Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – भाजपा का रेखागणित

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

– सुभाष मिश्र

सारे चर्चित और नामवर चेहरों को दरकिनार करके एक बार फिर बीजेपी ने सबको चौकाते हुए रेखा गुप्ता को दिल्ली का मुख्यमंत्री बना दिया है, इसके कई रणनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं। क्या 2029 में महिला आरक्षण के साथ लोकसभा चुनाव की यह तैयारी है। अभी तक भाजपा की ओर से किसी राज्य में महिला को मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया। क्या रेखा गुप्ता को सीएम बनाकर बीजेपी ने दिल्ली सहित पूरे देश में महिला नेतृत्व को प्रमोट करने की अपनी रणनीति का खुलासा किया है? पिछले चुनावों से भाजपा की जीत में महिला वोटरों की बड़ी भूमिका रही है।
राजनीतिक गलियारों में दिल्ली में रेखा गुप्ता को भाजपा द्वारा मुख्यमंत्री बनाया जाना कई तरह के राजनीतिक अफवाहों और अटकलों को हवा दे रहा है। जो लोग यह सोच रहे हैं कि किसी समय कांग्रेस ने शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री बनाकर महिला सशक्तिकरण की बात की थी और भाजपा उसको दोहरा रही है तो यह धारणा निर्मूल है। कोरी अटकलबाजी है। भाजपा इस तरह की राजनीति में भरोसा नहीं करती है। भाजपा में मंथन पर जोर दिया जाता है। बहुत विचार विमर्श किया जाता है। हालांकि यह बात और है कि तमाम मंथन और विचार विमर्श के बाद भी निर्णय तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ही अंतिम होता है। लेकिन ऐसे निर्णय महज चौंका देने के लिए नहीं होते हैं। भाजपा बरसों से इस आरोप का दंश झेल रही है कि वह ब्राह्मण और बनियों की पार्टी है। ब्राह्मण कथित रूप से घोर रूढि़वादी और सामंती मानसिकता के पोषक माने जाते हैं। माना जाता है कि बनिए भी रूढि़वादी होने में ब्राह्मणों से पीछे नहीं हैं और ये दोनों जातियां काफी हद तक स्त्री विरोधी मानी जाती हैं। लेकिन हमारा तो यह मानना है कि यह आधा सच और आधी कल्पना ही हो सकती है। समाज में काफी बदलाव आया है। लेकिन भाजपा इस तरह के आरोपों से मुक्त नहीं हो पाई है। लेकिन अभी तक भाजपा ने इस तरह के आरोपों या आक्षेप से मुक्त होने का या बचने का सीधे-सीधे कोई प्रयास नहीं किया था। जब पूरे भारतीय समाज की संरचना ही पुरुष प्रधान है तो कोई राजनीतिक दल पुरुष प्रधान समाज की असहमति या विरोध क्यों स्वीकार करेगा!
भाजपा में इसके पहले बहुत अल्प समय के लिए सुषमा स्वराज को दिल्ली का मुख्यमंत्री और वसुंधरा राजे सिंधिया को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया गया था लेकिन वह विशुद्ध राजनीतिक दबाव और रणनीति के परिणाम थे। उसके बाद इसे दोहराया नहीं गया।
भारत ही नहीं अमेरिका जैसा प्रगतिशील और विकसित देश का आमजन भी महिला राष्ट्रपति को स्वीकार करने की मानसिकता में नहीं है। वहां का समाज भी महिला की सत्ता स्वीकार करना नहीं चाहता है। वहां भी महिलाओं की आधुनिकता को तो स्वीकार किया जाता है लेकिन एक महिला को राष्ट्रपति के रूप में नहीं देखना चाहते हैं। एक महिला के अधीन रहना उनके पुरुष अहं के खिलाफ जाता है। जब एक विकसित और बेहद आधुनिक देश की यह हालत है तो भारत जैसा विकासशील देश, जहां अनेक धर्म, हजारों जातियां और लाखों उपजातियां हों और अधिकांश जनसंख्या अभी भी घनघोर रूप से परंपरावादी और रूढि़वादी हों तो कोई राजनीतिक दल पुरुष बहुसंख्य की असहमति और विरोध के बावजूद स्त्री पक्षधर कैसे हो सकता है! लेकिन यह बदलाव आया और भाजपा में आया।
दरअसल इधर के चुनाव में यह बात स्पष्ट रूप से सामने आई कि महिला वोटरों की संख्या बढ़ी है और वह काफी हद तक भाजपा के पक्ष में गई है। लाड़ली बहना जैसी योजनाओं का भी इसमें हाथ है लेकिन एक कारण यह भी है कि महिलाओं को यह लगने लगा है कि भाजपा महिलाओं की सुरक्षा और संरक्षण को लेकर गंभीर है। महिला वोट की संख्या बढ़ी तो जाहिर है कि भाजपा ने इस अवसर को भुनाने की कोई चूक नहीं की। दिल्ली में मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल भाजपा के बड़े नेताओं की उपेक्षा करते हुए, उनकी महत्वाकांक्षाओं, सेवा और निष्ठा को नजरअंदाज करते हुए एक महिला को मुख्यमंत्री बनाया है।
भारत की राजनीति में महिला मतदाता तेजी से एक निर्णायक शक्ति बन रही हैं। भाजपा ने इस बदलते राजनीतिक समीकरण को समझते हुए महिला वोट बैंक को मजबूत करने की रणनीति अपनाई है। कई राज्यों में भाजपा की जीत में महिलाओं की भूमिका अहम रही है। 2019 के लोकसभा चुनावों में महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों के बराबर या उससे अधिक हो गया था। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम और ओडिशा जैसे राज्यों में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी भाजपा के लिए फायदेमंद रही। साइलेंट वोटर के रूप में महिलाएँ अपने घरों में ज्यादा चर्चा नहीं करतीं, लेकिन मतदान में बड़ी संख्या में भाजपा के पक्ष में जाती हैं।
यदि हम सरकार की महिला वोटरों को प्रभावित करने वाली योजनाओं की बात करें तो- उज्ज्वला योजना (मुफ्त गैस कनेक्शन)। निर्भया फंड, महिला हेल्पलाइन (181), वन स्टॉप सेंटर जैसी योजनाएँ महिलाओं में सुरक्षा की भावना पैदा करती हैं। महिला आरक्षण बिल (33त्न आरक्षण) से भाजपा ने महिलाओं को राजनीति में आगे बढ़ाने का संदेश दिया।
जन धन योजना से महिलाओं के नाम पर सीधे बैंक खाते खुलवाए गए, जिससे उन्हें वित्तीय स्वतंत्रता मिली। मुद्रा योजना और महिला स्वयं सहायता समूह के जरिए भाजपा ने ग्रामीण और शहरी महिलाओं को स्वरोजगार का अवसर दिया। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ ने लड़कियों की शिक्षा को प्रोत्साहन दिया, जिससे भाजपा को महिला वोटरों का समर्थन मिला। मुफ्त राशन, उज्ज्वला गैस, महिला सुरक्षा, और हिंदुत्व जैसे मुद्दे भाजपा को महिला मतदाताओं के बीच मजबूत बनाते हैं।
महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण की योजनाओं की बात की जाये तो- प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के माध्यम से गरीब परिवारों की महिलाओं को मुफ्त गैस कनेक्शन दिया गया जिसका काफी प्रभाव रहा। इसके अलावा लाडली बहना योजना, महतारी वंदन योजना के जरिए महिला को नगद राशि का भुगतान किया गया। महिलाओं को वित्तीय रूप से स्वतंत्र बनाने के लिए बैंक खाते खोलने की सुविधा।
दिल्ली मे रेखा गुप्ता चौथी महिला मुख्यमंत्री है। इस निर्णय में एक यह बात भी शामिल है कि दिल्ली के इतिहास में पहले तीन महिला मुख्यमंत्री रही हैं। इस एक बात ने भी भाजपा की मानसिकता तैयार की कि उसे महिला को मुख्यमंत्री बनाना चाहिए। दिल्ली में भाजपा के पक्ष में महिला वोटरों की संख्या बढऩे से भाजपा को लगने लगा कि देश के अधिकांश राज्यों में भाजपा की सरकार होने के उपरांत कहीं भी महिला नेतृत्व नहीं है। इसी की भरपाई के लिए दिल्ली में महिला को मुख्यमंत्री बनाया जाना उन्हें उचित लगा। दिल्ली में महिला वोट अधिक मिलने के प्रति यह एक किस्म राजनीतिक आभार भी व्यक्त किया गया और देश के आम जन और विपक्ष को यह संदेश भी दिया कि भाजपा महिला विरोधी नहीं है। अन्यथा आमजन में यह आम धारणा थी कि भाज हर जगह महिला आरक्षण की बात करती है लेकिन उसकी अपनी पार्टी में महिलाओं को उचित जगह नहीं मिलती है। इसी बात का जवाब देते हुए भाजपा ने दिल्ली में पहली बार विधायक बनी रेखा गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाया। भाजपा का यह रेखा गणित बहुत लोगों को देर में समझ में आयेगा। भाजपा माइक्रो मैनेजमेंट और मौजूदा राजनीतिक समीकरण में बाक़ी पार्टियों से काफ़ी आगे नजऱ आती है।

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