सुभाष मिश्र
आम बोलचाल की भाषा में अक्सर अपराधियों, बलात्कारियों, आतंकवादियों भष्ट्राचारियो को सरे आम फाँसी देने, सूली पर लटका देने की बात होती है। लेकिन हमारी न्यायिक प्रक्रिया के चलते हर व्यक्ति को अपने आप को दोषमुक्त, बेगुनाह साबित करने का अवसर दिया जाता। कसाब जैसा आतंकवादी हो या रंगा बिल्ला जैसा अपराधी सबको अदालत के माध्यम से ही सजा मिली। अभी हाल में एक बुलडोजऱ कल्चर विकसित हुआ था जिसमें बिना सुनवाई के बहुत के मकान नेस्तनाबूद किये गये। चूँकि बुलडोजऱ संस्कृति के वाहकों की आँख एक तरफ़ा देखकर ही बुलडोजऱ चलवा रही थी, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगाते हुए दिशा निर्देश जारी किये। हमारे यहाँ कहावत है की जिसकी लाठी उसकी भैंस, तो कई बार सत्ता की लाठी और संस्थाओं के ज़रिए भी बहुत से बेगुनाह, सत्ता का विरोध करने वालों को भी कोप भाजन बनना पड़ता हैं।
हम यहाँ बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ विधानसभा सभा में भाजपा के पूर्व मंत्री और वर्तमान विधायक तथा मौजूदा स्वास्थ्य मंत्री के बीच सदन में हुए संवाद की। छत्तीसगढ़ विधानसभा के बजट सत्र में सत्ता पक्ष के ही विधायक अपनी ही पार्टी के मंत्रियों से गंभीर मुद्दों पर बहस करते दिख रहे हैं। विधानसभा के 9वें दिन भी विधायक अजय चंद्राकर की स्वस्थ मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल से बहस हुई। सीजीएमएससी (छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन) में रिएजेंट खरीदी की गड़बड़ी पर मंत्री जवाब दे रहे थे। चर्चा के दौरान एक पल ऐसा भी आया कि मंत्री को बीच में रोककर अजय चंद्राकर ने कह दिया कि भाषण मत दीजिए, मेरे सवाल का जवाब दीजिए।
इस पर मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने भी कह दिया कि, गड़बड़ी का पता चलते ही ईओडब्ल्यू को जांच के लिए दिया है, अब मंत्री अफसर को सूली पर तो नहीं टांग सकता न। करीब 10 मिनट तक दोनों के बीच बहस होती रही। अजय चंद्राकर ने जिस मेडिकल सप्लाई का मुद्दा उठाया था, इसमें 380 करोड़ की गड़बड़ी पाई गई है। जानकारी के मुताबिक स्वास्थ्य विभाग में बजट नहीं होने के बाद भी कई गुना बढ़े दामों में मेडिकल मशीनें खरीदी गईं। छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन (सीजीएमएससी) में 660 करोड़ रुपये के घोटाले की जांच अब तेज हो गई है। इस मामले में अब तीन आईएएस अधिकारी भी जांच के दायरे में आ गए हैं। स्वास्थ्य विभाग के सीजीएमएससी ने मोक्षित कॉरपोरेशन के माध्यम से छत्तीसगढ़ की राजकोष को किस तरह से खाली किया है ये महज दो साल की ‘ऑडिट ऑब्जर्वेशन रिपोर्ट’ में सामने आया था। ऑडिट में पाया गया है कि पिछले दो सालों में आवश्यकता से ज्यादा खरीदे केमिकल और उपकरण को खपाने के चक्कर में नियम कानून को भी दरकिनार किया गया। जिस हॉस्पिटल में जिस केमिकल और मशीन की जरूरत नहीं वहां भी सप्लाई कर दिया गया। प्रदेश के 776 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों सप्लाई की गई, जिनमें से 350 से अधिक ही प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र ऐसे हैं, जिसमें कोई तकनीकी, जनशक्ति और भंडारण सुविधा उपलब्ध ही नहीं थी। सीजीएमएससी ने 300 करोड़ के रीएजेंट खरीदी में ग्रामीण इलाकों में जहां लैब नहीं है वहां तो खून की जांच में उपयोग होने वाला रीएजेंट भेजा।
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अब बात नौकरशाही की और उसको मिलने वाले मेजर और माइनर पनिशमेंट की। सरकारी कर्मचारी सिविल सेवा आचरण नियम से होता है। भारत में किसी भी भ्रष्ट अफ़सर को सूली पर टांगना (फांसी देना) संभव नहीं है, क्योंकि भारतीय क़ानून और संविधान में ऐसी कोई सजा का प्रावधान नहीं है। किसी सरकारी अधिकारी को भ्रष्टाचार के मामले में दंडित करने के लिए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 और भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत कार्रवाई की जाती है। भारत में सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1964 सरकारी कर्मचारियों के लिए आचार संहिता निर्धारित करता है। ये नियम भ्रष्टाचार, अनैतिक आचरण, अनुशासनहीनता और कर्तव्य के प्रति लापरवाही पर नियंत्रण रखते हैं। किसी भी शासकीय सेवक के लिए जो महत्वपूर्ण प्रावधान है जिनमें प्रत्येक सिविल सेवक को सत्यनिष्ठा और निष्पक्षता के साथ कार्य करना होगा। कोई भी सरकारी अधिकारी रिश्वत या अवैध लाभ नहीं ले सकता। सरकारी संपत्ति का निजी लाभ के लिए उपयोग नहीं किया जा सकता। यदि कोई सरकारी अधिकारी भ्रष्टाचार या किसी आपराधिक कृत्य में दोषी पाया जाता है, तो उसके खिलाफ विभागीय और कानूनी कार्रवाई हो सकती है। यदि कोई अधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त पाया जाता है तो ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों को मिलने वाली सजा में जांच पूरी होने तक नौकरी से हटाया जा सकता है। वेतन में कटौती या ग्रेड डाउन किया जा सकता है। नौकरी से पूरी तरह हटा दिया जाता है। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत 3 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। दोषी अफसर से भ्रष्टाचार से अर्जित अवैध संपत्ति ज़ब्त कर ली जाती है।
फांसी (मृत्युदंड) केवल उन्हीं मामलों में दी जाती है, जो भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या), 376ए (निर्भया कांड जैसे बलात्कार मामलों), या देशद्रोह (राजद्रोह और आतंकवाद) से जुड़े हों। भ्रष्टाचार के लिए अभी तक भारत में किसी भी अधिकारी को फांसी नहीं दी गई है, क्योंकि यह अपराध मौत की सजा की श्रेणी में नहीं आता। भ्रष्ट अफ़सरों को कानूनी प्रक्रिया के तहत दंडित किया जा सकता है, लेकिन सूली पर टांगने जैसी सजा भारतीय संविधान और कानून के तहत संभव नहीं है।
बात छत्तीसगढ़ की हो रही है तो अभी हाल की घटनाओं में ईओडब्ल्यू और एंटी करप्शन विभाग ने 2024 में कार्रवाई करते हुए 56 अधिकारियों और कर्मचारियों को पकड़ा। इसमें सबसे ज्यादा राजस्व विभाग के 36 अधिकारी और कर्मचारी शामिल है। सभी लोगों को एसीबी की टीम ने रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा। साथ ही रिश्वत की रकम बरामद कर विशेष न्यायालय में पेश कर न्यायिक रिमांड पर जेल भेज दिया।
छत्तीसगढ़ में डीएमएफ घोटाला केस में ईडी ने 23.79 करोड़ रुपए की चल-अचल संपत्ति कुर्क है। कुर्क की गई ये संपत्ति डीएमएफ घोटाले में आरोपी निलंबित आईएएस रानू साहू, माया वारियर, मनोज कुमार द्विवेदी समेत 10 लोगों की है। इस मामले में 3 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है। प्रवर्तन निदेशालय ने महादेव ऑनलाइन सट्टेबाजी मामले में चल रही धन शोधन जांच के तहत करीब 388 करोड़ रुपये की नई संपत्ति कुर्क की है। इस मामले में छत्तीसगढ़ के कई उच्च पदस्थ राजनेताओं और नौकरशाहों के कथित रूप से शामिल होने का आरोप है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) छत्तीसगढ़ शराब घोटाले में कई आरोपियों की लगभग 18 चल और 161 अचल संपत्तियों को अस्थायी रूप से कुर्क किया है। जिसकी कीमत 205.49 करोड़ रुपये है। छत्तीसगढ़ सरकार ने 27 आईएएस अधिकारियों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है, जिसमें उन पर 2019 से 2024 के बीच भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग का आरोप लगाया गया है। इस सूची में विभिन्न वित्तीय कदाचार और अनियमितताओं में शामिल उच्च पदस्थ अधिकारी शामिल हैं।
सरकारी क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार तब तक समाप्त नहीं हो सकता जब तक राजनीतिक इच्छाशक्ति ना हो। कहने सुनने में यह बात अच्छी लग सकती है की ना खाऊँगा, ना खाने दूँगा। जब पंचायत से लेकर पॉलियामेंट तक के चुनावों में सारी व्य सीमाओं को धता बताते हुए करोड़ों रूपये खर्च किये जायेगे तो उसकी भरपाई भी तो कहीं ना कहीं से होगी। सादगी, सदाचार और शराफत जिस समाज में हाशिए पर होंगे उस समाज दिखावा संस्कृति फलेगी-फूलेगी और विकसित होगी। कुछ लोग जरूर बलि का बकरा बनेंगे पर अधिकांश लोग सत्ताधीशों का संरक्षण पाकर और लचीली क़ानूनी प्रक्रियाओं का सहारा लेकर फॉसी पर तो नहीं लटकेंगे।