-सुभाष मिश्र
इस समय सोशल मीडिया में एआई और फेक न्यूज के जरिए ऐसी जानकारी, वीडियो, ऐतिहासिक घटनाओं को तोड़-मरोड़कर नामचीन लोगों की फेक अपीलें बनाकर उन्हें वायरल करना आम बात है। सच के आसपास दिखती ऐसी जानकारी, सूचना, वीडियो का मकसद किसी की छवि धूमिल करना, समाज में तनाव पैदा करना, किसी संगठन, राजनीतिक दल के पक्ष में माहौल बनाना या फिर फेक वीडियो जानकारी के माध्यम से लोगों को भ्रमित करके लाभ कमाना है। देश के बहुत से मीडिया समूह, पत्रकार, जिम्मेदार लोग, आरटीआई कार्यकर्ता अपने-अपने स्तर पर समय-समय पर ऐसी फेक न्यूज, वीडियो के फैक्ट चेक करके लोगों के सामने लाते है। किन्तु जब तक फैक्ट चेक होकर सच्चाई सामने आती है तब तक ऐसी सूचनाएं अलग-अलग माध्यम से वायरल होकर लोगों तक पहुंचती है। बहुत बार ये भ्रमित करने वाली सूचनाएं जानकारी, वीडियो समाज में तनाव पैदा करने में, मैरेटिव सेट करने में कामयाब हो जाते है। अलग-अलग राजनीतिक दलों के वार रूप बने हुए हैं जहां से सायबर युद्ध लड़े जा रहे हैं। बहुत सारी फेक आईडी के जरिए भी भ्रामक और उत्तेजना फैलाने वाली जानकारी कभी इतिहास, कभी पौराणिक कथाओं, कभी धर्म ग्रंथो के नाम पर फैलाई जाती है। टेक्नालाजी का जहां एक ओर भरपूर दुरुपयोग हो रहा है, वहीं किसी समय कही गई बातें, किये गये वादो और फैलाये गये अंधविश्वास जो कि कैमरे, वीडियो में दर्ज है वे असलियत भी सामने लाने में सहायक होते हैं।
देश के प्रधानमंत्री से लेकर रामदेव बाबा, धीरेंद्र शास्त्री और न जाने किन-किन लोगों के ऐसे भाषण, बातें,दावे जो उन्होंने कभी किया थे या बोला थे आये दिन वायरल होते हैं। अभी हाल ही में हमने एआई जनरेटेड फर्जी मेडिकल वीडियो के जरिए एआई और डीपफेक तकनीक से बनी डॉ. नरेश त्रेहान, रविश कुमार जैसी हस्तियों को दिखाकर फर्जी दवाओं ओर सप्लीमेंट्स का प्रचार करते देखा। जिसमें यह दावा किया जा रहा था कि मधुमेह, उच्च रक्तचाप, प्रोस्टेटाइटिस, वजन घटाने और सेक्स शक्ति बढ़ाने के लिए ये दवाएं कारगर है। जब डॉ. नरेश त्रेहान और उनकी टीम से इसकी सत्यता के बारे में ता किया गया तो ट्रू मीडिया और हाई एआई ने वीडियो को एआई जनरेटेड साबित किया (99.9 फीसदी आडियो एआई निर्मित) था। मेदांता हास्पिटल ने इन्हें फर्जी बताया। जनवरी 2025 में दिल्ली हाई कोर्ट ने वीडियो हटाने का आदेश दिया। सुप्रसिद्ध टीवी पत्रकार रविश कुमार के मधुमेह ठीक करने वाली दवा का प्रचार करते वीडियो का जब सत्यापन किया गया तो रविश कुमार ने 7 दिसंबर 2023 को एक्स पर वीडियो को फर्जी बताया। एएलटी न्यूज ने एआई जनरेटेड आडियो और विजुअल्स की पुष्टि की। इसी तरह डॉ. देवी शेट्टी, रजत शर्मा और अंजना ओम कश्यप के डीपफेक भी सामने आए। ऐसे फेक वीडियो जिनमें नामचीन लोग जिनके बारे में लोगों को विश्वास है उन्हे देख-सुनकर लोग देश, धर्म परायण और एक हद तक आस्था के नाम पर अंधविश्वासी भी है। एक तरफ कथित बाबाओं द्वारा अंधविश्वास फैलाने का काम बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। बाबा, साधु और संत दावा करते हैं कि वे भगवान से बात कर कैंसर, बांझपन या आर्थिक समस्याएं हल कर सकते हैं। चंगाई सभा के जरिए, जो कोई ताबीज के जरिए, तो कोई रूद्राक्ष के जरिए समस्या का त्वरित निवारण बता रहा है। ये ताबीज, पूजा या पवित्र जल बेचते है। उदाहरण रूप में नीम करौली बाबा के नाम से फर्जी चमत्कार वीडियो वायरल विश्वास न्यूज ने खारिज किया। अन्य बाबा मंत्र या ताबीज से बीमारी ठीक करने के दावे को एएलटी न्यूज ने फर्जी साबित किया। यूट्यूब पर लाइव कृपा सत्र जैसे 2023 में एक यूट्यूबर का शिव से बात करने का फर्जी दावा किया गया। इस समय के दो चर्चित बाबा रामदेव तथा धीरेंद्र शास्त्री के वीडियो अपने आप में झूठ और अंधविश्वास फैलाने की बड़ी सच्चाई उजागर करते हैं। जहां बाबार रामदेव महंगाई कम करने का दावा कर रहे हैं, वहीं धीरेंद्र शास्त्री सीधे हथेली पर नंबर लगाकर भगवान से बात कर रहे हैं।
हमारे देश में अंधविश्वास को संस्कृति माना जाता है। जिसके कारण से बाबाओं और ठगों को खुली छूट, जिससे अंधविश्वास और फर्जी चिकित्सा बढ़ रही है। इस तरह के झूठे फेक वीडियो जानकारी की सत्यता पता लगाने के लिए गूगल रिवर्स इमेज सर्च, टिनआई, इनवीड, ट्रूमीडिया से सत्यापन किया जा सकता है। विश्वास न्यूज़, बूम लाइव, ऑल्ट न्यूज़, पीआईबी फैक्ट चेक की मदद ली जा सकती है।
ऐसे वीडियो के खिलाफ तुरंत साइबर क्राइम पोर्टल या टोल-फ्री नंबर 1930 पर शिकायत दर्ज करनी चाहिए। इसके साथ ही आईटी नियम, 2021 के तहत सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को फर्जी कंटेंट हटाने के लिए जवाबदेह बनाने की जरूरत है। सोशल मीडिया की भी जिम्मेदारी है कि वह ऐसी फेक न्यूज को तुरंत हटाएं। फेसबुक, यूट्यूब, और व्हाट्सएप को डीपफेक कंटेंट की निगरानी के लिए एआई आधारित डिटेक्शन सिस्टम लागू करना चाहिए। जनता को डीपफेक वीडियो की पहचान सिखाने के लिए स्कूलों, कॉलेजों, और सामुदायिक केंद्रों में जागरूकता कार्यक्रम चलाएं जाने चाहिए। डीपफेक के लक्षणों (जैसे असामान्य आवाज, चेहरे की हलचल, या पृष्ठभूमि विसंगतियां) के बारे में शिक्षित करने की जरूरत है। इस संबंध में बुजुर्गों को विशेष रूप से जागरूक करना होगा क्योंकि वे अक्सर इनका शिकार बनते हैं।
चिकित्सा समुदाय की भूमिका भी इस संबंध में अहम है। डॉक्टरों और अस्पतालों को अपनी वेबसाइट्स और सोशल मीडिया पर फर्जी वीडियो के खिलाफ चेतावनी जारी करनी चाहिए। मेदांता और नारायणा हेल्थ की तरह अन्य संस्थानों को भी जनता को सतर्क करना चाहिए। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को फर्जी मेडिकल प्रचार के खिलाफ सख्त दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए।
कथित बाबाओं और अंधविश्वास फैलाने वालों के खिलाफ अंधश्रद्धा निर्मूलन कानूनों को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने के लिए एक समान नीति बनाई जानी चाहिए। दोषियों के लिए कड़ी सजा और तेजी से सुनवाई सुनिश्चित करनी चाहिए। आईपीसी धारा 420 (धोखाधड़ी) और 295ए (धार्मिक भावनाओं को ठेस) के तहत त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए। हमारी शिक्षा व्यवस्था को वैज्ञानिक सोच वाली बनाने की जरूरत है जो अंधविश्वास के खिलाफ माहौल और मानस तैयार करें। अंधविश्वास के खतरों पर आधारित शिक्षण सामग्री विकसित करने की जरूरत है। न्यूज चैनल्स और अखबारों को कथित बाबाओं के चमत्कारों को बढ़ावा देने से बचना चाहिए। फैक्ट-चेकिंग और वैज्ञानिक जानकारी को प्राथमिकता देनी चाहिए।
विश्वसनीय स्रोतों पर भरोसा करके उन्ही से अधिकतम जानकारी लेनी चाहिए।
टीवी, रेडियो और सोशल मीडिया पर वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम प्रसारित करने चाहिए। स्कूलों में तर्कसंगत सोच और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने चाहिए। स्वास्थ्य संबंधी जानकारी केवल लाइसेंस प्राप्त डॉक्टरों, सरकारी स्वास्थ्य वेबसाइट्स (जैसे आईसीएमआर, डब्ल्यूएचओ), या विश्वसनीय अस्पतालों से ली जानी चाहिए। बिना सत्यापन के व्हाट्सएप फॉरवर्ड्स या सोशल मीडिया पोस्ट्स पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
कोई भी वीडियो या खबर शेयर करने से पहले उसकी सत्यता जांच जरूर कर लेनी चाहिए। संदिग्ध कंटेंट को फैक्ट-चेकिंग संगठनों (जैसे विश्वास न्यूज़, ऑल्ट न्यूज़) को भेजना चाहिए। अनजान लिंक्स पर क्लिक करने से बचना चाहिए क्योंकि ये स्कैम या फिशिंग का हिस्सा हो सकते हैं। सोशल मीडिया अकाउंट्स पर मजबूत पासवर्ड और टू-फैक्टर ऑथेंटिकेशन का उपयोग करना चाहिए।
एक शेर है-
तुम्हारे शहर का किरदार बेच डालेंगे।
हमारे शहर के अखबार बेचने वाले।।
अखबार अब पीछे छूट गये हैं सोशल मीडिया और इलेक्ट्रानिक मीडिया बहुत तेजी से झूठी खबरें जानकारी फैलाने का नैरेटिव सेट करने का बड़ा माध्यम बन गये हैं। आज गोदी मीडिया राजनीतिक झूठ के साथ अंधविश्वास फैलाने का काम भी तेजी से कर रहा हैं।
एक पाठक, दर्शक के रूप में हमें झूठी ख़बरों की पहचान के लिए खबर भई हेड लाइन पर ध्यान देने की जरूरत है। फर्जी ख़बरों की हेडिंग बहुत आकर्षक होती है। कई बार यह पूरे कैप्स में और एक्सक्लेमेशन मार्क के साथ होती है। वेबसाइट का यूआरएल ध्यान से देखना चाहिए। स्रोत की जांच जरूरी है। सोशल मीडिया पर कई बार झूठी खबरें इसलिए भी चलती रहती हैं क्योंकि हमें पता ही नहीं होता कि इसका स्रोत क्या है और हम आगे फॉरवर्ड करते रहते हैं। अगर कोई स्टोरी आपके पास आती है तो आप यह चेक करें कि इसे लिखा किसने है। स्टोरी के फॉर्मेट पर ध्यान देना जरूरी है। फर्जी खबर वाली साईट पर गलतियां आम होती हैं। उनका ले आउट भी बेतरतीब सा होता है। फर्जी न्यूज स्टोरी में कोई भी फोटो/वीडियो इस्तेमाल कर ली जाती है। कई बार फोटो असली होती है, लेकिन उस घटना से मेल नहीं खाती। आप फोटो और वीडियो की जांच कर सकते हैं कि यह कहां से आई है। फर्जी न्यूज स्टोरी में आमतौर पर टाइम लाइन का ध्यान नहीं रखा जाता। इवेंट की डेट भी अनाप-शनाप कुछ भी लिख दी जाती है, इससे भी आप पकड़ सकते हैं कि स्टोरी फर्जी है।