Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – सुशासन तिहार और जमीनी सच्चाई

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव साय की भाजपा सरकार का स्लोगन है हमने बनाया है, हम ही संवारेंगे। छत्तीसगढ़ नई सरकार को सुशासन वाली सरकार के रूप में प्रचारित, प्रसारित किया गया है। अब सरकार सुशासन तिहार मना रही है।
सरकार का मानना है कि संवाद से समाधान होगा। ये सच है कि संवाद से बहुत सी चीजें आसान होती है, जमीनी हकीकत पता चलती है, गिले-शिकवे दूर होते हैं। सरकार का मानना है कि सुशासन तिहार से जनता की समस्याओं का निराकरण होगा। समाधान पेटियां वाकई खुल जा सिम-सिम की तरह लोगों की समस्याओं का समाधान करने में कारगर होगी। वरना हमने बरसों से बहुत सी जगह शिकायत पेटियां देखी है जिनकी ओर कोई झांकता तक नहीं है। समस्या निवारण शिविर, सिटीजन चार्टर, आपकी सरकार आपके द्वार, प्रशासन गांव की ओर तुंहर सरकार, तुंहर द्वार जैसे बहुत से अभियान समय-समय पर चले, किन्तु इसके बावजूद अपने छोटे-मोटे कामों के लिए जिन्हें पंचायत, ब्लाक या जिला स्तर पर हो जाना चाहिए था, नहीं हुए तो लोगों को मुख्यमंत्री के जनदर्शन कार्यक्रम को आवेदन देने राजधानी तक आना पड़ा। दरअसल, हमारी नौकरशाही जनसमस्याओं को लेकर कितनी संवेदनशील है, यह इस पर निर्भर करता है। सरकार को अपने सुशासन तिहार के संबंध में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कलेक्टरों को पत्र लिखकर कहा है कि हमारी सरकार राज्य में सुशासन की स्थापना को लेकर लगातार काम कर रही है। शासन-प्रशासन के प्रत्येक स्तर पर शासकीय कामकाज में पारदर्शिता आए। शासकीय योजनाओं और कार्यक्रमों का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित हो, इसका लाभ समाज के उन वर्गों को तत्परता से मिले, जिनके लिए योजनाएं संचालित की जा रही है।
मोदी की गारंटी के जरिए सत्ता में आई भाजपा की सरकार ने अपने सवा साल के कार्यकाल में 18 लाख प्रधानमंत्री आवास, 21 सौ रुपये प्रति क्विंटल धान खरीदी, बोनस की बकाया राशि का भुगतान करके, 13 लाख वनवासी परिवारों को 4 हजार के बदले 5500 रुपये पर तेंदूपत्ता खरीदी करके, धार्मिक जनता को रामलला के दर्शन कराकर तथा युवाओं को पीएससी के कथित भ्रष्टाचार से मुक्ति मिलाकर दोषियों पर कार्यवाही करते हुए नई व्यवस्था बनाई है, जिसकी वजह से लोगों के बीच सरकार का विश्वास बढ़ा है। सुशासन तिहार इस विश्वास को और गहरा करने की एक दूसरी शानदार पहल है।
सुशासन तिहार-2025 का आयोजन तीन चरणों में होगा। पहले चरण में 08 अप्रैल से 11 अप्रैल 2025 तक आम जनता से आवेदन प्राप्त किए जाएंगे। प्राप्त आवेदनों का दूसरे चरण में एक माह के भीतर निराकरण किया जाएगा। तीसरे एवं अंतिम चरण में 05 मई से 31 मई 2025 के बीच समाधान शिविरों का आयोजन किया जाएगा। आवेदन प्राप्ति और निराकरण की प्रक्रिया तय की गई है जिसके अनुसार आम जनता से उनकी समस्याओं के संबंध में 08 से 11 अप्रैल 2025 तक ग्राम पंचायत मुख्यालयों और नगरीय निकाय कार्यालयों में सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक आवेदन प्राप्त किए जाएंगे। इन स्थलों पर समाधान पेटी रखी जाएगी, ताकि लोग अपनी समस्याएं और शिकायत नि:संकोच लिखकर उसमें डाल सकें।
समाधान शिविर के आयोजन की तिथि की जानकारी आवेदकों को एस.एम. एस. के माध्यम से तथा आवेदन की पावती के माध्यम से दी जाएगी। जिन आवेदकों के आवेदन समाधान योग्य होने पर उनका निराकरण शिविर में किया जाए, शेष आवेदनों का समाधान एक माह में कर आवेदकों को सूचित किया जाएगा। सुशासन तिहार में मुख्यमंत्री सहित स्थानीय सांसदों, विधायकों एवं अन्य जनप्रतिनिधियों की भागीदारी होगी।
दरअसल कहा जाता है कि जिस भी राज्य, देश और जनपद में आम लोगों की जिंदगी, दिनचर्या में सरकार का जितना कम हस्तक्षेप होता है, वह शासन सबसे बेहतर माना जाता है। आम नागरिक नियम-कानूनों और स्वयं द्वारा तय स्व अनुशासन का पालन करें। दूसरों के कामों में बेवजह दखलअंदाजी न करें और संवैधानिक मूल्यों के अनुसार जियो और औरों को भी जीने दो, वह व्यवस्था सबसे बेहतर है।
सुशासन की धारणा दरअसल रामराज्य की हमारी कल्पना का विस्तार है जहां राजकाज के संचालन में पारदर्शिता, जवाबदेही, कुशलता और जनता की भागीदारी सुनिश्चित करने का एक आदर्श है। यह एक ऐसी व्यवस्था की कल्पना करता है जहां नीतियां जन-केंद्रित हों, भ्रष्टाचार न्यूनतम हो, और संसाधनों का उपयोग समाज के सभी वर्गों के हित में हो।
जब हम सुशासन की धारणा की बात करते हैं तो सबसे पहली बात पारदर्शिता को लेकर आती है। सरकार के निर्णय और प्रक्रियाएं जनता के लिए खुली होने चाहिए। जवाबदेही का सही तरीके से निर्धारण होना चाहिए जिसमें नेताओं और अधिकारियों का जनता के प्रति उत्तरदायित्व तय हो। संसाधनों का अधिकतम और उचित उपयोग किन्तु हमारे देश में बहुत पहले से कुछ बातें कहावतों के ज़रिए कही जा चुकी है जिसकी लाठी उसकी भैंस और समरथ को नहीं दोष गोंसाई….। सुशासन का विचार आकर्षक है, लेकिन भारत जैसे देश में इसकी वास्तविकता कई चुनौतियों से घिरी हुई है।
हमारे देश में विभिन्न स्तरों पर भ्रष्टाचार अभी भी एक बड़ी समस्या है। सरकारी योजनाओं में रिश्वतखोरी और धन का गबन आम शिकायतें हैं। लालफीताशाही और धीमी प्रक्रियाएँ जनता के लिए परेशानी का कारण बनती है जिससे सुशासन का लक्ष्य कमजोर पड़ता है।
संसाधनों का असमान वितरण होने के कारण ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच विकास में भारी असमानता देखी जाती है। गरीब और हाशिए पर समुदाय अक्सर उपेक्षित रहते हैं।
हर स्तर पर जवाबदेही की कमी दिखती है। कई बार जनप्रतिनिधि और अधिकारी अपने कार्यों के लिए जवाबदेह नहीं ठहराए जाते, जिससे विश्वास का संकट पैदा होता है। नागरिक में शिक्षा, जागरूकता और जनभागीदारी की कमी की वजह से लोग अपने अधिकारों और सरकार से अपेक्षाओं को पूरी तरह समझ नहीं पाते। यदि हम सुशासन के सकारात्मक पहलुओं की बात करें तो डिजिटल इंडिया और आधार जैसी पहल ने पारदर्शिता और सेवा वितरण में सुधार किया है। आरटीआई (सूचना का अधिकार) ने नागरिकों को सरकार से सवाल पूछने का अधिकार दिया है।
सरकार की मंशा बिलकुल साफ है किन्तु सुशासन की धारणा और ज़मीनी हकीकत के बीच एक बड़ा अंतर है। सरकारें इसे लागू करने के लिए नीतियां बनाती है लेकिन व्यावहारिक चुनौतियाँ जैसे भ्रष्टाचार, प्रशासनिक अक्षमता और सामाजिक असमानता इसे पूर्ण रूप से हासिल करने में बाधक हैं। हमने आज़ादी का अमृत काल मना लिया। हमने गऱीबी हटाओ और अच्छे दिन आने के नारे भी सुन लिए। हमने प्रधानमंत्री के मुँह से ना खाऊँगा ना, खाने दूँगा की उद्घोषणा भी सुन ली। डिजिटल इंडिया के ज़रिए हमने बहुत से कामों को आसानी से होते भी देखा है और देख रहे हैं। टेक्नोलॉजी ने हमारे जीवन को काफ़ी हद तक बदला है। यदि नहीं बदली है तो हमारी लालच, हमारी लालफ़ीताशाही और प्रशासकीय व्यवस्था और नौकरशाही का अडिय़ल रवैया। सरकारें आती जाती रहती हैं और अपने काम, कार्यकर्ताओं और जनसमर्थन से वे बार-बार जीत कर भी आती है। उनके सामने हर पांच साल में जनता के कामकाज और किये गये वादों को पूरा करने की चुनौती रहती है। प्रधानमंत्री हो, मुख्यमंत्री हो या कोई भी जनप्रतिनिधि सभी को अपने हर पांच साल में कड़े इम्तिहान से गुजऱना होता है। यही वजह होती है कि वे जनता के दुख-दर्द, उनकी समस्याओं को लेकर संजीदा रहते हैं किन्तु सरकारी तंत्र में रच बस गये बहुत से लोगों की प्राथमिकता जनसेवक की नहीं होकर मालिक की होती है। अपनी भोथरी संवेदना और व्यवहार और कार्यप्रणाली के कारण वे कदम-कदम पर लोगों के छोटे-मोटे कामों, रोजमर्रा की कठिनाइयों की ओर ध्यान नहीं देते। अधिकारी-कर्मचारियों के लिए सतत रूप से एक पाठशाला हर स्तर पर संवेदनशीलता और तत्परता से काम निपटाने की चलानी चाहिए वरना तो बहुत से लोग यहां यह कहते पाये जाते हैं, बने रहो पगला, काम करेगा अगला।

गोरख पांडे की एक बहुत पुरानी चर्चित कविता है –
समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई
हाथी से आई, घोड़ा से आई
अँगरेजी बाजा बजाई
नोटवा से आई, बोटवा से आई
बिड़ला के घर में समाई।

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गांधी से आई, आँधी से आई
टुटही मड़इयो उड़ाई।

डालर से आई, रूबल से आई
देसवा के बान्हे धराई।

धीरे-धीरे आई, चुपे-चुपे आई
अँखियन पर परदा लगाई।

समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई
समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई।।

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