-सुभाष मिश्र
हर हाथ में काम, हर हाथ में रोजगार, सभी को शिक्षा, सभी को स्वास्थ्य जैसा नारा आज आश्वासनों तक सीमित है। देश में बेरोजगारी बढ़ रही है। कौशल विकास के तमाम दावों के बावजूद अभी भी लोगों को घर के पास हुनर के साथ रोजगार नहीं मिल रहा है। लोग अपना छोटा-मोटा व्यवसाय प्रारंभ करने के लिए भटक रहे हैं। मनरेगा जैसी योजना के बावजूद सबके पास रोजगार की गारंटी नहीं है। छत्तीसगढ़ में शिक्षा और रोजग़ार की स्थिति आजकल बहुत ही चुनौतीपूर्ण हो गई है और यह स्थिति सिर्फ छत्तीसगढ़ में ही नहीं बल्कि पूरे भारत में दिन-ब-दिन दयनीय होती जा रही है। समय-समय पर लोगों को व्यावसायिक शिक्षा में संवैधानिक स्तर पर ही धोखा मिल रहा है। प्रत्येक परीक्षाओं तथा चयन प्रक्रिया के बाद खबरें या सोशल मीडिया देखें तो इसके बारे में बहुत तीखी आलोचनाएं और प्रतिक्रियाएं मिलेंगी। सरकारी नौकरियों में भर्ती की निरंतर कमी देखी जा रही है, जिससे शासकीय सेवाओं में रुचि रखने वाले युवाओं के सामने एक बड़ी समस्या खड़ी हो गई है।
जमीनी सच्चाई से इतर सरकार के दावों की बात की जाए तो भारत में बेरोजगारी, शिक्षा और रोजगार के अवसरों की वर्तमान स्थिति में सकारात्मक परिवर्तन देखे जा रहे हैं। यदि हम बेरोजगारी की स्थिति की बात करें तो केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने फरवरी 2025 में लोकसभा में बताया कि पिछले छह वर्षों में देश की बेरोजगारी दर में लगभग 50 फीसदी की कमी आई है। आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार, 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों की बेरोजगारी दर वित्त वर्ष 2017-18 के 6फीसदी से घटकर वित्त वर्ष 2023-24 में 3.2 फीसदी रह गई है।
इसी तरह शिक्षा क्षेत्र की स्थिति की बात की जाए तो वित्त वर्ष 2025-26 के केंद्रीय बजट में शिक्षा मंत्रालय के लिए कुल 1,28,650 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है जो पिछले वर्ष की तुलना में 6.22 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। इसमें स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग के लिए 78,572 करोड़ रुपये शामिल हैं। हालांकि, इंडियाज ग्रेजुएट स्किल्स इंडेक्स 2025 के अनुसार, 57 प्रतिशत स्नातकों में रोजगार योग्य कौशल की कमी है, जो रोजगार प्राप्ति में बाधा बन रही है।
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रोजगार के अवसर को लेकर आये आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में बताया गया कि वित्त वर्ष 2019 में ईपीएफओ से जुड़े लोगों की संख्या 71 लाख थी जो वित्त वर्ष 2024 में बढक़र 1.31 करोड़ हो गई है, यह संगठित क्षेत्र में रोजगार वृद्धि को दर्शाता है। इसके अतिरिक्त बजट 2025-26 में फुटवियर और लेदर क्षेत्र में 22 लाख नए रोजगार सृजित करने की योजना है।
हमारे देश में व्यावसायिक शिक्षा का उद्देश्य छात्रों को व्यावहारिक कौशल और ज्ञान प्रदान करना है, ताकि वे बेहतर काम कर सके वर्तमान में केवल 7 से 10 फीसदी आबादी औपचारिक क्षेत्र में भाग लेती है, व्यवसायिक शिक्षा में यही वजह है कि प्रशिक्षित श्रम बल की कमी है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत, वर्ष 2025 तक 50 फीसदी शिक्षार्थियों को व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने का लक्ष्य रखा गया है। इस पहल के अंतर्गत, कक्षा 6 से ही स्थानीय अर्थव्यवस्था से संबंधित पाठ्यक्रमों को शामिल किया जाएगा, जिससे छात्रों में प्रारंभिक स्तर पर ही कौशल विकास हो सके।
हमारे देश में व्यावसायिक शिक्षा को पारंपरिक शैक्षणिक कार्यक्रमों की तुलना में कम महत्व दिया जाता है, जिससे छात्रों और अभिभावकों में इसे लेकर रुचि की कमी है। इसके अलावा बुनियादी ढांचे की कमी भी एक बड़ा कारण है। बहुत सारे व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों में आवश्यक उपकरण, तकनीक और प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी है, जिससे गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण प्रदान करना कठिन हो जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में, छत्तीसगढ़ में स्कूली शिक्षा और उच्च शिक्षा दोनों में सुधार हुआ है। राज्य में संभाग स्तर पर 05 संभागीय कार्यालय और जिला स्तर पर 33 जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय है। इसके अलावा राज्य में व्यावसायिक शिक्षा के लिए भी कई संस्थान हैं, जैसे कि तकनीकी शिक्षा संस्थान, आजीविका विद्यालय और कौशल विकास संस्थान तथा आईटीआई संचालित हैं। लेकिन फिर भी, स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसरों से जूझना पड़ रहा है। इसके कई कारण हैं, जैसे कि रोजगार के अवसरों की कमी, शिक्षा और प्रशिक्षण की कमी, और स्थानीय लोगों को प्राथमिकता न देना। इस समस्या का समाधान करने के लिए, राज्य सरकार को स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए कदम उठाने होंगे। इसके लिए सरकार को शिक्षा और प्रशिक्षण के क्षेत्र में सुधार करना होगा, ताकि स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसरों के लिए तैयार किया जा सके। इसके अलावा, सरकार को स्थानीय लोगों को प्राथमिकता देनी होगी, ताकि वे रोजगार के अवसरों का लाभ उठा सकें।