-सुभाष मिश्र
ट्रेनों में भीड़ के कारण यात्रियों के नहीं चढ़ पाने या स्टेशन पर छूट जाने की बात तो आपने सुनी होगी, लेकिन अब तो टीसी और टीटीई टिकट की जांच करने के लिए बोगियों में चढ़ नहीं पा रहे हैं। ट्रेनों की स्लीपर कोच में लगातार कमी ने यह विकट स्थिति पैदा कर दी है। अकेले छत्तीसगढ़ में पिछले एक साल में 20 से ज्यादा ट्रेनों की स्लीपर कोच में इतनी कटौती कर दी गई है कि कई लंबी दूरी की ट्रेनों में पहले की तुलना में आधी बोगी भी नहीं बची है। बोगियों की संख्या में कमी का असर दिखने लगा है। बोगियों में इतने यात्री घुस जा रहे हैं कि टीसी और टीटीई टिकट की जांच करने के लिए बोगियों में चढ़ नहीं पा रहे हैं।
भारतीय रेलवे दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। देश में सबसे ज्यादा लोग खासकर लंबे सफर के लिए ट्रेन से ही यात्रा करना पसंद करते हैं, क्योंकि ये काफी किफायती और आरामदायक माना जाता है। मगर ट्रेनों में भारी भीड़ रेलवे के सामने बड़ी चुनौती है। खासकर त्यौहार, वीकेंड और गर्मियों की छुट्टियों के दौरान ट्रेनों में इतनी भीड़ हो जाती है कि पैर रखने तक जगह नहीं होती। ज्यादातर यात्रियों के लिए बिजी रूटों पर तत्काल टिकट मिलना यूपीएससी का एग्जाम पास करने से भी ज्यादा मुश्किल होता है। रेलवे हर साल 800 करोड़ यात्रियों को ढोता है। जैसे-जैसे आबादी बढ़ रही है, रेलवे पर यात्रियों का भार भी बढ़ रहा है। रेलवे का बुनियादी ढांचा ट्रेनें, पटरियां और स्टेशन यात्रियों की बढ़ती संख्या को पूरा करने में सक्षम नहीं है। कई ट्रेनों में देरी होती है, जिससे यात्रियों की भीड़ बढ़ जाती है। हजारों यात्रियों को बैठने की जगह नहीं मिल पाती है और उन्हें खड़े होकर यात्रा करनी पड़ती है। ऐसी भीड़भाड़ में यात्रियों को सांस लेने में तकलीफ, गर्मी और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। इस स्थिति से परेशान रायपुर रेल मंडल के टीसी ने अफसरों को लिखकर दे दिया है कि वे ज्यादा भीड़ होने के कारण कोच में टिकट जांच करने नहीं कर पा रहे हैं। रेलवे के विभागीय सोशल मीडिया (वाट्सअप) ग्रूप में भी कई टीसी भीड़ ज्यादा होने की जानकारी दे रहे हैं।
रेलवे पिछले कुछ समय से स्लीपर कोच की संख्या लगातार कम कर रहा है। दूसरी ओर एसी कोच की संख्या लगातार बढ़ाई जा रही है। यात्रियों के पास चूंकि वेटिंग टिकट रहता है। इस वजह से मजबूरी में सीट मिले या न मिले कोच में सवार हो जाते हैं। इससे कोच में लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। रायपुर से उत्तर-प्रदेश, बिहार और हावड़ा जाने वाली ट्रेनों के स्लीपर कोच में क्षमता से अधिक यात्री रहते हैं। इन ट्रेनों में हर दिन करीब 200 से ज्यादा वेटिंग रहती है। एक समय था जब उत्तर-प्रदेश और बिहार जाने वाली सारनाथ एक्सप्रेस में पहले स्लीपर के 11 कोच हुआ करते थे। उसके बाद भी यात्रियों को कंफर्म बर्थ नहीं मिल पाती थी। अभी रेलवे ने इसमें स्लीपर के चार कोच घटाकर सात कर दिए हैं। इससे 288 सीट कम हो गई। इसी तरह अमरकंटक एक्सप्रेस में पहले स्लीपर के 12 कोच होते थे। रेलवे ने इसे घटाकर 7 कर दिए। इससे स्लीपर की रोजाना 360 सीट कम हो गई। इस कारण यात्री वेटिंग टिकट लेकर किसी तरह यात्रा करने के लिए मजबूर है। होली के दौरान दुर्ग जम्मूतवी, सारनाथ एक्सप्रेस और गोरखपुर एक्सप्रेस का स्लीपर कोच खचाखच भरा था। उनमेसामान की वजह से चलने की जगह नहीं थी। इसके बाद टीटीई ने अपने सीनियर अफसर को मैसेज करने के साथ कोच की फोटो खींचकर भेजी। अफसरों ने चारों ट्रेन के टीटीई को आगे जाने से मनाकर दिया और दूसरे टीटीई को ट्रेन में भेजा गया। इसी तरह धनबाद एक्स., विशाखा एक्स., आजाद हिंद, हसदेव और शालीमार एक्स. के टीटीई ने ट्रेन में भीड़ का मैसेज किया। कुछ टीटीई ने बताया कि दुर्ग जम्मूतवी एक्सप्रेस, आजाद हिंद, मुंबई मेल, छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस में इतनी भीड़ रहती है कि सांस लेने की जगह नहीं रहती है। ऐसे में चेकिंग के दौरान काफी दिक्कत होती है। जाहिर है कि स्लीपर और जनरल कोच कम होते जा रहे हैं। इसलिए इन कोचों में भारी भीड़ हो रही है। यात्री वेटिंग टिकट लेकर सफर कर रहे हैं, यह नियमानुसार गलत है। वेटिंग टिकट लेकर सफर करने वाले यात्रियों के ऊपर धारा 155 के तहत कार्रवाई करने के लिए कंट्रोल रूम को मैसेज देते हैं, लेकिन रेल प्रशासन कार्रवाई नहीं करता है। यही कारण है कि स्लीपर कोच में टिकट चेक करने में दिक्कत आ रही है। दिल्ली मुख्यालय में मांग की जा चुकी है ट्रेनों में वेटिंग टिकट की संख्या कम करें, क्योंकि यात्री वेटिंग टिकट लेकर सवार होते हैं और पेनाल्टी लेने या उतरने को कहने पर टिकट दिखाकर विरोध करते हैं।
वहीं, रायपुर मंडल में कुल 300 टीटीई की जरूरत है। वर्तमान में कुल 218 टीटीई कार्यरत हैं। रेलवे ने 17 नए टीटीई की भर्ती की है, लेकिन 19 टीटीई की पोस्ट सरेंडर करने का आदेश दे दिया है। उन्होंने बताया कि पहले एक ट्रेन में पांच टीटीई का स्टाफ जाता था, जो पूरे कोच की चेकिंग करता था। वर्तमान में तीन या तो चार टीटीई को ही ट्रेन में चेकिंग के लिए भेजा जा रहा है। इससे प्रेशर बढ़ गया है।
साल 2022-23 में 2.7 करोड़ से ज्यादा यात्री टिकट खरीदने के बावजूद वेटिंग लिस्ट के कारण ट्रेन से यात्रा नहीं कर सके। यह संख्या रेलवे की यात्री क्षमता और बढ़ते हुए यात्रियों की संख्या के बीच का अंतर बताती है। स्लीपर और अनारक्षित कोचों में औसतन वास्तविक क्षमता से लगभग 1.5 से 2 गुना ज्यादा लोग सफर करते हैं, जो यात्रियों के लिए असुविधा और असुरक्षा का कारण बनता है। रेलवे को इस समस्या के समाधान के लिए नई ट्रेनें और नए ट्रैक बिछाने की जरूरत है। हर साल कम से कम 1000 नई ट्रेनें शुरू करने की आवश्यकता है। इनमें से 500 ट्रेनें स्लीपर और अनारक्षित कोचों वाली होनी चाहिए, जिससे आम यात्रियों को राहत मिलेगी। 250 ट्रेनें एक्सप्रेस और सुपरफास्ट ट्रेनें होनी चाहिए जिससे लंबी दूरी की यात्रा आसान होगी। 250 ट्रेनें मालगाडिय़ां भी हों, जो माल ढुलाई में सुधार करेंगी।
रेलवे को हर साल कम से कम 1000 से 3000 किमी नए ट्रैक बिछाने की आवश्यकता है। नए ट्रैक बनने से रेलमार्गों पर भीड़भाड़ कम होगी, नई ट्रेनों को जगह मिलेगी, रेलवे सफर ज्यादा सुरक्षित बनेगा। इसके अलावा रेलवे को टिकट बुकिंग सिस्टम भी बेहतर बनाने की जरूरत है। ट्रेनों में सुरक्षा और सुविधाओं को बेहतर बनाने की आवश्यकता है। नवंबर 2023 में रेल मंत्रालय ने खुद ये स्वीकार किया था कि यात्रियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए रेलवे नेटवर्क में बड़े पैमाने पर विस्तार की आवश्यकता है। वेटिंग लिस्ट की समस्या से निपटने के लिए रेलवे ने अगले 4-5 सालों में 3,000 अतिरिक्त मेल, एक्सप्रेस और पैसेंजर ट्रेनें चलाने का लक्ष्य रखा है। अभी हर साल लगभग 800 करोड़ यात्री रेलवे से सफर करते हैं, अगले पांच सालों में यह संख्या 1000 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। संभावना है कि 2027-28 तक हर यात्री को टिकट बुक करते समय कंफर्म टिकट मिल सकेगा।