Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – समाज की आँखों पर अंधविश्वास का पर्दा

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

हमारे देश में शिक्षा बढ़ी, साक्षरता बढ़ी और तकनीक का बहुत विकास हुआ। विज्ञान ने नए-नए आविष्कार किए। मनुष्य ने चांद पर जाकर कब्जा जमाया। इसके अलावा भी वह बहुत सी जगहों पर जाना चाहता है। मनुष्य के अवचेतन में क्या चल रहा है? उसके मन में क्या चल रहा है? यह पता लगाने के लिए और आपराधिक गतिविधि का पता लगाने के लिए पोलोग्राफी टेस्ट भी किया जा रहे हैं। इससे मन की बात को पकडऩे की कोशिश की जा रही है कि आपके दिमाग में क्या कुछ चल रहा है? हमारे संस्कार या हमारे अंदर की विसंगतियां और कुरीतियां इतनी गहरी हैं कि हमारे समाज में अंधविश्वास व्याप्त है। वह पीढ़ी दर पीढ़ी चल रहा है। उसमें कमी नहीं आ रही है। हम एक तरफ वैज्ञानिक चेतना उत्पन्न होने की बात कर रहे हैं तो दूसरी तरफ हमारे आसपास अंधविश्वास के कारण बहुत सी ऐसी घटनाएं हो रही है, जिसकी आज कल्पना भी नहीं की जा सकती है। लोगों को लगता है कि जादू-टोना से शायद जीवन में कोई बदलाव आ जाए। दरअसल, अभी भी आसपास अच्छा डॉक्टर नहीं है। कोई सलाह देने वाला नहीं है। खर्च करने के लिए पैसे नहीं है। आपकी आय इतनी नहीं है कि आप अच्छा इलाज करवा सकें। ऐसे में लोग तांत्रिकों, बाबाओं और बैगाओं के चक्कर में पड़ जाते हैं और मानते हैं कि समाज में उनका भला होगा। उनकी भलाई में बाधा में किसी टोनी का हाथ है। किसी ने जादू कर दिया है। किसी ने घर बांध दिया है या बिल्ली रास्ता काट गई है। अलग-अलग तरह के अंधविश्वास हमारे समाज में है। अंधविश्वास के कारण लोगों की हत्या की जाने लगी हैं, तो हमारी चिंता स्वाभाविक है। हमारे छत्तीसगढ़ में टोनही प्रताडऩा कानून भी है। कड़े कानून के बावजूद छत्तीसगढ़ अंधविश्वास और जादू-टोना से मुक्त नहीं हुआ है।
अभी हाल में ही बलौदाबाजार के गाँव में जादू-टोना के संदेह में दो महिला समेत चार व्यक्तियों की निर्मम हत्या कर दी गई। अब कहा जा रहा है कि ऐसे अपराधियों को पकड़ा जाए। टोहनी या डायन के संदेह में हत्या करना, मारपीट करना आम बात है। इसमें खास अकेली महिला को शिकार बनाया जाता है। जादू टोना में हत्या के बीच एक और बात निकाल कर आई है कि कुछ लोग संपत्ति हड़पने के लिए या शारीरिक शोषण करने के लिए भी ऐसी किसी निर्दोष महिला पर जादू-टोना के बहाने हमला करने की कोशिश करते हैं और उसे टोह्नी बता दिया जाता है। अगर ऐसा करने वाले पर कोई कार्रवाई नहीं होती, तो इससे यह समझ में आता है कि समाज में बहुत से लोग यह मानकर चलते हैं कि यह टोनही है और इसके कारण ही गाँव या परिवार पर कोई विपदा आई है। इसके लिए यही जिम्मेदार है। अब सवाल यह है कि इससे कैसे निपटा जाए। इसी तरह की घटना सुकमा में भी सामने आई। यहां जादू टोने के चक्कर में पांच लोगों की हत्या हुई। इसी तरह से हाल में ही जादू टोने के नाम पर नौ लोगों की हत्या हो चुकी है। अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग तरीके से हत्याएं की गई। इसमें लोग किसी को भी जादू-टोना के संदेह में आकर मार रहे हैं, उसको प्रताडि़त कर रहे हैं। अब सवाल है कि यह सब क्यों हो रहा है? और इसके पीछे क्या कारण है? हमारे समाज में कई तरह की विसंगतियां हैं। जैसे हम कई तरह की बलि देते हैं। कई तरह की पूजा-अर्चना करते हैं और हमें लगता है कि इससे हमारे दुखों का निवारण हो जाएगा। सुकमा जिले के गांव में एक दिल दहलाने वाली घटना हुई। यहाँ एक आरक्षक और उसके परिवार को पीट-पीट कर मार डाला गया। घटना की वजह उसके परिवार को जादू-टोना में लिप्त होना बताया गया। बलौदाबाजार में 12 सितंबर 4 लोगों की हत्या हुई। इस घटना में भी पांच लोगों ने वारदात को अंजाम दिया। इसमें परिवार के लोग और ग्रामीण शामिल होते हैं, क्योंकि उनको लगता था कि गांव में कुछ भी गलत हो रहा है या अकाल मौत हो रही है तो उसमें यह परिवार का शामिल है और यह जादू-टोना करता है। इसी तरह की घटना हमें अलग-अलग जगह पर देखने सुनने को मिल रही है। बात चाहे सुकमा की हो चाहे बलौदाबाजार की हो या कहीं और की हो। यह देश के अलग-अलग कोने में भी हो रही है और बहुत से अंधविश्वास अभी भी हमारे समाज में व्याप्त है।
हरिशंकर परसाई लिखते है कि अंधभक्त होने के लिए मूर्ख होना जरूरी नहीं है। इस तरह अंधश्रद्धा या अंधविश्वास के लिए अनपढ़ या अशिक्षित होना भी जरूरी नहीं है। बहुत सारे पढ़े-लिखे लोगों में भी अंधविश्वास को देखते हैं। यूनिवर्सिटी में विज्ञान पढ़ाने वाला शिक्षक भी अंधविश्वासी होता है। इंजीनियर भी अंधविश्वासी होता है। अलग-अलग तरह से अंधविश्वास लोगों में है। कई बार हमारी परंपरा रूढिय़ों में तब्दील हो जाती है। हमें लगता है यह परंपरा तो हमारे परिवार में चली आ रही है। इसमें बदलाव क्यों करे। कभी हम तार्किक रूप से यह नहीं सोचते की परंपरा अब जरूरी नहीं है। उसे हमें हटाना चाहिए, पर इस बारे में कोई बात नहीं करता है। अभी हाल में ही अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक चेतना दिवस मनाया गया, जिसमें जागरूकता पैदा करने के लिए अलग-अलग कार्यक्रम हुए। रायपुर में भी कार्यक्रम हुए। इसमें और अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अलावा बहुत से लोग वैज्ञानिक चेतना से संपन्न लोग और विद्यार्थी भी थे। उन्होंने अलग-अलग तरीके से कुछ किताबें, कुछ साहित्य देकर लोगों को बताया कि किस तरह से किस तरह से आप जागरूक हो सकते हैं। इसमें तर्कशील समाज के लोग, विज्ञान सभा के लोग भी थे। अंधश्रद्धा की जब भी बात करेंगे तो नरेंद्र डोभाल के बिना अधूरी रह जाएगी। अंधभक्तों ने ही नरेंद्र डोभाल की हत्या कर दी थी, क्योंकि वह अंधविश्वास के खिलाफ अभियान चला रहे थे। हमारे समाज में आज वैज्ञानिक चेतना की जरूरत है। वैज्ञानिक तौर तरीके से सोचने की जरूरत है। हम जिस समाज में रहते थे। वह तर्कशील समाज था। एक दूसरे से तर्क करने की परंपरा थी। वहां असहमति का भी स्थान था, पर अंधविश्वास या धर्म के नाम पर लोग इसी तरह का तर्क नहीं सुनना चाहते हैं। लोग कहते हैं कि श्रद्धा में तर्क के लिए कोई स्थान नहीं है। अगर उसके बारे में कोई सवाल किया जाए तो लोग कहते हैं यह हमारे ग्रंथो में लिखा है। आखिर ग्रंथ लिखने वाला भी कोई आदमी ही था। पहले चांद के बारे में बहुत सारी अवधारणा थी। गांव में एक कहावत है-चौथ का चंदा मत देख गोरी, बिना अपराध के लागे चोरी। अब हम चांद पर पहुंच गए हैं। हम उसे अपने ग्रह के रूप में देखते हैं। अब तो सूरज पर पहुंचने की बात हो रही है। दूसरे ग्रहों तक पहुंचाने की बात हो रही है। ऐसे में हम चांद, तारे-सितारों को लेकर अलग-अलग तरह के भ्रम पाले हुए हैं। हमारे समाज में नए तरह का विज्ञान है वास्तु शास्त्र। उसको लेकर भी बहुत सारे भ्रम है। जो व्यक्ति हाउसिंग बोर्ड के मकान में रहता है या फ्लैट में रहता है। उसके पास तो यह विकल्प भी नहीं है कि अपने घर का मुंह उत्तर रखेगा या दक्षिण या पूर्व रखेगा या पश्चिम, क्योंकि उसके पास मकान है, यही बहुत बड़ी बात है। संपन्न लोग मकान का दरवाजा बदलने का शौक कर सकते हैं। लेकिन इसे भी विज्ञान और वास्तुशास्त्र के नाम पर बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया।
बहुत सारे धार्मिक स्थान में बड़े-बड़े पंडाल लगते हैं। वहां बाबा आते हैं। उनका बहुत महिमा-मंडन होता है और वह तरह-तरह की घोषणाएं करते हैं। तरह-तरह की ऐसी बातें बताते हैं कि यह करने से बीमारी दूर हो जाएगी तो ऐसे में लगता है कि बाबा के आशीर्वाद से बीमारी दूर हो गई या इनके किसी चीज देने से बीमारी दूर हो गई। ऐसे में सोचने वाली बात यह है कि इतने सारे मेडिकल कॉलेज की क्या जरूरत है? साइंस कॉलेज की क्या जरूरत है? दरअसल समाज में अभाव है। कई जगह शिक्षा नहीं है। शिक्षित होने के बावजूद हमारे दिमाग में चेतना नहीं है। हम अब चीजों को कसौटी पर नहीं कस रहे हैं, इसलिए जिन चीजों को हम नहीं जानते, उससे डर लगता है और हमें लगता है कि हर चीज जादू-टोने से हासिल की जा सकती है। कई बार दोपहर में कुछ लोग महिलाओं को एक का चार करने का झांसा देते हैं। सिक्के दोगुने करने, जेवर साफ़ करने का झांसा देकर ठगते हैं। दूसरी तरफ अगर कोई निसंतान स्त्री है तो उसे मेडिकल में जाना चाहिए। आजकल बहुत से इलाज हैं। लेकिन लोग बाबा के पास ताबीज लेने जाते हैं। कोई गोली लेने जाता है। यहाँ उसका कोई मेडिकल टेस्ट नहीं होता। इसी तरह अगर वर्षा नहीं हो रही है तो भी बहुत सारे कारण है। गांव में अगर अकाल पड़ा है तो उसके भी बहुत से कारण हो सकते हैं। आपके परिवार में दुख-तकलीफ है तो उसका कारण है, पर लोग उसका निदान जादू-टोने में खोजते हैं। ऐसे में अकेली रहने वाली स्त्रियों को टोनही बताकर प्रताडि़त किया जाता है। हमें लगता था कि आजादी के 75 साल बाद जब अमृत महोत्सव मना रहे होंगे तो अंधविश्वास समाज से खत्म हो चुका होगा, लेकिन इसकी जड़े इतनी गहरी हैं कि अब तक नहीं मिटी। इसलिए वैज्ञानिक चेतना की संपन्नता और उसके प्रचार-प्रसार के लिए काम करना जरूरी हो गया है। क्योंकि जैसे-जैसे हमारा समाज पढ़ा-लिखा हुआ। यहां अंधविश्वास बढ़ता गया। धर्म ग्रंथो के नाम पर अंधविश्वास फैला। उनमें कितना सही लिखा है कितना गलत लिखा है, उसकी भी मीमांसा होनी चाहिए। हमारे समाज में शास्त्रार्थ होते थे। हम उस परंपरा को भूल रहे हैं। गुनिया हो, बाबा हो, बैगा हो, तांत्रिक हो ऐसे लोग जो हमें रातों-रात सुखी संपन्न या चीजों को दोगुनी करने का सपना दिखाता है और झांसा देता है। बीमारी को खत्म करने का झांसा देता है या कष्ट निवारण की बात करता है तो हमें लगता है कि यह हमारे लिए एक मार्ग दिखाने वाला है। यह ऐसा नहीं की इस तरह की कुरीतियां किसी एक धर्म में है। हमारे देश के सभी धर्म में इस तरह की कुरीतियां हैं। यह लोग ईश्वर के नाम पर, किसी चमत्कार के नाम पर, किसी दैविक शक्ति के नाम पर या जादूगरी के नाम पर आगे जाते हैं। जादू के शो में अगर आप गए होंगे और जादू देखते हैं तो जादूगर खुद बताता है कि जादू कुछ नहीं है। दरअसल यह एक प्रकार से हाथ की सफाई होती है। इसी तरह आप किसी बैग, गुनिया, तांत्रिक और जादू-टोना करने वाले से मिलेंगे उनके पास भी ऐसा कुछ नहीं है। जब हम विज्ञान की कसौटी पर कसते हैं तो कई रासायनिक कारण निकलते हैं। इसके बावजूद समाज में बहुत गहरे से इस प्रकार का अंधविश्वास जमा है। यह जड़ से तभी दूर होगी, जब समाज वैज्ञानिक चेतना संपन्न होगा। जो विज्ञान पढ़ाता हो, उसका विज्ञान में भरोसा होगा। जो इंजीनियरिंग का छात्र है उसे इंजीनियरिंग पर भरोसा हो, उसका साइंस में भरोसा हो, जो शिक्षक है उसका बिल्ली ने उसका रास्ता काट दिया है तो रास्ता पार ना करो का भाव मन में ना आए। अंधविश्वास होना, बाबाओ के चमत्कार होना और पाखंड होना अलग चीज है और धार्मिक आस्था अलग चीज है। ईश्वर की आराधना आप अपने मन से भी कर सकते हैं। एकांत में भी कर सकते हैं। एकाग्र होकर कर सकते हैं। आप पढ़कर भी कर सकते हैं। अपने काम से भी कर सकते हैं।
निदा फ़ाज़ली कहते हैं कि ‘सबकी पूजा अलग-अलग है अलग-अलग है रीत, मस्जिद जाए मौलवी कोयल गाए गीत। हम अलग-अलग तरह से अपनी पूजा अर्चना कर सकते हैं, पर अंधविश्वास कहीं से भी पूजा अर्चना नहीं है। जादू टोना के नाम पर किसी की हत्या करना कहीं से भी उचित नहीं है। समाज में यह बताने की जरूरत है। बच्चों की कथाओं में उन्हें यह जरूर बताएं कि भूत-प्रेत नहीं होता है। जादू-टोना नहीं होता है। कोई स्त्री जादूगरनी नहीं होती। कोई डायन नहीं होती। यह बताना हमारी जिम्मेदारी है, लेकिन कई बार हम खुद ही अपने दिमाग में भ्रम पाले होते हैं। हाल में छत्तीसगढ़ में अंधविश्वास और जादू-टोना के नाम पर हुई घटनाएं निश्चित रूप से शर्मनाक हैं। यह चिंता का विषय है। हम ऐसी घटनाएं तभी रोक सकेंगे जब हम विज्ञान वैज्ञानिक चेतना संपन्न होंगे।

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