-सुभाष मिश्र
एक बार फिर भाजपा की डबल इंजन वाली सरकार के केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने छत्तीसगढ़ से विशेषकर बस्तर से नक्सलवाद के खात्मे को लेकर सरकार की इच्छा शक्ति का सार्वजनिक प्रकटीकरण किया है। नवरात्र के अवसर पर मां दंतेश्वरी की भूमि बस्तर के दंतेवाड़ा से अमित शाह ने कहा कि अगले चैत्र नवरात्रि में लाल आतंक खत्म हो जाएगा।
दंतेवाड़ा में ‘बस्तर पंडुम कार्यक्रम के दौरान एक बार फिर दोहराया है कि मार्च 2026 तक बस्तर से नक्सलवाद, जिसे वे लाल आतंक कहते हैं, का खात्मा हो जाएगा। ऐसा दावा के पहले भी कई बार कर चुके हैं यहां सवाल यह है कि क्या बरसों पुरानी यह समस्या, जो आर्थिक, सामाजिक और कानून-व्यवस्था से गहरे तक जुड़ी है, वास्तव में इतने कम समय में खत्म हो सकती है? नक्सली आंदोलन कमजोर हुआ है। नक्सलियों का मुठभेड़ में मारा जाना, सरेंडर करना और आम लोगों द्वारा धीरे-धीरे भय मुक्त होकर नक्सल गतिविधियों की सूचना सैन्य बल को देना जैसी चीजें तेजी से बढ़ी है। यह सही है कि सरकारें चाहे तो जनता के सहयोग से लोगों में विकास, रोजगार की उम्मीद जगीकर बहुत हद तक नक्सली आतंक से मुक्त करा सकती है।
सरकार की रणनीति के चलते सुरक्षा अभियान के साथ विकास की गतिविधियों पर केंद्रित ही सुरक्षा अभियान ने सरकार को नक्सलवाद के खिलाफ सख्त सैन्य कार्रवाई को प्राथमिकता दी है। छत्तीसगढ़ में बस्तर संभाग में डीआरजी, सीआरपीएफ, कोबरा, और अन्य बलों के जरिए बड़े पैमाने पर ऑपरेशन चलाए जा रहे हैं। 2025 में अब तक 130 से अधिक नक्सली मारे जा चुके हैं, और पिछले कुछ वर्षों में सैकड़ों ने आत्मसमर्पण किया है।
वहीं दूसरी ओर सरकार ने विकास का वादा किया है। सरकार का दावा है कि नक्सल प्रभावित इलाकों में सड़क, बिजली, पानी और रोजगार जैसी बुनियादी सुविधाएं पहुंचाने से लोग मुख्यधारा में जुड़ रहे हैं। ‘नियद नेल्लानारÓ जैसी योजनाओं के तहत गांवों को सुविधाएं दी जा रही है और आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के लिए पुनर्वास नीतियां लागू की गई हैं। शाह ने कहा है कि हर नक्सल-मुक्त गांव को एक करोड़ रुपये की सहायता दी जाएगी।
यदि हम नक्सल प्रभावित समाज और जनजीवन की बात करें तो लंबे समय से सरकारी उपेक्षा और नक्सलियों के दबाव के बीच फंसे आदिवासियों में सरकार और व्यवस्था के प्रति अविश्वास रहा है। जंगल, जमीन और जल जैसे संसाधनों पर उनके अधिकारों का हनन और खनन जैसे उद्योगों का विस्तार इस अविश्वास को बढ़ाता है। किन्तु सरकार की ओर से लगातार विकास गतिविधियों के विस्तार और सैन्य कार्यवाही के जरिए बदलाव के संकेत दिए गए हैं। हाल के वर्षों में सुरक्षा बलों के शिविरों और विकास कार्यों से कुछ इलाकों में लोगों का सरकार के प्रति रुझान बढ़ा है। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों की संख्या बढऩा भी इस बात का संकेत है कि समाज का एक हिस्सा हिंसा से तंग आ चुका है। यह सही है कि समाज का बड़ा हिस्सा अभी भी गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी से जूझ रहा है। जब तक इन मूलभूत समस्याओं का समाधान नहीं होगा, नक्सलवाद के प्रति सहानुभूति खत्म होना मुश्किल है।
सरकार और समाज की सोच के विपरीत थोड़ी अलग है। नक्सलवादी संगठनों की सोच और एप्रोच नक्सलवादी संगठन, जिनमें खासकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी), सशस्त्र क्रांति के जरिए व्यवस्था को उखाड़ फेंकने के अपने मूल लक्ष्य पर कायम हैं। हाल ही में नक्सलियों ने शाह के बस्तर दौरे से पहले शांति वार्ता की पेशकश की थी, लेकिन शर्त रखी कि सरकार ऑपरेशन रोके। इससे पता चलता है कि लगातार नुकसान (15 महीनों में 400 से अधिक सदस्य मारे गए) के बाद वे दबाव में हैं।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और सरकार की दृढ़ इच्छा शक्ति के चलते मार्च 2026 तक बस्तर से लाल आतंक की सशस्त्र मौजूदगी को खत्म करना संभव है, लेकिन इसके विचार और जड़ें पूरी तरह मिटाने के लिए सरकार, समाज और नक्सलवादी संगठनों को एक व्यापक और समन्वित दृष्टिकोण अपनाना होगा।
गृह मंत्री अमित शाह के बस्तर दौरे के बीच छत्तीसगढ़ के 86 नक्सलियों ने तेलंगाना में सरेंडर कर दिया है। इसमें कई हार्डकोर माओवादी भी शामिल हैं। यह नक्सलवाद के खात्मे की दिशा में एक शुभ संकेत है। बस्तर पंडुम जिसका समापन करने केंद्रीय गृहंत्री दंतेवाड़ा पहुंचे थे, यह बस्तर पंडुम 45 दिनों तक चला है। ब्लॉक स्तर से शुरू होकर जिला और संभाग स्तर पर समापन हो रहा है। इसमें ओडिशा, कर्नाटक, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र के करीब 27 हजार कलाकारों ने हिस्सा लिया। इसमें आदिवासी संस्कृति, वेशभूषा, भाषा-शैली, साहित्य, खान-पान सब का समावेश हुआ।
अमित शाह ने बस्तर पंडुम को लेकर कहा कि अगले साल बस्तर पंडुम में देशभर के हर आदिवासी क्षेत्रों के कलाकारों को बस्तर में लाएंगे। इतना ही नहीं बस्तर पंडुम को अंतरराष्ट्रीय दर्जा देने के लिए भी दुनियाभर के राजदूतों को बस्तर के हर जिले में ले जाकर यहां की परंपराओं और संस्कृति से अवगत कराएंगे। यहां की परंपरा को पूरे विश्व तक पहुंचाने का कार्य भाजपा करेगी।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने नक्सलियों से एक बार फिर अपील करते हुए कहा, अब वो जमाना चला गया, जब यहां पर गोलियां चलती थीं, बम धमाके होते थे, जिनके हाथों में हथियार हैं और जिनके हाथों में हथियार नहीं हैं, उन सभी नक्सलियों से आह्वान करता हूं कि आप हथियार डाल दीजिए और मुख्यधारा में शामिल हो जाइए। आप हमारे अपने हैं। कोई भी नक्सली मारा जाता है तो किसी को खुशी नहीं मिलती है, लेकिन इस क्षेत्र को विकास चाहिए। जो 50 साल में विकास नहीं हुआ वो हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पांच साल में करके दिखाना चाहते हैं, लेकिन यह तभी होगा जब बस्तर के अंदर शांति होगी। बच्चे स्कूल जाएंगे। यहां के लोगों को सभी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। यह केवल बंदूक की लड़ाई नहीं, बल्कि विश्वास और विकास की लड़ाई भी है।