-सुभाष मिश्र
भारत के सीमावर्ती प्रदेशों में मॉक ड्रिल का आयोजन, विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान और गुजरात जैसे क्षेत्रों में युद्ध जैसी आपात स्थिति के लिए जनता और प्रशासन को तैयार करने का एक रणनीतिक कदम है। हाल के समाचारों के अनुसार, आज 7 मई 2025 को 259 सीमावर्ती जिलों में मॉक ड्रिल आयोजित की जाएगी, जिसमें हवाई हमले की चेतावनी के सायरन, ब्लैकआउट और शेल्टर लेने की प्रैक्टिस शामिल होगी। इसका मुख्य उद्देश्य युद्ध या सीमा पर बढ़ते तनाव की स्थिति में नागरिकों को सुरक्षा उपायों के लिए प्रशिक्षित करना और प्रशासन की तत्परता सुनिश्चित करना है। यह कदम हाल के तनावों, विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 26 हिंदू पर्यटकों के नरसंहार के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़े तनाव के संदर्भ में महत्वपूर्ण है। चूंकि भारत में बहुत सारी चीजों को इवेंट के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। तो कुछ लोगों को लग रहा है कि यह इवेंट का पहला चरण है इसके बाद कोरोना की तरह भविष्यमें सेना का हौसला बढ़ाने के लिए ताली, थाली, बत्ती गुल भी हो सकती है। मीडिया के जरिए हर भारतीय को सैनिक की तरह प्रस्तुत करके संभावित युद्ध के लिए तैयार किया जा सकता है।
मॉक ड्रिल नागरिकों को हवाई हमले, गोलीबारी या अन्य युद्धकालीन परिस्थितियों में सुरक्षित रहने के लिए प्रशिक्षित करता है। यह स्थानीय प्रशासन, पुलिस, सेना और आपदा प्रबंधन टीमों के बीच समन्वय को मजबूत करता है। यह सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को युद्ध की संभावना के प्रति सचेत करता है, जिससे वे मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार रहें। मॉक ड्रिल भारत की ओर से एक रणनीतिक संदेश भी है कि वह किसी भी स्थिति के लिए तैयार है, जिससे पड़ोसी देशों पर दबाव बनता है। यह देश वासियों को भविष्य के खतरों के प्रति एकजुट करने की कवायद भी है।
एक रणनीति यह भी संभव है कि भारत पहले आक्रमण नहीं करना चाहता है क्योंकि इससे अंतरराष्ट्रीय समर्थन नहीं मिल पाएगा। यदि पाकिस्तान पहले आक्रमण करता है तो सारी अंतरराष्ट्रीय सहानुभूति और समर्थन भारत को मिल सकता है। इस तरह की मॉकड्रिल एक तरह से पाकिस्तान को आक्रमण के लिए उकसावे का उपाय भी हो सकता है और यदि ऐसा होता है तो इसका अर्थ है कि युद्ध की संभावना बन रही है।
कुछ लोगों का यह भी मानना है कि यह एक किस्म की राजनीतिक रणनीति भी हो सकती है जिसके तहत देश के महत्वपूर्ण मुद्दों से लोगोंका ध्यान हटाना। विपक्ष भी यदि कोई दूसरे मुद्दों पर बात करता है तो यह कहने का अवसर सरकार को मिल जाएगा कि देश इस समय युद्ध की कगार पर खड़ा है और विपक्ष को दूसरे मुद्दे जरूरी लग रहे हैं।
पाकिस्तान ने हाल के दिनों में नियंत्रण रेखा पर लगातार गोलीबारी की है, जिसे कई एक्स पोस्ट्स में दर्ज किया गया है। उदाहरण के लिए, 26 अप्रैल से 3 मई 2025 तक पाकिस्तान ने लगातार नौ दिनों तक युद्धविराम का उल्लंघन किया, जिसका भारतीय सेना ने जवाब दिया। यह गोलीबारी पहलगाम आतंकी हमले के बाद और तीव्र हुई जिसने दोनों देशों के बीच तनाव को चरम पर पहुंचा दिया। चीन का पाकिस्तान के प्रति रुख ऐतिहासिक रूप से समर्थनकारी रहा है। 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद से चीन ने पाकिस्तान के साथ रणनीतिक साझेदारी विकसित की, जिसमें 1963 में शक्सगाम घाटी का हस्तांतरण और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा जैसे प्रोजेक्ट शामिल हैं। चीन ने कश्मीर मुद्दे पर और संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान का समर्थन किया है जैसे कि आतंकवाद से संबंधित प्रस्तावों को अवरुद्ध करना। यह भारत के लिए दो मोर्चों पर युद्ध की आशंका को बढ़ाता है, जैसा कि कई विश्लेषकों ने उल्लेख किया है।
1962 का भारत-चीन युद्ध में भारत को अक्साई चिन में क्षेत्रीय हानि हुई और सैन्य रूप से अपर्याप्त तैयारी के कारण हार का सामना करना पड़ा। इसने भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को प्रभावित किया और रक्षा मंत्री मेनन को इस्तीफा देना पड़ा। अलबत्ता एक लाभ यह रहा कि युद्ध ने भारत को अपनी सैन्य कमजोरियों का एहसास कराया, जिसके बाद स्वदेशी हथियार विकास और सैन्य आधुनिकीकरण पर जोर दिया गया और हेंडरसन-ब्रूक्स-भगत रिपोर्ट ने सैन्य सुधारों को प्रेरित किया। 1947-48 में कश्मीर युद्ध के बाद जम्मू-कश्मीर का एक तिहाई हिस्सा पाकिस्तान के नियंत्रण में रहा, जिसे वह आज़ाद कश्मीर कहता है। भारत ने दो-तिहाई हिस्सा, जिसमें जम्मू, कश्मीर घाटी और लद्दाख शामिल हैं, अपने पास रखा। 1965 युद्ध का परिणाम अनिर्णायक रहा। कुछ स्रोतों के अनुसार, भारत ने अधिक क्षेत्र पर कब्जा किया, लेकिन दोनों पक्षों को नुकसान हुआ। 1971 में भारत की निर्णायक जीत हुई, जिसके परिणामस्वरूप पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश बन गया। भारत ने नियंत्रण रेखा पर कुछ अतिरिक्त क्षेत्र भी हासिल किया। 1999 (कारगिल युद्ध) में भारत ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़कर अपनी स्थिति मजबूत की, लेकिन युद्ध ने दोनों देशों के बीच अविश्वास को और गहरा किया। भारत ने अपनी सैन्य और कूटनीतिक ताकत को मजबूत किया, विशेष रूप से 1971 में। प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) में लाखों लोगों की मृत्यु, आर्थिक तबाही और साम्राज्यवादी व्यवस्था का पतन। भारत ने ब्रिटिश सेना के लिए सैनिक और संसाधन प्रदान किए, लेकिन स्वतंत्रता की मांग तेज हुई। द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) और भी विनाशकारी रहा जिसमें परमाणु बम का उपयोग हुआ। रूस-यूक्रेन युद्ध (2022-वर्तमान) ने वैश्विक ऊर्जा संकट, खाद्य असुरक्षा और आर्थिक हानि के साथ लाखों लोग विस्थापित हुए, शहर नष्ट हुए और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएं प्रभावित हुईं।
इन युद्धों ने दिखाया कि युद्ध का प्रभाव केवल सैन्य नहीं, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय होता है। रूस-यूक्रेन युद्ध ने भारत को अपनी ऊर्जा और रक्षा नीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित किया।
भारतीय नेताओं विशेष रूप से विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने चीन और पाकिस्तान के साथ तनाव पर कड़ा रुख अपनाया है। जयशंकर ने कहा कि सीमा पर शांति के बिना चीन के साथ सामान्य संबंध संभव नहीं है। पाकिस्तानी नेता और सेना भारत को उकसाने और युद्धविराम उल्लंघन का आरोप लगाते हैं। हाल के हमलों के बाद पाकिस्तान ने एलओसी पर सैन्य गतिविधियां बढ़ाई हैं। चीन ने भारत के साथ सीमा विवाद पर कूटनीतिक बातचीत की वकालत की है, लेकिन साथ ही वह सीपीईसी और कश्मीर जैसे मुद्दों पर पाकिस्तान का समर्थन करता है, जिससे भारत की चिंताएं बढ़ती हैं।
वर्तमान में युद्ध अनिवार्य नहीं लगता, लेकिन स्थिति नाजुक है। पहलगाम हमले और लगातार गोलीबारी ने भारत-पाकिस्तान संबंधों को तनावपूर्ण बना दिया है। मॉक ड्रिल और सैन्य तैनाती युद्ध की आशंका को दर्शाते हंै। वहीं चीन का पाकिस्तान के प्रति समर्थन भारत के लिए चिंता का विषय है, लेकिन वह खुलकर युद्ध में शामिल होने से बचा है।
दूसरी तरफ अमेरिका, रूस और अन्य शक्तियां भारत-पाकिस्तान-चीन त्रिकोण में तनाव कम करने की कोशिश करती हैं क्योंकि दक्षिण एशिया में युद्ध वैश्विक अर्थव्यवस्था और सुरक्षा को प्रभावित कर सकता है।
देखा जाए तो भारत की सैन्य और कूटनीतिक ताकत जैसे स्वदेशी हथियार (अग्नि, राफेल, प्रलय मिसाइल) और अंतरराष्ट्रीय गठबंधन उसे युद्ध से बचने की स्थिति में रखते हैं। युद्ध की आर्थिक और मानवीय लागत बहुत अधिक होगी, जिसे भारत, पाकिस्तान और चीन, तीनों ही टालना चाहेंगे।
युद्ध की संभावना कम है लेकिन इसे पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता। भारत की रणनीति वर्तमान में निवारक और कूटनीतिक है, जिसमें मॉक ड्रिल, सैन्य तैनाती और अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाना शामिल है। पाकिस्तान की आर्थिक और आंतरिक कमजोरी उसे पूर्ण युद्ध से रोकती है जबकि चीन वैश्विक छवि और आर्थिक हितों के कारण सीधे टकराव से बच रहा है।
हालांकि, अगर आतंकी हमले या गोलीबारी बढ़ती है तो सीमित सैन्य कार्रवाई हो सकती है, जैसा कि 2019 के बालाकोट हवाई हमले में देखा गया। दरअसल युद्ध के दूरगामी परिणाम होते हैं। जिस तरह रूस और यूक्रेन के युद्ध को महज 10-15 दिनों का युद्ध समझ गया था जो आज कई सालों से चल रहा है। इसी तरह इजराइल और हमास के युद्ध को भी देख सकते हैं। लंबे चलने वाले युद्ध दोनों देशों के लिए नुकसानदायक होते हैं। अमेरिका युद्ध में पाकिस्तान का सीधे-सीधे समर्थन नहीं करेगा क्योंकि उसके आर्थिक हित भारत से जुड़े हैं। भारत इस समय विश्व मे एक बड़ा बाजार है। लेकिन युद्ध के समय स्थितियां बदल जाती हैं। इस संदर्भ में श्रीकांत वर्मा की कविता प्रासंगिक है-
महाराज बधाई हो, महाराज की जय हो!
युद्ध नहीं हुआ
लौट गये शत्रु।
वैसे हमारी तैयारी पूरी थी!
चार अक्षौहिणी थीं सेनाएं
दस सहस्र अश्व
लगभग इतने ही हाथी।
कोई कसर न थी।
युद्ध होता भी तो
नतीजा यही होता।
न उनके पास अस्त्र थे
न अश्व
न हाथी
युद्ध हो भी कैसे सकता था!
निहत्थे थे वे।
उनमें से हरेक अकेला था
और हरेक यह कहता था
प्रत्येक अकेला होता है!
जो भी हो
जय यह आपकी है ।
बधाई हो!
राजसूय पूरा हुआ
आप चक्रवर्ती हुए
वे सिफऱ् कुछ प्रश्न छोड़ गये हैं
जैसे कि यह
कोसल अधिक दिन नहीं टिक सकता
कोसल में विचारों की कमी है।