अभाव मूल्य श्रृंखला का
राजकुमार मल
भाटापारा:- रुझान घट रहा है राष्ट्रीय बांस मिशन से बांस की खेती करने वाले किसानों में क्योंकि प्रसंस्करण और विपणन की सुविधाओं को लेकर कोई पहल नहीं की जा रही है।
घटते क्रम में है प्रदेश में बांस की बोनी का रकबा। राष्ट्रीय बांस मिशन की शुरुआत तो जोर- शोर से हुई थी लेकिन तैयार हो चुके बांस अब परेशानी खड़ी कर रहे हैं क्योंकि वाजिब कीमत नहीं मिल रही है। साथ ही बांस आधारित प्रसंस्करण इकाई के फायदे भी फलीभूत नहीं हो सके हैं।
इसलिए कम हो रही खेती
राष्ट्रीय बांस मिशन योजना के तहत अनुशंसित प्रजाति बम्बोस, बालकोवा और तुलदा को कमजोर गुणवत्ता वाली प्रजाति मानी जाती है। बांस उत्पादक किसानों की मांग कनक कैच जैसी उच्च गुणवत्ता वाली प्रजाति में थी लेकिन कमजोर उपलब्धता घटते रुझान की बड़ी वजह बन रही है। इसके अलावा योजना अब तक गैर वन क्षेत्र तक ही पहुंच पाई है जबकि जरूरत आदिवासी समुदायों तक होनी थी, जहां विशाल संभावना थी।
Related News
0 मुख्यमंत्री श्री साय भैंसा में आयोजित सुशासन तिहार में ग्रामीणों से हुए रूबरू
0 'विकसित कृषि संकल्प अभियान' के लिए 10 जागरूकता रथों को दिखाई हरी झंडी
0 भैंसा में प्राथमिक स्वास...
Continue reading
0 मुख्यमंत्री अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के नागरिक अभिनंदन समारोह में हुए शामिल
रायपुर। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय राजधानी रायपुर के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कृषि मंडपम...
Continue reading
0 छत्तीसगढ़ में शिक्षा सुधार की नई पहल: युक्तियुक्तकरण के माध्यम से शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ और छात्र-केंद्रित बनाने की दिशा में ठोस कदम
रायपुर। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृ...
Continue reading
0 नीति आयोग की बैठक में दिखी आत्मीयता
रायपुर । नीति आयोग की गवर्निंग काउंसिल की बैठक के दौरान एक आत्मीय क्षण सामने आया, जिसने सबका ध्यान खींचा। लंच ब्रेक के समय प्रधानमंत्री नरेंद...
Continue reading
0 बंदूक छोड़ विकास की ओर: 24 हार्डकोर नक्सलियों ने छोड़ा हिंसा का रास्ता
Continue reading
रायपुर। छत्तीसगढ़ में स्कूली शिक्षा की व्यवस्था को बेहतर और ज्यादा प्रभावशाली बनाने के लिए शिक्षा विभाग ने युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया शुरू की है। इस पहल का मुख्य उद्देश्य यह है कि ...
Continue reading
जनधारा समाचार
रायपुर। रंगमंच और सिनेमा के जाने-माने अभिनेता मनोज जोशी संस्कार भारतीय के तीन दिवसीय समारोह के समापन अवसर पर रायपुर आए थे। इस दौरान उन्होंने रायपुर के महाराष्ट्...
Continue reading
-सुभाष मिश्रकहावत है देर आयद , दुरुस्त आयद । छत्तीसगढ़ आदिवासी आबादी बाहुल्य राज्य है जिसे बने 25 साल होने जा रहे हैं किंतु अभी तक यहां व्यवस्थित रूप से जनजातीय समुदाय की समूची...
Continue reading
-सुभाष मिश्रएक चुटकी सिंदूर की कीमत तुम क्या जानो रमेश बाबू...हिंदी फिल्म ओम शांति ओम का एक लोकप्रिय डायलॉग है, जिन विवाहिताओं के सिंदूर आतंकवादियों ने उजाड़े उन्हें अब पता चला...
Continue reading
-सुभाष मिश्रभारत के सीमावर्ती प्रदेशों में मॉक ड्रिल का आयोजन, विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान और गुजरात जैसे क्षेत्रों में युद्ध जैसी आपात स्थिति के लिए जनता और प्र...
Continue reading
-सुभाष मिश्रकांग्रेस नेता राहुल गांधी का हालिया अमेरिका दौरा एक बार फिर विवादों का केंद्र बन गया है। ब्राउन यूनिवर्सिटी के वाटसन इंस्टीट्यूट में दिए गए उनके बयान, जिसमें उन्हों...
Continue reading
-सुभाष मिश्रसुप्रीम कोर्ट ने अश्लील कंटेंट को सामाजिक और नैतिक खतरे के रूप में देखा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 28 अप्रैल 2025 को केंद्र, ओटीटी और सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स को नोटि...
Continue reading
मूल्य श्रृंखला और अभाव प्रसंस्करण का
योजना तो बेहतर थी लेकिन बांस उत्पादक किसानों ने इसलिए रुझान नहीं दिखाया क्योंकि न उच्च गुणवत्ता वाली प्रजाति मिली ना मूल्य श्रृंखला को लेकर जिम्मेदारों ने पहल की। इसके अलावा बांस आधारित उद्योगों के लिए प्रसंस्करण इकाइयों की भी जानकारी समय पर नहीं मिली। किसानों का कहना है कि बांस की व्यावसायिक खेती के लिए अपार संभावनाएं हैं बशर्ते गंभीरता से ध्यान दिया जाए।
बनती हैं यह सामग्रियां
गरीबों की लकड़ी कहे जाने वाले बांस से फर्नीचर बनते ही हैं। घरेलू उपयोग भी सदियों से चला आ रहा है। हस्तशिल्प में बांस शिल्प को जैसा बढ़ावा मिल रहा है, उसने भी विस्तार को अवसर दिया हुआ है। कागज के बाद दूसरी सफलता बांस के कपड़े बनाने में मिली है, जो बाजार में बहुत जल्द देखने में आने वाला है। बताते चलें कि देश में बांस की लगभग 136 प्रजातियां हैं, जिसकी मदद से वार्षिक उत्पादन 3.23 मिलियन टन पर पहुंचा हुआ है।
नीति और ज़मीनी कार्य में सामंजस्य ज़रूरी
राष्ट्रीय बांस मिशन एक दूरदर्शी पहल रही है, लेकिन इसके अपेक्षित परिणाम तभी मिल सकते हैं जब योजना निर्माण के साथ-साथ ज़मीनी कार्यान्वयन में भी गंभीरता हो। उच्च गुणवत्ता वाली प्रजातियों की अनुपलब्धता, प्रसंस्करण इकाइयों का अभाव और मूल्य श्रृंखला की कमी किसानों के रुझान में गिरावट के प्रमुख कारण हैं। बांस सिर्फ पारंपरिक उपयोग तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके औद्योगिक और हस्तशिल्पीय उपयोगों में भी अपार संभावनाएं हैं।
-अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर