0 एशियन न्यूज का खास कार्यक्रम संतुलन का समीकरण का आयोजन
0 ओटीटी बनाम सिनेमा विषय पर परिचर्चा का आयोजन
रायपुर। भारत में सिनेमा का एक लंबा इतिहास रहा है लेकिन इन दिनों सिनेमा जगत में कई बदलाव देखे जा रहे हैं। भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में सिनेमा जगत का स्वरूप और चरित्र बड़ी तेजी से बदल रहा है। देश-दुनिया में नए नए ओटीटी प्लेटफार्म के बाजार में आ जाने से भारतीय सिनेमा उद्योग में भी खासा बदलाव देखा जा सकता है। जिस तरह से ओटीटी प्लेटफार्म्स मनोरंजन बाजार पर अपना एकाधिकार कायम करते जा रहे है, ऐसे में मुख्यधारा के सिनेमा उद्योग का चिंतित होना लाजिमी ही है। ऐसे में एशियन न्यूज के खास कार्यक्रम संतुलन का समीकरण में आज ओटीटी बनाम सिनेमा पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। जिसमें छत्तीसगढ़ के जाने-माने फिल्म मेकर और कलाकार शामिल हुए। वहीं देशभर के नामचीन कलाकार, निर्देशक ने भी अपनी राय रखी।
इस अवसर पर एशियन न्यूज के प्रधान संपादक सुभाष मिश्र ने कहा कि 100 साल से अधिक का सफर तय कर चुका है हिंदुस्तानी सिनेमा साल-दर-साल बढ़ता चला गया। सिनेमा ने लोगों के जीवन में बदलाव लाया। लड़कियां अदाकारा के हाव-स्वभाव तो लड़के हीरो की तरह रहन-सहन को अपनाने लगे फिर आया दूरदर्शन यानी टीवी। चित्रहार के ज़रिए गाना सुनने की शुरुआत हुई। हर हफ़्ते दूरदर्शन में फिल्में आने लगीं और ये सिलसिला चलता रहा। जिस तरह ओटीटी का विस्तार हुआ और वह घर-घर पहुँचा उस तुलना में सिनेमाघर नहीं बने। इंटरनेट, मोबाइल, लैपटॉप और स्मार्ट टीवी आने के बाद तो अब मनोरंजन की दुनिया ही बदल गई। ओटीटी का बोल्ड और विविधता से भरा कंटेंट सिनेमा पर भारी पड़ रहा है। सिनेमा व्यवसाय आर्थिक तंगी की ओर बढ़ रहा है जबकि ओटीटी चॉइस कंटेंट हो, फ्री में मल्टीपल ऑपशन मिलना हो या एक क्लिक में घर बैठे इंंटरटेनमेंट मुहैया कराना हो। कोरोना ने इसको बूस्ट किया। अब ऐसे हालात में जब सिनेमा अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते-लड़ते डूबती नैया को बचाते दिख रहा है और ओटीटी अब फ्री कंटेंट से सब्सक्रिप्शन आधारित एंटरटेनमेंट की ओर बढ़ रहा है। ऐसे में कैसे स्थापित होगा दोनों के बीच संतुलन इसी को जानने के लिए संतुलन का समीकरण कार्यक्रम आयोजित किया गया है। जहां बैलेंस इक्वेशन तलाशने की कोशिश की गई।
छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध फिल्म निर्माता और निर्देशक सतीश जैन ने कहा कि मुझे नहीं लगता है कि ओटीटी का कोई नुकसान है। उन्होंने कहा कि जब कोई फिल्म रिलीज होती है तो उसके बाद ओटीटी प्लेटफॉर्म पर भी डाल सकते हैं। इससे फिल्ममेकर के पास कमाई करने का ओर भी संभावनाएं बढ़ जाती है। लेकिन हमारे साथ कई तरह की परेशानी होती है क्योंकि छत्तीसगढ़ी फिल्मों के लिए किसी तरह की ओटीटी प्लेटफॉर्म नहीं है। ओटीटी प्लेटफॉर्म आने के बाद सिनेमा का नुकसान है यह थोड़ा बहुत हो सकता है। क्योंकि आजकल लोग घर बैठे फिल्में देख रहे हैं। पहले वीकेंड में संडे हो या सैटरडे बाहर जाते थे और फिल्म देखते थे, लेकिन अभी घर बैठे लोग फिल्में देख रहे हैं। पहले जब भी बाहर निकलते थे तो सिनेमा एक अच्छा ऑप्शन होता था, लेकिन अभी ऐसा बहुत कम हो रहा है।
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उन्होंने कहा कि ओटीटी आने के बाद कई ऐसी फिल्में आई जो करोड़ों की कमाई की है। इससे साफ जाहिर होता है कि अच्छी फिल्म हो तो ओटीटी के जमाने में भी अच्छी कमाई की जा सकती है। अगर कंटेंट अच्छा हो तो आज भी सिनेमा से अच्छी खासी कमाई होती है लेकिन जिस सिनेमा के कंटेंट अच्छे ना हो वह पिट जाती है।
छत्तीसगढ़ी सिनेमा के दर्शक हो रहे हैं चेंज
सतीश जैन ने कहा कि पहले छत्तीसगढ़ी फिल्म के दर्शक बदले हैं। पहले छत्तीसगढ़ के लोग ही फिल्म देखते थे लेकिन आज गैर छत्तीसगढ़ी भाषी लोग भी फिल्म देख रहे हैं। वहीं पहले मीडियम क्लास के लोग फिल्म देखने आते थे, लेकिन आज मल्टीप्लेक्स में एलिट वर्ग भी छत्तीसगढ़ी फिल्मों को बैठकर देख रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारे ऐसे कई फिल्म है जिसे देश भर के लोगों ने देखा। इससे साफ जाहिर होता है कि लोग अच्छी फिल्में देखते हैं।
छत्तीसगढ़ की फिल्म नीति पर सतीश जैन ने कहा कि सरकार ने हमारे लिए कभी कुछ किया नहीं और आगे हम उम्मीद भी नहीं कर सकते हैं। हम अपनी मेहनत से फिल्में बनाते हैं। उसी के बदौलत फिल्में चलती है। वर्तमान में शासन की तरफ से किसी प्रकार की कोई मदद नहीं मिली है। सरकार सिनेमा हॉल बनाने की बात तो कर रही है, लेकिन अभी तक नहीं बना पाई है। फिल्म निर्देशक मनोज वर्मा ने कहा कि मुझे ऐसा लगता है कि जितनी भी टॉकीज है और मल्टीप्लेक्स है ये कल्चर हैं अभी फिल्म इंपॉर्टेंट नहीं है पूरा कलर इंपॉर्टेंट है। लोग वहां सिर्फ लोग फिल्म देखने के लिए नहीं जा रहे हैं। अभी लोग कल्चर को एंजॉय करने जा रहे हैं। आगे उन्होंने कहा कि ऐसा पहले सिंगल मल्टीप्लेक्स में जब भी जाते थे तो इस समय लोग पूरी तैयारी के साथ जाते थे यानी कि एक उत्सव की तरह होती थी। उन्होंने कहा कि ये कल्चर अलग है जिसको कोई हिला नहीं सकता। ओटीटी आने के बाद अभी यहां पर सामुदायिकता और व्यक्तिगत ये दो अलग-अलग चीजों में बातें तो सामुदायिक रूप से फिल्म देखने जाते हैं तो थिएटर में जाते हैं। अगर व्यक्तिगत रूप से हम कोई फिल्म देखते हैं जहां कुछ भी कंटेंट हम देख सकते हैं। वह फैमिली के साथ देखने लायक नहीं होता है, ऐसी जगह पर ओटीटी प्लेटफार्म का उपयोग करते हैं। वर्तमान में लोग कई तरीके के कंटेंट देखना चाहते है, वह ओटीपी पर उपलब्ध है। उन्होंने कहा कि ओटीटी आने के बाद सिनेमा का बहुत ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है। ओटीटी पर एक्स्ट्रा इनकम हो रही है। वहीं ओटीटी प्लेटफार्म निर्देशकों और डायरेक्टर को और भी फायदा पहुंचा रही है। वहीं ऐसे लोग जो सिनेमा घरों में फिल्म नहीं देख पा रहे हैं वह एक दो महीने के बाद इस कंटेंट को ओटीटी पर बैठकर देख रहे हैं। वहां पर वह घर में सामूहिक रूप से वह फिल्म लगाकर देख पा रहे हैं। लेकिन सिनेमा जो है वह बड़े पर्दे पर और थिएटर में देखने का एक अलग ही मजा है। क्योंकि उस समय सिनेमा देखने की दृष्टि से वह देखा जा रहा होता है। वही चीज जब छोटे से स्क्रीन पर उसी चीज को देख रहे होते हैं तो माहौल नहीं आ पाता है।
ओटीटी के लिए बहुत से लोग बना रहे हैं फिल्म
मनोज वर्मा ने कहा कि बिल्कुल ऐसा हो रहा है कि लोग फिल्म तो बना रहे और ओटीटी पर अपलोड कर रहे हैं। ऐसा इसलिए होता है कि क्योंकि ओटीटी प्लेटफार्म पर फिल्म निर्माता अपने फिल्मों को बेच देते हैं। ओटीटी फिल्मों को पहले ही खरीद लिया जाता है। फिल्मों को पीटने यह फिर फ्लाप होने की कोई गुंजाइश नहीं रहती है।
छत्तीसगढ़ फिल्म एक्टर क्रांति दीक्षित ने कहा कि फिल्म आर्टिस्ट के रुप में हमारे लिए ओटीटी प्लेटफॉर्म ही बहुत बड़ा है। हम तो फिल्मों में काम कर रहे थे। टीवी में काम कर रहे थे। लेकिन अब ओटीटी के प्लेटफार्म के जरिए मोबाइल तक भी पहुंच गए हैं। यह एक आर्टिस्ट के लिए भी अच्छा है और फिल्म मेकर के लिए भी अच्छा है। नया प्लेटफार्म मिला है। मुझे व्यक्तिगत ऐसा लगता है की ओटीटी ने ज्यादा नुकसान सिनेमा का नहीं किया है, क्योंकि सिनेमा एक एक्सपीरियंस होता है। ओटीटी ने टीवी इंडस्ट्री का नुकसान किया है, क्योंकि आजकल लोग टीवी पर कम समय दे रहे हैं। वही ओटीटी प्लेटफॉर्म पर ज्यादा दे रहे हैं तो ऐसे में कहा जा सकता है कि एक आर्टिस्ट या फिल्म मेकर को ओटीटी आने के बाद प्लेटफार्म मिला है। जहां वह अपने वैसे दशकों तक पहुंच सके जो पहले टीवी या फिल्म से बहुत दूर था।
फिल्म निर्देशक भारती वर्मा ने कहा कि अगर मेरा माने तो मुझे थियेटर या सिनेमा घर जाना ज्यादा पसंद नहीं है। क्योंकि हमें एक कंफर्ट जोन चाहिए। इसलिए हमें घर में रिलैक्स होकर फिल्म देखना पसंद हैं। इसके साथ कुछ काम भी कर लेते हैं। ऐसे में देखे तो ओटीटी प्लेटफॉर्म लोगों के लिए ज्यादा फायदा है। वहीं अगर कमर्शियल रूप से देखें तो ओटीटी आने के बाद कई फायदे हुए हैं। ओटीटी आने से ओर भी हमारे लिए प्लेटफार्म मुहैया हो गया है जहां हम अपने चीजों को परोसते हैं। वहीं सिनेमा की बात करें तो आज कई सिनेमा हमे ओटीटी प्लेटफॉर्म पर मिल जाते हैं। जिसे लोग बहुत आसानी से देख सकते हैं।