-सुभाष मिश्र
मुम्बई में 26/11/2008 की आतंकी घटना के मुख्य सूत्रधार तहव्वुर राणा को प्रत्यर्पण संधि के तहत भारत लाकर तिहाड़ जेल में कड़ी सुरक्षा में रखकर घटना के पीछे की स्याह कहानियों का पर्दाफाश एनआईए द्वारा किया जाएगा। तहव्वुर राणा कुछ बताएं इसके पहले पाकिस्तान ने उसे कनाडा का नागरिक बताते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया है, किन्तु मीडिया के जरिए इसे पाकिस्तान की गहरी साजिश करार देकर उसकी पोलपट्टी खोलने के लिए अहम सबूत बताया जा रहा है। वहीं भाजपा के नेता इसे मोदी है तो मुमकिन है से जोड़कर प्रचारित कर रहे हैं। भाजपा और कांग्रेस इस मामले को लेकर एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर रहे हैं। केन्द्रीय मंत्री पीयूष गोयल कह रहे हैं कि यह मोदी सरकार की नीतियों और दृढ़ संकल्प का नतीजा है। कांग्रेस ने इस घटना के दोषी अजमल कसाब को बिरयानी खिलाई थी। हमें इसे जल्द से जल्द सजा दिलाएंगे। वहीं कांग्रेस इसे एक प्रक्रिया के तहत होने वाली कार्यवाही बता रही है। कांग्रेस का कहना है कि यह प्रक्रिया 2009 से शुरु हो गई थी। भाजपा के नेता जिसे सबसे बड़ी उपलब्धि बता रहे हैं तो बाकी विपक्ष कह रहा है कि घटना के मुख्य षड्यंत्रकर्ता जो अभी पाकिस्तान में बैठे हैं, उन्हें लेकर आओ। मुम्बई बम विस्फोट के जिम्मेदार दाऊद इब्राहिम को वापस लाओ। आम नागरिक की मांग है कि इस तरह की आतंकवादी घटना में लिप्त लोगों को जल्द से जल्द सजा मिलनी चाहिए।
26/11 के मुंबई हमले में 166 लोग मारे गए थे और सैकड़ों घायल हुए थे। तहव्वुर राणा पर इस हमले की साजिश में शामिल होने का आरोप है। विशेष रूप से डेविड कोलमैन हेडली के साथ मिलकर रेकी और लॉजिस्टिक सपोर्ट देने का। उसका प्रत्यर्पण भारत को इस मामले में जवाबदेही तय करने और पीडि़तों को न्याय दिलाने की दिशा में एक कदम है। यह आतंकवाद के खिलाफ भारत की लंबे समय से चली आ रही लड़ाई का हिस्सा है। तहव्वुर राणा को भारत लाए जाने की यह प्रक्रिया भारत और अमेरिका के बीच 1997 की प्रत्यर्पण संधि के तहत हो रही है। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट द्वारा राणा की याचिकाओं को खारिज करना और ट्रंप प्रशासन द्वारा मंजूरी देना दोनों देशों के बीच आतंकवाद के खिलाफ साझा प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
राणा का पाकिस्तानी मूल और उसकी कथित संलिप्तता लश्कर-ए-तैयबा और आईएसआई जैसे संगठनों से जुड़ी होने के कारण यह मामला पाकिस्तान की जवाबदेही को लेकर फिर से चर्चा में आया है। इससे भारत को इस हमले में पाकिस्तान-आधारित आतंकी नेटवर्क की भूमिका को और ठोस सबूतों के साथ उजागर करने का मौका मिल सकता है। भारत सरकार की ओर से 2019 में राणा के प्रत्यर्पण के लिए अमेरिका को औपचारिक अनुरोध भेजा गया। यह उस समय से चल रही है, जब राणा अमेरिका में अपनी सजा पूरी कर रहा था। अमेरिकी कोर्ट ने भारत-अमेरिका संधि के आधार पर राणा के प्रत्यर्पण को मंजूरी दी। राणा ने अपनी याचिकाओं में भारत में प्रताडऩा और स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया, लेकिन इन्हें खारिज कर दिया गया। तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण को बीजेपी और मोदी सरकार इसे अपनी सख्त नीति और दुश्मनों का पीछा करने की छवि के साथ जोड़ सकती है, जैसा कि कुछ सोशल मीडिया पोस्ट्स और नेताओं के बयानों में देखा गया। लेकिन यह कहना कि यह केवल बीजेपी की पहल है, गलत होगा, क्योंकि प्रत्यर्पण की मांग और प्रक्रिया अंतरराष्ट्रीय कानून और कूटनीति पर आधारित है, न कि किसी एक पार्टी की इच्छा पर।
पाकिस्तान ने राणा से खुद को अलग करने की कोशिश की है, यह कहते हुए कि वह कनाडाई नागरिक है और उसने अपनी पाकिस्तानी नागरिकता का नवीनीकरण नहीं कराया। यह संकेत देता है कि पाकिस्तान इस मामले में सीधे उलझना नहीं चाहता।
तहव्वुर राणा का प्रत्यर्पण मुख्य रूप से एक कानूनी और आतंकवाद-विरोधी प्रक्रिया है, जो भारत के लिए न्याय और जवाबदेही सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण है। इसे बीजेपी की पहल के बजाय भारत-अमेरिका सहयोग और लंबे समय से चली आ रही मांग का परिणाम माना जाना चाहिए। हालांकि, मौजूदा राजनीतिक माहौल में इसके गलत अर्थ निकाले जाने की संभावना है, लेकिन यह मूल रूप से 26/11 के पीडि़तों को इंसाफ दिलाने का मामला है, न कि किसी समुदाय या देश को व्यापक रूप से निशाना बनाने का। इसकी सफलता भारत की आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को मजबूत कर सकती है और भविष्य में अन्य भगोड़ों की वापसी के लिए मिसाल कायम कर सकती है।
मुम्बई हमले के बहुत सारे चेहरे, साजिशकर्ता, सहयोगी और फंड देने वालों के नाम भी तहव्वुर राणा से पूछताछ में उजागर होंगे। पाकिस्तान में बैठे दाऊद गिलानी उर्फ हेडली सहित इस हमले को अंजाम देने वाले खास करके पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की भूमिका और आतंकी नेटवर्क का भी पता चलेगा। तहव्वुर राणा पाकिस्तानी फौज में डॉक्टर था। जहां से 1997 में रिटायर्ड होकर वह कनाडा चला गया। अमेरिका में एक अपराध में उसे सजा हुई थी। भारत सरकार ने अंतरराष्ट्रीय प्रत्यर्पण संधि के तहत कूटनीति का इस्तेमाल करके भारत लाया है। राणा से पूछताछ में पाकिस्तानी साजिश का चेहरा बेनकाब होगा।
देश की संसद पर हमला हो या अलग-अलग जगहों पर होने वाली आतंकवादी घटनाएं हों, इन्हें वोट की राजनीति से जोड़कर देखने की बजाय देश की एकता-अखंडता और संप्रभुता से जोड़कर देखने की जरुरत है। इन घटनाओं को लेकर चुनाव में इनके नाम पर राजनीति नहीं होनी चाहिए।