Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

हमारे देश में लगातार कुछ शरारती, कट्टर मज़हबी और अपराधिक और असामाजिक गतिविधियों में संलग्न ताक़तें देश के साम्प्रदायिक सौहाद्र्र को बिगाडऩे में लगी रहती हैं। क्रिकेट में भारत की जीत के जश्न का जुलूस जब प्रशासन द्वारा प्रतिबंधित किये गये मस्जिद क्षेत्र से निकला तो वहां पर कुछ असामाजिक तत्वों ने पटाखेबाजी करते हुए पत्थरबाज़ी व आगजनी की घटना को अंजाम दिया। यह घटना तेलंगाना के करीमनगर में घटित हुई। जम्मू-कश्मीर के कठुआ में हिन्दू-मुस्लिम समुदाय में लोगों के ग़ायब होने और हत्या की घटना को लेकर तनाव व्याप्त है। बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव के पूर्व होली के अवसर पर मुसलमानों से कहा जा रहा है कि जुम्मे की नमाज़ घर पर ही अदा करें। उत्तर प्रदेश स्थित अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय परिसर में सार्वजनिक होली मनाने की मांग हो या रायपुर के टाटीबंध में इसाई धर्म से जुड़े लोगों की सभा पर धर्म परिवर्तन को लेकर हिन्दू संगठनों का हमला। ये सारी घटनाएं हमारे समाज की विविधता के ताने बाने को बिगाडऩे वाली है।
भारत की आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी जीत के उपलक्ष्य में मध्य प्रदेश के इंदौर जिले के महू कस्बे में जुलूस निकाला गया। इस दौरान, जुलूस जब जामा मस्जिद क्षेत्र के पास पहुंचा तो पटाखे फोडऩे को लेकर दो पक्षों में विवाद हो गया जो बाद में पथराव और आगजनी में बदल गया।
जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले में तीन व्यक्तियों जोगेश सिंह (35), दर्शन सिंह (40) और बरून सिंह (14) जो एक शादी समारोह में शामिल होने के बाद लापता हो गए थे, उनके शव बिलावर के ऊपरी इलाकों से बरामद किए गए हैं। यहां सहरसा में होली और जुम्मे की नमाज एक ही दिन होने से नया विवाद खड़ा हो गया है। भाजपा जिला अध्यक्ष दिवाकर सिंह ने मुस्लिम समुदाय को सलाह दी है कि वे 14 मार्च को होली के दिन जुम्मे की नमाज घर पर ही अदा करें। भाजपा विधायक हरिभूषण ठाकुर बचौल ने कहा कि जुम्मे की नमाज साल में 52 दिन होता है। होली साल में एक बार होता है। होली हिंदुओं का सबसे बड़ा त्यौहार है, जिसे लोग बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं। विवाद को रोकने की एक अलग तरह का सांप्रदायिक तनाव है। कोई शरारती तत्व मस्जिद जाते समय मुस्लिम भाइयों पर रंग डाल दें तो विवाद हो सकता है और विवाद से बचाने का एक उपाय भी है। ऐसे में मुस्लिम समुदाय को दोपहर में मस्जिद जाकर जुम्मे की नमाज अदा करनी होगी।
उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में स्थित अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में होली मनाने को लेकर शुरू हुआ विवाद अब थम गया है। अब एएमयू में जमकर रंग गुलाल उड़ेगा। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के एनआरएससी हॉल में होली मिलन समारोह कार्यक्रम की अनुमति दे दी गई है। यहां स्टूडेंट्स ने 9 मार्च को होली मिलन कार्यक्रम के लिए अनुमति मांगी थी जिसे यूनिवर्सिटी प्रशासन ने नामंजूर कर दिया था।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में कथित धर्मांतरण की शिकायत को लेकर जमकर बवाल हुआ है। टाटीबंध इलाके में बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने धर्मांतरण का आरोप लगाते हुए एक घर के बाहर प्रदर्शन किया। इस दौरान भीड़ उग्र हो गई और घर के बाहर खड़ी गाडिय़ों को निशाना बनाया गया। टाटीबंध स्थित एक घर में धर्मांतरण कराने की जब बजरंग दल के कार्यकर्ताओं को सूचना मिली तो वे मौके पर सैकड़ों की संख्या में पहुंचे और इसका विरोध किया। देखते ही देखते माहौल गरमा गया और पूरे मामले हिंसक होता गया। यह भी आरोप है कि टाटीबंध स्थित मारुति एन्क्लेव में जनता के सहयोग से एक हनुमान मंदिर का निर्माण किया गया था, लेकिन 9 मार्च की सुबह करीब 100 लोग चर्च से अचानक आए और मंदिर पर हमला कर मंदिर की संरचना को नुकसान पहुंचाया। मूर्ति को खंडित कर फेंक दिया। बिलासपुर में रविवार को धर्मांतरण के आरोप में जमकर बवाल हुआ है। न्यायधानी के कोनी में हिंदूवादी संगठनों ने धर्मसभा की आड़ में भोले-भाले लोगों से धर्म परिवर्तन कराने का आरोप लगाया। विरोध करने पहुंचे कार्यकर्ताओं और पुलिस के बीच झड़प हो गई।
भारत एक बहुधर्मी, बहुसांस्कृतिक और बहुभाषी देश है जहां विभिन्न धर्मों के लोग सह-अस्तित्व में रहते हैं लेकिन इसके बावजूद, साम्प्रदायिक तनाव समय-समय पर उभरता रहता है। साम्प्रदायिकता की ऐतिहासिक जड़ें हमारे यहां बहुत गहरी है। औपनिवेशिक काल में अंग्रेजों ने हिंदू-मुस्लिम एकता को तोडऩे के लिए सांप्रदायिक आधार पर राजनीति को बढ़ावा दिया। 1909 और 1935 के अधिनियमों के तहत सांप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली ने इस विभाजन को और गहरा किया। विभाजन (1947) भारत और पाकिस्तान के विभाजन के दौरान बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक दंगे हुए, जिसमें लाखों लोगों की जान गई और स्थायी रूप से हिंदू-मुस्लिम संबंधों में अविश्वास पैदा हुआ। राजनीतिक ध्रुवीकरण-आजादी के बाद भी राजनीतिक दलों ने वोट बैंक की राजनीति के तहत सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काया, जिससे दंगे और तनाव बढ़ते रहे। धार्मिक ध्रुवीकरण-अयोध्या, काशी और मथुरा जैसे मुद्दों को लेकर समय-समय पर धार्मिक ध्रुवीकरण बढ़ा जिससे साम्प्रदायिक टकराव हुआ।
सोशल मीडिया और फेक न्यूज आज के दौर में सोशल मीडिया अफवाहें फैलाने और लोगों को भड़काने का एक महत्वपूर्ण माध्यम बन चुका है। मॉब लिंचिंग जैसी घटनाएं इसी का परिणाम है। राजनीतिक दलों द्वारा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को चुनावी लाभ के लिए इस्तेमाल करने के आरोप लगते रहे हैं। हेट स्पीच और धार्मिक उन्माद कई बार कट्टरपंथी संगठनों द्वारा दिए गए भड़काऊ बयान हिंसा को जन्म देते हैं। हाल ही में कई राज्यों में धार्मिक जुलूसों पर हमले, मंदिरों-मस्जिदों को लेकर विवाद और अन्य सांप्रदायिक घटनाएं सामने आई हैं। मजहबी कट्टरता का बढऩा दोनों ओर से धार्मिक कठोरता बढ़ रही है जिससे समाज में सहिष्णुता कम होती जा रही है।
हरिशंकर परसाई इस सांप्रदायिकता मानसिकता और उन्मादी माहौल की बात करते हुए कहते हैं कि किसी फेनेटिक (उन्मादी) का दिमाग सन्तुलित नहीं रहता। वह हठी होता है। किसी भी चीज का एक ही पक्ष देखता है दूसरा नहीं। किसी दूसरे की भावना का खयाल नहीं रखता। सिर्फ अपने को सही मानता है, दूसरों को गलत। वह संकीर्ण और अहंकारी होता है, क्रूर होता है। तर्क से भरा हुआ होता है। बहस और विचार-विनिमय पसन्द नहीं करता। ऐसा ही हिटलर था, ऐसा ही मुसोलिनी था, ऐसे ही बाल ठाकरे हैं, ऐसे ही देवरस हैं, ऐसे ही शाही इमाम अब्दुल्ला बुखारी और सैयद शहाबुद्दीन, ऐसा ही भिंडरावाला था।
बहुत से चिन्तकों का कहना है कि धर्म का जन्म भय, अज्ञान और कौतूहल से हुआ पर आगे धर्म संस्कृति का एक प्रमुख अंग बना और उसमें सत्य, न्याय, करुणा, दया, अहिंसा, परोपकार के तत्व आए। धर्म ने अभय भी सिखाया। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि भय से आदमी क्रूर और करुणाहीन हो जाता है पर धर्म माननेवाला आदमी हमेशा भयभीत नहीं रहता। जो भय धर्म का आधार बना और दूसरी तरह का भय था-इस विराट विश्व और प्रकृति की शक्तियों के भयावह रूप और पूर्ण असुरक्षा का भय। धर्म के कारण आदमी क्रूर होता है तो भय से नहीं, घृणा से। धार्मिक उन्माद से आदमी क्रूर होता है। दूसरे धार्मिक सम्प्रदाय के डर से भी आदमी क्रूर होता है। दूसरे धार्मिक सम्प्रदाय पर हमला करते समय आदमी क्रूर होता है, असुरक्षा है। भय और क्रूरता दोनों आते हैं। हालांकि, धर्म को मानना मनुष्य के अच्छे होने का प्रमाण नहीं है। वह अच्छा भी हो सकता है और बुरा भी। नास्तिक धार्मिक व्यक्ति से अधिक दयालु हो सकता है।
अब हमें यह देखने और समझने की जरूरत है कि उन्मादी लोगों की भीड़ विवेकवान नहीं होती। उनके द्वारा की जाने वाली मांगे बयानबाजी, हरकतें कभी भी देश को आगे नहीं ले जाएगी। हम जिस विराट और महान विश्व गुरु भारत की बात करते हैं तो हमें अपनी सोच को व्यापक बनाना होगा।

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