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Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – न्याय की देवी ने खोली ‘आँख’ 

-सुभाष मिश्रअब कानून अंधा नहीं रहा। कई बार बात होती है कि अंधा कानून है, क्योंकि अब तक न्याय की देवी की आंखों पर काली पट्टी बंधी होती थी। पट्टी बांधने का अर्थ यह होता है कि न्य...

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Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – जेल में वसूली का जाल 

-सुभाष मिश्रजेल में तरह-तरह के खेल हो रहे हैं। यह खेल अलग तरह का है। यह खेल उस तरह का खेल नहीं है, जो प्रतिस्पर्धा में होते हैं या कोई संस्था कंपटीशन करवाती है। जेल में कोई जात...

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Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – दिवाली का तोहफा

-सुभाष मिश्रदिवाली अभी दूर है, लेकिन दिवाली के लिए तोहफे खरीदने का सिलसिला शुरू हो चुका है। बहुत सारे बंपर इनाम देने की भी बात हो रही है और इसके लिए विज्ञापन निकाल रहे हैं। दिव...

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Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – फिर आया मौसम चुनाव का 

-सुभाष मिश्रएक बार फिर चुनाव का मौसम आ गया है। इस बार चुनाव दो राज्यों महाराष्ट्र और झारखंड की विधानसभाओं का हो रहा है। अभी थोड़े दिन पहले हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा के च...

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Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से -कहानी की मूल प्रेरणा कुतूहल

-सुभाष मिश्रकि़स्से कहानी हमें हमेशा अच्छे लगते है। हमारे यहाँ किस्सोगोई की परंपरा पुरानी है। रहस्य-रोमांच, राजा-रानी, प्रेम और अपराध की कहानी ज़्यादा लोकप्रिय है। कहानी कहना भ...

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Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – नक्सलवाद पर करारा प्रहार 

-सुभाष मिश्रछत्तीसगढ़ में नक्सलाइट ऑपरेशन में 31 नक्सली मारे गए, पुलिस का एक जवान घायल हुआ है और मौके पर सर्च ऑपरेशन जारी बताया जा रहा है। उम्मीद की जा रही है कि इससे ज्यादा स...

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Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – जातिगत जड़ें बहुत गहरी है 

-सुभाष मिश्रहमारे देश में जातिगत अस्मिता की जड़ें बहुत गहरी हैं। हर जाति का अपना एक स्टेक्चर है। जातियों के भीतर भी बहुत सी उपजातियाँ समाहित है। सतही रूप से देखने पर बहुत लोगों...

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Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – उत्सव का स्वरूप तय करता बाज़ार

-सुभाष मिश्रहमारे पारंपरिक उत्सवों का स्वरूप बदलता जा रहा है। मोहल्ले, चौक-चौराहे में होने वाले गणेश, दुर्गा पंडालों में अब बाज़ार द्वारा तय आयोजन ज़्यादा हो रहे हैं। पहले समाज...

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Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – पड़ोस का नया कन्सेप्ट

-सुभाष मिश्रअब पड़ोस का कन्सेप्ट बदल गया है। हज़ारों किलोमीटर दूर बैठा कोई व्यक्ति आपका पड़ोसी हो गया है और घर के पड़ोस में रहने वाले से आपकी कोई दुआ-सलाम तक नहीं। रियल और वर्च...

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Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – गांधी को याद करते हुए

2 अक्टूबर पर विशेष-सुभाष मिश्रमेरे बहुत से मिलने जुलने , व्हाटअप यूनिवर्सिटी के ज्ञान से लबरेज़ और गांधी फ़िल्म के बाद लोग गांधी को ज़्यादा जानने लगे की सोच रखने वाले शायद ...

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