Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – संविधान बचाओ यात्रा और राष्ट्रीय बहस

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र
भारतीय संविधान, जिसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया, देश का सर्वोच्च दस्तावेज है जो न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व जैसे मूल्यों पर आधारित है। हाल ही में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा शुरू की गई ‘संविधान बचाओ यात्राÓ ने इन मूल्यों को जन-जन तक पहुंचाने और संविधान को कथित खतरों से बचाने का संदेश देकर एक नई राजनीतिक बहस छेड़ दी है। दूसरी ओर, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इसे महज एक राजनीतिक नौटंकी करार देते हुए कांग्रेस पर संविधान के नाम पर जनता को गुमराह करने का आरोप लगाया है।
कांग्रेस ने ‘संविधान बचाओ यात्राÓ को 26 जनवरी 2025 से शुरू करने की घोषणा की है जो एक साल तक चलने वाला राष्ट्रव्यापी अभियान है। यह यात्रा डॉ. भीमराव आंबेडकर की जन्मस्थली महू से शुरू होकर विभिन्न स्तरों राज्य, जिला और विधानसभा—पर रैलियों और जनसंपर्क के माध्यम से संचालित हो रही है। कांग्रेस का कहना है कि केंद्र सरकार की नीतियां, जैसे संवैधानिक संस्थाओं (चुनाव आयोग, न्यायपालिका, मीडिया) की स्वायत्तता पर कथित हमले, सामाजिक ध्रुवीकरण और आर्थिक असमानता, संविधान के मूल्यों को कमजोर कर रही हैं।
इस अभियान का लक्ष्य है जनता को संविधान के सिद्धांतों—सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, समानता, धर्मनिरपेक्षता और बंधुत्व—के प्रति जागरूक करना। विशेष रूप से दलित, आदिवासी, पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यक समुदायों को जोडऩे की कोशिश की जा रही है, जो ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर रहे हैं। भारत जोड़ो यात्रा की सफलता से प्रेरित यह अभियान कांग्रेस की चुनावी रणनीति का भी हिस्सा है, खासकर 2025 के बिहार और 2026 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के मद्देनजर।
भारतीय संविधान केवल एक कानूनी ढांचा नहीं, बल्कि भारत की लोकतांत्रिक और समावेशी पहचान का आधार है। इसकी प्रस्तावना में उल्लेखित मूल्य—न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व—देश की विविधता में एकता को मजबूत करते हैं। अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता), अनुच्छेद 19 (वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 25-28 (धार्मिक स्वतंत्रता) जैसे प्रावधान इन सिद्धांतों को लागू करते हैं। नीति निदेशक तत्व (अनुच्छेद 36-51) सामाजिक और आर्थिक कल्याण के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं, जबकि धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र भारत को एक जीवंत गणतंत्र बनाते हैं। आज के दौर में ये मूल्य और भी प्रासंगिक हैं। बढ़ती आर्थिक असमानता, सामाजिक ध्रुवीकरण और तकनीकी चुनौतियां (जैसे फेक न्यूज और डिजिटल निगरानी) संविधान के सिद्धांतों को नई चुनौतियां पेश कर रही हैं। कांग्रेस का दावा है कि उसकी यात्रा इन मूल्यों को पुनर्जनन करने और जनता को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने का प्रयास है।
भाजपा ने कांग्रेस की यात्रा को ‘संविधान के नाम पर झूठ और बहकावेÓ का प्रयास करार दिया है। पार्टी का कहना है कि संविधान को कोई खतरा नहीं है और कांग्रेस इसका उपयोग केवल राजनीतिक लाभ के लिए कर रही है। भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने 26 नवंबर 2024 को संविधान दिवस पर कांग्रेस पर आपातकाल (1975-77) लागू करने, 90 बार निर्वाचित सरकारों को बर्खास्त करने और न्यायपालिका को नियंत्रित करने की कोशिश जैसे ऐतिहासिक ‘अपराधोंÓ का आरोप लगाया। नड्डा ने यह भी दावा किया कि कांग्रेस ने डॉ. आंबेडकर का अपमान किया, जबकि भाजपा ने उन्हें भारत रत्न और पंच तीर्थों के विकास के माध्यम से सम्मान दिया।
भाजपा का तर्क है कि वह संविधान की सच्ची रक्षक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मान्यता दी, और उनकी सरकार ने संवैधानिक मूल्यों को लागू करने के लिए कई कदम उठाए। भाजपा ने कांग्रेस की यात्रा को ‘परिवार बचाओ यात्राÓ जैसे तंज के साथ निशाना बनाया और अपनी ‘पंच निष्ठाÓ को संविधान की प्रस्तावना का प्रतीक बताया, जो लिंग, जाति या स्थान के आधार पर भेदभाव को खारिज करती है।
कांग्रेस और भाजपा के बीच यह तीखी बहस संविधान को लेकर गहरे राजनीतिक ध्रुवीकरण को दर्शाती है। कांग्रेस का अभियान संवैधानिक मूल्यों को जनता तक ले जाने और सामाजिक न्याय के लिए एक आह्वान के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। यह विशेष रूप से दलित और पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को आकर्षित करने की रणनीति है जो बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में निर्णायक हो सकते हैं। दूसरी ओर भाजपा इसे एक नकारात्मक अभियान के रूप में देखती है, जो भय और भ्रम फैलाने का प्रयास है। भाजपा का जोर इस बात पर है कि वह संविधान का सम्मान करती है और उसने इसके मूल्यों को लागू करने के लिए ठोस कदम उठाए हैं।
हालांकि, दोनों दलों के दावों में कुछ कमियां भी हैं। कांग्रेस का ‘संविधान खतरे में ईएंडइम्प्ट्स (अनुच्छेद 19) का उपयोग जनता को भय दिखाने के लिए किया जा सकता है, लेकिन ठोस नीतिगत विकल्पों का अभाव इसकी विश्वसनीयता को कमजोर कर सकता है। दूसरी ओर, भाजपा की सरकार पर संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सवाल उठाए जा रहे हैं, जिन्हें वह स्पष्ट रूप से खारिज करती है। दोनों दलों के बीच यह आरोप-प्रत्यारोप संविधान के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को लेकर जनता में संदेह पैदा कर सकता है।
‘संविधान बचाओ यात्राÓ और इस पर भाजपा की प्रतिक्रिया ने संविधान के मूल्यों पर एक राष्ट्रीय बहस को जन्म दिया है जो स्वागतयोग्य है। यह जरूरी है कि यह बहस आरोप-प्रत्यारोप से आगे बढ़कर संवैधानिक सिद्धांतों को मजबूत करने और सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का समाधान करने की दिशा में केंद्रित हो। कांग्रेस को अपने अभियान को जटिल कानूनी भाषा से निकालकर जनता के लिए सरल और प्रासंगिक बनाना होगा, जबकि भाजपा को संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उठ रहे सवालों का जवाब देना होगा।
संविधान भारत की आत्मा है और इसकी रक्षा दोनों दलों की साझा जिम्मेदारी है। यदि यह अभियान और इसकी बहस संवैधानिक मूल्यों को जनता के बीच गहराई से स्थापित कर पाती है तो यह भारतीय लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है। अंतत: इस बहस का परिणाम इस बात पर निर्भर करेगा कि जनता इन दावों को कैसे लेती है और क्या यह देश में सकारात्मक बदलाव लाने में सक्षम हो पाता है।

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