-सुभाष मिश्र
छत्तीसगढ़ विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है। पक्ष-विपक्ष के विधायक अपने-अपने क्षैत्र की समस्याओं के साथ राज्य स्तर पर भी गड़बडिय़ों पर भी सवाल उठा रहे हैं। सर्वाधिक प्रश्न प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टाचार से जुड़े हैं। सुशासन की दुहाई देने वाले जनप्रतिनिधि भी अब महसूस करने लगे हैं की सरकार किसी की भी हो बेलगाम ब्यूरोक्रेसी अपना रवैया नहीं बदलती, वह अपने ही तरीक़े से जिसमें उनका हित निहित हो काम करती है।
छत्तीसगढ़ में हाल के वर्षों में प्रशासनिक चूक और लापरवाही के कारण कई घटनाएँ सामने आई हैं, जो राज्य की प्रशासनिक और पुलिस प्रणाली की चुनौतियों, भ्रष्टाचार को उजागर करती हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, खाद्यान्न, उधोग, नगरीय और ग्रामीण विकास, शराब, कोयला, रेत सभी क्षेत्रों की गड़बडिय़ों से जुड़े तारांकित, अतारांकित प्रश्न, ध्यानाकर्षण स्थगन हैं।
छात्रावास में कोई घटना हो! दुर्घटना से किसी की मृत्यु हो! पुराना जर्जर मकान गिरने से लोगों के घायल होने या मृत्यु की घटना हो। सरकारी कार्यालय में भ्रष्टाचार की घटनाएं हों। महीनों-वर्षों तक फाइलें पेंडिंग पड़ी हों। किसान, मजदूर या आम आदमी छोटे-मोटे कामों के लिए सरकारी कार्यालयों के चक्कर काट रहे हों। ऐसी कोई भी घटना हो संबंधित विभाग का अधिकारी एक रटा-रटाया जवाब देता है कि यह अभी संज्ञान में आया है। पता लगवाते हैं। जो काम उसके सरकारी कर्तव्य के अंतर्गत आता है, जिसकी उसे निरंतर जानकारी होनी चाहिए। उसे अपने कार्यालय की, अपने भ्रष्ट कर्मचारियों के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। जो कि होती भी है। यदि अधिकारी बड़ा है तो उसे अपने शहर के बारे में जानकारी होना चाहिए। कहां अवैध शराब बिक रही है। कहां जुआ-सट्टा चल रहा है। पूरे मोहल्ले और शहर को पता होता है लेकिन अधिकारी से पूछने पर वह कहता है कि अभी संज्ञान में आया है पता लगवाते हैं। जबकि होना यह चाहिए कि सारी बातें मोहल्ले और शहर से पहले संबंधित अधिकारी को पता होना चाहिए। यह उसका कर्तव्य है। यह उसकी नौकरी का हिस्सा है। पर यदि किसी के बताने पर उसके संज्ञान में आ रहा है तो इसका अर्थ है कि वह काम चोरी कर रहा है। वह भ्रष्ट है या फिर वह इस तरह के कामों में चोरी से मदद कर रहा है या फिर अपने काम के लायक नहीं है। यदि काम के लायक नहीं है तो ऐसे अफसरों को बाहर का रास्ता दिखाना चाहिए। इसके ठीक उलट छत्तीसगढ़ में यह स्लोगन बहुत चर्चित है ”बने रहो पगला काम करेगा अगलाÓÓ बहुत सारे आफिस तो संविदा कर्मचारियों के भरोसे चल रहे हैं, उन्हें अपनी नौकरी का हर अप्रैल में रिनीवल चाहिए। नौकरी के खतरे हमेशा उन पर मंडराते हैं, जिसका फायदा नियमित कर्मचारी-अधिकारी उठाते हैं।
यदि सरकार की मंशा सचमुच अपराध और दुर्घटनाओं पर लगाम लगाना है तो उसे इस तरह के बहाने-बाजी करने वाले अफसरों पर लगाम कसना होगा। दुर्घटनाओं पर, अपराधों पर अपने आप लगाम लग जाएगी। पटवारी, शिक्षक, क्लर्क से लेकर सरकारी कार्यालय के कर्मचारी-अधिकारी तक यदि काम को टाल रहे हैं,आमजन को चक्कर लगवा रहे हैं तो इसका अर्थ यह नहीं है कि बड़े अधिकारियों के संज्ञान में नहीं है। इसका अर्थ है कि वह खुले रूप में इसका समर्थन कर रहे हैं। इससे भी ज्यादा बड़ी जिम्मेदारी आती है विधायक की, सांसद और मंत्रियों की। उनके पास इतना बड़ा जन समर्थन है। लोग उनके पास आवेदन लेकर आते हैं। लोगों की शिकायतें करते हैं लेकिन कितनी अजीब बात है कि आजादी के 75 बरस के बाद भी आज तक लोगों के बताने के बावजूद मंत्रियों और नेताओं को जनता की शिकायतों को ख़त्म करने का उपाय नहीं आ पाया है। लालफीताशाही और अफसरशाही के जरिए आमजन को अभी तक बहुत परेशानियां और दुख उठाने पड़े हैं लेकिन ना तो आजादी के बाद कांग्रेस ने कभी इस तरफ ध्यान दिया। अजीब बात यह है कि कांग्रेस को कोसने वाली भाजपा सरकार ने जिसको सत्ता में आए 10 साल से अधिक हो गए और जिसने सिर्फ 5 वर्ष में भ्रष्टाचार और कुशासन को खत्म करने का वादा और कसमें खाई थी वह तक ऐसा नहीं कर पाई तो इसका मतलब है कि कमी ऊपर है। नाकरापन ऊपर तक फैला है। इस बहाने पर तो अब बच्चे भी विश्वास नहीं करते हैं कि देश में कहीं भ्रष्टाचार नहीं है। अधिकांश सरकारी कार्यालयों और अफसर और कर्मचारियों में घनघोर भ्रष्टाचार फैला है और यह भ्रष्टाचार नीचे से लेकर ऊपर तक,नेताओं और मंत्रियों तक फैला हुआ है। देश के साथ अब छत्तीसगढ़ को भी सिर्फ वादे और कसमों की जरूरत नहीं है। प्रदेश चाहता है कि जो भी वादे और इरादे हैं वह जमीन पर उतर कर आए, लागू किया जाए, सिर्फ भाषणों के काम के ना रहें।
शासन-प्रशासन किसी का हो पर कुछ हालिया घटनाएँ हमें पूरे तंत्र की बानगी के रूप में दिखाती है। सरकारी तंत्र में तीन बातें काफ़ी लंबे समय से चर्चित हैं। पहला है-नजऱाना, दूसरा है-शुकराना और तीसरा जबराना। नजऱाना तो अब सामान्य शिष्टाचार का हिस्सा हो गया है। शुकराना भी लोग काम होने के बाद बतौर ञ्जद्धड्डठ्ठद्मह्य या भविष्य में भी कृपा दृष्टि, दया-मया बनी रहे इस विश्वास से पेश करते हैं। लोगों को तकलीफ़ जबराना से है। ये अंग्रेजो के लगाये जजिय़ा कर की तरह लगता है। लाभ के पद या पॉवर के पद यानी किसी को दंडित करने या पुरस्कृत करने के पद पर बैठा व्यक्ति फूलप्रुफ सिस्टम और मानिटरिंग की समूची व्यवस्था नहीं होने या अपने से उंचे पद पर बैठे लोगों के संरक्षण की वजह से मैं चाहे ये करूँ, मैं चाहे वो करूँ का रैप सांग गाता फिरता है। हमारे पूरे प्रशासनिक तंत्र में जवाबदेही का अभाव भी इसका बड़ा कारण है। भ्रष्टाचार के विश्वव्यापी इंडेक्स में अग्रणी पंक्ति में रहकर भी मेरा भारत महान है।
बात छत्तीसगढ़ की हो रही है तो हालिया घटनाक्रम में सबसे पहले रायपुर-विशाखापत्तनम सिक्स लेन सड़क जो भारत माला प्रोजेक्ट के अन्तर्गत बन रही है का जिक्र जरूरी है। भारत माला प्रोजेक्ट के लिए भूअर्जन मामले में 35 करोड़ के मुआवजे के बदले 248 करोड़ का मुआवजा बांट कर घोटाला किया गया और 71 करोड़ का क्लेम अलग से बना दिया गया। सरकार ने विधानसभा में एक डिप्टी कलेक्टर को जो वर्तमान में जगदलपुर नगर निगम में कमिश्नर के पद पर पदस्थ है, सस्पेंड किया।
छत्तीसगढ़ में सरकारी स्तर पर दवा, उपकरण और अन्य सामग्री क्रय करने के लिए बने सीजीएमएससी में करोड़ों रूपये का भ्रष्टाचार उजागर हुआ है जिसमें बहुत से अधिकारी सस्पेंड हुए हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन योजना में भी भ्रष्टाचार की अनुगूँज विधानसभा में है। गरीब तबके के लोगों को उचित मूल्य पर ज़रूरी दवा उपलब्ध नहीं कराने पर सुप्रीम कोर्ट ने जिन राज्यों को फटकार लगाई है छत्तीसगढ़ उनमें से एक है। सरकारी महाविद्यालयों में प्रोफ़ेसरों की भर्ती का मामला तीन साल से लंबित है। दुर्ग नगर निगम में सालों पहले बने व्यवसायिक परिसर की दुकानें नहीं बिकने का मामला हो या उधोग विभाग द्वारा रियायत दर पर उधोग लगाने दी गई भूमि पर 200 से अधिक जगह पर गोदाम बनाने का मामला।
पूरे राज्य में उपर से नीचे तक प्रशासनिक लापरवाही के सैकड़ों प्रकरण है। अभी हालिया मामले में कबीरधाम जिले में महिला पंचों के स्थान पर उनके पतियों का शपथ ग्रहण हुआ। पंडरिया विकासखंड के परसवारा ग्राम पंचायत में छह नवनिर्वाचित महिला पंचों के पतियों ने उनकी जगह पद और गोपनीयता की शपथ ली। यह घटना प्रशासनिक लापरवाही और सामाजिक-सांस्कृतिक मानदंडों के कारण हुई, जहाँ महिलाओं के आधिकारिक पदों पर होने के बावजूद, उनके पति या परिवार के पुरुष सदस्य निर्णय लेते हैं और प्रशासनिक कर्तव्यों का निर्वहन करते हैं। इस मामले की जांच के आदेश दिए गए हैं।
महकोनी ग्राम के अमरगुफा में तोडफ़ोड़ की घटना के बाद, बलौदाबाजार में कलेक्ट्रेट और एसपी कार्यालय में आगजनी और तोडफ़ोड़ हुई। इस हिंसा में 12.5 करोड़ रुपये की शासकीय एवं निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचा, और 25 से अधिक पुलिसकर्मी घायल हुए। प्रशासनिक चूक के कारण यह घटना घटी, जिसके परिणामस्वरूप तत्कालीन कलेक्टर और एसपी को निलंबित किया गया। कबीरधाम जिले के लोहारीडीह में एक सप्ताह के भीतर तीन लोगों की हत्या हुई, जिससे ग्रामीणों में आक्रोश फैल गया। प्रशासनिक लापरवाही के चलते स्थिति बिगड़ी, और पुलिस पर लीपापोती के आरोप लगे। इस घटना के बाद, आईजी सरगुजा ने निरीक्षक, सब इंस्पेक्टर और एक आरक्षक को निलंबित किया। कुम्हारी थाना क्षेत्र में केडिया डिस्टलरी कंपनी के कर्मचारियों से भरी बस के पोल से टकराकर 50 फीट गहरी खाई में गिरने से 13 कर्मचारियों की मौत हुई, जबकि 15 घायल हुए। यह हादसा सड़क सुरक्षा और प्रशासनिक निगरानी की कमी को दर्शाता है। नारायणपुर जिले में सड़क के गड्ढों के कारण एक ट्रैक्टर ट्रॉली पलट गई, जिससे तीन लोगों की मौत हो गई और 12 घायल हुए। यह घटना सड़क रखरखाव में प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करती है।
छत्तीसगढ़ में हाल के वर्षों में पुलिस और प्रशासनिक लापरवाही तथा भ्रष्टाचार के कई प्रमुख मामले सामने आए हैं। जिसमें राजनांदगांव जिले में पुलिस आरक्षक भर्ती प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार उजागर हुआ, जिसके चलते राज्य सरकार ने इस प्रक्रिया को रद्द कर दिया। जांच में फर्जी अंक आवंटन और आर्थिक लेन-देन के प्रमाण मिले, जिसके परिणामस्वरूप सात लोगों को गिरफ्तार किया गया। वहीं बेमेतरा के परपोंडी थाना क्षेत्र में एक ठगी के मामले की जांच के दौरान, थाना प्रभारी समेत तीन पुलिसकर्मियों ने पीडि़त से 10,000 रुपये की रिश्वत मांगी। इस घटना के बाद संबंधित पुलिसकर्मियों को निलंबित कर उनके खिलाफ जांच शुरू की गई। इसी तरह नगरीय प्रशासन विभाग ने नगर पंचायत घरघोड़ा में भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते मुख्य नगर पालिका अधिकारी (सीएमओ) सुमित मेहता, तीन इंजीनियर और एक लेखापाल को निलंबित किया। इन पर विकास कार्यों में अनियमितता और सत्यापन के बिना सीसी रोड निर्माण का आरोप था। दुर्ग में कोर्ट के आदेश पर पूर्व नगर निगम आयुक्त सुनील अग्रहरी सहित तीन अधिकारियों के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया गया। इन पर चुनावी प्रचार-प्रसार के लिए फ्लेक्स प्रिंटिंग में कूटरचित दस्तावेजों के माध्यम से लगभग साढ़े आठ लाख रुपये के भ्रष्टाचार का आरोप था। ये कुछ उदाहरण है, कहानी इसके आगे भी है।
इन सब में सबसे शर्मनाक बात यह है कि संबंधित अधिकारी या मंत्री और नेताओं से पूछे जाने पर कहते हैं, मुझे मालूम नहीं कैसे हुआ है! यदि ऐसा हुआ है तो पता लगवाता हूं। संबंधित पर कार्रवाई करेंगे। अरे, जब पूरे शहर को, पूरे राज्य को पता है तो आपको क्यों नहीं पता है? और यदि आपको नहीं पता है तो इसका अर्थ है कि या तो आप इस पद के काबिल नहीं हैं या सब कुछ आपकी देखरेख में हो रहा है! यह सुशासन सुचिता और पारदर्शिता की दुहाई देने वाली प्रशासनिक व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगाता है।