-सुभाष मिश्र
हमारे यहां कहावत है करे कोई, भरे कोई या फिर गेहूं के साथ कभी-कभी धुन भी पीसता है। दरअसल, हम सरकारी भर्ती की प्रक्रिया उसमें हुए भ्रष्टाचार, लापरवाही, अर्हता संबंधी त्रुटि तथा विज्ञापन प्रकाशन से लेकर भर्ती प्रक्रिया तय होने वाले लंबे विलंब को देखें तो पाते हैं कि नौकरी के लिए आवेदन करने वाले अधिकांश लोग पात्रता और अपनी कड़ी मेहनत से नौकरी पाते हैं। किन्तु सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार, लालफीताशाही के चलते बहुत बार कुछ लोगों की वजह से बहुत सारे निर्दोष लोगों को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। पश्चिम बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 20 हजार शिक्षक सड़क पर आ गये हैं, उनके सामने रोजी-रोटी का संकट आ गया है।
ऐसा नहीं है कि पश्चिम बंगाल अकेला ऐसा राज्य है जहां भर्तियों में अनियमितता, भ्रष्टाचार या लेटलतीफी हुई हो। छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां सरकारी त्रुटि का खामियाजा बी.एड फिर डी.एड पात्रता के चक्कर में बहुत से लोगों को भुगतना पड़ रहा है। छत्तीसगढ़ पीएससी की बात हो या मध्यप्रदेश में व्यापम घोटाले की बात हो, रेल्वे में विज्ञापित पदों की भर्ती तीन-चार साल तक लंबित रखने की बात हो, बहुत सारे शिक्षित बेरोजगारों को उसकी सजा भुगतनी होती है। सरकारी भर्तियों में घोटाले, अनियमितताएं और विलंब भारत में लंबे समय से एक गंभीर मुद्दा रहा है। ये समस्याएं न केवल युवाओं के भविष्य को प्रभावित करती है बल्कि प्रशासनिक व्यवस्था और सरकारों की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाती है।
पश्चिम बंगाल का शिक्षक भर्ती घोटाला इसका एक ताजा और चर्चित उदाहरण है, जिसने न सिर्फ हजारों लोगों की नौकरियों को खतरे में डाला, बल्कि बड़े पैमाने पर आंदोलन को भी जन्म दिया। पश्चिम बंगाल में 2016 में स्कूल सेवा आयोग (एसएससी) के जरिए शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की भर्ती प्रक्रिया शुरू हुई थी। 24,640 पदों के लिए विज्ञापन निकाला गया, लेकिन 25,753 नियुक्तियां कर दी गईं। 23 लाख से अधिक उम्मीदवारों ने आवेदन किया था। इस परीक्षा में जो धांधली सामने आई है उसमें ओएमआर शीट में छेड़छाड़, रैंक में हेरफेर और नौकरी के बदले 5 से 15 लाख रुपये तक की रिश्वत लेने के सबूत मिले। जांच में पाया गया कि कई अयोग्य उम्मीदवारों को नियुक्त किया गया, जबकि योग्य लोगों को बाहर रखा गया। तृणमूल कांग्रेस के कई नेता, जिनमें पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी, इस घोटाले में फंस गए। चटर्जी की गिरफ्तारी और उनके करीबी अर्पिता मुखर्जी के घर से करोड़ों रुपये की नकदी बरामद हुई। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि भर्ती प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर हेरफेर हुआ, जिसे राज्य सरकार छिपाने की कोशिश करती रही। डिजिटल रिकॉर्ड न रखने और सबूत नष्ट करने के आरोप भी लगे। कलकता हाईकोर्ट ने (22 अप्रैल 2024) को पूरी भर्ती प्रक्रिया को दूषित बताते हुए 25,753 नियुक्तियों को रद्द कर दिया। कोर्ट ने दोषी उम्मीदवारों को मिला वेतन 12 फीसदी ब्याज सहित वापस करने और सीबीआई जांच जारी रखने का आदेश दिया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट मामला गया जहां (3 अप्रैल 2025) को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। कोर्ट ने कहा कि भर्ती प्रक्रिया में हेरफेर और धोखाधड़ी इतनी गहरी थी कि इसे सुधारना असंभव है। हालांकि, वेतन वापसी के आदेश को खारिज कर दिया गया और दिव्यांग कर्मचारियों को छूट दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रकार की जांच सीबीआई से जांच जारी रखने की अनुमति दी, जिससे भविष्य में और खुलासे होने की संभावना है। कोर्ट के फैसले के बाद बंगाल में बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू हो गए।
अब यदि हम बात करें मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सरकारी भर्तियों में अनियमितता और भ्रष्टाचार के मामलों की हो, ये लंबे समय से चर्चा में रहे हैं। इनमें व्यापम घोटाला, पब्लिक सर्विस कमीशन (पीएससी) की परीक्षाओं में धांधली और पटवारी भर्ती जैसे प्रकरण शामिल हैं। इन घटनाओं ने न केवल प्रशासनिक व्यवस्था की पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं, बल्कि लाखों युवाओं के भविष्य को भी प्रभावित किया है। मध्य प्रदेश का व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापम) घोटाला भारत के सबसे बड़े भर्ती घोटालों में से एक है। यह 2013 में सामने आया और इसमें मेडिकल, इंजीनियरिंग और सरकारी नौकरियों की भर्ती परीक्षाओं में बड़े पैमाने पर धांधली हुई। परीक्षा में फर्जी उम्मीदवार (मुन्नाभाई), पेपर लीक ओएमआर शीट में हेरफेर और रिश्वत के जरिए अयोग्य लोगों को नौकरी दी गई। इसमें नेता (जैसे तत्कालीन मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा), अधिकारी (जैसे पंकज त्रिवेदी), मध्यस्थ और उम्मीदवार शामिल थे। इस मामले में दो हजार से अधिक लोग गिरफ्तार हुए। 100 से ज्यादा लोगों को 3-10 साल की सजा हुई। कई संदिग्धों की मौतें भी हुईं। हाल ही में एक मामला सामने आया जहां एक कथित दृष्टिबाधित व्यक्ति को दिव्यांग कोटे से सब-इंस्पेक्टर बनाया गया जो बाइक और कार चलाते पाया गया। इससे फर्जी प्रमाणपत्रों और भ्रष्टाचार का मुद्दा उठा। पटवारी भर्ती घोटाला 2023 में मध्य प्रदेश की पटवारी भर्ती परीक्षा में पेपर लीक और नकल के आरोप लगे। परीक्षा रद्द हुई और जांच में कई गिरफ्तारियां हुईं। इसमें अधिकारियों और कोचिंग माफिया की मिलीभगत सामने आई। छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग (सीजीपीएससी) पर भी भाई-भतीजावाद और धांधली के आरोप लगते रहे हैं। 2025 में एक मामला सामने आया जिसमें परीक्षा परिणामों में हेरफेर के सबूत मिले। सरकार ने इसे गंभीरता से लिया और प्रक्रिया से संदिग्ध अधिकारियों को हटाने का फैसला किया। अध्यक्ष सहित बहुत से लोग जेल में है। 2024-25 में छत्तीसगढ़ में पटवारी भर्ती में भ्रष्टाचार के आरोपों ने तूल पकड़ा। मामले को ईओडब्ल्यू (आर्थिक अपराध शाखा) को सौंपा गया, और जांच जारी है।
यदि हम भारत में बेरोजगारी की स्थिति पर नजर डालें तो पाते हैं कि सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के अनुसार, सितंबर 2024 में भारत की बेरोजगारी दर 7.8 फीसदी थी। ग्रामीण क्षेत्रों में यह दर 2.5 फीसदी और शहरी क्षेत्रों में 5.1 फीसदी रही। सरकारी नौकरियों में कार्यरत लोगों की संख्या की बात करें तो पाते हैं कि केंद्रीय सरकार के 56 मंत्रालयों और विभागों में 48.67 लाख कर्मचारी कार्यरत हैं। इसमें भारतीय रेलवे सबसे बड़ा नियोक्ता है, जहां 13 लाख कर्मचारी हैं। राज्य सरकारों में लगभग 1.35 करोड़ लोग कार्यरत हैं, जिससे कुल सरकारी कर्मचारियों की संख्या लगभग 1.7 करोड़ हो सकती है। भारत का कुल कार्यबल 2023 में लगभग 60 करोड़ था, जिसमें से सरकारी नौकरियां केवल 2.8 फीसदी (लगभग 17 मिलियन) है।
छत्तीसगढ़ में बर्खास्त किए गए बीएड सहायक शिक्षक पिछले 113 दिन से एडजस्टमेंट की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। अपनी बात सरकार तक पहुंचाने के लिए शिक्षकों ने अंगारों पर चलकर प्रदर्शन किया। शिक्षकों ने कहा कि सरकार सेवा सुरक्षा दे या हमें इच्छा मृत्यु दे दे। बिहार में सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी (सीएचओ) भर्ती परीक्षाओं में व्यापक अनियमितताओं और कदाचार का मामला उजागर हुआ है। भारत में कई सरकारी वेकेंसी ऐसी है जो लंबे समय से विज्ञापित है लेकिन विभिन्न कारणों—जैसे प्रशासनिक देरी, कानूनी अड़चनें या संसाधनों की कमी के चलते अभी तक नियुक्तियां पूरी नहीं हो पाई है।
मिलिट्री इंजीनियरिंग सर्विसेज में एमईएस ने सुपरवाइजऱ और ड्राफ्ट्समैन के 572 पदों के लिए विज्ञापन जारी किया था। अप्रैल 2025 तक यह भर्ती प्रक्रिया अधूरी है। परीक्षा और परिणाम में देरी के कारण उम्मीदवारों में असंतोष है। रेलवे भर्ती बोर्ड 2019 में रेलवे ने नॉन-टेक्निकल पॉपुलर कैटेगरी के 35,208 पदों के लिए आवेदन मांगे थे। कई चरणों की परीक्षाएं 2020-2021 में हुईं, लेकिन अंतिम परिणाम और नियुक्तियां अभी तक पूरी नहीं हुई हैं। 2025 तक कुछ उम्मीदवारों को नियुक्ति पत्र मिले पर प्रक्रिया धीमी है। कर्मचारी चयन आयोग ने कंबाइंड ग्रेजुएट लेवल परीक्षा के तहत 2020 में विभिन्न विभागों में 6,506 पदों के लिए भर्ती शुरू की थी। अंतिम परिणाम 2023 में जारी हुए, लेकिन कई पदों पर नियुक्तियां लंबित हैं। कुछ उम्मीदवारों के दस्तावेज सत्यापन में देरी हुई। बिहार शिक्षक भर्ती (फेज-2, 2023) में बिहार सरकार ने 2023 में 69,692 शिक्षक पदों के लिए भर्ती शुरू की थी। 2024 तक कुछ नियुक्तियां हुईं, लेकिन सभी पदों पर प्रक्रिया पूरी नहीं हुई। अप्रैल 2025 तक यह लंबित है। उत्तर प्रदेश पुलिस कांस्टेबल भर्ती 2021 में 26,210 कांस्टेबल पदों के लिए विज्ञापन निकाला था। परीक्षा और शारीरिक दक्षता टेस्ट हुए, लेकिन अंतिम चयन और नियुक्तियां अभी हाल में हुई है।
दरअसल जब हम कहते हैं कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है तो हमें देखना होगा कि किन मामलों में एक है। निश्चित रूप से सरकारी भर्तियां, परीक्षा के आयोजन में धांधली के मामले में सभी जगह एक सा आचरण दिखता है। कुछ लोगों का लालच, कुछ कमतर लोगों का पैसा, पावर और पहचान के जरिए नौकरी पाने की लालसा और प्रशासनिक प्रक्रियाओं में लेटलतीफी, पारदर्शिता नहीं होने के कारण ये सब होता है।