Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – वन नेशन वन इलेक्शन, संभावनाएं और समाधान

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

इस समय देश के जम्मू-कश्मीर राज्य में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं। यह चुनाव बहुत दिन से प्रतिक्षित थे। इस बार जम्मू-कश्मीर में बड़े पैमाने पर लोग वोट भी डाल रहे हैं। अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग चुनाव होते हैं। अभी हाल में ही मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव हुए। जब जिस विधानसभा का कार्यकाल खत्म होता है, वहां चुनाव होता है या कोई चुनी हुई सरकारी इस्तीफा दे देती है तो चुनाव होते हैं। अभी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जेल से बाहर आए तो उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। साथ ही कहा कि दिल्ली विधानसभा के चुनाव जल्दी कराए जाएंगे। इसके बाद हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में भी विधानसभा चुनाव होना है। दिल्ली में भी चुनाव हो सकता है। मोदी सरकार पिछले समय काफी समय से कह रही है कि एक देश एक चुनाव होना चाहिए। एक देश, एक संविधान, एक निशान और एक प्रधान की बात कहती रही है। अब उससे आगे बढ़कर यह कह रही है कि एक देश-एक कानून, एक देश-एक चुनाव होना चाहिए। ऐसे ही बहुत सारी चीजों को एक करना चाहती है।
भाजपा चाहती है कि देश में सब कुछ एक जैसा हो। सबके लिए एक तरह की व्यवस्था हो, समानता हो, एक जैसा कानून हो, पर भारत विविधताओं का देश है। अलग-अलग प्रदेशों की अलग-अलग भौगोलिक स्थिति अलग है। अलग-अलग चुनी हुई सरकार है। इस बीच पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में वन नेशन वन इलेक्शन के लिए एक कमेटी बनाई गई थी। इस कमेटी ने जो सुझाव दिए उसे मोदीमंत्रिमंडल ने स्वीकार कर लिया है। माना जा रहा है कि बहुत जल्दी इसको लोकसभा और राज्यसभा में पेश किया जाएगा और इसे पारित करके कानून का रूप दिया जाएगा। इसमें राज्यों की सहमति भी ली जाएगी और संविधान में संशोधन भी किया जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार कह चुके हैं कि एक देश एक चुनाव होना चाहिए, क्योंकि अलग-अलग चुनाव में बहुत सारा पैसा खर्च होता है। बहुत सारी मिशनरी लगती है। वन नेशन वन इलेक्शन का प्रस्ताव को मोदी कैबिनेट से स्वीकृति मिल गई है। अब इसे संसद के शीतकालीन सत्र में सदन के पटल पर रखा जाएगा। असल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में वन नेशन वन इलेक्शन का वादा किया था। 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से से अपने संबोधन में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वन नेशन वन इलेक्शन की पुरजोर वकालत की थी। प्रधानमंत्री ने कहा था कि लगातार और बार-बार इलेक्शन होने से होने से देश की प्रगति में व्यवधान होता है। फिलहाल देश में विधानसभा और लोकसभा के चुनाव अलग-अलग समय में हुआ करते हैं। वन नेशन वन इलेक्शन का मतलब यह है कि पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव होंगे। यानी मतदाता लोकसभा और प्रदेशों की विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए एक ही दिन, एक ही समय पर या चरणबद्ध तरीके से अपना वोट डालेंगे। आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ हुए थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं थीं। उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई।
वन नेशन-वन इलेक्शन पर मंथन करने के लिए बनाई गई पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को रिपोर्ट सौंप दी थी। यह रिपोर्ट 18 हजार 626 पन्नों की थी। इसके पैनल का गठन 2 सितंबर 2023 को ही कर दिया गया था। यह रिपोर्ट स्टेकहोल्डर्स-एक्सपर्ट्स से गंभीर मंथन के बाद 191 दिन के अनुसंधान का नतीजा है। कमेटी ने सभी असेम्बलीज का कार्यकाल 2029 तक बढ़ाने का एक सुझाव दिया है। वैसे तो यह तस्वीर मार्च 2024 की बताई जा रही है। इसमें 2029 में एक साथ चुनाव का लक्ष्य रखा गया है। उसके आधार पर विधानसभाओं और नगरीय निकाय के चुनाव का मॉडल दिया गया है।
पैनल से 5 सुझाव दिए हैं। इसके मुताबिक़, सभी प्रदेश अपनी विधानसभाओं का कार्यकाल अगले लोकसभा चुनाव यानी 2029 तक बढ़ाए जाएं। हंग असेंबली यानि किसी को बहुमत नहीं मिलने की दशा में, नो कॉन्फिडेंस मोशन होने पर बाकी 5 साल के कार्यकाल के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं। पहले चरण में लोकसभा-विधानसभा चुनाव एकसाथ कराए जा सकते हैं, उसके बाद दूसरे चरण में 100 दिनों के भीतर लोकल बॉडी के इलेक्शन कराए जा सकते हैं। यदि हम बात करें मध्य प्रदेश की छत्तीसगढ़ की तो यहां अभी नगरीय निकाय के चुनाव अब होने वाले हैं जिसकी तैयारी बहुत जोर से चल रही है। चुनाव आयोग लोकसभा, विधानसभा और नगरीय निकाय के चुनाव राज्य चुनाव अधिकारियों के परामर्श से सिंगल वोटर लिस्ट और वोटर आई कार्ड बनाएगा। कोविंद पैनल ने एक साथ चुनाव कराने के लिए उपकरणों, जनशक्ति और सुरक्षा बलों की अत्याधुनिक योजना की सिफारिश की है। कोविंद कमेटी ने 7 देशों की चुनावी प्रक्रिया पर गहन अनुसंधान करके रिपोर्ट तैयार की है। अभी स्थिति ऐसी है कि वन नेशन-वन इलेक्शन लागू करने के लिए कई प्रदेशों की विधानसभाओं का कार्यकाल घटाना पड़ेगा। जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव 2023 के आखिर में हुए हैं, उनका कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है। विधि आयोग के प्रस्ताव पर सभी दल सहमत हुए तो यह 2029 से ही लागू होगा। साथ ही दिसंबर 2026 तक 25 राज्यों में विधानसभा चुनाव कराने होंगे।
2019 के लोकसभा चुनाव के बाद अब तक कई राज्यों में विधानसभा के चुनाव हो चुके हैं। वर्तमान में हर साल करीब 5-7 राज्यों के विधानसभा चुनाव होते हैं। बार-बार चुनाव होने की वजह से सार्वजनिक जीवन बाधित होता है। 2015 में कार्मिक, सार्वजनिक शिकायत, कानून और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति ने कहा था कि बार-बार चुनाव होने से सामान्य सार्वजनिक जीवन में व्यवधान होता है और जरूरी सेवाओं के कामकाज पर असर पड़ता है। राजनीतिक रैलियां करने से सड़क यातायात बाधित होता है और ध्वनि प्रदूषण भी होता है। चुनाव आयोग की ओर से आदर्श आचार संहिता लागू होने के कारण विकास कार्यों और शासन पर असर डालते हैं। बार-बार चुनाव होने के कारण सरकार और अन्य हितधारकों को बड़े पैमाने पर खर्च करना पड़ता है। काफी लंबे समय तक सुरक्षा बलों की तैनाती करनी पड़ती है।
अब यह तो था इसका पॉजिटिव पक्ष पर जो वन नेशन वन इलेक्शन का विरोध करते हैं वह एक साथ चुनाव कराने के विचार को राजनीति से प्रेरित मानते हैं। उनको लगता है कि जो सत्ताधारी दल है, एक साथ चुनाव कराने से मतदाताओं का व्यवहार इस रूप में प्रभावित हो सकता है कि वे राज्य के चुनाव के लिए भी राष्ट्रीय मुद्दों पर मतदान करने लगेंगे। इससे संभावना है कि बड़ी राष्ट्रीय पार्टियां लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनावों में जीत हासिल करें। इससे क्षेत्रीय पार्टियों के हाशिए पर चले जाने की आशंका है, जो अक्सर स्थानीय हितों का प्रतिनिधित्व करती हैं। कुछ आलोचकों का मानना है कि प्रत्येक 5 साल में एक से ज्यादा बार मतदाताओं का सामना करने से नेताओं की जवाबदेही बढ़ती है और वे सतर्क रहते हैं। कुछ राजनीतिक दलों और 2015 में कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति ने एक बार में कराए जाने वाले चुनाव का समर्थन किया था। अभी हाल में ही मंत्रिमंडल ने कोविद कमेटी के प्रस्ताव को मान्य किया तो नेता प्रतिपक्ष खडग़े समेत और बाकी विपक्षी 15 दलों ने इसका विरोध किया।
आपने देखा कि एक नेशन एक इलेक्शन वह इतनी सरल प्रक्रिया नहीं है, जितना कि इसे समझा जा रहा है। यह बात अलग है कि मोदी जी तीसरे कार्यकाल में जिन लोगों के साथ मिलकर सरकार चला रहे हैं। उनका समर्थन एक नेशन एक चुनाव के लिए है। मगर, बाकी विपक्षी दल इसका विरोध कर रहे हैं। अधिकांश राज्यों में भाजपा की सरकार है। कुछ ही राज्यों में गैर भाजपा सरकार है। अब कानून के लिए राज्य की विधानसभाओं से भी सहमति अनिवार्य है। इसके बावजूद लोकसभा और राज्यसभा में सत्तारूढ़ भाजपा बहुमत में है, वहां तो प्रस्ताव पास हो जाएंगे। कुछ राज्यों में केंद्र सरकार को शायद नए सिरे से बात करने की जरूरत हो। आने वाले समय में जिस तरह से महिला आरक्षण बिल पास हुआ और लागू हुआ तो हो सकता है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव में 33फीसदी महिलाओं की भागीदारी मिलेगी। चुनाव एक साथ होने से निश्चित रूप से भाजपा और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी को लाभ होगा, क्योंकि इनके सबसे ज्यादा सदस्य हैं और सक्रिय है, पर क्षेत्रीय दलों, जिनका परिचय किसी एक क्षेत्र में है उनको मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। विपक्षी दल सीपीएम कह रही है कि यह व्यावहारिक नहीं है। कांग्रेस भी इसे अव्यावहारिक बताकर खारिज कर रही है। सीपीआई भी ऐसी ही बात कर रही है। यानी बहुत से दल इसके खिलाफ है। इसके बावजूद बहुत सारे लोग सरकार के साथ हैं। एक नेशन एक इलेक्शन के लिए सर्वे किया गया था, उसमें भी 80फीसदी लोगों ने समर्थन किया था। सरकार चाहती है कि एक देश है तो एक कानून रहे, एक देश है तो एक इलेक्शन रहे, एक देश है तो बहुत सारी चीज एक सी रहे। अब देखना होगा कि आने वाले दिनों में इस पर राजनीति कितनी गरमाती है और कौन-कौन सी चीज एक में एक में होती है। हमारा आपसी एकता और भाईचारा, मित्रता को ध्यान में रखकर और क्षेत्रीय राजनीति को ध्यान में रखकर देश किस तरह से एक नेशन और एक इलेक्शन की तरफ बढ़ता है, और उसका स्वागत करता है।

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