Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – नदियों पर मंडराता खतरा एक गंभीर चेतावनी

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

कवि दुष्यंत कुमार का एक शेर है –
यहां तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियाँ
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा।।

दरअसल, पिछले कुछ वर्षों से हम देखते हैं जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती है तेजी से जल स्त्रोतों का पानी खत्म होने लगता है। नदियों का पानी घटते ही रेत माफिया सक्रिय हो जाते हैं और नदियों का सीना चीरकर रेत खोदने से बाज नहीं आते। कुल मिलाकर जल स्त्रोतों के मामले में प्रकृति के साथ खुला खिलवाड़ हो रहा है और इसका सीधा असर हमारे पर्यावरण पर पड़ रहा है। मानव सभ्यता के विकास में नदियों का सबसे अहम योगदान रहा है। इतिहास में जितनी भी सभ्यताओं के उल्लेेख मिलते हैं, सभी का विकास नदियों के किनारे ही हुआ, लेकिन आज हम विकास की अंधी दौड़ में इन नदियों के अस्तित्व के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। नदियों का संरक्षण करने के बजाय इन पर जुल्म ढाया जा रहा है। इसी का नतीजा है कि नदियों के अस्तित्व पर आज गंभीर संकट मंडरा रहा है। बड़ी नदियां नाले का रूप ले ली हैं, तो छोटी नदियां मैदान बनती जा रही हैं। नदियों के सिमटने का सीधा असर से पर्यावरण पर पड़ रहा है। भारत में नदियों की पूजा की जाती है। पूजा-पाठ में नदियों के जल की अहम भूमिका होती है। सभी धर्मों में नदी की महत्ता बताई गई है।
हाल ही में केंद्रीय जल आयोग ने कुछ ऐसे आकड़े जारी किये हैं जो हमारी आँखें खोलने वाले हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि महानदी और पेन्नार के बीच पूर्व की ओर बहने वाली 13 नदियों में इस समय पानी नहीं है। इनमें रुशिकुल्या, बाहुदा, वंशधारा, नागावली, सारदा, वराह, तांडव, एलुरु, गुंडलकम्मा, तम्मिलेरु, मुसी, पलेरु और मुनेरु शामिल हैं। केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) की ओर से जारी आंकड़ों के विश्लेषण के बाद यह बात सामने आई है। इसके अलावा गंगा समेत कई नदियों के बेसिन में बहाव आधे से भी कम हो चुका है। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा राज्यों के 86,643 वर्ग किमी क्षेत्र से बहती हुईं नदियां सीधे बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। इस बेसिन में कृषि भूमि कुल क्षेत्रफल का लगभग 60 फीसदी है। विशेषज्ञों के मुताबिक, गर्मी के चरम से पहले ही यह स्थिति चिंताजनक है। संयुक्त बेसिन में महत्वपूर्ण शहर विशाखापत्तनम, विजयनगरम, पूर्वी गोदावरी, पश्चिम गोदावरी, श्रीकाकुलम और काकीनाडा शामिल हैं।
भारत में नदियों की संख्या कुल मिलाकर 200 के करीब है, जिनमें से गंगा, यमुना, कृष्णा, कावेरी, नर्मदा और गोदावरी जैसी प्रमुख नदियां हैं। नर्मदा की 101 सहायक नदियों में से 60 नदियां सूख चुकीं हैं। वही देश के 150 प्रमुख जलाशयों में जल भंडारण क्षमता 36 फीसदी तक गिर चुकी है। छह जलाशयों में कोई जल भंडारण दर्ज नहीं किया गया है। वहीं, 86 जलाशय ऐसे हैं जिनमें भंडारण या तो 40 प्रतिशत या उससे कम है। सीडब्ल्यूसी के अनुसार, इनमें से ज्यादातर दक्षिणी राज्यों, महाराष्ट्र और गुजरात में हैं। आबादी और विकास के दबाव के कारण हमारी बारहमासी नदियां मौसमी बन रही हैं। कई छोटी नदियां पहले ही गायब हो चुकी हैं। बाढ़ और सूखे की स्थिति बार-बार पैदा हो रही है, क्योंकि नदियां मानसून के दौरान बेकाबू हो जाती हैं और बारिश का मौसम खत्म होने के बाद गायब हो जाती हैं। अनुमान बताते हैं कि जल की हमारी 65 फीसदी जरूरत नदियों से पूरी होती है। 3 में से 2 बड़े शहर पहले से ही रोज पानी की कमी से जूझ रहे हैं। बहुत से शहरी लोगों को एक कैन पानी के लिए सामान्य से दस गुना अधिक खर्च करना पड़ता है। संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि भारत साल 2050 तक 170 से 240 करोड़ शहरी लोगों को पानी की भारी किल्लत हो सकती है क्योंकि हिमालय के ग्लेशियर तेजी से तेजी से पिघल रहे हैं। भारत, चीन और पाकिस्तान की तीन प्रमुख नदियों गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु का जलस्तर बहुत तेजी से कम हो जाएगा।
नदियों में जल स्तर बना रहे और वे बची रहीं, इसी के मद्देनजर भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी ने देश की प्रमुख नदियों को आपस में जोडऩे की योजना बनाई थी। हालांकि उनका यह सपना इतने वर्षों बाद भी मूर्त रूप नहीं ले पाया। नदियां जीवनदायिनी हैं, जीवनधारिणी हैं। गंगा को बचाने के लिए केंद्र सरकार ने एक अलग मंत्रालय बनाया और इसके संरक्षण की दिशा में कार्य शुरू किया गया, लेकिन यह योजना भी पूरी तरह सार्थक नहीं हो पा रही है। अब भी गंगा में उद्योगों का गन्दा पानी और अनेक तरह की गंदगी बदस्तूर जा रही है। कमोबेश, यही हालत तालाबों के भी हैं। प्रकृति ने जो सम्पदा दी है उसका सही उपयोग होना चाहिए। साथ ही उसके संरक्षण पर पर भी लगातार काम होते रहना चाहिए। तभी हम प्रकृति की इस देन को बचा पाएंगे। मौजूदा हालात यह चेतावनी दे रहे हैं कि अगर हम अभी नहीं संभले तो बहुत देर हो जाएगी।

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