Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – आतंकवाद और नक्सलवाद के खात्में की अंतिम लड़ाई

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र
-सुभाष मिश्र
देश के आंतरिक और सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति बहाली करने के उद्देश्य से इस समय एक साथ बड़ी कार्रवाई चल रही है। एक ओर कश्मीर के पहलगाम में हुई आतंकवादी घटना को लेकर पाकिस्तान के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करते हुए देश के भीतर छिपे आतंकवादियों के सफाये की कार्रवाई चल रही है। वहीं मार्च 2026 तक देश से नक्सलवाद के खात्में के लिए छत्तीसगढ़ के बीजापुर क्षेत्र में नक्सलियों के सबसे अभेघ गढ़ में 10 हजार सैनिकों ने घुसकर  नक्सलियों को नेस्तानाबूद करने के लिए कमर कस ली है। अभी तक पांच नक्सलियों को मार गिराया है। जिस तरह से आतंकी घटना के लिए सर्वदलीय बैठक करके एक राय बनी है। उसी तरह से नक्सल प्रभावित राज्यों में भी सर्वदलीय बैठक बुलाकर नक्सलगढ़ के समूचे खात्मा की एक बात होनी चाहिए। क्योंकि इस लड़ाई में कानून व्यवस्था के साथ सामाजिक-आर्थिक पहलू भी है। आतंकवाद-नक्सलवाद का खात्मा हर कोई चाहता है और यह भी देखना होगा की कहीं कार्रवाई के नाम पर निर्दोष लोगों के खिलाफ कार्रवाई न हो।
24 अप्रैल 2025 से छत्तीसगढ़ के बीजापुर में अब तक का सबसे बड़ा नक्सल-विरोधी ऑपरेशन चलाया जा रहा है, जिसमें छत्तीसगढ़, तेलंगाना और महाराष्ट्र के 10,000 से अधिक सुरक्षाकर्मी हिस्सा ले रहे हैं। इस ऑपरेशन में कम से कम 5 नक्सलियों को मार गिराया गया, और यह 48 घंटे से अधिक समय तक आपरेशन जारी है। ऑपरेशन का उद्देश्य शीर्ष नक्सली नेताओं जैसे हिदमा और देवा को निशाना बनाना था, जो बस्तर क्षेत्र में सक्रिय हैं। इसमें डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (डीआरजी), बस्तर फाइटर्स, स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ), सीआरपीएफ, और कोबरा (कोबरा) जैसे बल शामिल है।
नक्सलवाद के खिलाफ हालिया आपरेशन में 29 मार्च 2025 को सुकमा-दंतेवाड़ा सीमा पर 16 नक्सलियों को मार गिराया गया, जिसमें नेशनल पार्क एरिया कमेटी के सदस्य शामिल थे। 9 फरवरी 2025 को बीजापुर में 31 नक्सलियों को ढेर किया गया, जिसमें दो सुरक्षाकर्मी भी शहीद हुए। 23 जनवरी 2025 को गरियाबंद में 16 नक्सलियों को मार गिराया गया, जिसमें एक करोड़ रुपये के इनामी नक्सली जयराम उर्फ चलपति शामिल थे। लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए सबसे बड़ा खतरा समझे जाने वाले नक्सलवाद के चलते पिछले चार दशक में इसने 17,000 लोगों की जान गई। 2024 में बीजेपी सरकार के सत्ता में आने के बाद (दिसंबर 2023 से), छत्तीसगढ़ में 287 नक्सलियों को मार गिराया गया, 1,000 गिरफ्तार हुए, और 837 ने आत्मसमर्पण किया। 14 शीर्ष नक्सली नेता भी मारे गए।
पिछले एक दशक की तुलना में सुरक्षाकर्मियों की मृत्यु में 73फीसदी और नागरिकों की मृत्यु में 70 फीसदी की कमी आई। पहली बार चार दशकों में नक्सल हिंसा से मरने वालों की संख्या 100 से कम रही। नक्सलवाद का प्रभाव 107 जिलों (2010) से घटकर 42 जिलों तक सीमित हो गया है, और छत्तीसगढ़ में केवल दो जिले अब प्रभावित हैं। 17 अप्रैल 2025 को शाह ने कहा कि सीआरपीएफ ने नक्सलियों को पशुपतिनाथ से तिरुपति तक फैले लाल गलियारे के सपने को केवल चार जिलों तक सीमित कर दिया, और नक्सल हिंसा में 70फीसदी की कमी आई है। सीआरपीएफ, कोबरा, और छत्तीसगढ़ पुलिस की संयुक्त कार्रवाइयों ने नक्सलियों के प्रभाव को बस्तर के कुछ क्षेत्रों तक सीमित कर दिया है। 46 नए सुरक्षा शिविर स्थापित किए गए हैं। आत्मसमर्पण नीति के तहत छत्तीसगढ़ की पुनर्वास नीति ने 837 नक्सलियों को मुख्यधारा में लौटने के लिए प्रेरित किया। बस्तर में 9,000 से अधिक घरों का निर्माण, सड़कों और मोबाइल टावरों का विस्तार, और शिक्षा/रोजगार के अवसर नक्सलवाद के मूल कारणों (गरीबी, अविकास) को संबोधित कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ की सरकार पुर्नवास के साथ सख्ती का रूख भी अपनाएं हुए है।
नक्सलवाद के खिलाफ जारी लड़ाई में जहां एक ओर नक्सली शांति वार्ता की बात कर रहे हैं, वहीं नक्सलियों का प्रतिरोध भी समय-समय पर दिखता है। 7 जनवरी 2025 को बीजापुर में हुए आईईडी हमले में 8 सुरक्षाकर्मी और एक नागरिक मारे गए, जो दर्शाता है कि नक्सली हताशा में बड़े हमले कर रहे हैं। नक्सली आईईडी का बड़े पैमाने पर उपयोग कर रहे हैं, जो सुरक्षाकर्मियों के लिए जोखिम बढ़ाता है। विशेषज्ञ बी.के. पोंवार ने इसे नक्सलियों का सबसे शक्तिशाली हथियार बताया है। नक्सलवाद के पूरी तरह खात्मा का मतलब हर नक्सली की गिरफ्तारी, आत्मसमर्पण, या मुठभेड़ हो सकता है, जो चुनौतीपूर्ण है। छोटे-मोटे हमले या भूमिगत गतिविधियाँ जारी रह सकती हैं, खासकर अगर सामाजिक-आर्थिक मुद्दे अनसुलझे रहते हैं।
नक्सलवाद को सैन्य और सामाजिक-आर्थिक दोनों मोर्चों पर खत्म करना। यह छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों में शांति और विकास की दिशा में एक बड़ा कदम है, लेकिन इसकी सफलता कार्यान्वयन की गति और स्थानीय समुदायों के विश्वास पर निर्भर है। इसके लिए बस्तर के लोगों को भी विश्वास में लेना होगा।
चूंकि नक्सलवाद सामाजिक-आर्थिक असमानता और आदिवासी शोषण से जुड़ा है। जब तक ये मुद्दे पूरी तरह हल नहीं होते, छोटे स्तर की गतिविधियाँ बनी रह सकती हैं। मार्च 2026 तक संगठित नक्सलवाद को समाप्त करना संभव है, लेकिन पूर्ण खात्मा चुनौतीपूर्ण है। छोटे हमले या वैचारिक अवशेष बने रह सकते हैं। सरकार को सैन्य कार्रवाई के साथ-साथ आदिवासी समुदायों का विश्वास जीतने और दीर्घकालिक विकास पर ध्यान देना होगा।
छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के खात्मे की मंशा और कार्रवाइयाँ सरकार की दृढ़ प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं। बीजापुर जैसे बड़े ऑपरेशन, आत्मसमर्पण नीति, और विकास योजनाएँ मार्च 2026 तक संगठित नक्सलवाद को समाप्त करने की दिशा में मजबूत कदम हैं। लेकिन आईईडी हमले, मानवाधिकार चिंताएँ, और आदिवासी समुदायों का विश्वास जीतना महत्वपूर्ण चुनौतियां हैं।

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