– सुभाष मिश्र
राजनीति में एक दूसरे को ललकारना, एक दूसरे को पटकनी देने का दावा अपनी विचारधारा को दूसरे से श्रेष्ठ बताने की कोशिश तो हमेशा से होती आई है, लेकिन आजकल जिस तरह से एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए हमारे नेता भाषायी मर्यादा को तोड़ रहे हैं वो काफी चिंताजनक है। हाल के दिनों में छत्तीसगढ़ में भी इस तरह की सियासी बदजुबानी बढ़ी है। मंचों से संबोधन के दौरान मीडिया में अपनी बात रखते हुए तो कई बार नेताओं की जुबान फिसली ही है। सोशल मीडिया में मीम्स और कार्टून बनाने के दौरान सामान्य मर्यादा तार-तार हुई है।
इन दिनों देशभर में चल रहे लोकसभा चुनाव के दौरान इस तरह के बयानों में भी बढ़ोतरी देखी जा रही है। एक चुनावी सभा में मीसा भारती ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरुद्ध आपत्तिजनक बयान दे दिया है जिसको लेकर बिहार में राजनीति गर्म हो गई है। मीसा भारती ने कहा कि हम पर लोग परिवारवाद और भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हैं। अगर जनता ने इंडी गठबंधन की सरकार देश में बनाने का मौका दिया तो प्रधानमंत्री से लेकर भाजपा के नेता जेल के अंदर होंगे। अब मीसा भारती के इस विवादित बयान ने तूल पकड़ लिया है और इस पर बीजेपी लालू परिवार पर हमलावर हो गई है। उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा और रामकृपाल यादव ने लालू परिवार पर वार किया है। बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा ने कहा कि जो लोग डरे सहमे हैं, उनकी आवाज निकल रही है। यही लोग हैं जो चपरासी क्वार्टर में रहते थे आज महलों में रहते हैं। एक-एक चीज का हिसाब देना होगा और कौन जेल में होगा और कौन बेल पर है और किनका भविष्य क्या होगा, यह चुनाव के बाद पता चलेगा।
अतीत में नजर डालें तो प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ मणिशंकर अय्यर के चायवाले बयान को जिस तरह से भाजपा ने भुनाया हो अपने आप में केस स्टडी बन गया है। अब तो एक रणनीति के तहत भाजपा नेतृत्व पीएम मोदी के खिलाफ बयान का इंतजार करती है फिर उसके खिलाफ एक मुहिम बना दी जाती है। 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद में आधार पर बयान दे रहे थे। इसी दौरान कांग्रेस सांसद रेणुका चौधरी ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगी। मुस्कुराते हुए मोदी बोले, सभापति जी रेणुका जी को आप कुछ मत कहिए रामायण सीरियल के बाद ऐसी हंसी सुनने का आज सौभाग्य मिला है। बाद में केंद्र सरकार में राज्यमंत्री किरण रिजीजू ने फ़ेसबुक पर एक वीडियो शेयर कर रेणुका चौधरी की हंसी की तुलना रामायण के किरदार शूर्पणखा से कर डाली। इसके बाद भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने रामायण में शूर्पणखा की नाक काटे जाने का दृश्य भी ट्विटर पर शेयर किया। कुछ दिन पहले बिहार विधानसभा में नितिश कुमार ने जो बयान दिया था उस पर उन्हें माफी तक मांगनी पड़ गई थी। ऐसे में हम लाख समानता की बात कर लें, उदारवादी हो जाएं, लेकिन राजनीति में आज भी लैंगिग असमानता व्याप्त है।
लोकतंत्र में राजनेता अपने प्रतिद्वंद्वी पर तीखी टिप्पणियां कर सकते हैं, मगर इसका यह अर्थ नहीं कि लोकतंत्र की मर्यादा को ताक पर रख दिया जाए। राजनीति में सार्वजनिक वक्तव्यों का महत्व होता है। अगर कोई बड़ा नेता अपने किसी प्रतिद्वंद्वी के बारे में टिप्पणी करता है तो निचली कतार के नेता उसे आगे बढ़ाते हैं। इसलिए उनसे न केवल शब्दों के चुनाव, बल्कि लहजे पर लगाम की भी अपेक्षा की जाती है। राजनीति में भाषा एक बड़ा औजार होता है। अगर उसे ठीक से बरतना न आए, तो कई बार खुद को भी जख्मी कर लेने का खतरा रहता है। किसी महिला के प्रति अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल तो यह भी जाहिर करता है कि टिप्पणी करने वाले का महिला समाज के प्रति दृष्टिकोण क्या है।
संसद में महिला आरक्षण को लेकर चली बहसों के समय की कुछ टिप्पणियों की गूंज आज तक इसीलिए बनी हुई है कि उनसे पूरे महिला समाज के सम्मान पर प्रश्नचिन्ह लगा था। राजनीतिक दलों की अगली कतार में सामान्य महिलाओं की उपस्थिति वैसे भी न के बराबर है। ऐसे में महिलाओं के प्रति दुराग्रहपूर्ण टिप्पणियां इस विडंबना को और गहरा करती हैं। यह भी चिंता का विषय है कि आखिर राजनीति में भाषा की मर्यादा इतनी धुंधली क्यों होती जा रही है कि राजनेता संसद और विधानसभाओं से लेकर सार्वजनिक मंचों तक पर बेलगाम कुछ भी बोलने में संकोच नहीं करते। महिलाओं के प्रति हमारे पुरुष प्रधान समाज का नजरिया किसी से छिपा नहीं है। भाषा लगातार गिरते राजनीतिक स्तर को मापने का एक पैमाना है। इसमें नेता का स्तर रिफ्लेक्ट होता है। अगर राजनीतिक दल के नेता ये पंक्तियां पढ़ रहे हैं, तो उन्हें समझ लेना चाहिए कि भाषा की मर्यादा आपको बनानी है और अमर्यादा गिराती ही है। व्यक्तिगत हमलों से समर्थक भले ही ताली बजाते हों पर वह मतदाता जो अपनी सोच रखता है, तटस्थ है, वह उस नेता की मन में एक तस्वीर बनाता है जो लाख अच्छी बातें कहने से भी नहीं हटती।
राजनीति में शालीनता, सुचिता और मर्यादा जरूरी है लेकिन देखा जा रहा है कि नेता विरोधी दलों पर प्रहार करते वक्त सब कुछ भुला देते हैं। खैर, यह तो राजनीतिक दलों के नेताओं की बात है, संवैधानिक पद पर बैठे किसी व्यक्ति द्वारा राजनीतिक सभा से विरोधी दल के नेताओं के खिलाफ अशोभनीय बयान देने पर सवाल उठना लाजिमी है।