-सुभाष मिश्र
खनिज संपदा की चोरी आम बात है, जब कोई गरीब अपनी जरूरत के लिए इसकी चोरी करता है तो उसे अपनी जान गंवानी पड़ती है। ये कल ही की तो बात है जब कोरबा जिले के एसईसीएल गेवरा कोयला खदान में मिट्टी धंसने से 2 युवकों की मौत हो गई, वहीं एक युवक घायल हो गया।
भारत सरकार की पहल पर 22 दिसंबर 2014 को खनिज न्याय निधि के गठन की प्रक्रिया शुरू हुई। छत्तीसगढ़ की तत्कालीन रमन सरकार में 12 जनवरी 2015 को खनिज न्यास निधि यानी डीएमएफ फंड का गठन किया था। संबंधित जिले के कलेक्टर की अध्यक्षता में गठित इस न्यास में जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी सीईओ को पदेन सचिव बनाते हुए अलग-अलग विभाग के 15 अधिकारियों को इस न्यास का सदस्य बनाकर इसकी प्रबंध कार्यकारिणी बनाई गई। न्यास के गठन का उद्देश्य खनिज सक्रियाओं और खनन से प्रभावित क्षेत्र और लोगों के हित उपभोग में किया जाना था। इस नियम में स्पष्ट उल्लेख था कि खनन रायल्टी के रूप में प्राप्त होने वाली राशि से जो राशि न्यास को प्राप्त होगी उसका 60 प्रतिशत पेयजल, पर्यावरण सुरक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, कृषि, महिला एवं बाल विकास, वृद्ध और नि:शक्तजन कल्याण, कौशल विकास, रोजग़ार और स्वच्छता आदि कार्यों पर खर्च होगी। शेष 40 प्रतिशत की राशि से जल संरक्षण, सड़क, पुल-पुलिया निर्माण आदि पर व्यय होगा।
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भारत की उज्जवला योजना जिसमें महिलाओं को गैस कनेक्शन नि:शुल्क देने का प्रावधान था, उसमें एक कदम आगे बढ़कर डॉ. रमन सिंह की छत्तीसगढ़ सरकार ने एक गैस सिलेंडर मुफ्त देने की पहल की। इसके लिए डीएमएफ फंड तथा कैम्पा से राशि देने का प्रस्ताव रखा जिसे विभागीय अधिकारियों ने नियम का हवाला देकर आपत्ति जताई। उसके बाद डीएमएफ के नियमों में पहली बार संशोधन कर यह जोड़ा गया कि केन्द्र और राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं, कार्यक्रमों के लिए भी इस फंड से राशि ली जा सकेगी। इसी संशोधन का फ़ायदा उठाकर जिलों के कलेक्टर और अधिकारियों नें इस फंड से बाउंड्री वॉल, अपने बंगलों में स्वीमिंग पुल, जगह-जगह एसी लगवाएं। कुछ कलेक्टरों ने तालाबों का सौंदर्यीकरण तक कराया। रायपुर के कटोरा तालाब चौपाटी का सौंदर्यीकरण डीएमएफ की राशि से किया गया, जबकि यह इलाका किसी तरह से खनिज संक्रिया से प्रभावित नहीं था।
डीएमएफ घोटाला मुख्य रूप से कोरबा और रायगढ़ जिलों में सामने आया, लेकिन अन्य खनन-प्रधान जिलों में भी अनियमितताओं की जांच चल रही है। अभी हाल ही में चांपा-जांजगीर के विधायक व्यास कश्यप ने विधानसभा में प्रश्न के ज़रिए खोखरा गांव में डीएमएफ फंड से खेल मैदान, सड़क और भवन निर्माण में हुई धांधली का मामला उठाया। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव से पहले केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने छत्तीसगढ़ में डीएमएफ फंड में घोटाले का मामला उठाया था। कांग्रेस नेता मोहन मरकाम, टीएस सिहदेव भी डीएमफंड में गड़बड़ी का मामला उठा चुके हैं। छत्तीसगढ़ के 12 जिलों में ढाई सौ करोड़ रुपये के दुरुपयोग का मामला भी पहले पुरज़ोर तरीके से उठाया जा चुका है।
कोरबा और रायगढ़ जिले में कलेक्टर रानू साहू के समय यानी कोरबा में 2019-2021) में 75.1 करोड़ का घोटाला उजागर हुआ है जिसमें रानू साहू मुख्य आरोपी है। रायगढ़ कलेक्टर के रूप में रानू साहू (2017-2019, आंशिक अवधि तक पदस्थ रही। डीएमएफ फंड में अनियमितता और घोटाले में बिलासपुर, जांजगीर-चांपा, सूरजपुर और बलरामपुर जैसे खनन-प्रधान जिलों में भी दुरुपयोग की शिकायतें हैं, लेकिन कोरबा और रायगढ़ की तरह बड़े मामले सामने नहीं आए।
जिला खनिज न्यास एक निधि है, जो खानज और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2015 के तहत स्थापित की गई। इसका उद्देश्य खनन प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढांचे जैसे विकास कार्यों के लिए धन उपलब्ध कराना है। छत्तीसगढ़, जो कोयला, लौह अयस्क, और चूना पत्थर जैसे खनिजों से समृद्ध है, में डीएमएफ निधि खनन कंपनियों से एकत्र की जाती है।
डीएमएफ घोटाला इस निधि के दुरुपयोग से संबंधित है जिसमें कोरबा जिले में 75.1 करोड़ रुपये की हेराफेरी का खुलासा हुआ। यह घोटाला निविदा (टेंडर) प्रक्रिया में धांधली, कमीशनखोरी, और फर्जी दस्तावेजों के जरिए हुआ। आर्थिक अपराध शाखा और प्रवर्तन निदेशालय की जांच बताती है कि
निविदाओं में हेराफेरी करके चहेते ठेकेदारों को ठेके दिए गए। ठेकेदारों से 40 प्रतिशत कमीशन लिया जाता था, जो अधिकारियों और बिचौलियों में बांटा जाता था। परियोजनाओं की लागत बढ़ाकर और फर्जी बिल बनाकर धन की हेराफेरी की गई। खनन प्रभावित समुदायों के लिए विकास कार्य रुके, और धन का दुरुपयोग हुआ।
छत्तीसगढ़ के जिन-जिन जि़लों में आयरन ओर, कोल माइंस या सीमेंट कारख़ाने थे, वहां के कलेक्टरों नें जिला खनिज फंड के लिए जारी निर्देशों नियम क़ानून का अपनी मर्जी से व्याख्या कर दुरुपयोग किया। जबकि खनिज विभाग ने बक़ायदा निर्देश जारी कर कलेक्टर को फंड का नियम और प्रावधानों के अनुसार उपयोग करने और ऐसा नहीं होने पर उन्हें जि़म्मेदार ठहराने की बात लिखी है। पर कलेक्टर जो सत्ता के साथ गलबहियां कर रहे थे, उन्होंने इसकी परवाह नहीं की।
छत्तीसगढ़ में डीएमएफ की राशि की जो बंदरबाँट हुई है, वह चौंकाने वाली है। ईओडब्ल्यू द्वारा हाल ही में रायपुर कोर्ट में 6 हज़ार बीस पन्नों की चार्जशीट पेश की गई है। ईओडब्ल्यू ने छत्तीसगढ़ में हुए 75.1 करोड़ के डीएमएफ घोटाले में 6020 पन्नों का कोर्ट में मंगलवार को चालान पेश किया। इसमें न्यायिक रिमांड पर जेल भेजे गए निलंबित आईएएस रानू साहू को मुख्य आरोपी बनाया गया है। साथ ही घोटाला करने के लिए बनाए गए सिंडीकेट में सौम्या चौरसिया, सूर्यकांत तिवारी, आदिवासी विकास विभाग की तत्कालीन सहायक आयुक्त माया वारियर, तत्कालीन जनपद मुख्य कार्यपालन अधिकारी भुनेश्वर सिंह राज, बिचौलिया मनोज द्विवेदी, तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर एवं नोडल अधिकारी, डीएमएफ भरोसाराम ठाकुर, तत्कालीन जनपद मुख्य कार्यपालन अधिकारी वीरेन्द्र राठौर एवं तत्कालीन जनपद मुख्य कार्यपालन अधिकारी राधेश्याम मिर्झा को सहआरोपी बनाया गया।
ईओडब्ल्यू द्वारा पेश किये गये चालान में 40 प्रतिशत कमीशन की बात कहते हुए बताया गया है कि घोटाला करने के लिए दस्तावेजों में हेराफेरी कर अपने करीबी ठेकेदारों को उपकृत किया जाता था। इसके एवज में 40 फीसदी कमीशन लिया जाता था। अवैध वसूली की राशि की बंदरबांट होती थी। इस खेल में शामिल 9 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया है।
ये मामला तो केवल एक जिले का है। छत्तीसगढ़ में अपार खनिज संपदा है। कांग्रेस पार्टी बस्तर में जल, जंगल, ज़मीन और खनिज संसाधनों बचाने के लिए चालीस किलोमीटर की पदयात्रा निकाल रही है और डीएमएफ के सर्वाधिक घोटाले डॉ. रमन सिंह और भूपेश बघेल की सरकार में ही आये हैं।
सवाल यह नहीं है कि काम सेक्शन करने के नाम पर कमिशन लिया गया, सवाल यह भी है की नियमों के विरुद्घ ग़लत कामों को स्वीकृति देने वालों के विरुद्घ अब तक क्यों कार्रवाई नहीं हो रही है। सरकार को जानकारों की समिति गठित करके उन अधिकारियों के विरुद्घ कार्रवाई करनी चाहिए जिन्होंने ग़लत कामों को स्वीकृति देकर अपने चहेतों के ज़रिए कमिशन खाया। खनिज संपदा के दोहन से शासन को राजस्व प्राप्त होता है, उसका सदुपयोग स्थानीय विकास और कल्याण के लिए हो, इस बात को ध्यान में रखकर डीएमएफ यानी डिस्ट्रिक्ट माईनिग फंड की स्थापना की गई। इसके लिए सरकार को इस पर कड़ी निगरानी रखते हुए पीडि़त क्षेत्र के लोगों को इस फंड से मद्द पहुंचानी चाहिए।