Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – बाबा साहब की बढ़ती प्रासंगिकता

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

हमारे देश में खुद को किसी महापुरुष के विचार के करीब बताकर जितनी राजनीति हुई है उतनी दुनिया के किसी भा देश में नहीं हुई है। डॉ. भीमराव आंबेडकर के साथ भी ऐसा ही है, जो उनके जीते जी उनकी विचारधारा अलगाव रखते थे वो भी आज सियासी मजबूरी में उनके साथ खड़े नजर आते हैं। आज उनकी जयंती के मौके पर देश और समाज के लिए सोच और उसकी आज के दौर में प्रासंगिकता पर बात करते हैं।
उनकी महत्ता और प्रभाव समाज में लगातार बढ़ता गया है। भाजपा उनकी जयंती के मौके पर ही अपना चुनावी घोषणा पत्र भी जारी करने जा रही है। एक तरफ चुनाव के इस दौर में संविधान खतरे में पडऩे की बात भी हो रही है, तो संविधान को बदलने का भी बयान आ रहा है।
दरअसल कर्नाटक के बीजेपी सांसद अनंतकुमार हेगड़े ने संविधान में बदलाव की बात कही थी, जिस पर लगातार बयानों का दौर चल रहा है। राहुल गांधी ने भी सवाल उठाते हुए कहा था कि लोकसभा चुनाव 2024 दो विचारधाराओं के बीच है। उन्होंने दो विचारधाराओं-संविधान या संघविधान, सामाजिक न्याय या शोषण, धर्मनिरपेक्षता या सांप्रदायिकता, नागरिक अधिकार या बेबस जनता, बोलने की आज़ादी या डर भरी चुप्पी, मोहब्बत या नफरत, विविधता या एकाधिकार, न्यायपूर्ण व्यवस्था या तानाशाही अन्याय आदि का जिक्र कर तुलना की। मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि कोई संविधान बदलने की कोशिश करेगा तो हंगामा होगा। संविधान बदलने की बात करेंगे तो देश में हंगामा होगा।
इधर इस विवाद पर प्रधानमंत्री मोदी ने तो यहां तक कह दिया कि बाबा साहेब आंबेडकर खुद आ जाएं तो भी संविधान खत्म नहीं कर सकते। उन्होंने देश के संविधान को केंद्र सरकार के लिए गीता, रामायण, महाभारत, बाइबल और कुरान करार दिया। पीएम मोदी ने ये बात विपक्ष के आरोपों पर पलटवार करते हुए कही। मोदी ने आंबेडकर के बहाने कांग्रेस पर जमकर भड़ास निकाली। उन्होंने कहा जब भी चुनाव आता है संविधान के नाम पर झूठ बोलना इंडिया अलायंस के सभी साथियों का फैशन बन गया है, वो कांग्रेस जिसने बाबा साहेब के जीते जी उन्हें चुनाव हरवाया। जिसने बाबा साहेब को भारत रत्न नहीं मिलने दिया। जिस कांग्रेस ने देश में आपातकाल लगाकर संविधान को खत्म करने की कोशिश की, वो आज संविधान के नाम पर राजनीति करने कर रहे हैं।
आंबेडकर का इस्तेमाल वर्ग विशेष को साधने के लिए किस तरह राजनीतिक दल करते रहे हैं उसकी बानगी भी देखते हैं। अस्सी के दशक में जब बहुजन समाज पार्टी अस्तित्व में आई तब कांशीराम की सभाओं में एक नारा ज़ोर शोर से गूंजता था-बाबा तेरा मिशन अधूरा, कांशीराम करेंगे पूरा। बाबा साहब भीम राव आंबेडकर से जुड़े इस नारे के साथ बहुजन समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश सहित दूसरे कई राज्यों में दलितों का एक बड़ा जनाधार खड़ा कर लिया।
कांशीराम का वो नारा पिछले कुछ सालों में आम आदमी पार्टी की सभाओं में सुनने को मिला, बदला तो सिफऱ् नाम। नारे में अब कांशीराम के बदले अरविंद केजरीवाल का नाम जुड़ गया है। ये नया नारा है, बाबा तेरा सपना अधूरा, केजरीवाल करेगा पूरा। भ्रष्टाचार के खिलाफ सियासी संघर्ष के संकल्प लिए केजरीवाल ने जिस पार्टी की स्थापनी की उसके कई बड़े नेता स्वयं केजरीवाल भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में हैं।
आजादी के बाद राजनीति पर नजर डालें तो 80 के दशक के पहले बाबा साहब का नाम बहुत ज्यादा नहीं लिया जाता था। कांग्रेस दलित वोट के लिए जगजीवन राम का नाम इस्तेमाल करती थी। कांग्रेस भी आंबेडकर का नाम नहीं लेती थी। 80 के दशक में कांशीराम और 90 के दशक में मंडल कमिशन के समय राजनीति में आंबेडकर एक बड़े प्रतीक बन गए। आंबेडकर के नाम पर दलितों को एकजुट किया जाने लगा।
बाबा साहब भीमराव आंबेडकर के देहांत के 34 साल बाद यानी 1990 में पहली बार संसद के सेंट्रल हॉल में बाबा साहब भीमराव आंबेडकर की तस्वीर लगाई गई। मंडल कमिशन के बाद अलग-अलग राजनीतिक मंचों पर बाबा साहब भीमराव आंबेडकर का महत्व बढ़ता चला गया। कांग्रेस और भाजपा जैसी बड़ी पार्टियों भी बाबा साहब भीमराव आंबेडकर की विचारधारा की बात करने लगी और दलितों के प्रतिनिधित्व को महत्व दिया जाने लगा।
इतिहास के पन्नों को पलटें तो हम पाते हैं कि डॉ आंबेडकर का मानना था कि सामाजिक न्याय के लक्ष्य को प्राप्त करने के बाद ही आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों को हल किया जाना चाहिये। आजादी के संघर्ष के दौरान आंबेडकर को गिला था कि कांग्रेस ने दलितों के लिए कुछ भी नहीं किया। इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार गांधी थे, क्योंकि वे अपने अंतिम दिनों के पहले, वर्ण व्यवस्था और जाति प्रथा का विरोध करने के लिए तैयार नहीं थे। आंबेडकर कहा करते थे अनुच्छेद 32 का उद्देश्य मूल अधिकारों के संरक्षण हेतु गारंटी, प्रभावी, सुलभ और संक्षेप उपचारों की व्यवस्था से है। डॉ. आंबेडकर ने अनुच्छेद 32 को संविधान का सबसे महत्वपूर्ण अनुच्छेद बताते हुए कहा था कि इसके बिना संविधान अर्थहीन है, यह संविधान की आत्मा और हृदय है। उन्होंने एक मज़बूत केंद्र सरकार का समर्थन किया। उन्हें डर था कि स्थानीय और प्रांतीय स्तर पर जातिवाद अधिक शक्तिशाली है तथा इस स्तर पर सरकार उच्च जाति के दबाव में निम्न जाति के हितों की रक्षा नहीं कर सकती है। क्योंकि राष्ट्रीय सरकार इन दबावों से कम प्रभावित होती है, इसलिये वह निचली जाति का संरक्षण सुनिश्चित करेगी। उनके अनुसार, भारत को जहाँ समाज में जाति, धर्म, भाषा और अन्य कारकों के आधार पर विभाजित किया गया है, एक सामान्य नैतिक विस्तार की आवश्यकता है तथा संविधान उस विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। बाबा साहेब ने अपना जीवन समाज से छूआछूत व अस्पृश्यता को समाप्त करने के लिये समर्पित कर दिया था। उनका मानना था कि अस्पृश्यता को हटाए बिना राष्ट्र की प्रगति नहीं हो सकती है, जिसका अर्थ है समग्रता में जाति व्यवस्था का उन्मूलन। उन्होंने हिंदू दार्शनिक परंपराओं का अध्ययन किया और उनका महत्त्वपूर्ण मूल्यांकन किया।
इतिहासकार रामचंद गुहा के अनुसार, डॉ. बी.आर. अंबेडकर अधिकांश विपरीत परिस्थितियों में भी सफलता का अनूठा उदाहरण हैं। आज भारत जातिवाद, सांप्रदायिकता, अलगाववाद, लैंगिक असमानता आदि जैसी कई सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है। हमें अपने भीतर आंबेडकर की भावना को खोजने की ज़रूरत है, ताकि हम इन चुनौतियों से खुद को बाहर निकाल सकें।

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