-सुभाष मिश्र
भारतीय मतदाता अब जागरूक हो रहा है। वह चालाक है और तात्कालिक लाभ को समझता है। यही वजह है कि जिसकी सत्ता रहती है, उसकी महत्ता को वह स्वीकार करने लगा है। दिल्ली में उसने देख लिया दस साल में आप पार्टी उपराज्यपाल सहित केन्द्र की एजेंसियों से निपटने में और अपने विरोधाभासों में उलझ कर रह गई। जो रेवड़ी आप बांट रही थी उससे ज़्यादा भाजपा देने के लिए तैयार थी, साथ ही आप पार्टी की लोकप्रिय योजनाओं को चालू रखने की गारंटी होनी एक के साथ एक फ्री। मतदाता को मज़बूत विपक्ष जैसी चिंता नहीं, उसे कथित विकास चाहिए। यही हाल उपचुनावों में भी होता। जिस पार्टी की सत्ता रहती हैं अधिकांश स्थानों पर उसी के उम्मीदवार जीतते हैं। छत्तीसगढ़ की नगरीय और ग्रामीण सत्ता भी राज्य और केन्द्र सरकार की महत्ता को स्वीकार कर मतदाताओं ने उसी के साथ जाने का मन बना चुका था, यही वजह है कि छत्तीसगढ़ के नगरीय संस्थाओं के परिणाम एक तरफा भाजपा के पक्ष में आए है। भाजपा अब ट्रिपल इंजन की सरकार के साथ विकास पथ पर अग्रसर है।
छत्तीसगढ़ के सभी दस नगर निगम में बीजेपी ने जीत हासिल की। इसके अलावा 49 नगर पालिका में 35 बीजेपी, कांग्रेस 8, आप 1 और 5 निर्दलीय जीते। वहीं 114 नगर पंचायत में से 81 में बीजेपी, 22 में कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी 1 और 10 निर्दलियों ने जीत हासिल की। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का कहना है कि हमने बहुत सोच समझकर चुनाव के लिए अटल विश्वास पत्र तैयार किया, जिसे अब हम शत-प्रतिशत पूरा करेंगे। कांग्रेस की तरह हमारी कथनी-करनी में कोई अंतर नहीं है। रायपुर नगर निगम के पूर्व महापौर एजाज ढेबर के पार्षद चुनाव हारने पर तंज कसते हुए मुख्यमंत्री कहते हैं कि जो आदमी पार्षद का चुनाव नहीं जीत सकता, वह कांग्रेस ने लोकतंत्र की हत्या करके डायरेक्ट चुनाव प्रक्रिया अपनाई जिसके कारण ये व्यक्ति महापौर बन गया। हमने लोकतंत्र को बहाल करके डायरेक्ट वोट के माध्यम जनमन के वोटो से महापौर को चुना।
छत्तीसगढ़ के नगरीय निगम चुनाव में भाजपा की ऐतिहासिक जीत के कारणों में उसके देवतुल्य कार्यकर्ताओं के साथ सत्ता और संगठन की अहम भूमिका रही। कांग्रेस पूरे चुनाव में बिखरी-बिखरी नजर आई। रायपुर नगर निगम जहां पिछले 15 सालों से कांग्रेस की सत्ता थी, वह शहर में बुनियादी सुुविधाओं का विस्तार नहीं कर पाई। सड़क, साफ-सफाई, स्वच्छ पेयजल, अतिक्रमण आदि क्षेत्र में कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं हुए। किरणमयी नायक, प्रमोद दुबे और एजाज ढेबर का कार्यकाल ऐसा नहीं रहा जिसे याद रखा जाये।
छत्तीसगढ़ नगर निगम चुनाव 2020 जब छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार थी तब कांग्रेस ने सभी 10 नगर निगमों में महापौर पद पर जीत हासिल की थी। राज्य में पहली बार नगर निकायों में महापौर और अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से हुआ। 21 दिसंबर को हुए चुनाव में कांग्रेस ने 1283 वार्डों में जीत हासिल की, जबकि भाजपा को 1131 वार्डों में सफलता मिली। अन्य दलों और निर्दलीय प्रत्याशियों ने 420 वार्डों में जीत दर्ज की। कांग्रेस ने जगदलपुर, अंबिकापुर और चिरमिरी नगर निगमों में पूर्ण बहुमत प्राप्त किया। जबकि रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, रायगढ़, धमतरी और कोरबा नगर निगमों में निर्दलीय या अन्य दलों की मदद से महापौर चुने गए। कोरबा नगर निगम में भाजपा के अधिक पार्षद होने के बावजूद कांग्रेस से चुनाव जीतकर राजकिशोर प्रसाद को महापौर चुना। इस बार महापौर और नगर पालिका अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से सीधे हुआ।
छत्तीसगढ़ नगरीय निकाय चुनाव 2025 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है, जबकि कांग्रेस को भारी पराजय का सामना करना पड़ा है। भाजपा ने सभी 10 नगर निगमों में विजय प्राप्त की है, जिसमें रायपुर, दुर्ग, राजनांदगाँव कोरबा, चिरमिरी, जगदलपुर, कांकेर, धमतरी अंबिकापुर, रायगढ़ नगर निगम शामिल है।
यदि हम निकाय चुनाव में भाजपा की जीत के प्रमुख कारणों की पड़ताल करें तो इसमें संगठनात्मक मजबूती और रणनीति एक प्रमुख वजह रही। भाजपा ने जमीनी स्तर पर मजबूत संगठनात्मक ढांचा तैयार किया, जिससे मतदाताओं तक सीधा संपर्क स्थापित हुआ। अटल विश्वास पत्र के माध्यम से स्थानीय मुद्दों को प्राथमिकता देते हुए प्रभावी चुनावी रणनीति अपनाई गई। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में सरकार की नीतियों और विकास कार्यों ने जनता का विश्वास जीता। भाजपा ने स्थानीय समस्याओं, जैसे बुनियादी सुविधाओं की कमी, सड़क, बिजली, पानी आदि को प्रमुखता से उठाया और उनके समाधान के लिए ठोस वादे किए। सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉम्र्स का उपयोग करते हुए भाजपा ने व्यापक प्रचार अभियान चलाया, जिससे युवा मतदाताओं तक पहुंच बनाई।
कांग्रेस के आंतरिक कलह और नेतृत्व की कमी ने पार्टी की स्थिति को कमजोर किया। स्थानीय स्तर पर प्रभावी उम्मीदवारों की कमी और चुनावी रणनीति में स्पष्टता न होने से कांग्रेस को नुकसान हुआ। राज्य और स्थानीय स्तर पर मजबूत नेतृत्व का अभाव कांग्रेस के लिए नुकसानदायक साबित हुआ। पार्टी के भीतर गुटबाजी और आंतरिक संघर्ष ने कांग्रेस की चुनावी संभावनाओं को प्रभावित किया। कांग्रेस स्थानीय समस्याओं को प्रभावी ढंग से उठाने और उनके समाधान के लिए ठोस योजना प्रस्तुत करने में विफल रही। भाजपा की तुलना में कांग्रेस का प्रचार अभियान कमजोर रहा, जिससे मतदाताओं तक उनकी पहुंच सीमित रही।
इस चुनावी परिणाम से स्पष्ट होता है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा की लोकप्रियता और संगठनात्मक क्षमता ने कांग्रेस को पीछे छोड़ दिया है। भविष्य में कांग्रेस को अपनी रणनीति, नेतृत्व और संगठनात्मक ढांचे पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता होगी, ताकि वे आगामी चुनावों में बेहतर प्रदर्शन कर सकें। वरना पूरे देश में जिसकी सत्ता उसकी महत्ता को देख, समझकर मतदाता डबल, ट्रिपल इंजन की सरकारें ही चुनेंगे।