-सुभाष मिश्र
विश्व स्तरीय आस्था का महाकुंभ प्रयागराज में संपन्न हो गया है। चूँकि कुंभ हर 12 साल में चार तीर्थ स्थानों प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में होता है। प्रयागराज का कुंभ ऐतिहासिक रहा। डेढ़ माह तक चले इस कुंभ में 66 करोड़ 21 लाख से ज़्यादा श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई । 2027 में महाराष्ट्र के नासिक और 2028 में मध्यप्रदेश के उज्जैन तथा 2032 में हरिद्वार में कुंभ होना है। प्रयागराज के अबके कुंभ और उसके पहले हुए कुंभ और बड़े धार्मिक आयोजनों से सीखकर, सबक़ लेने की ज़रूरत है। जब हम धार्मिक टूरिज़्म को बढ़ावा देने इसके ज़रिए देश में पूँजी निवेश की बात करते हैं तो हमें दुनिया भर में होने वाले ओलंपिक और बड़े आयोजनों में उपलब्ध कराई जाने वाली बुनियादी सुविधाओं और क्राउड (भीड़) मैनेजमेंट को व्यवस्थित करना चाहिए।
हम कहना चाहते हैं कि अगले महाकुंभ के लिए आज से तैयारी शुरू कर दीजिए सरकार। प्रयागराज में संपन्न इस महाकुंभ से हमने क्या-क्या सबक हासिल किये इस पर भी गहन विचार विमर्श होकर अभी से व्यापक रणनीति, रोडमैप बनना चाहिए। सड़क मार्ग में जो जाम हुआ, उससे हम कैसे निजात पा सकते है? सार्वजनिक क्षेत्र जिसमें विशेषकर रेल्वे, हवाई जहाज़ और सड़क परिवहन शमिल है उसकी सक्रियता कैसे बढ़ाई जाये। जो अव्यवस्थाएँ मेले के दौरान हुई वह रिपीट ना हो। गंगा, यमुना का जल जिस तरह से प्रदूषित हुआ और संगम प्रभावित हुआ वह गोदावरी और क्षिप्रा नदी में ना हो, क्योंकि ये नदियाँ गंगा-यमुना की तरह सदानीरा नहीं हैं। मेले में और रेलवे स्टेशनो पर अभी और पहले जो भगदड़ हुई और लोगों की जान गई वह दृश्य रिपीट ना हो। ऐसी बहुत सी बातें हुईं जिन पर गहन विचार-विमर्श की ज़रूरत है।
प्रयागराज महाकुंभ के समापन के बाद उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मेले की सफ़ाई में लगे सफ़ाई कर्मियों के साथ भोजन कर उनका वेतन 16000 रूपये मासिक करने और दस हज़ार रूपये बोनस देने की घोषणा की। उन्होंने महाकुंभ को सफल बताते हुए इसकी आलोचना करने वालों का जि़क्र करते हुए कहा कि कुछ लोग दूरबीन लेकर इसमें कमियाँ खोजते रहे, दुष्प्रचार करते रहे, बदनाम करने और अपमानित करने का काम करते रहे।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने ब्लॉग में महाकुंभ प्रबंधन की तारीफ़ करते हुए इसे विश्व स्तरीय आयोजन बताया। उन्होंने लिखा है की पूरी दुनिया के लोग हैरान हैं इस अभूतपूर्व आयोजन से। उन्होंने पहले ऐसा आयोजन नहीं देखा। अमेरिका की आबादी से दुगनी आबादी ने यहां स्नान किया। उन्होंने प्रयागराज कुंभ को एकता का महायज्ञ बताया।
प्रयागराज महाकुंभ-2025 ने कई ऐतिहासिक उपलब्धियां हासिल की हैं और यह दुनिया के सबसे बड़े आयोजनों में से एक बन गया है। इस आयोजन और अन्य अंतरराष्ट्रीय मेगा-इवेंट्स (जैसे ओलंपिक, हज यात्रा, टोक्यो एक्सपो) से सीख लेकर, 2027 के नासिक-त्र्यंबकेश्वर सिंहस्थ और 2028 के उज्जैन सिंहस्थ कुंभ और 2032 में हरिद्वार कुंभ को और भी प्रभावी और सुव्यवस्थित बनाया जा सकता है।
कुंभ और उस जैसे बड़े आयोजनों को बेहतर ढंग करने के लिए जो ज़रूरी पहल की जानी चाहिए उनमें इन्फ्रास्ट्रक्चर और लॉजिस्टिक्स को अपग्रेड करना। पेयजल और स्वच्छता प्रबंधनष टेक्नोलॉजी और डिजिटल इनोवेशन।आपातकालीन सेवाओं और स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार। सांस्कृतिक और धार्मिक पर्यटन का विस्तार।आर्थिक योजना और वित्तीय पारदर्शिता।
प्रयागराज कुंभ 2025 की ऐतिहासिक सफलता से सीख लेते हुए, 2027 नासिक-त्र्यंबकेश्वर और 2028 उज्जैन सिंहस्थ को स्मार्ट, सुरक्षित, और पर्यावरण-सम्मत बनाया जा सकता है। वैश्विक आयोजनों की सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाकर, यह आयोजन भारत की आध्यात्मिक शक्ति को और अधिक मजबूती से स्थापित कर सकते हैं।
अगर इन रणनीतियों को लागू किया जाए, तो आने वाले कुंभ मेलों को न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से भी अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है। आयोजन की रणनीति तैयार करने के लिए समाज के विभिन्न वर्गों जैसे कॉरपोरेट्स,मीडिया,व्यापारी,स्थानीय समुदाय, डॉक्टर्स और आध्यात्मिक संगठनों को शामिल कर निर्णय लिया जाए। केवल सरकार और ब्यूरोक्रेसी निर्णय न ले।
प्रयागराज के स्थानीय लोगों का कहना है कि कुंभ मेले के 45 दिन हमने जैसे किसी जेल में गुजारे हैं। यह बहुत बड़ी यातना थी कि शहर में कहीं भी आसानी से आना-जाना संभव नहीं था। बाहर से आए लोगों की भीड़ शहर के भीतर भी इस कदर थी कि जरूरी कामों के लिए जाने में भी काफी समय लग रहा था। आगामी सिंहस्थ में मध्य प्रदेश सरकार कुंभ मेले से यह एक सबक ले सकती है। उज्जैन में यह दिक्कत और ज्यादा बड़ी होगी और यदि ध्यान नहीं दिया तो ज्यादा कठिन और विकराल समस्या खड़ी होगी, क्योंकि उज्जैन शहर के भीतर बहुत से प्रसिद्ध मंदिर हैं। उज्जैन जाने वाला व्यक्ति प्रमुख मंदिरों में भी जाता है तो कम से कम 10 से 12 मंदिर ऐसे हैं जहां उसे जाना जरूरी लगता है। यह सारे मंदिर शहर के भीतर स्थित हैं। प्रयागराज में शहर के भीतर मंदिर नहीं थे तो भी वहां शहर के भीतर भीड़ बढ़ी थी। अब उज्जैन में तो इन मंदिरों के कारण शहर के भीतर भीड़ बहुत ज्यादा होगी और संभवत: बेकाबू भी होगी। दूसरी तमाम समस्याओं के साथ मध्य प्रदेश शासन के सामने भीड़ नियंत्रण एक बड़ी चुनौती रहेगी।
मध्य प्रदेश शासन यदि उचित समझे तो भगदड़ से बचने के लिए एक यह काम भी किया जा सकता है कि साधुओं के लिए और आमजन के स्नान के लिए अलग समय तय कर दे। इस समय देश में जो आस्था का सैलाब उमड़ा है उसको देखते हुए यह दिक्कत उज्जैन ही नहीं नासिक में भी आएगी।
प्रयागराज कुंभ मेले में भगदड़ के बाद काफी दिनों तक या अफवाह आम रही कि मरने वालों को ताबड़तोड़ वहां से उठाकर शिफ्ट किया गया जिससे उनके परिजनों को उन्हें खोजने में बहुत परेशानी आई और अनेक लोगों को अपने परिजनों की लाश तक नहीं मिल पाई। पता नहीं, यह कितनी अफवाह और कितनी सच्चाई है लेकिन यदि यह अफवाह भी है तो इससे उज्जैन और नासिक में सबक लिया जा सकता है। सरकार को अपनी बदनामी को बचाने से ज्यादा लोगों का जीवन बचाना ज्यादा जरूरी है। ईश्वर करें और ऐसी कोई आपदा ना आए, लेकिन यदि ऐसा होता है तो मानवीयता का तकाजा यह है कि प्रशासन अपनी नाकामी और बदनामी को ढंकने की कोशिश की अपेक्षा घायलों को बचाने की कोशिश करें और उन्हें उनके परिजनों तक पहुंचाएं।
शासन-प्रशासन को ऐसे आयोजनों से प्रशंसा और प्रतिष्ठित होने का अवसर मिलता है तो उसे अपनी नाकामी को छुपाने की अपेक्षा मानवीय पक्ष पर जोर देना चाहिए। हर पक्ष के लाभ और हानि दोनों होते हैं। उसे दोनों के लिए तैयार रहना चाहिए।