Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – संकल्प से सिद्धि अभियान और मोदी सरकार के 11 वर्ष

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से - संकल्प से सिद्धि अभियान और मोदी सरकार के 11 वर्ष

-सुभाष मिश्र

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा प्रस्तावित ‘संकल्प से सिद्धि अभियान, जो 9 जून से शुरू होकर 21 जून तक चलेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के 11 वर्षों की उपलब्धियों को जन-जन तक पहुंचाने का यह एक महत्वाकांक्षी प्रयास है। यह अभियान न केवल सरकार के ‘विकसित भारत के दृष्टिकोण को रेखांकित करता है, बल्कि सेवा, सुशासन और गरीब कल्याण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को भी दोहराता है। योग शिविर, चौपाल, सेमिनार, प्रदर्शनी और घर-घर साहित्य वितरण जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से भाजपा का लक्ष्य है कि वह जनता के बीच अपनी उपलब्धियों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करे। साथ ही ‘मोदी की गारंटी और ‘विकसित भारत के संकल्प को जनमानस में और गहराई से स्थापित करने की कोशिश है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह अभियान वास्तव में जनता की समझ और अपेक्षाओं के अनुरूप है, या यह महज एक राजनीतिक रणनीति है?
मोदी सरकार की प्रमुख उपलब्धियों की बात की जाये तो पिछले 11 वर्षों में मोदी सरकार ने कई क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य किए हैं, जिन्हें भाजपा इस अभियान के माध्यम से रेखांकित करना चाहती है। प्रमुख उपलब्धियों में आर्थिक सुधार और बुनियादी ढांचा के तहत जीएसटी और डिजिटल इंडिया जैसे कदमों ने भारत की अर्थव्यवस्था को आधुनिक बनाया। भारत का वैश्विक आर्थिक मंच पर चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना और तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की ओर बढऩा एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। सड़कों, रेलवे स्टेशनों और हवाई अड्डों का आधुनिकीकरण भी उल्लेखनीय है। आयुष्मान भारत, उज्ज्वला योजना, पीएम आवास योजना और स्वच्छ भारत अभियान जैसी योजनाओं ने गरीबों और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के जीवन में बदलाव लाया। ‘वन नेशन, वन राशन कार्डÓ ने 20 करोड़ से अधिक लोगों को खाद्यान्न की पहुंच सुनिश्चित की। जल जीवन मिशन और स्वच्छ भारत अभियान जैसे प्रयासों ने जल संरक्षण और स्वच्छता को जन-आंदोलन बनाया। ऑपरेशन सिंदूर जैसे अभियानों ने भारत की सैन्य क्षमता को मजबूत किया, जिसे भाजपा अपनी उपलब्धि के रूप में प्रस्तुत करती है। राम मंदिर निर्माण, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर और अंतरराष्ट्रीय योग दिवस जैसे कदमों ने भारत की सांस्कृतिक और वैश्विक पहचान को बढ़ाया।
पिछले 11 सालों में पार्टी से ज़्यादा चर्चा मोदी ब्रांड की ताकत की होने लगी है। जिसमें मोदी का चेहरा और मोदी की गारंटी सबसे प्रमुखता से उभरे हैं। मोदी ब्रांड का पार्टी से बड़ा होना एक ऐसी हकीकत है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। नरेंद्र मोदी का व्यक्तित्व, उनकी संवाद शैली और ‘मोदी की गारंटी का नारा जनता के बीच गहरी पैठ रखता है। यह ब्रांड न केवल भाजपा की चुनावी सफलता का आधार रहा है, बल्कि नीतिगत निर्णयों को जनता तक पहुंचाने में भी प्रभावी रहा है। उनकी छवि एक ऐसे नेता की है जो दृढ़ संकल्प के साथ बड़े सुधारों को लागू करता है। ‘सबका साथ, सबका विकास जैसे नारे और उनकी सक्रिय सोशल मीडिया उपस्थिति ने उन्हें युवाओं और मध्यम वर्ग के बीच लोकप्रिय बनाया है।
हालांकि, यह भी सच है कि मोदी ब्रांड पर निर्भरता ने पार्टी के भीतर अन्य नेताओं को कई बार हाशिए पर धकेल दिया है। यह सवाल उठता है कि क्या यह ब्रांड दीर्घकाल में पार्टी के लिए लाभकारी होगा, या यह एक जोखिम भरा दांव है?
संकल्प से सिद्धि अभियान के ज़रिए भाजपा के संकल्प और गारंटी की जो बात की जा रही है उसमें भाजपा ने नौ संकल्पों को प्रमुखता दी है, जिनमें जल संरक्षण, स्वच्छता, गरीब कल्याण और आत्मनिर्भर भारत जैसे लक्ष्य शामिल हैं। इन संकल्पों को ‘मोदी की गारंटीÓ के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, जिसके तहत अगले पांच वर्षों में भारत को तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, हर घर तक नल से जल और शत-प्रतिशत सामाजिक योजनाओं की पहुंच सुनिश्चित करने का वादा है। ऑपरेशन सिंदूर जैसे सैन्य अभियानों को उपलब्धि के रूप में पेश करना भी इस रणनीति का हिस्सा है, जो राष्ट्रवाद को मजबूत करने का प्रयास करता है।
यहां सवाल यह भी है जनमानस में ऐसे प्रचारात्मक अभियानों को जनता क्या समझती है? भाजपा का यह अभियान निस्संदेह एक सुनियोजित रणनीति है जो जनता के बीच सरकार की उपलब्धियों को प्रचारित करने के साथ-साथ 2029 के आम चुनावों की जमीन तैयार करने का प्रयास है। लेकिन यह सवाल महत्वपूर्ण है कि क्या जनता इस प्रचार को पूरी तरह स्वीकार करती है? ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में चौपाल, सेमिनार और प्रदर्शनी जैसे आयोजन जनता तक पहुंचने का एक प्रभावी माध्यम हो सकते हैं, लेकिन कई बार अति-प्रचार उल्टा प्रभाव डालता है।
महंगाई, बेरोजगारी, और सामाजिक ध्रुवीकरण जैसे मुद्दों पर जनता की चिंताएं अभी भी बरकरार हैं। हालांकि, आयुष्मान भारत और उज्ज्वला जैसी योजनाएं लोकप्रिय हैं, लेकिन इनके कार्यान्वयन में खामियां और जमीनी स्तर पर पहुंच की कमी की शिकायतें भी सामने आती हैं। ऑपरेशन सिंदूर जैसे अभियानों को उपलब्धि के रूप में पेश करना राष्ट्रवादी भावनाओं को भुनाने की कोशिश हो सकती है, लेकिन यह जनता के रोजमर्रा के मुद्दों से ध्यान हटा सकता है।
‘संकल्प से सिद्धि अभियान एक ओर तो मोदी सरकार की उपलब्धियों को जनता तक ले जाने का एक रचनात्मक प्रयास है, जो जन-भागीदारी को बढ़ावा देता है। योग शिविर, चौपाल और लोकतंत्र सेनानियों का सम्मान जैसे कदम सामाजिक और सांस्कृतिक जुड़ाव को मजबूत करते हैं। दूसरी ओर, यह अभियान प्रचार-केंद्रित होने का जोखिम भी उठाता है। जनता आज पहले से कहीं अधिक जागरूक है और वह केवल वादों या प्रचार से प्रभावित नहीं होती। सरकार को चाहिए कि वह उपलब्धियों के प्रचार के साथ-साथ जमीनी चुनौतियों जैसे बेरोजगारी और महंगाई, पर भी ध्यान दे।
मोदी ब्रांड निस्संदेह शक्तिशाली हैं, लेकिन इसका उपयोग केवल चुनावी लाभ के लिए नहीं, बल्कि समावेशी विकास और सुशासन के लिए होना चाहिए। ‘विकसित भारत का संकल्प तभी सिद्ध होगा, जब जनता इसे अपनी आकांक्षाओं का हिस्सा मानें। इस अभियान को सफल बनाने के लिए भाजपा को प्रचार के साथ-साथ जवाबदेही और पारदर्शिता पर भी जोर देना होगा।
संकल्प से सिद्धि अभियान एक महत्वपूर्ण पहल है जो सरकार और जनता के बीच संवाद का पुल बन सकता है। लेकिन इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि यह कितना वास्तविक और समावेशी है। जनता की समझ को कम आंकना ठीक नहीं, वह उपलब्धियों को तौलने के साथ-साथ कमियों को भी देखती है। सरकार और भाजपा के लिए यह अवसर है कि वे जनता के विश्वास को और मजबूत करे न कि केवल प्रचार की चमक में खो जाएं।