Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – कुणाल कामरा का सांप की पूंछ पर रखा पैर

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा ने यूनिकॉन्टिनेंटल क्लब, मुंबई के एक कॉमेडी शो में शिवसेना के नेता और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के ऊपर व्यंग्यात्मक टिप्पणी की। उसके बाद विवाद शुरू हो गया जिससे उनके स्टूडियो में तोडफ़ोड़ की गई। पुलिस में एफआईआर दर्ज की, क्लब में भी तोडफ़ोड़ की गई है। इसी बीच तेलंगाना से कुणाल कामरा का बयान आया है कि मैं माफी नहीं मांगूगा, अलबत्ता पुलिस जांच में सहयोग करूंगा। कुणाल कामरा का कहना है कि उन्होंने जो कुछ भी कहा है वह संविधान से प्राप्त अधिकारों के दायरे में रहकर कहा है। यहां मुख्य रूप से जो सवाल खड़े होते हैं वह यह है कि क्या एक कॉमेडियन को किसी सार्वजनिक शो में इस तरह की टिप्पणी करना चाहिए? और यदि वह अपराध है तो उसके लिए क्या एफआईआर दर्ज हो गई है। यह मामला अभिव्यक्ति की आजादी और हास्य की सीमाओं पर बहस का नया उदाहरण है। भारत में स्टैंडअप कॉमेडियंस के ऐसे कई मामले हैं जहां हास्य और व्यंग्य विवाद का कारण बने।

जैसे कुणाल कामरा का अर्नब गोस्वामी से टकराव (2020): कुणाल ने एक इंडिगो फ्लाइट में पत्रकार अर्नब गोस्वामी से रोहित वेमुला के कवरेज पर सवाल किए और वीडियो पोस्ट किया। इसके बाद इंडिगो और अन्य एयरलाइंस ने उन पर 6 महीने का बैन लगा दिया। इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी बनाम निजी हमले की बहस में देखा गया। कुणाल ने माफी नहीं मांगी और इसे अपनी कॉमेडी का हिस्सा बताया।
वीरदास का टू इंडियाज़ मोनोलॉग (2021): वीरदास ने वॉशिंगटन के कैनेडी सेंटर में टू इंडियाज़ मोनोलॉग प्रस्तुत किया, जिसमें भारत के विरोधाभासों पर तंज कसा। कुछ ने इसे देश की छवि खराब करने वाला बताया, और उनके खिलाफ शिकायतें दर्ज हुईं। कईयों ने इसे साहसिक व्यंग्य माना।
मुनव्वर फारुकी का हिंदू देवताओं पर कमेंट (2021): मुनव्वर ने एक शो में हिंदू देवी-देवताओं और गोधरा कांड पर कथित तौर पर आपत्तिजनक टिप्पणी की।
तन्मय भट का सचिन तेंदुलकर और लता मंगेशकर पर जोक (2016): तन्मय ने एक वीडियो में सचिन तेंदुलकर और लता मंगेशकर पर व्यंग्य किया। विवाद: इसे राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान माना गया। शिवसेना और एमएनएस ने विरोध किया, और उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई। तन्मय ने माफी नहीं मांगी, लेकिन वीडियो हटा लिया।
कपिल शर्मा का शराब पर कमेंट (2017): द कपिल शर्मा शो में शराब पीने पर एक जोक को महाराष्ट्र के कुछ नेताओं ने आपत्तिजनक माना। शिव सेना ने इसे संस्कृति के खिलाफ बताया और कपिल को माफी मांगनी पड़ी।
समय रैना का इंडियाज़ गॉट टैलेंट पर जोक (2021): समय ने अपने शो में एक जोक मारा, जिसे कुछ लोगों ने अश्लील माना। सोशल मीडिया पर बवाल हुआ और उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग उठी। समय ने इसे कॉमेडी का हिस्सा बताकर बचाव किया।
कुणाल कामरा का सलमान खान पर कमेंट (2024): कुणाल ने सलमान खान के ब्लैकबक और हिट-एंड-रन केस पर जोक मारा। सलमान के फैंस ने विरोध किया, और खबरें आईं कि सलमान मानहानि का केस कर सकते हैं। कुणाल ने माफी से इंकार किया।
कुणाल कामरा और अन्य कॉमेडियन्स पर अक्सर यह आरोप लगता है कि वे हास्य की आड़ में अश्लीलता और राजनीतिक अपमान फैलाते हैं। शिंदे मामले में शाइना एनसी ने इसे ‘वुल्गैरिटी कहा।
हास्य और व्यंग्य समाज को आईना दिखा सकते हैं, वहीं नेताओं और समूहों की संवेदनशीलता इसे जोखिम भरा बना देती है। यह जगजाहिर है कि वर्तमान में अधिकांश राजनेताओं में हास्य बोध लगभग खत्म हो चुका है। आने वाले समय में यह बहस और गहरा सकती है—क्या हास्य की कोई सीमा होनी चाहिए या यह पूरी तरह आज़ाद होना चाहिए?
भारतीय राजनीति का यह पुराना चेहरा है। भाजपा, शिवसेना ही नहीं कांग्रेस और आप दल में भी यह होता रहा है और लगातार हो रहा है। ठाणे से शिवसेना सांसद नरेश म्हास्के ने कहा है कि कामरा ने सांप के पूंछ पर पैर रख दिया है। एक बार जब नुकीले दांत निकल आएंगे तो भयंकर परिणाम होते हैं। अभी तक यह बात दबे-छुपे कहीं जाती थी कि भारतीय राजनीति सांप की तरह जहरीली और जानलेवा भी है। यह प्रयोग मुहावरे की तरह या मजाक में समझा जाता था। लेकिन म्हास्के के कथन ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि वर्तमान में अधिकांश राजनेता सांप की तरह जहरीले और जानलेवा हो गए हैं। शिवसेना शिंदे गुट के एमएलए मुरजी पटेल ने दो दिन में माफी मांगने की मांग की, वरना ‘मुंबई में घूमने नहीं देंगे की धमकी दी है। महाराष्ट्र सीएम देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि कुणाल कामरा को शिवसेना नेता के खिलाफ अपनी टिप्पणी के लिए माफी मांगनी चाहिए। फड़णवीस का कहना है कि वे कॉमेडी के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन किसी का अपमान करना ठीक नहीं है। ऐसा मजाक बर्दाश्त नहीं करेंगे। कामरा के कथन को मजाक ना मानकर असहमति भी माना जाए तो अब असहमति का अर्थ शत्रुता हो गया है। इस तरह की बातों ने जनमानस में इस बात को हवा दी है कि वर्तमान में राजनेता सत्ता में इतने मदान्ध हो गए हैं कि वे कानून पर भरोसा नहीं करते बल्कि कानून को अपने हाथ में लेकर सजा देने पर उतारू हो गए हैं। यदि कामरा की बात आपत्तिजनक है और एफआईआर दर्ज कर दी गई है तो फिर अदालत के न्याय पर भरोसा करके न्याय प्रतीक्षा की जानी है। यह भारतीय न्याय प्रणाली पर अविश्वास भी है और सत्ता का दंभ भी। जाहिर होता है कि राजनेता कानून से ऊपर होता है और खुद सजा देना उसका जैसे संवैधानिक अधिकार है। पिछले कुछ दशकों से भारतीय राजनीति में यह अराजकता बहुत खतरनाक रूप से सामने आई है। यदि विपक्ष, जनमानस और मीडिया इसे लोकतंत्र की हत्या कहता है तो फिर ऐसी घटनाओं से इस बात को बल मिलता है। राजनीतिक नेताओं का खुद को या अपने दल को मनुष्यता से सांप में तब्दील कर देने का दम्भ कोई अच्छे संकेत तो नहीं दे रहा है। सांप की प्रजाति मनुष्यता के लिए हमेशा घातक रही है। कोई भी दल हो लेकिन इस तरह की अराजकता जो एक तरह के गुंडागर्दी कहलाती है, भारतीय राजनीति की छवि पर कालिख पोत रही है। कांग्रेस के समय भी यह होता था लेकिन बदलाव के बाद हमें लगा था कि अब भारतीय लोकतंत्र की छवि ज्यादा उज्जवल होकर सामने आएगी। सत्ता से जुड़े राजनेताओं का इस तरह अराजक और लगभग गुंडागर्दी को अपना लेना भारतीय जनमानस को गहरे रूप से निराश कर रहा है।

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