Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – भय प्रकट कृपाला

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

गोस्वामी तुलसीदास आज होते तो यह देखकर बेहद प्रसन्न होते कि पूरा देश आज राममय है। तुलसी के राम मर्यादा पुरुषोत्तम राम थे।
भए प्रगट कृपाला दीनदयाला,
कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी, मुनि मन हारी,
अद्भुत रूप बिचारी॥
लोचन अभिरामा, तनु घनस्यामा,
निज आयुध भुजचारी ।
भूषन बनमाला, नयन बिसाला,
सोभासिंधु खरारी॥

भगवान श्रीराम का जीवन जहां त्याग की मूर्ति है, उन्होंने कष्टों और बाधाओं में भी उच्च जीवन मूल्यों को प्रतिस्थापित किया। गोस्वामी तुलसीदासजी रामचरितमानस के ज़रिए उन्हें एक आदर्श शासक पुरुष के रूप में चित्रित किया है, जिनमें करुणा, दया, क्षमा, सत्य, न्याय, साहस, सदाचार, धैर्य और नेतृत्व जैसे गुण समाहित है। वे एक आदर्श पुत्र, भाई, पति, राजा और मित्र हैं। बहुत लोगों के राम मुक्ति का मार्ग है। बहुतों के लिए एक सहज अभिवादन और आजकल बहुत सारे लोगों के लिए आक्रमक योद्घा, जिनका जयघोष वे लोग बहुत आक्रामक तरीक़े से करते नजऱ आते हैं।
आज रामनवमीं है और देश में चुनाव दस्तक दे चुके हैं। 90 के दशक में लालकृष्ण आडवाणी जिस रथ पर सवार होकर राम मंदिर के लिए निकले थे ,वह रथ अभी भी कायम है सिर्फ रथी बदल गया है। इच्छाएं, आकांक्षाएं और उद्देश्य अभी भी वही है। देश में कुछ ऐसा धार्मिक वातावरण तैयार हो गया है कि इस रामनवमी पर जैसे भगवान रामचंद्र पहली बार जन्म लेने वाले हैं। पूरे देश में रामनवमी मनाने के लिए इतने बड़े पैमाने पर तैयारियाँ हैं कि पूरा देश अयोध्या में तब्दील हो गया है। श्रद्धा और आस्था का ऐसा खूबसूरत राजनीतिकरण अब कहीं देखना दुर्लभ होगा। सामान्य आदमी ही नहीं बल्कि बड़े से बड़ा विपक्ष भी इस दुर्लभ संयोग के इस दृश्य में राजनीतिक मंशा को समझने के बावजूद मतदाता को समझाने में गहरी कठिनाई अनुभव कर रहा है। भगवान रामचंद्र ने कभी ब्रह्मास्त्र चलाया या नहीं यह गहरे अध्ययन का विषय हो सकता है, लेकिन इस समय भाजपा के पास रामनवमीं पर श्रद्धा और आस्था का बहुत बड़ा ब्रह्मास्त्र हाथ आया है। जिससे बचने के लिए विपक्ष के पास अभी कोई बड़ा अस्त्र या शस्त्र नहीं है। भाजपा अभी इस चुनाव में ही नहीं बल्कि आगे अनेक चुनावों में आस्था के इस हथियार को इस्तेमाल करने में महारत हासिल कर लेगी। धर्म और ईश्वर के प्रति आस्था को लेकर मान्यताएं, धारणाएं, घोषणाएं और श्रद्धा के सैलाब के लिए जो तर्क और विश्लेषण हैं वे कुछ चुनिंदा बौद्धिक लोगों के लिए ही है। सामान्यजन इसे न समझता है और ना समझना चाहता है। स्थितियां ऐसी हैं कि उसे समझने भी नहीं दिया जाएगा। यह राजनीतिक रणनीति है। इससे बचने या लडऩे के लिए विपक्ष के पास फिलहाल कोई बड़ी रणनीति नहीं है। भगवान रामचंद्र इस समय श्रद्धा और आस्था पुरुष से आगे जाकर सामान्य जन की राजनीतिक उत्तेजना के प्रबल उत्प्रेरक भी हो गए हैं। धर्म का राजनीतिकरण हो गया है, यह विपक्ष का विरोध नहीं विलाप नजर आता है। इस विरोध को स्पष्ट करने के लिए विपक्ष को धार्मिक मठाधीशों और साधु-संतों को अपने साथ करना होगा, जिन्हें धर्म के राजनीतिकरण से न सिर्फ अरुचि है बल्कि असहमति भी है। उनकी असहमति को एक प्रबल विरोध में बदलना होगा। साधु-संतों को यह समझना होगा कि धर्म विशुद्ध पवित्र और जनहितकारी है। धर्म का राजनीति में प्रवेश होने से फिर उसको मलिन होने से बचाना बहुत फिर दुष्कर होगा। लेकिन हाल फिलहाल तो ऐसे कोई आसार दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहे हैं।
किसी मनचले ने कहा था कि प्रेम और युद्ध में सब जायज है। किसी और बड़े मनचले ने उसमें जोड़ दिया कि राजनीति में भी सब जायज है। धर्म और राजनीति का ऐसा गठबंधन देश ही नहीं दुनिया में पहला उदाहरण है और इसकी शुरुआत कोई एकाएक नहीं हुई है। जिस दिन बाबरी मस्जिद का ढांचा ढहा दिया गया था, विपक्ष का माथा उसी दिन ठनक जाना था। उन्हें उसी दिन सचेत हो जाना था, लेकिन विपक्ष ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। इसे बहुत सामान्य घटना की तरह लिया बल्कि इसके प्रतिकार में ऐसी हरकतें और कार्रवाई की जिससे जनमानस में उनकी धर्म विरोधी छबि हो गई, रही सही कसर देश में एकाएक नई टेक्नोलॉजी के आने से पूरी हो गई। जहां सोशल मीडिया का ऐसा जाल फैला और जिसको सबसे पहले और जल्दी भाजपा ने समझकर लपक लिया और अपने पक्ष में पूरा-पूरा इस्तेमाल किया। धर्मनिरपेक्षता को परिहास में ही तब्दील नहीं किया बल्कि धर्म विरोध की तरह प्रचारित और प्रसारित किया गया और उसमें सफलता भी हासिल की। कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दल भारतीय जनमानस में धर्म की जमी हुई गहरी जड़ों को पहचान नहीं पाए या फिर उन्हें मुस्लिम वोटो पर ज्यादा भरोसा रहा और यही वह समय रहा जब राम मंदिर निर्माण की घोषणा के साथ सबसे ज्यादा मुस्लिम ही संदिग्ध हो गए। निश्चित रूप से इसमें मुस्लिम भी काफी हद तक दोषी है कि उन्होंने कभी खुद को देश की मुख्य धारा में लाने की कोशिश नहीं की। बल्कि वह मुल्ला-मौलवियों की घर धार्मिक उत्तेजना से भरी ऐसी सीख पर चलते रहे जो आगे जाकर आसानी से सांप्रदायिक प्रमाणित कर दी गई और एकाएक देश विरोधी छबि की गिरफ्त में आ गए। कांग्रेस को दूसरे विपक्षी कभी है समझ ही नहीं पाए कि धर्म एक ऐसा मामला है जहां बौद्धिक वर्ग भी आसानी से शामिल हो जाते हैं।

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