-सुभाष मिश्र
कहावत है देर आयद , दुरुस्त आयद । छत्तीसगढ़ आदिवासी आबादी बाहुल्य राज्य है जिसे बने 25 साल होने जा रहे हैं किंतु अभी तक यहां व्यवस्थित रूप से जनजातीय समुदाय की समूची पहचान, परंपरा को प्रदर्शित करने वाली कोई जगह नहीं थी, जो कुछ था वह बिखरा-बिखरा सा था।
नवा रायपुर में छत्तीसगढ़ के जनजाति समुदायों की संस्कृति, जीवन शैली और लोक कला को समर्पित राज्य का प्रथम आदिवासी संग्रहालय आदिवासी मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के हाथों गत दिनों उद्घाटित हुआ। इस संग्रहालय की कुल 14 गैलरियों में जनजातीय जीवनशैली के सभी पहलुओं का जीवंत के साथ प्रदर्शन किया गया है। संग्रहालय में जनजातियों के भौगोलिक विवरण, तीज-त्यौहार, पर्व-महोत्सव तथा विशिष्ट संस्कृति का चित्रण के साथ आवास एवं घरेलू उपकरण, शिकार उपकरण, वस्त्र (परिधान) एवं आभूषण की अनुपम झलकियाँ भी प्रस्तुत की गई है। कृषि तकनीक, उपकरणों व फसल मिंजाई का प्रदर्शन, जनजातीय नृत्यों एवं वाद्ययंत्रों का संग्रह किया जाकर आग जलाने, लौह निर्माण और रस्सी निर्माण की पारंपरिक जनजातीय तकनीक का प्रदर्शन करते हुए कत्था निर्माण, चिवड़ा-लाई निर्माण, मंद आसवन, अन्न कुटाई- पिसाई व तेल प्रसंस्करण की प्रदर्शनी भी लगाई गई है। यहां पर जनजातियों के भौगोलिक विवरण, तीज-त्यौहार, पर्व-महोत्सव तथा विशिष्ट संस्कृति का। यह नया रायपुर स्थित ट्राइबल रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट परिसर में स्थित है।
छत्तीसगढ़, भारत का एक आदिवासी बाहुल्य राज्य है, जहाँ गोंड, मुरिया, माडिय़ा, हल्बा, भतरा, और अन्य जनजातियाँ अपनी समृद्ध संस्कृति और परंपराओं के साथ निवास करती हैं।
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में अनुसूचित जनजातियों की आबादी 10.42 करोड़ (104.2 मिलियन) है, जो देश की कुल आबादी का 8.6फीसदी है। हालाँकि, 2022 में कुछ स्रोतों ने अनुमान लगाया कि यह आबादी बढ़कर 10.45 करोड़ हो चुकी है। आदिवासी आबादी मुख्य रूप से मध्य भारत (मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा), पूर्वोत्तर राज्यों (असम, मेघालय, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड), और राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में केंद्रित है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, विश्व में लगभग 47.6 करोड़ आदिवासी लोग हैं, जो 90 देशों में रहते हैं। इनमें से 70.5फीसदी एशिया में हैं। स्वदेशी संस्कृति के संरक्षण के लिए संग्रहालय वैश्विक स्तर पर आदिवासी अधिकारों और जैव विविधता संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
देश की जनजातीय आबादी में भील (सबसे बड़ी, कुल जनजातीय आबादी का 38फीसदी), गोंड, संथाल, मुंडा, उरांव, खासी, गारो, अंगामी, भूटिया, चेंचू, और ग्रेट अंडमानी। छत्तीसगढ़ में जनजातीय आबादी राज्य की कुल आबादी का लगभग 30.6फीसदी है (2011 जनगणना), जो इसे आदिवासी बाहुल्य राज्य बनाता है।
भारत में आदिवासी संस्कृति, जीवन शैली, और लोक कला को संरक्षित करने के लिए कई संग्रहालय स्थापित किए गए हैं। ये संग्रहालय जनजातीय समुदायों की कला, शिल्प, परंपराओं, और इतिहास को प्रदर्शित करते हैं। इनमें मध्य प्रदेश जनजातीय संग्रहालय, भोपाल (मध्य प्रदेश) शमिल है । यह भारत का सबसे प्रमुख आदिवासी संग्रहालयों में से एक है, जो मध्य प्रदेश की गोंड, बैगा, कोरकू, भील, और अन्य जनजातियों की संस्कृति को प्रदर्शित करता है। संग्रहालय में जनजातीय कला, शिल्प, जीवन शैली, और खेलों की दीर्घाएँ हैं। यहाँ प्रदर्शित सभी कलाकृतियाँ आदिवासियों द्वारा बनाई गई हैं। यहां बस्तर (छत्तीसगढ़) की जनजातीय संस्कृति को भी समर्पित एक दीर्घा है। भोपाल में ही इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय (आईजीआरएमएस), भी है । यह एक मानवशास्त्रीय संग्रहालय है, जो भारत की सभी जनजातियों और उनकी संस्कृतियों को प्रदर्शित करता है। इसमें ओपन-एयर प्रदर्शनियाँ और जनजातीय आवासों के मॉडल शामिल हैं। छत्तीसगढ़ संस्कृति संग्रहालय, रायपुर में संग्रहालय छत्तीसगढ़ की जनजातीय और गैर-जनजातीय संस्कृति को प्रदर्शित करता है, जिसमें बस्तर की कला और जनजातीय शिल्प शामिल हैं। उड़ीसा जनजातीय संग्रहालय, भुवनेश्वर में ओडिशा की 62 जनजातियों (जैसे संथाल, मुंडा, कोंध) की संस्कृति, वेशभूषा, और जीवन शैली को प्रदर्शित करता है। इसकी विशेषता की बात की जाए तो जनजातीय गहने, हथियार, और पारंपरिक घरों के मॉडल यहां है। झारखंड जनजातीय संग्रहालय, राँची में संग्रहालय संथाल, मुंडा, हो, और उरांव जैसी जनजातियों की संस्कृति, कला, और इतिहास को प्रदर्शित करता है। यहां सरना धर्म और जनजातीय संगीत पर विशेष जोर दिया गया है। इसके अलावा आदिवासी संग्रहालय, सिलवासा (दादरा और नगर हवेली) संग्रहालय दमण और दीव, और दादरा और नगर हवेली की वारली, कोकना, और डोडिया जनजातियों की संस्कृति को समर्पित है। अंडमान और निकोबार जनजातीय संग्रहालय, पोर्ट ब्लेयर संग्रहालय जारवा, ओन्गे, सेंटिनलीज़, और ग्रेट अंडमानी जनजातियों की संस्कृति को प्रदर्शित करता है। मेघालय जनजातीय संग्रहालय, शिलांग (मेघालय) में खासी, गारो, और जयंतिया जनजातियों की संस्कृति और परंपराओं को प्रदर्शित करता है।
ऐसा नहीं है की अपनी संस्कृति, परंपराओं और विरासत को बचाने, संरक्षित करने की चिंता हमें ही है। विश्व भर में स्वदेशी समुदायों की संस्कृति को संरक्षित करने के लिए कई संग्रहालय स्थापित किए गए हैं। ये संग्रहालय स्वदेशी लोगों की कला, इतिहास, परंपराओं, और पर्यावरण के साथ उनके संबंध को उजागर करते हैं। नेशनल म्यूजियम ऑफ द अमेरिकन इंडियन, वाशिंगटन डीसी (संयुक्त राज्य अमेरिका) में स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूशन का हिस्सा है और उत्तरी, मध्य, और दक्षिणी अमेरिका के स्वदेशी समुदायों (जैसे नावाजो, चेरोकी, माया) की संस्कृति को प्रदर्शित करता है। टे पापा टोंगारेवा, वेलिंगटन (न्यूजीलैंड) का राष्ट्रीय संग्रहालय, जो माओरी संस्कृति और प्रशांत द्वीप समूह की स्वदेशी परंपराओं को समर्पित है। ऑस्ट्रेलियन म्यूजियम, सिडनी (ऑस्ट्रेलिया), मैक्सिको सिटी (मेक्सिको)के स्वदेशी समुदायों (जैसे माया, एज़्टेक, ज़ापोटेक) की प्राचीन और समकालीन संस्कृति को ब्रिटिश कोलंबिया का म्यूजियम ऑफ एन्थ्रोपोलॉजी, वैंकूवर (कनाडा) के फर्स्ट नेशंस की संस्कृति को समर्पित। सापमी म्यूजियम, करासजोक (नॉर्वे)में यूरोप के स्वदेशी सापमी लोगों की संस्कृति, परंपराओं, और इतिहास को प्रदर्शित करता है।
यदि हम भारत और अन्य देशों में बने संग्रहालय की बात करें तो भारत में आदिवासी संग्रहालय मुख्य रूप से सरकारी पहल या क्षेत्रीय प्रशासन द्वारा स्थापित किए जाते हैं, और इनका फोकस जनजातीय कला, शिल्प, और जीवन शैली पर होता है। विदेशों में, स्वदेशी संग्रहालय अक्सर स्वदेशी समुदायों की सक्रिय भागीदारी के साथ बनाए जाते हैं और औपनिवेशिक प्रभावों, भूमि अधिकारों, और सांस्कृतिक पुनर्जनन पर अधिक ध्यान देते हैं। उदाहरण के लिए, नेशनल म्यूजियम ऑफ द अमेरिकन इंडियन में स्वदेशी लोग क्यूरेटर और सलाहकार के रूप में शामिल होते हैं।
भारत में 10.45 करोड़ आदिवासी आबादी अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के साथ देश की विविधता को बढ़ाती है। नवा रायपुर का आदिवासी गौरव संग्रहालय छत्तीसगढ़ की जनजातीय संस्कृति को संरक्षित करने का एक सराहनीय प्रयास है। भारत में भोपाल, रायपुर, भुवनेश्वर, और सिलवासा जैसे स्थानों पर ऐसे संग्रहालय हैं, जो जनजातीय संस्कृति को जीवंत रखते हैं। विदेशों में, अमेरिका, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, और कनाडा जैसे देशों में स्वदेशी संग्रहालय न केवल संस्कृति को संरक्षित करते हैं, बल्कि स्वदेशी अधिकारों और इतिहास को भी उजागर करते हैं। इन संग्रहालयों का महत्व न केवल सांस्कृतिक संरक्षण में है, बल्कि यह वैश्विक स्तर पर प्रकृति और मानवता के बीच संतुलन को बढ़ावा देने में भी है।