-सुभाष मिश्र
सुप्रीम कोर्ट अपने फैसलों की वजह से चर्चा में रहती है। हमारी जनतांत्रिक व्यवस्था में संविधान सर्वोच्च है और संविधान की मूल भावना के अनुरूप कामकाज, निर्णय हो रहे हैं या नहीं यह देखने का दायित्व सुप्रीम कोर्ट का है। इस समय देश में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों, टिप्पणियों पर काफी चर्चा हो रही है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी.आर गवई ने पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाये जाने की याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि हमारी आलोचना हो रही है कि सुप्रीम कोर्ट विधायिका और कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में दखल दे रहा है। उन्होंने अटर्नी जनरल से कहा है कि पालिसी मैटर देखना सरकार का काम है। कार्यपालिका और न्याय पालिका के बीच अपने अपने अधिकारों को लेकर रस्साकसी आम बात है किन्तु इस समय जिस तरह से बीजेपी के सांसद निशिकांत दुबे, दिनेश शर्मा, उपराष्ट्रपति जगदीश धनखड़ और केरल के राज्यपाल टिप्पणी कर रहे हैं, उन्होंने सारी हदें पार कर दी है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेताओं के एक वर्ग की तरफ से न्यायिक अतिक्रमण के आरोपों की पृष्ठभूमि में, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक वकील से पूछा कि क्या वह चाहते हैं कि अदालत केंद्र को राष्ट्रपति शासन लगाने का निर्देश देने के लिए एक आदेश जारी करे।
वकील ने केंद्र को निर्देश देने की मांग की कि वह वक्फ संशोधन अधिनियम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा के मद्देनजर संविधान के अनुच्छेद 355 के तहत राज्य सरकार को आवश्यक निर्देश जारी करने पर विचार करे। एडवोकेट विष्णु शंकर जैन ने जस्टिस बी आर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच के समक्ष मामले का उल्लेख किया, जिसमें न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल थे। अधिवक्ता द्वारा मामले का उल्लेख किए जाने पर जस्टिस गवई ने कहा, ‘आप चाहते हैं कि हम केंद्र को राष्ट्रपति शासन लगाने का निर्देश देने के लिए आदेश जारी करें? न्यायमूर्ति गवई ने आगे कहा, ‘जैसा कि यह है, हम पर संसदीय और कार्यकारी कार्यों में हस्तक्षेप करने का आरोप है।Ó
हाल ही में, कुछ भाजपा नेताओं ने उस फैसले पर विवादास्पद टिप्पणी की थी, जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए दूसरी बार विधायिका द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने की समय सीमा निर्धारित की गई थी। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के सामने एक याचिका आई, जिसमें भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की हालिया टिप्पणी के लिए उनके खिलाफ अवमानना याचिका दायर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी मांगी गई। इस पर पीठ ने कहा कि आप इसे दायर करें, याचिका दायर करने के लिए आपको हमारी मंजूरी की जरूरत नहीं है। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को इस मामले में अटॉर्नी जनरल से मंजूरी लेने की जरूरत है। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने कहा था कि अगर सुप्रीम कोर्ट कानून बनाएगा तो फिर संसद और विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए। भाजपा सांसद ने मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना पर तंज कसते हुए कहा कि देश में गृह युद्ध के लिए सीजेआई जिम्मेदार होंगे। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने पूर्व चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, वो चुनाव आयुक्त नहीं बल्कि ‘मुस्लिम आयुक्त है। निशिकांत दुबे और एक अन्य सांसद दिनेश शर्मा के सुप्रीम कोर्ट पर हमलावर होने के बाद भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर टिप्पणी करते हुए कहा कि सांसद निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा के बयान का पार्टी से कोई लेना-देना नहीं है। यह उनके निजी विचार हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने समय रैना पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि कुछ लोग खुद को ओवर स्मार्ट समझते हैंÓ। समय रैना ने कनाडा में एक शो के दौरान अदालत में चल रही कार्यवाही पर जोक कहा था। मैसर्स क्योर एसएमए फाउंडेशन ने विकलांग व्यक्तियों के संबंध में समय रैना द्वारा असंवेदनशील टिप्पणियों की निंदा करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। एक शो के दौरान, रैना ने 2 महीने के बच्चे के मामले में स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी के लिए एक उच्च लागत वाले उपचार विकल्प का मजाक उड़ाया। एक अन्य उदाहरण में, यह आरोप लगाया गया है कि उसने एक अंधे और क्रॉस-आइड व्यक्ति का उपहास किया। इस मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस सूर्य कांत ने कहा, ‘यह बहुत ही गंभीर मुद्दा है। हम यह देखकर वास्तव में परेशान हैं। हम चाहते हैं कि आप इन घटनाओं को भी रिकार्ड में लाएं। ‘इंडियाज गॉट लैटेंटÓ के एक एपिसोड में रणवीर अल्लाहबादिया, समय रैना, आशीष चंचलानी, अपूर्वा मखीजा, और जसप्रीत सिंह शामिल थे। इस दौरान कुछ सवालों और टिप्पणियों को अश्लील और अपमानजनक माना गया। विशेष रूप से, रणवीर अल्लाहबादिया द्वारा पूछा गया एक सवाल, जिसमें माता-पिता से संबंधित आपत्तिजनक टिप्पणी शामिल थी, ने भारी विवाद को जन्म दिया।
समय रैना और रणवीर अल्लाहबादिया का विवाद ‘इंडियाज गॉट लैटेंटÓ में अश्लील और अपमानजनक टिप्पणियों के इर्द-गिर्द केंद्रित है। दोनों ने अपनी गलती स्वीकारी और माफी मांगी। सुप्रीम कोर्ट ने रणवीर अल्लाहबादिया और समय रैना के ‘इंडियाज गॉट लैटेंटÓ विवाद से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान कई तल्ख और महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ कीं। ये टिप्पणियाँ मुख्य रूप से रणवीर अल्लाहबादिया की अश्लील और आपत्तिजनक टिप्पणी, समय रैना के कनाडा में इस मामले पर हल्के-फुल्के अंदाज में बोलने, और डिजिटल सामग्री की नैतिकता व नियमन पर केंद्रित थीं। जस्टिस सूर्य कांत ने रणवीर अल्लाहबादिया की ‘माता-पिता और सेक्सÓ से संबंधित टिप्पणी को अत्यंत आपत्तिजनक और ‘गंदाÓ करार दिया। उन्होंने कहा कि ‘इस तरह की भाषा को कोई भी पसंद नहीं करेगा। उनके दिमाग में कुछ बहुत गंदा है, जो उन्होंने उगल दिया।Ó ‘आपके द्वारा चुने गए शब्दों से माता-पिता, बेटियाँ, बहनें और पूरा समाज शर्मिंदा महसूस करेगा। यह आपके और आपके साथियों की नीचता का स्तर है।Ó ‘बर्ताव करो, वरना हम जानते हैं कि तुम्हें कैसे संभालना है।Ó जस्टिस कांत ने कहा कि ‘हम आइवरी टावर में नहीं बैठे हैं। हम जानते हैं कि समाज में कुछ मूल्य हैं।Ó ‘ऐसी भाषा का इस्तेमाल करके सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की कोशिश करने वालों को समाज ठीक करने की कोशिश करता है।Ó
भारत में महिलाओं, दिव्यांग व्यक्तियों, और काले मोटे बौनों (या सामान्य रूप से गहरे रंग और विशिष्ट शारीरिक विशेषताओं वाले लोगों) के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियाँ और मजाक सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से गहरे जड़े हुए हैं। ये टिप्पणियाँ रंगभेद (ष्शद्यशह्वह्म्द्बह्यद्व), लिंगभेद, और शारीरिक अक्षमता या रूप के आधार पर भेदभाव को दर्शाती हैं। महिलाओं के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियाँ करना, जोक बनाना हमारे यहां आम बात है।
बॉलीवुड और टीवी धारावाहिकों में गहरे रंग की महिलाओं को अक्सर हास्य या नकारात्मक किरदारों में दिखाया जाता है, जैसे कि ‘कॉमिक रिलीफÓ या ‘खलनायिकाÓ, जो रंगभेद को और बढ़ावा देता है। भारत में दिव्यांग व्यक्तियों को अक्सर ‘विकलांगÓ या ‘अपंगÓ जैसे शब्दों से संबोधित किया जाता है, जो अपमानजनक माने जाते हैं। ये शब्द शारीरिक अक्षमता को नकारात्मक रूप में प्रस्तुत करते हैं। दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम (क्रक्कङ्खष्ठ ्रष्ह्ल, 2016) के जिसने अधिनियम 1995 के पुराने कानून की जगह लेता है और 21 प्रकार की अक्षमताओं को मान्यता देता है, जिसमें बौनापन (स्र2ड्डह्म्द्घद्बह्यद्व) भी शामिल है। धारा 92 के तहत, किसी दिव्यांग व्यक्ति का अपमान करने या सार्वजनिक रूप से नीचा दिखाने की कोशिश करने पर 6 महीने से 5 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है। 2021 में, सुप्रीम कोर्ट ने प्राची भारद्वाज मामले में एक अंधी दलित महिला के बलात्कार के संदर्भ में ‘इंटरसेक्शनल उत्पीडऩÓ को संबोधित किया और दिव्यांग महिलाओं के खिलाफ भेदभाव पर दिशानिर्देश जारी किए।
सुप्रीम कोर्ट की अलग-अलग मामलों में की गई टिप्पणियां भविष्य के लिए नजीर साबित होगी, साथ ही विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के कामकाज और सीमाओं को भी नये सिरे से परिभाषित करेगी।