Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से- महिला उत्पीड़न रोकने मानसिकता बदलनी होगी

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

समाज में किसी भी समय किसी भी काल और किसी भी क्षेत्र में घटित होने वाली घटनाओं की अनुगूंज लंबे समय तक बनी रहती है। महाभारत की कथा में द्रौपदी का चीरहरण हो या दिल्ली में निर्भया के साथ की गई बर्बरता इतिहास बताता है कि महिलाओं को देवी मानकर पूजने वाला पुरुष प्रधान समाज महिलाओं के साथ सबसे ज्याद क्रूरता करता है, उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक समझता है और उनके साथ ज्यादती करके उनकी देह को हासिल करना चाहता है। गुडग़ांव के एक प्रतिष्ठित अस्पताल में वेंटिलेटर पर पड़ी एयर होस्टेस का यौन उत्पीडऩ इसी मानसिकता का प्रतीक है। यही वह मानसिकता है जो कोयंबटूर में एक 13 साल की दलित लड़की को मासिक धर्म से गुजरने की वजह से परीक्षा केंद्र में कक्षा से बाहर बैठने के लिए विवश करता है। यही वह मानसिकता है जो भिलाई में एक सगे चाचा को अपनी छोटी सी सगी भतीजी से बलात्कार कर हत्या के लिए प्रेरित करता है। परिवार के लोग जिनमें लड़की का पिता भी है, वह कहता है कि मेरा भाई ऐसा नहीं कर सकता वो तो बचपन से उसके साथ रहता था। किन्तु पुलिस की जांच कहती है कि डीएनए टेस्ट और सारे सबूत चाचा को ही आरोपी बता रहे हैं। हमारे आसपास दर्जनों ऐसी घटना आये दिन घटती है जिसमें किसी भी उम्र की महिला, बच्चियों के साथ रेप उत्पीडऩ होता है। अभी हाल ही में उत्तरप्रदेश के रामपुर में मूकबधिर लड़की के साथ बलात्कार की घटना सामने आई है। कहीं कोई नाबालिग भाई पोर्न फिल्म देखकर अपनी बहन के साथ रेप कर रहा है। बलात्कारी मानसिकता के लिए जाति, धर्म, संप्रदाय, रिश्ते नाते उम्र कोई मायने नहीं रखती उसे तो मादा चाहिए। भले ही वह श्मशान के चीरघर में मृत पड़ी स्त्री की देह ही क्यों न हो। महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा केवल शारीरिक ही नहीं मानसिक भी होती है।
बहुत सारे लोग गोस्वामी तुलसीदास की चौपाई को अपने ढंग से परिभाषित करके सोचते हैं-
ढोर, गंवार, शुद्र, पशु, नारी ये सब तारण के अधिकारी।
गुडग़ांव के मेदांता अस्पताल में एक गंभीर घटना सामने आई, जिसमें एक 46 वर्षीय एयर होस्टेस, जो आईसीयू में वेंटिलेटर पर भर्ती थी, के साथ एक पुरुष कर्मचारी द्वारा यौन उत्पीडऩ किया गया। यह घटना अप्रैल 2025 में हुई। पीडि़ता उस समय बेहोश थी और विरोध करने में असमर्थ थी। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि घटना के दौरान वहां मौजूद एक महिला कर्मचारी ने इस मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया। पीडि़ता ने अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद इसकी शिकायत दर्ज की। गुरुग्राम पुलिस ने मजिस्ट्रेट के समक्ष पीडि़ता का बयान दर्ज किया और सीसीटीवी फुटेज की जांच शुरू की। महिलाओं, दलितों और समाज के कमजोर तबके के प्रति किस तरह की सोच है इसका ताज़ा उदाहरण तिरूवनंतपुरम की हाल की घटना है। जहां एक लड़की को मासिक धर्म की वजह से अपमानित होना पड़ा।
स्त्री और पुरुष की शारीरिक संरचना में सबसे बड़ा अंतर मातृत्व का है। जब किसी लड़की को मासिक धर्म यानी पीरियड्स आते हैं उसके बाद ही उसके मां बनने की प्रक्रिया की शुरुआत होती है। हर माह शरीर के भीतर होने वाली यह एक प्राकृतिक जैविक प्रक्रिया होती है किन्तु अभी भी बहुत से दकिय़ानूसी लोग के छुआछूत, अशुद्धता, अपवित्र और शर्म के प्रतीक के रूप में इसे देखते हैं।
पवित्रता और प्रदूषण-इन दो शब्दों की मदद से ही तो सदियों से महिलाओं के जीवन को नियंत्रित किया जा रहा है। ऐसी महिलाओं को मंदिरों में प्रवेश नहीं करने दिया जाता। रसोई में हमें अलग खड़ा कर दिया जाता है। बहुत से घरों में उन्हें किसी छोटे कमरे में ज़मीन पर भी सुलाया जाता है। पितृसत्तात्मक समाज की इस पुरातन पंथी सोच को बहुत सी महिलाएं भी आगे बढ़ाती हैं और उनका व्यवहार भी घर की महिलाओं के साथ अच्छा नहीं होता।
भारत में महिलाओं और बच्चियों के खिलाफ यौन हिंसा एक गंभीर और व्यापक समस्या है। यदि हम अभी हालिया घटनाओं की बात करें तो कोलकाता (2024) में आरजी कर मेडिकल कॉलेज में एक ट्रेनी डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की घटना ने देश को हिला दिया। इस घटना ने अस्पतालों में महिला कर्मचारियों की सुरक्षा पर सवाल उठाए गए। दिल्ली (2024) में 24 घंटे के भीतर दो बच्चियों के साथ बलात्कार की घटनाएं सामने आईं, जिनमें से एक बच्ची की हालत गंभीर बनी रही। उत्तर प्रदेश (2024) में बाराबंकी, बलरामपुर और आजमगढ़ में बलात्कार की घटनाएँ दर्ज की गईं। गोरखपुर में एक मामले में पीडि़ता को सिगरेट से जलाया गया। मध्य प्रदेश (2024) में सीधी जिले में एक महिला के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ और उसके गुप्तांगों में रॉड डालने की कोशिश की गई, जिसने 2012 के निर्भया कांड की यादें ताजा कर दीं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) 2021 के उपलब्ध आंकड़े बताते हैं की 2021 में भारत में 31,677 बलात्कार के मामले दर्ज हुए, यानी औसतन 86 मामले प्रतिदिन। महिलाओं के खिलाफ कुल अपराध के 4,28,278 मामले दर्ज हुए। जिनमें अपराध दर 64.5फीसदी थी। राजस्थान (6,337 मामले), मध्य प्रदेश (2,947 मामले), और उत्तर प्रदेश (2,845 मामले) में सबसे अधिक बलात्कार के मामले दर्ज हुए। महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा को लेकर 2015 में 1,13,403 घरेलू हिंसा के मामले दर्ज हुए, जो बलात्कार के मामलों से कहीं अधिक थे। संयुक्त राष्ट्र पॉपुलेशन फंड के अनुसार, भारत में 75 फीसदी विवाहित महिलाएँ अपने पति द्वारा यौन हिंसा का शिकार होती है, लेकिन यह कानूनी रूप से अपराध नहीं माना जाता। पति के इस आचरण को उसका अधिकार माना जाता है यदि इस मामले में पत्नी शिकायत करें तो सास और मां दोनों उसे समझाईश देने लगती है। यहां पति परमेश्वर की घटना ज्यादा प्रभावी होती है।
यदि हम घटनाओं के पीछे के कारणों की पड़ताल करें तो सबसे पहले पितृसत्तात्मक मानसिकता की बात होगी। समाज में महिलाओं को दोयम दर्जे का समझा जाता है और पुरुष श्रेष्ठता की धारणा यौन हिंसा को बढ़ावा देती है। लोक-लाज, पारिवारिक दबाव और कानूनी और सामाजिक कमियां भी इन घटनाओं को बढ़ाने में सहायक हैं। लंबी कानूनी प्रक्रिया, सामाजिक कलंक और पीडि़त को दोषी ठहराने की प्रवृत्ति के कारण कई मामले दर्ज ही नहीं होते। एक तरफ़ हम विश्व गुरू बनाकर अंतरिक्ष से लेकर पूरे ब्रम्हाण में अपने ज्ञान संस्कृति का परचम फहराना चाहते हैं। वहीं दूसरी तरह नैतिक शिक्षा और लैंगिक संवेदनशीलता की कमी युवाओं में नकारात्मक सोच को बढ़ावा देती दिखाई देती है। हॉल में घटित घटनाएं संस्थागत विफलताओं को भी बयान करती हैं। अस्पतालों, कार्यस्थलों और सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षा व्यवस्था का अभाव है। देश की राजधानी दिल्ली के सफदरजंग और राम मनोहर लोहिया अस्पतालों में महिला डॉक्टरों के लिए उचित ड्यूटी रूम और शौचालय तक की कमी है।
महिलाओं और बच्चियों के खिलाफ यौन हिंसा भारत में एक गहरी और जटिल समस्या है जो सामाजिक, सांस्कृतिक और संस्थागत कारकों से जुड़ी है। मेदांता अस्पताल जैसी घटनाएं यह दर्शाती है कि कथित रूप से सुरक्षित माने जाने वाले स्थानों में भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। यदि हम समाज में महिलाओं के सम्मान, सुरक्षा को लेकर वाक़ई संजीदा हैं तो हमे इस समस्या के समाधान के लिए कठोर कानूनी कार्रवाई और तेज़ न्याय प्रक्रिया लागू करनी होगी। सामाजिक जागरूकता और लैंगिक समानता को बढ़ावा देना होगा। सुरक्षा व्यवस्था में सुधार करते हुए खासकर अस्पतालों और कार्यस्थलों में इसकी सतत निगरानी करनी होगी। साथ ही साथ शिक्षा के माध्यम से नैतिक और लैंगिक संवेदनशीलता को बढ़ावा देना होगा।

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