CG NEWS- तालाब बना विवाद की जड़, छुरा-सरकड़ा गांव की प्यास और सवाल दोनों गहराए

 

अमित वखारिया 

गरियाबंद, छत्तीसगढ़।
पानी पर अब सिर्फ प्यास ही नहीं, कब्जा भी होने लगा है। गरियाबंद जिले के छुरा ब्लॉक स्थित सरकड़ा गांव में इन दिनों यही हो रहा है। गांव का पुराना निस्तारी तालाब, जो अब तक ग्रामीणों की जरूरतें पूरी करता था, एकाएक निजी विवाद और प्रशासनिक भ्रम का केंद्र बन गया है। गांव वाले परेशान हैं, मवेशी बेहाल हैं, और तालाब अब मछलीपालन का मैदान बन चुका है।

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जहां कभी सब नहाते थे, अब वहां बाड़ लगी है

इस तालाब की कहानी किसी सरकारी योजना की नहीं, बल्कि गांव वालों की मेहनत और सामूहिक भावना की देन है। करीब 70 साल पहले लोगों ने अपनी जमीनें देकर तालाब खुदवाया था, ताकि गांव को साल भर पानी मिले। लेकिन अब गांव वालों का कहना है कि यह तालाब ‘राजस्व अभिलेखों’ में एक पूर्व मालगुजार के नाम पर दर्ज पाया गया और चुपचाप उसके वारिसों के नाम ट्रांसफर कर दिया गया।

अब वहां बाड़ लगी है, बोर्ड टंग गए हैं और मछली पालन का काम चल रहा है। ग्रामीणों को इस नामांतरण की भनक तक नहीं लगी और जब लगी, तब तक पानी सूख चुका था।

गर्मी का कहर और प्रशासन की खामोशी

अप्रैल-मई की तपती गर्मी में जब लोगों को पानी की सबसे अधिक जरूरत थी, तब तालाब का पानी निकालकर उसमें मछली बीज डाले गए। गांव की महिलाएं अब सिर पर मटके रखे मीलों चल रही हैं। बच्चों की पढ़ाई, पशुओं की देखभाल, और यहां तक कि निर्माणाधीन पीएम आवास योजना सब कुछ पानी के अभाव में ठप पड़ा है।

शिकायतें दर्ज, प्रशासन जागा

इस मामले ने तूल तब पकड़ा जब ग्रामीणों ने 19 मई को गरियाबंद कलेक्टर को सामूहिक आवेदन सौंपा। आरोप सिर्फ जमीन के कब्जे का नहीं, बल्कि पानी जैसे जीवन के मूल अधिकार को छीनने का है।

अब इस पर अपर कलेक्टर अरविंद पांडेय का बयान सामने आया है। उन्होंने कहा, “मामले की शिकायत प्राप्त हुई है। एसडीएम छुरा को स्थल निरीक्षण कर जांच प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के निर्देश दिए गए हैं। जांच के आधार पर आवश्यक कार्यवाही की जाएगी।”

कानून, कागज़ और जनता तीनों उलझे हुए हैं

तालाब की ज़मीन को लेकर एक और पेचीदगी सामने आई है। वर्ष 2019 में तत्कालीन एसडीओ द्वारा तालाब की जमीन को शासन के नाम दर्ज करने की अधिसूचना जारी हुई थी। लेकिन जमीन आज भी निजी नाम पर दर्ज है। अभिलेखों में विरोधाभास है कहीं तालाब सार्वजनिक निस्तार के रूप में दर्ज है, तो कहीं वह कृषि भूमि के रूप में मालगुजार वारिसों के नाम पर चढ़ा हुआ है।

अब गांव की नज़र प्रशासन पर

सरकड़ा गांव की नजरें अब शासन और प्रशासन पर टिकी हैं। यह सवाल सिर्फ एक तालाब का नहीं, गांव की सामूहिक विरासत और जरूरतों का है। यहां सिर्फ पानी की नहीं, व्यवस्था की भी प्यास है और ये प्यास कब बुझेगी, ये अभी अनिश्चित है।

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