को साहित्य अकादमी सहित देश के सारे महत्वपूर्ण सम्मान प्राप्त हो चुके हों ,जिन्हें पिछले वर्ष विश्व का सर्वोच्च सम्मान PEN NABOKOV से सम्मानित किया गया हो ,देश की साहित्य अकादमी ने जिन्हें इस वर्ष अपनी प्रतिष्ठित महत्तर सदस्यता से रायपुर आकर सम्मानित किया हो , उन्हें तो ज्ञानपीठ पुरस्कार 2024 से सम्मानित होना ही था ।
विनोद कुमार शुक्ल हिंदी के ऐसे विरल और विलक्षण साहित्यकार हैं जिनकी रचनाओं के सर्वाधिक अनुवाद हुए हैं।भारतीय भाषाओं सहित विश्व की अनेक भाषाओं में विनोद कुमार शुक्ल सबसे अधिक पढ़े और सराहे जाने वाले लेखकों में एक हैं।
विनोद कुमार शुक्ल संभवतः हिन्दी प्रदेशों से कहीं अधिक दक्षिण राज्यों और विदेशों में पढ़े जाते हैं । हिंदी समाज वैसे भी धीरे धीरे एक कूपमण्डूक समाज में बदलता चला जा रहा है । विश्वविद्यालयों के हिंदी विभागों की स्थिति पर अनेक बार सवाल उठाए जाते रहे हैं । जहां हिन्दी के प्राध्यापक मोटी तनख्वाह लेने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं कर रहे हैं , जिनकी रुचि पढ़ने_ पढ़ाने में कम और शेयर मार्केट में ज्यादा दिखाई देती है । उनके लिए विनोद कुमार शुक्ल और उनकी रचनाओं कोई अर्थ नहीं है ।
कमोबेश यही स्थिति साहित्यकारों की भी है जो कुछ पढ़ते ही नहीं हैं , जो अपने लिखे में ही रात दिन मगन रहते हैं । मेरा स्वयं का यह अनुभव है कि ये तथाकथित साहित्यकार न हिंदी की कोई पत्रिका खरीदने और पढ़ने में यकीन रखते हैं और न ही कोई किताब ही पढ़ने में रुचि रखते हैं । विनोद कुमार शुक्ल को भी ठीक से पढ़ने की कोशिश नहीं करते हैं । पर ये सभी साहित्यकार कहलाने में गर्व का अनुभव करते हैं ।
अब देखिए विनोद कुमार शुक्ल की ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित होने की घोषणा केबाद हिंदी समाचारपत्रों से कहीं अधिक मलयालम , कन्नड़ ,तमिल मराठी और अंग्रेजी अखबारों ने विनोद कुमार शुक्ल को जो कवरेज दी है वह हिंदी अखबारों को आईना दिखाने वाला है। महाराष्ट्र के किशोरों और नवयुवकों ने अपनी D P तक में विनोद कुमार शुक्ल को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने की फोटो लगाई है।
छत्तीसगढ़ में लेखकों के भांति _भांति के संगठन हैं ,पर अभी तक किसी भी समाचार पत्र में या डिजिटल में कहीं भी इस तरह की कोई विज्ञप्ति देखने को नहीं मिली है , जिसमें विनोद कुमार शुक्ल को देश का सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ मिलने पर बधाई दी गई हो ।
वैसे सच कहा जाए तो विनोद कुमार शुक्ल को ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जाना एक तरह से स्वयं ज्ञानपीठ पुरस्कार का ही सम्मान है । मैं यहां यह भी जोड़ना चाहूंगा कि विनोद कुमार शुक्ल इन सारे सम्मानों और पुरस्कारों से कहीं बड़े रचनाकार हैं।
छत्तीसगढ़ प्रदेश जहां दुर्भाग्य से ऐसे कई कवि और साहित्यकार पद्मश्री सम्मान से विभूषित किए जा रहे हैं , जिनकी महिमा अपरम्पार है । पर पूरे विश्व में पूजे जाने वाले विनोद कुमार शुक्ल को कभी इस योग्य समझा ही नहीं गया ।
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित होने के बाद भी न राज्य के संस्कृति सचिव और न ही संस्कृति संचालक ने विनोद कुमार शुक्ल के घर जा कर उन्हें सम्मानित करना जरूरी समझा और न ही किसी तरह का व्यक्तव्य देना ही आवश्यक समझा है। छत्तीसगढ़ संस्कृति विभाग की भी महिमा अपरम्पार है।