Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – राक्षसों के साथ रहने की क्या विवशता है?

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

कर्नाटक के पूर्व डीजीपी ओमप्रकाश की निर्मम हत्या करने के बाद उनकी पत्नी पल्लवी का अपनी एक सहेली जो आईपीएस की पत्नी है, से यह कहना कि ‘मैंने राक्षस को मार डाला हमारे देश में हो रही घरेलू हिंसा और उससे उत्पन्न अवसाद की स्थिति को यह दर्शाता है। बहुत सारी औरतें सामाजिक दबाव और आर्थिक निर्भरता की वजह से राक्षसों के चंगुल से आजाद नहीं हो पा रही है। आंकड़े बताते हैं कि उच्च शिक्षित और आर्थिक रूप से स्वतंत्र महिलाओं में तलाक दर अधिक है। समाज में हो रहे बदलाव में अब व्यक्तिगत खुशी को ज्यादा प्राथमिकता दी जा रही है। ओमप्रकाश हत्याकांड में एक के बाद जो बातें उभरकर सामने आई है कि पल्लवी और उसकी बेटी कृति घरेलू हिंसा की शिकार थी। उनका बेटा कार्तिकेश का कहना है कि मेरी मां और बहन की मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी। पारिवारिक विवाद, संपत्ति को लेकर तनाव तथा मां और बहन को अवसाद (डिप्रेशन) था। 12 साल से सिजोक्रेनिया की समस्या थी।
इस तरह की हत्या भी एक तरह की राक्षसी प्रवृत्ति ही है। यदि पति-पत्नी एक दूसरे को राक्षस, डायन समझने लगे हैं तो फिर एक दूसरे के साथ रहने की ज़रूरत ही क्या है? वे राक्षस और डायन के चंगुल से मुक्त होकर अंधश्रद्धा निर्मूलन या समाज के बहुत से सकारात्मक कार्यो में या फिर अपने मन मुताबिक कार्यो में लग सकते हैं। एक दूसरे की हत्या करना तो इसका हल नहीं है।
भारत में विवाह को पारंपरिक रूप से एक पवित्र और अटूट बंधन माना जाता रहा है, लेकिन हाल के दशकों में सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक बदलावों के कारण विवाह संस्था से मोहभंग, तलाक की दर में वृद्धि और वैवाहिक झगड़ों में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। यह बदलाव शहरीकरण, महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता, पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव, और संयुक्त परिवारों के विघटन जैसे कारकों से प्रेरित है। इधर के दिनों में जिस बेदर्दी से पति-पत्नी की, पत्नी-पति की और प्रेमी-प्रेमिका की या फिर प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या हो रही है, वह हमें डराती है।
भारत में तलाक की दर विश्व के अन्य देशों की तुलना में अभी भी कम है। विभिन्न स्रोतों के अनुसार, भारत में प्रति 1,000 विवाहों में 1 से भी कम तलाक होते हैं, जो वैश्विक औसत (उदाहरण के लिए, अमेरिका में 46 फीसदी और पुर्तगाल में 94 फीसदी) से बहुत कम है। हालांकि, तलाक के मामलों में पिछले कुछ दशकों में वृद्धि देखी गई है। एक एक्स पोस्ट के अनुसार, सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के साथ पिछले 10-12 वर्षों में तलाक के मामले तीन गुना बढ़े हैं। 2022 में एक एक्स पोस्ट में उल्लेख किया गया कि भारत में तलाक के 45 फीसदी मामले महिलाओं द्वारा दर्ज किए जा रहे हैं जो सामाजिक और आर्थिक बदलावों को दर्शाता है। उत्तरी राज्यों (उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, राजस्थान) में, जो पुरुषसत्तात्मक समाज के लिए जाने जाते हैं, तलाक और अलगाव की दर कम है, जिसकी वजह सामाजिक दबाव और आर्थिक निर्भरता को माना जाता है। गुजरात जैसे राज्यों में तलाक की दर अपेक्षाकृत अधिक है। शहरी क्षेत्रों में तलाक की दर ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक है। विवाह संस्था से मोहभंग के कारणों की यदि पड़ताल की जाये तो पश्चिमी जीवनशैली, व्यक्तिवाद और स्वतंत्रता की अवधारणा ने भारतीय समाज में प्रवेश किया है, जिससे लोग वैवाहिक बंधनों को पहले की तरह अनिवार्य नहीं मानते। पहले संयुक्त परिवार वैवाहिक समस्याओं को सुलझाने में मध्यस्थ की भूमिका निभाते थे, लेकिन अब एकल परिवारों में यह समर्थन कम हो गया है। महिलाओं की स्वतंत्रता, शिक्षा और रोजगार के अवसरों के कारण महिलाएं अब आर्थिक और सामाजिक रूप से स्वतंत्र हो रही है। वे अपमानजनक या असंतोषजनक विवाह को सहने के लिए कम बाध्य महसूस करती है। शहरीकरण और आर्थिक दबाव ने वैवाहिक रिश्तों में तनाव बढ़ाया है। नौकरी की असुरक्षा, बढ़ती जीवन लागत और वित्तीय असमानता झगड़ों का कारण बनते हैं। यह भी देखने में आया है कि विवाह में सहनशीलता की कमी बढ़ रही है। पहले सामाजिक और पारिवारिक दबाव के कारण दंपति रिश्ते को बनाए रखने की कोशिश करते थे, लेकिन अब व्यक्तिगत खुशी को प्राथमिकता दी जा रही है।
सोशल मीडिया और डिजिटल युग ने तुलना और अवास्तविक अपेक्षाओं को बढ़ावा दिया है, जिससे रिश्तों में असंतोष बढ़ता है। अपनी प्राइवेसी या वर्जुअल रिलेशनशिप के चलते बहुत बार नजदीक के रिश्तों की अवहेलना होती है। बहुत लोग संबंधों में निकट दृष्टि दोष के शिकार हैं।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5, 2019-21) के अनुसार, भारत में 29.3 फीसदी विवाहित महिलाओं ने अपने पति या ससुरालवालों द्वारा शारीरिक, मानसिक या यौन हिंसा का सामना किया है। यह आंकड़ा ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में समान रूप से चिंताजनक है। हालिया चर्चित प्रसंगों की बात की जाये तो कर्नाटक के पूर्व डीजीपी ओमप्रकाश की उनकी पत्नी पल्लवी ने चाकू और कांच की बोतल से हत्या सबसे ताजा उदाहरण है।
कर्नाटक के पूर्व डीजीपी ओमप्रकाश की हत्या 20 अप्रैल 2025 को बेंगलुरु के एचएसआर लेआउट स्थित उनके आवास पर हुई। उपलब्ध जानकारी के आधार पर उनकी पत्नी पल्लवी को इस हत्याकांड का मुख्य आरोपी माना गया है और उनकी बेटी कृति की भूमिका की भी जांच की जा रही है। ओमप्रकाश और उनकी पत्नी पल्लवी के बीच लंबे समय से वैवाहिक तनाव और झगड़े चल रहे थे। यह विवाद संपत्ति को लेकर था, विशेष रूप से ओमप्रकाश द्वारा अपनी एक बहन को संपत्ति देने के फैसले से पल्लवी नाराज थी। पल्लवी ने पुलिस को दिए बयान में दावा किया कि ओमप्रकाश उन्हें और उनकी बेटी को धमकाते थे और घर में बंदूक लाकर डराते थे। हत्या के दिन दोपहर में भोजन के दौरान दोनों के बीच बहस हुई जो हिंसक रूप ले लिया। पल्लवी ने कथित तौर पर ओमप्रकाश के चेहरे पर मिर्च पाउडर फेंका, उन्हें बांधा और फिर चाकू से 10-12 बार हमला किया। इसके अलावा एक कांच की बोतल से भी उन पर प्रहार किया गया। पल्लवी ने हत्या के बाद एक दोस्त (जो एक अन्य रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी की पत्नी थी) को वीडियो कॉल किया और कहा, मैंने राक्षस को मार डाला। इस दोस्त ने पुलिस को सूचित किया। ओमप्रकाश की हत्या के पीछे मुख्य वजह पारिवारिक विवाद, संपत्ति को लेकर तनाव और पल्लवी की मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं प्रतीत होती हैं। पल्लवी ने हत्या की बात कबूल की है, लेकिन इसे घरेलू हिंसा के खिलाफ आत्मरक्षा का कदम बताया। दूसरी ओर, उनके बेटे ने पल्लवी और कृति की मानसिक स्थिति और उनके पिता के साथ लगातार झगड़ों को हत्या का कारण माना।

उत्तर प्रदेश में अवैध संबंधों से जुड़े हत्याकांड (अप्रैल 2025) में दुबई से लौटे एक व्यक्ति की उसकी पत्नी और भतीजे के अवैध संबंधों के विरोध पर हत्या कर दी गई। यह मामला प्रेम प्रसंग और वैवाहिक विश्वासघात से उपजी हिंसा को उजागर करता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट, अप्रैल 2025 में सास-बहू हिंसा के मामले के में एक सास ने अपनी बहू पर घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज की, जिसमें बहू पर उसके मायके में रहने का दबाव बनाने का आरोप था। कोर्ट ने सास को भी पीडि़त महिला के दायरे में शामिल किया, जो घरेलू हिंसा कानून के व्यापक दायरे को दर्शाता है। 2022 में हुए श्रद्धा वालकर हत्याकांड जो 2025 में चर्चा में आया। जिसमें दिल्ली में श्रद्धा वालकर की उनके लिव-इन पार्टनर आफताब पूनावाला द्वारा हत्या ने लिव-इन रिलेशनशिप में टॉक्सिक व्यवहार और हिंसा पर बहस छेड़ दी। यह मामला रिश्तों में भावनात्मक नियंत्रण और हिंसा के खतरों को उजागर करता है। अप्रैल 2025 में छत्तीसगढ़ के सरगुजा में पत्नी द्वारा पति की हत्या मामले में एक महिला ने अवैध संबंधों का विरोध करने पर अपने पति की दुपट्टे से गला घोंटकर हत्या कर दी। यह घटना प्रेम प्रसंग और वैवाहिक विश्वासघात से उपजी हिंसा का उदाहरण है।
दाम्पत्य और प्रेम प्रसंग, विशेष रूप से लिव-इन रिलेशनशिप में बढ़ती कटुता और घरेलू हिंसा एक गंभीर सामाजिक मुद्दा बन चुका है। यह समस्या पारंपरिक वैवाहिक रिश्तों से लेकर आधुनिक लिव-इन रिलेशनशिप तक फैली हुई है। बढ़ती कटुता और घरेलू हिंसा का बड़ा कारण सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव है। भारतीय समाज में वैवाहिक और प्रेम संबंधों की प्रकृति बदल रही है। लिव-इन रिलेशनशिप को सामाजिक स्वीकृति मिलने के बावजूद परिवार और समाज का दबाव रिश्तों में तनाव पैदा करता है।
परंपरागत मान्यताओं और आधुनिक जीवनशैली के बीच टकराव, जैसे दहेज, यौन संबंधों की अपेक्षाएं या पारिवारिक जिम्मेदारियों को लेकर असहमति, कटुता को बढ़ाता है।
आर्थिक असमानता, नौकरी का दबाव या वित्तीय निर्भरता रिश्तों में तनाव का कारण बनती है। उदाहरण के लिए, पुरुषों की अपर्याप्त कमाई या महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता को लेकर असुरक्षा विवाद को जन्म देती है। कई बार घरेलू हिंसा केवल शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक, भावनात्मक, यौन, और आर्थिक भी हो सकती है। मानसिक/भावनात्मक हिंसा मामले में अपमान, ताने, नियंत्रण, या गैसलाइटिंग (वास्तविकता को तोड़-मरोड़कर पेश करना)। घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 बना हुआ है। यह कानून शारीरिक, मानसिक, यौन, और आर्थिक हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा करता है। इसमें लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाएं भी शामिल हैं। पीडि़त महिला संरक्षण अधिकारी को शिकायत दर्ज कर सकती है और कोर्ट से तत्काल सुरक्षा, मुआवजा, या निवास का आदेश प्राप्त कर सकती है। हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि सास भी बहू द्वारा घरेलू हिंसा की शिकार हो सकती है और इस कानून के तहत शिकायत दर्ज कर सकती है।
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए के तहत पति या ससुराल वालों द्वारा क्रूरता के लिए सजा। धारा 182 के तहत झूठी शिकायत दर्ज करने पर सजा, जो पुरुषों के लिए राहत का विकल्प हो सकता है।
लिव-इन रिलेशनशिप मामले में सुप्रीम कोर्ट ने लंबे समय तक चलने वाले लिव-इन रिलेशनशिप को विवाह के समान माना है, जिसके तहत महिलाओं को घरेलू हिंसा अधिनियम और सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता का अधिकार है। हालांकि, शादीशुदा व्यक्ति द्वारा लिव-इन रिलेशनशिप को कोर्ट ने अवैध माना है। दिल्ली हाईकोर्ट ने 2023 में स्पष्ट किया कि घरेलू हिंसा अधिनियम पुरुषों को सुरक्षा नहीं देता। हालांकि, पुरुष आईपीसी की धाराओं (जैसे 323, 506) या सिविल उपायों (जैसे क्वाश पिटिशन) का सहारा ले सकते हैं।
संबंधों में जिस तरह की टकराहट आ रही है और मामला हत्या तक पहुंच रहा है, ऐसे में तो बेहतर है कि हम गुमराह फिल्म के लिए साहिल लुधियानवी साहब के इस सदाबहार गाने पर ही अमल कर लें-

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चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनों
न मैं तुम से कोई उम्मीद रखूँ दिल-नवाज़ी की
न तुम मेरी तरफ़ देखो ग़लत-अंदाज़ नजऱों से
न मेरे दिल की धड़कन लडखड़़ाए मेरी बातों से।

न ज़ाहिर हो तुम्हारी कश्मकश का राज़ नजऱों से
तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेश-क़दमी से
मुझे भी लोग कहते हैं कि ये जल्वे पराए हैं
मिरे हमराह भी रुस्वाइयाँ हैं मेरे माज़ी की।
तुम्हारे साथ भी गुजऱी हुई रातों के साए हैं
तआज्रुफ़ रोग हो जाए तो उस का भूलना बेहतर
तअज्ल्लुक़ बोझ बन जाए तो उस को तोडऩा अच्छा
वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे इक ख़ूबसूरत मोड़ दे कर छोडऩा अच्छा।
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनों।।

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