Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – क्या वाकई आपदा मुक्त हुई दिल्ली

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

आम आदमी पाटी यानी आप को आपदा बताते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी चुनावी सभाओं में दिल्ली के लोगों से इससे मुक्ति की अपील की थी। दिल्ली के वोटरों ने 70 में से 48 सीटें देकर दस साल से दिल्ली की सत्ता पर क़ाबिज़ आम आदमी पार्टी को दिल्ली यानी इन्द्रप्रस्थ की सत्ता से बाहर कर दिया है। इस चुनाव में अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया सहित बहुत से दिग्गज नेताओं को हार का सामना करना पड़ा।
अब सवाल यह है कि दिल्ली पर फि़लहाल कौन कौन सी आपदा है जिससे उसे मुक्ति चाहिए। यमुना का पानी दूषित है। हवा में प्रदूषण है। यातायात बेतरतीब है और सड़कें बेहाल।
भाजपा देश की राजधानी दिल्ली को दुनिया की सबसे सुंदर राजधानी बनाना चाहती है । वे लोगों को पीने का साफ़ पानी, साफ़ हवा देनी चाहती है। अब दिल्ली में डबल इंजन की सरकार होगी जिसे दिल्ली के उपराज्यपाल हमेशा हरी झंडी दिखाएँगे। मोदी की गारंटी के नाम पर जनता से किये गये वादे पूरे होंगे।
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 27 वर्षों के बाद सत्ता में वापसी की है, जबकि आम आदमी पार्टी (आप) को महत्वपूर्ण हार का सामना करना पड़ा है। प्रारंभिक परिणामों के अनुसार, भाजपा ने 70 में से 48 सीटों पर जीत हासिल की है, जबकि आप 22 सीटों तक सीमित रही। भाजपा की जीत का परचम फहराने में जो काम कारगर साबित हुए हैं, उनमें भाजपा का रेवड़ी कल्चर को नये पैकेजिंग में अपनाना भी है। भाजपा ने नीतिगत परिवर्तन करके चुनाव प्रचार के दौरान महिलाओं, बुजुर्गों और युवाओं के लिए वित्तीय सहायता जैसी योजनाओं का वादा किया था।
शहरी विकास के लिए वादा किया। अब भाजपा के सत्ता में आने से दिल्ली के शहरी विकास परियोजनाओं में तेजी आ सकती है। जिसमें बुनियादी ढांचे का विकास, स्वच्छता और परिवहन सुविधाओं में सुधार शामिल हो सकते हैं।
आम आदमीं पार्टी की हार के प्रमुख कारणों में
आपÓ के बड़े नेताओं जिनमें अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन जैसे आप के शीर्ष नेता शामिल हैं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और सीबीआई-ईडी की जांच चली। शराब नीति घोटाला में मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी ने पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाया। केजरीवाल खुद भी लगातार ईडी और सीबीआई के निशाने पर रहे, जिससे आप नेतृत्व कमजोर नजर आया।
जनता में यह धारणा बनी कि आप की सरकार भी ईमानदार नहीं है, जिससे भ्रष्टाचार विरोधी छवि को धक्का लगा।
दिल्ली चुनाव में भाजपा की आक्रामक रणनीति और ध्रुवीकरण के चलते आम आदमीं पार्टी की शिकस्त हुई। आप सरकार के खिलाफ ‘भ्रष्टाचारÓ और ‘विकास की विफलताÓ को भाजपा ने बड़ा मुद्दा बनाया। भाजपा ने हिंदुत्व और राष्ट्रवाद को चुनावी एजेंडा बनाया, जिससे मतदाताओं का ध्रुवीकरण हुआ। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं, खासकर अमित शाह और नरेंद्र मोदी, ने खुद प्रचार की कमान सँभाली। कई सीटों आप की जीत में पहले महिला और युवा वोटर्स की बड़ी भूमिका थी, लेकिन इस बार भाजपा ने उन्हें अपनी योजनाओं से लुभाया। आप सरकार की प्रमुख योजनाएं (मोहल्ला क्लीनिक, सरकारी स्कूलों में सुधार, फ्री बिजली-पानी) जनता को पहले जितना आकर्षित नहीं कर सकीं। दिल्ली में वायु प्रदूषण, जल संकट और यमुना नदी की सफाई जैसे मुद्दों पर आप की विफलता उजागर हुई।
बीजेपी का ‘डोर-टू-डोरÓ चुनाव प्रचार और ग्राउंड लेवल मैनेजमेंट। भाजपा ने आरएसएस और संगठन की ताकत का पूरा इस्तेमाल किया और बूथ लेवल पर मजबूत पकड़ बनाई। भाजपा ने दिल्ली की झुग्गी-बस्तियों और गरीब वोटर्स पर विशेष ध्यान दिया, जहां पहले आप को समर्थन मिलता था। प्रधानमंत्री मोदी ने ‘झुग्गीवासी पक्के मकान योजनाÓ का प्रचार किया, जिससे गरीबों का वोट बीजेपी को मिला।
मुस्लिम वोटों का बंटवारा की वजह से भी आप पार्टी को बड़ा नुक़सान उठाना पड़ा। पहले आप को मुस्लिम वोट बैंक का बड़ा हिस्सा मिलता था, अब आम आदमीं पार्टी के भविष्य को लेकर भी सवाल खड़े होने लगे हैं । अभी पंजाब में उसकी सरकार है । दिल्ली के ज़रिए ये देश की राजनीति को प्रभावित करते थे । चूँकि इस चुनाव में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया दोनों अपनी सीटों से हार गए हैं, जिससे पार्टी के नेतृत्व पर सवाल उठ सकते हैं और आंतरिक कलह की संभावना बढ़ सकती है।
आप को अपनी नीतियों और कार्यप्रणाली की समीक्षा करनी होगी, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहां पार्टी को अपेक्षित समर्थन नहीं मिला। इस हार के बाद, आप को अपनी भविष्य की रणनीति पर पुनर्विचार करना होगा, जिसमें संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करना और जनता के साथ संवाद बढ़ाना शामिल हो सकता है।
दिल्ली में भाजपा की जीत और आप की हार से राजधानी की राजनीतिक और प्रशासनिक दिशा में महत्वपूर्ण परिवर्तन होने की संभावना है। भाजपा के लिए यह अवसर है कि वह अपने वादों को पूरा करके जनता का विश्वास बनाए रखे, जबकि आप के लिए यह समय आत्ममंथन और संगठनात्मक सुधार का है।

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