Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से: गौहत्या पर सामाजिक और क़ानूनी प्रतिबंध जरुरी

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से: गौहत्या पर सामाजिक और क़ानूनी प्रतिबंध जरुरी

-सुभाष मिश्र
कभी गोधन न्याय योजना चलाकर गोवंश को संरक्षण देने और उसे आर्थिक गतिविधियों से जोडऩे वाले छत्तीसगढ़ की राजधानी में इन दिनों गोमांस की बिक्री को लेकर मामला गरमाया हुआ है। आप शाकाहारी हैं या मांसाहारी ये बात उतनी मायने नहीं रखती। मायने ये बात रखती हैं की आप किसका और कौन सा मांस खा रहे हैं। हमारे यहाँ बहुत सारे जीव-जन्तु के मांस का भक्षण करने पर सामाजिक और क़ानूनी प्रतिबंध है। गोहत्या, गोमांस और गो-संरक्षण से जुड़े विषय भारत में संवेदनशील और बहस का मुद्दा हैं। इनसे जुड़े कई ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और कानूनी पहलू हैं।

हिंदू धर्म में गाय को माता के समान पवित्र माना जाता है। इसे ‘गौ माता’ कहा जाता है और इसे धन, उर्वरता, और समृद्धि का प्रतीक माना गया है। जैन धर्म और बौद्ध धर्म में भी जीवों के प्रति करुणा का सिद्धांत महत्वपूर्ण है, जो गोहत्या को अस्वीकार करते हैं। इस्लाम में गोमांस का सेवन धार्मिक दृष्टि से प्रतिबंधित नहीं है, लेकिन इसे भारत जैसे सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में देखा जाता है।

हाल ही रायपुर के मोमिनपारा इलाके में गौकशी का मामला सामने आया है। पुलिस ने छापा मारकर गौमांस, मांस काटने के उपकरण, तराजू, चाकू, रस्सियां और खून के धब्बे बरामद किए। एक समुदाय विशेष के लोगों की संलिप्तता के कारण की वजह से अब इस मामले में राजनीति शुरू हो गई। गौ हत्या की पवित्रता का मामला एक और हो गया और राजनीतिक आरोप -प्रत्यारोप शुरू हो गए। हिंदू संगठन और आम हिंदू जन की भावना निश्चित रूप से इसमें आहत होती है। पिछले कुछ समय से जो धार्मिक उन्माद का माहौल बना है उसमें गौ हत्या आमजन में एक बड़े अपराध की तरह माना जाता है। वह लोगों की धार्मिक भावना से जुड़ा हुआ मसला हो गया है। राजनीतिक दलों ने इस अवसर को, इस मसले को खूब भुनाया है। लगातार इस तरह की खबरों और अवसर को ताजा बनाए रखते हैं। गौ हत्या निश्चित रूप से अपराध है और जब गौ हत्या कानूनन अपराध घोषित हो गया है तो कानून का पालन करना और कानून का आदर करना हर नागरिक का सबसे पहला कर्तव्य है। जो लोग इस तरह का कृत्य कर रहे हैं, उनको भी सोचना चाहिए और इस तरह की चीजों और अवसरों से बचना चाहिए।

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मांस खाना बिल्कुल निजी मामला है और इसके लिए कानून में कोई पाबंदी नहीं है। जिस तरह के मांस के लिए यानी गौ मांस के लिए पाबंदी है तो किसी भी व्यक्ति को इस पाबंदी के खिलाफ नहीं जाना चाहिए। जब गौ मांस के अलावा भैंस, बकरा, मुर्गी आदि जानवर के मांस को लेकर कोई पाबंदी नहीं है तो फिर ऐसे नाजुक और आग पकड़ सांप्रदायिक समय में गौ हत्या और गौ मांस की की जिद पकडऩा, परोक्ष रुप में उकसाने वाली कार्यवाही है। जब तक गौ मांस ही मांस खाने का अंतिम विकल्प न हो तब तक कोशिश यह होनी चाहिए कि इस तरह की हरकतों से बचना चाहिए जिससे गांव, शहर और राज्य में मनमुटाव और दंगों की स्थिति न बन पाए। हिंदू संगठनों को भी ऐसे समय में सोचना चाहिए कि ऐसी गायें जो बीमार या अनुपयोगी हैं या उम्रदराज हैं और जिनके लिए कानून में छूट मिली हुई है,उनके काटे जाने पर इतना हल्ला नहीं मचाना चाहिए कि उपद्रव और दंगे की स्थिति बन जाए या कहा जाए कि राजनीतिक लड़ाई की स्थिति बन जाए। क्योंकि स्थिति ऐसी बन चुकी है कि कोई भी एक पक्ष इसको मानने के लिए तैयार नहीं है। यहीं से सरकार की जिम्मेदारी शुरू होती है। सरकार को मांसाहारी लोगों की पसंद और उनके खाने की स्वतंत्रता का ध्यान भी रखना होगा खास करके छत्तीसगढ़ इलाके में जो आदिवासी बहुल है और जहां मांस खाना बहुत ही सामान्य बात है। साथ ही ऐसे अवसरों पर सख्ती की जरूरत है जहां अब इरादतन अपराधी किस्म के लोग गौ हत्या के माध्यम से सांप्रदायिक तनाव पैदा करना चाहते हैं। दूसरे धर्म को नीचा दिखाने की कोशिश करना चाहते हैं। ऐसी हालत में दोनों पक्षों से बात की जा सकती है। उनको समझाइश दी जा सकती है। इन सारे मसलों को कानून के सहारे ही सुलझाना की कोशिश करनी चाहिए। इसमें राजनीतिक हस्तक्षेप को किनारे कर देना चाहिए।

हाल की घटना पर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कहा, ‘गौमाता की तस्करी करने वाले या तो सुधर जाएं या छत्तीसगढ़ छोड़ दें। ऐस अपराधियों की प्रदेश में कोई जगह नहीं है।’ गुरू हरिशंकर परसाई कहते हैं ‘बाक़ी देशों में गाय दूध देने के काम आती हैं हमारे देश में गाय दंगे कराने के काम आती है।’
गौकशी की घटना को रोकने के लिए कानून का सहारा तो लेना ही होगा साथ ही अन्य पक्षों को यह समझाना भी होगा कि यह कानूनन अपराध है। क्योंकि अभी बहुत से लोगों को यह मालूम नहीं है कि गौ हत्या कानून अपराध है। वे इसे महज हिंदू धर्म द्वारा चलाई जा रही धार्मिक मुहिम समझते हैं। यानी इस तरह की घटनाओं में अपराधी तत्व जुड़े हैं तो कानून की नासमझी और अज्ञान भी जुड़ा हुआ है। भारत में गायों की हत्या पर प्रतिबंध है, हालांकि कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, देशभर में रोज़ाना 50,000 गायों की हत्या की जाती है। इसके अलावा, बिहार में हर दिन 500 गायों और 200 भैंसों की हत्या की जानकारी सामने आई है।
असम और पश्चिम बंगाल में केवल उन्हीं गायों को काटा जा सकता है जिन्हें ‘फि़ट फॉर स्लॉटर सर्टिफिक़ेट’ प्राप्त हो, जो केवल उन गायों को दिया जाता है जो प्रजनन या काम करने के योग्य नहीं रहतीं और जिनकी उम्र 14 साल से ज्यादा हो।

उत्तर प्रदेश में गोहत्या निरोधक कानून को कड़ा किया गया है, जिसके तहत दोषी को 10 साल तक की जेल और 5 लाख तक जुर्माना का सामना करना पड़ सकता है। गुजरात में गोहत्या करने वालों को उम्रकैद की सज़ा हो सकती है और संबंधित गाडिय़ों को ज़ब्त किया जाएगा। हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में गोहत्या पर कड़ी सजा है, जिसमें लाखों रुपए का जुर्माना और जेल की सजा हो सकती है। कुछ राज्यों में गोहत्या पर आंशिक प्रतिबंध है और जुर्माना और सजा कम है। जैसे कि बिहार, झारखंड, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, गोवा, और केंद्र शासित प्रदेशों में गोहत्या पर हल्के प्रतिबंध हैं।
केंद्र सरकार ने 26 मई 2017 को पशु बाजारों में मवेशियों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया था, जिसके बाद कई राज्य सरकारों ने इसका पालन किया। हालांकि, जुलाई 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रतिबंध को निलंबित कर दिया था। फिर भी, केंद्र और राज्य सरकारें गौहत्या पर नियंत्रण के लिए लगातार प्रयासरत हैं। भारत की मांस निर्यात नीति के अनुसार, गोमांस (गाय, बैल, बछड़ा) का निर्यात प्रतिबंधित है, जबकि भैंस, बकरी, भेड़ और पक्षियों के मांस को निर्यात किया जा सकता है। गोहत्या और गोमांस का मुद्दा हमारे देश में राजनीतिक रूप से संवेदनशील है। इसे अक्सर धार्मिक और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

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