Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – इलाज पर भारी पड़ रही प्राइवेट प्रैक्टिस

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

कोरोना काल में डॉक्टरों को भगवान के रूप में देखा गया। इस दौरान निश्चित रूप से डॉक्टर ने बहुत से लोगों की जान बचाई। बहुत सी ऐसी सलाह दी, जिससे कि लोग अपने घरों में सुरक्षित रहे, हालांकि उस दौरान बहुत से लोग कई अस्पतालों में चक्कर लगाने के बाद भी जीवित नहीं रह सके। इसके बावजूद डॉक्टरों ने बड़े पैमाने पर लोगों की जान बचाई। इसके बाद कोरोना की दवाइयां खोजी गई और उपचार भी आए. वह अपने आप में एक उपलब्धि है। इससे लोगों में डॉक्टरों के प्रति लोगों की आस्था बढ़ी और लोगों को लगा कि भगवान अगर है तो हमारे सामने डॉक्टर के रूप में है, उसने हमारी जान बचाई है। हमारी बीमारी के समय मददगार साबित हुई है जो हमारी जान बचाता है हम उसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। उसके प्रति हमारी आस्था भी बढ़ती है। इसमें सरकारी डॉक्टरों ने भी बड़ी भूमिका निभाई और निजी प्रेक्टिस करने वाले डॉक्टरों की भी अहम भूमिका रही है और कुछ लोग चाहे वह सरकारी क्षेत्र के हो या प्राइवेट क्षेत्र के हों उनकी नियत में खोट था तो उन्होंने आपदा में अवसर भी तलाशा। ऐसे लोगों ने पीडि़तों और उनके परिजनों से बहुत सारे पैसे वसूल किए। जब कोरोना काल खत्म हुआ तो जिनके पास पैसे थे, उनको लगा कि अगर हम स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश करेंगे तो बड़ा लाभ होगा। उन्होंने बड़े-बड़े अस्पताल खोले। दवाइयों की दुकानें खोली. निश्चित रूप से लोग उन अस्पतालों और दवा दुकानों पर गए। ऐसे लोगों ने लाभ भी कमाया। इतना ही नहीं इस दौरान लोगों में हेल्थ इंश्योरेंस के प्रति भी रुझान बढ़ा। विदेश में तो बिना हेल्थ इंश्योरेंस के आप चिकित्सा सुविधाओं का लाभ नहीं ले सकते, पर हमारे देश में भी अब इसका लाभ लोग ले रहे हैं। आज जिला मुख्यालयों के सरकारी अस्पतालों में बहुत सारी सुविधाएं नहीं है। इसके बावजूद वहां प्रतिनियुक्ति विशेषज्ञ डॉक्टरों ने बाहर भी अपनी प्रेक्टिस जारी रखी। बहुत सारे डॉक्टरों ने नर्सिंग होम में जाकर विशेषज्ञ स्वास्थ्य सुविधाएं दी। उनकी विशेषज्ञता का लाभ मरीजों को मिलता रहा। कई बार सरकार को लगता है और दूसरे लोग भी कहते हैं कि सरकारी डॉक्टर सरकारी अस्पताल में बैठकर अपने लिए मरीज तलाशते हैं। बाद में उनको अपने निजी अस्पताल में बुला लेते हैं। इस पर छत्तीसगढ़ सरकार ने कहा कि सरकारी डॉक्टर के प्राइवेट प्रैक्टिस पर रोक लगा दी है। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है, जब तक इस तरह के प्रयास हुए हैं। सरकार के इस निर्णय का काफी विरोध हुआ है इस समय भी विरोध बड़े पैमाने पर जारी है। सरकार के फैसले का डॉक्टर क्यों विरोध करते हैं? उनका संगठन क्या कहता है? इस बारे में डॉक्टर राकेश ने अपने विचार रखे। हालांकि डॉक्टर राकेश कोई सरकारी डॉक्टर नहीं है, पर वह डॉक्टर के नेता है तो निश्चित रूप से वह डॉक्टर का ही पक्ष रख रहे हैं।
स्वास्थ्य विभाग के विशेष सचिव चंदन कुमार ने आदेश जारी कर निजी प्रैक्टिस पर प्रतिबंध के आदेश का कड़ाई से पालन करने के निर्देश दिए हैं। स्वास्थ्य विभाग के नए आदेश के अनुसार, सरकारी डॉक्टरों को कार्यावधि के दौरान निजी प्रैक्टिस करने पर कड़ी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा. पहले भी डॉक्टरों को निजी अस्पतालों में ऑपरेशन और रोगियों को देखने से रोका गया था, लेकिन कई डॉक्टरों की आदतें नहीं बदलीं। इस वजह से लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग ने दोबारा से सख्त आदेश जारी किए हैं। आदेश में यह भी कहा गया है कि लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के चिकित्सकों को निजी प्रैक्टिस की छूट रहेगी, परंतु यह केवल कार्यावधि के बाद की जा सकेगी। नर्सिंग होम या निजी क्लीनिक में जाकर प्रैक्टिस नहीं कर सकेंगे। इस आदेश का उद्देश्य सरकारी अस्पतालों की सेवाओं को प्राथमिकता देना और निजी प्रैक्टिस के कारण सरकारी कामकाज में उत्पन्न होने वाली अव्यवस्थाओं को समाप्त करना है। इस कदम से सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और मरीजों को मिलने वाली सुविधाओं में सुधार की उम्मीद जताई गई।

सरकारी डॉक्टरों की प्राइवेट प्रैक्टिस पर प्रतिबंध के आदेश का चौतरफा विरोध शुरू हो गया। अब तक 35 नियमित और संविदा डॉक्टरों के इस्तीफे दे चुके हैं। इसकी शुरुआत चंदूलाल चंद्राकर मेडिकल कॉलेज से हुई. यहाँ के डॉक्टरों ने राज्य सरकार द्वारा सरकारी डॉक्टरों के प्राइवेट अस्पताल में प्रैक्टिस करने पर लगाए गए प्रतिबंध और वेतन में 20 प्रतिशत कटौती को अन्यायपूर्ण बताते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा देने वाले सभी डॉक्टर अपने-अपने विभाग के प्रमुख हैं, जिनमें मेडिसिन, सर्जरी, शिशु रोग, स्त्री रोग, निश्चेतना और रेडियोलॉजी विभाग के प्रमुख भी शामिल हैं। इनमें तीन सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर भी हैं, नई गाइडलाइन के बाद शासकीय अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों से डाक्टरों का त्यागपत्र देने का सिलसिला लगातार जारी है। इसी कड़ी में शासकीय मेडिकल कॉलेज राजनांदगांव और रायगढ़ में भी कार्यरत सीनियर, जूनियर और संविदा डॉक्टरों ने सामूहिक रूप से त्यागपत्र देने की चेतावनी दी है। हालांकि सरकार का दावा है कि यह गलत है कि डॉक्टर प्राइवेट अस्पताल में काम नहीं कर सकता है। आयुष्मान योजना में सभी डॉक्टरों के सर्टिफिकेट अपलोड किए जाते हैं। सरकार उनको अप्रूव करती है, तभी डॉक्टर वहां काम कर पाता है।
डॉक्टरों का कहना है कि इस फैसले से न केवल उनकी आय में कमी आएगी, बल्कि उनकी पेशेवर स्वतंत्रता पर भी असर पड़ेगा। सरकार को मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर्स के लिए नीतियों में सुधार करना चाहिए, ताकि वे एक सुरक्षित और स्थिर कार्य वातावरण का अनुभव कर सकें। छत्तीसगढ़ में कुछ ही वर्षों में कई मेडिकल कॉलेज खुल गए, इससे डाक्टरों की बहुत कमी हो गई, तब सरकार ने प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टर्स को सरकारी नौकरी के लिए बुलाया। डॉक्टर्स को संविदा में नियुक्त किया गया, संविदा के अंतर्गत उन्हें सिर्फ एक साल का अनुबंध दिया गया, यह अवधि खत्म होने के बाद नौकरी बची रहने का कोई आश्वासन नहीं है। यदि कोई नियमित डॉक्टर आ जाए तो संविदा कर्मी को तुरंत बर्खास्त कर दिया जाएगा। इस वजह से संविदा डॉक्टर्स प्राइवेट प्रैक्टिस बंद नहीं करना चाहते, क्योंकि उन्हें नौकरी का कोई आश्वासन नहीं है. प्राइवेट प्रैक्टिस के नाम पर सरकार के 20 प्रतिशत वेतन पहले ही काट लेते है और उसके बाद भी प्राइवेट हस्पतालों को पंजीयन रद्द करने की धमकी दी जा रही है। प्राइवेट अस्पतालों में वेतन सरकारी के तुलना में 2 से 3 गुना है। सरकारी हस्पतालों में कोई सुविधा नहीं है, जैसे कि ऑपरेशन थिएटर, ओपीडी, प्रोसीजर रूम में उपकरणों की भरी कमी है, इसलिए चाह कर के डॉक्टर्स वो काम नहीं कर पाते जो प्राइवेट अस्पतालों में होता है. सरकारी अफसरों को डॉक्टर्स की दुविधा न तो समझ आती है, न वो समझना चाहते हैं. डॉक्टर का कहना है कि जो बड़े सरकारी अफसर हैं। आईपीएस हैं और मंत्रालय में बैठते हैं, मगर वे इस क्षेत्र के विशेषज्ञ नहीं होते हैं तो उनकी चीजों को नहीं समझ पाते हैं। कई बार यह बात भी सामने आती है, इसलिए जिनको मेडिकल की जानकारी है, उनको स्वास्थ्य विभाग में रखा जाएगा तो बातों को समझेंगे। तकनीकी विभाग में भी यह बात होती है कि अगर जिनको इसकी जानकारी है, उनको पदस्थापित किया जाएगा तो इस तरह की समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा, अनादर से भी कई डॉक्टर्स परेशान हैं। विभिन्न क्षेत्रों के सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स शहर में 1 या 2 ही है, वो ही घूम-घूम के सभी जगह अपनी सेवा प्रदान करते हैं। यदि उन्हें 1 जगह बांध दिया जाएगा तो बाकी सभी क्षेत्रों में भरी कमी हो जाएगी। एनपीए काटने के बाद भी डाक्टरों को प्राइवेट अस्पतालों से बाधित करना, जहां उचित उपकरण एवं कर्मचारी है. संविदा डाक्टरों की वेतन में 27 प्रतिशत वृद्धि करने के नाम पर केवल आश्वासन दिया गया, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। सरकारी आदेश अनुसार वेतन को कम दिखाकर वृद्धि दिखाई गई, हकीकत में वेतन में कोई परिवर्तन नहीं हुआ।

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डाक्टरों ने सरकार को पत्र लिखा है कि छत्तीसगढ़ में शासकीय और प्राइवेट अस्पतालों की शहरी एवं अर्ध शहरी क्षेत्रों में डॉक्टरों एवं स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता बढ़ी है। सरकार की सभी कोशिशें के बाद भी खाली सरकारी पद नहीं भरे जा सके हैं। पिछले दिनों मेडिकल कॉलेज रायपुर के 77 और अखिल भारतीय आयुर्वैदिक संस्थान (एम्स) रायपुर में 82 पदों के विज्ञापन के बाद भी इंटरव्यू के लिए आने वाले डॉक्टर क्रमश: 2 और 5 थे, ऐसे में चिकित्सकों को आकर्षित करने के लिए सेवा शर्तों में आवश्यक सुधार की आवश्यकता है। चिकित्सा शिक्षा एवं स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी विभिन्न परिपत्र से स्पष्ट होता है कि विभाग सरकारी सेवाओं में कार्यरत चिकित्सकों को कार्यस्थल में निश्चित ड्यूटी के अलावा निजी प्रैक्टिस के लिए बंदिशें लगाने जा रही हैं। इस संभावित नीति के दूरगामी परिणाम आकलन करने के बाद ही लागू करने की आवश्यकता है। शासकीय सेवा में कार्यरत चिकित्सकों की सेवा शर्तों में पुनर्विचार एवं और अतिरिक्त सुधार की आवश्यकता है। कार्यस्थल पर ड्यूटी करने के बाद अतिरिक्त समय में अनुमति प्राप्त शासकीय डॉक्टर केवल अस्पतालों के सेटअप में सेवाएं दे सकते हैं। शासकीय वासन या निजी निवास स्थान से एकल डॉक्टर क्लीनिक में केवल परामर्श सेवाएं दे पाना संभव नहीं है। प्राइवेट अस्पतालों में दक्ष एवं अनुभवी शासकीय चिकित्सकों की सीमित समय में सेवाएं आयुष्मान योजना से लाभान्वित मरीजों को लाभ पहुंचाती है। निजी एवं शासकीय सेवाओं के सामंजस्य से ही स्वास्थ्य सेवाओं की उत्तरोत्तर प्रगति पर हो रही है इसलिए स्वास्थ्य नीतियों पर पुनर्विचार की जरूरत है।

डॉक्टरों के मुद्दे रखें तो स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने कहा, जो डॉक्टर एनपीए नहीं ले रहे, उनकी प्रैक्टिस से अस्पताल में कोई व्यवधान नहीं हो रहा है उन्हें पूर्व की तरह प्रैक्टिस की छूट होगी। हम आदेश की समीक्षा करेंगे। इस भरोसे के बाद माना जा रहा है कि सरकार प्राइवेट प्रैक्टिस पर प्रतिबंध के नियम में बदलाव कर सकती है। स्वास्थ्य मंत्री ने डॉक्टरों का एक सलाहकार मंडल बनाने की बात भी कही। इसमें 5 से अधिक डॉक्टर होंगे, जो स्वास्थ्य के क्षेत्र से जुड़े मुद्दों पर विभाग को सलाह देंगे। इनमें सरकारी, निजी क्षेत्रों के डॉक्टर शामिल होंगे यह बात स्वास्थ्य मंत्री ने कही है।

निश्चित रूप से लोग स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हुए हैं। हर आदमी जिसके पास थोड़ी भी आर्थिक क्षमता और समझ है, वह विशेषज्ञ डॉक्टर के पास जाना पसंद करता है। अब लोग सामान्य एमबीबीएस डॉक्टर के पास नहीं जाते वे एचडी के पास जाते हैं, डीएम के पास जाते हैं और वहां जाना पसंद करते हैं, जहां बहुत सारे चिकित्सीय उपकरण हों। डॉक्टर के कामकाज के तरीके बदले हैं। वह सारे टेस्ट करते हैं और टेस्ट रिपोर्ट के आधार पर ही आगे का इलाज करते हैं। अगर सरकारी अस्पतालों में वह सुविधाएं नहीं है और सुविधाओं के नाम पर खरीदारी हो गई, मशीन बंद पड़ी है तो यह स्थिति ठीक नहीं है। इस तरह की खबरें आए-दिन सामने आती हैं कि अस्पतालों में मशीन पड़ी है. मशीन खरीदी गई. दवाई खरीदी गई, लेकिन दवा आउटडेटेड हो गई, मशीनों का उपयोग नहीं हो रहा है तो इसका मतलब है कि विभाग में लाल फीताशाही है. निश्चित रूप से छत्तीसगढ़ की स्वास्थ्य सेवा में बहुत वृद्धि हुई है। ग्राउंड जीरो पर भी हम देखते हैं कि बहुउद्देश्य कार्यकर्ता काम कर रहे हैं। लोगों के स्वास्थ्य में सुधार हुआ है. उनकी आयु बढ़ी है, संस्थागत डिलीवरी बढ़ी है। टीकाकरण बढ़ा है. अगर हम उसके पैरामीटर की बात करें बहुत सारी स्वास्थ्य सुविधाओं में वृद्धि हुई है. स्वास्थ्य क्षेत्र में बहुत कुछ हुआ है. डॉक्टरों की कमी की वजह से जब सरकारी अस्पतालों में विज्ञापन निकलता है तो डॉक्टर से अनिवार्य रूप से कहा जाता है और बाउंड भी भरवाया जाता है कि वह डॉक्टरी की परीक्षा पास करने के बाद वे ग्रामीण क्षेत्र में जाकर काम करेंगे। ऐसे में बहुत सारे डॉक्टर हैं, जो जॉइनिंग तो दे देते हैं, पर उसके बाद जाते ही नहीं है, क्योंकि वहां बुनियादी सुविधा का अभाव है। इसलिए निश्चित रूप से हर प्राइमरी सेंटर पर डॉक्टर हो. विकासखंड स्तर पर डॉक्टर हो। तहसील और जिला स्तर पर भी डॉक्टर हो, जिला अस्पताल भी बहुत सी सुविधाओं से युक्त हो। सरकार उसके लिए प्रयास भी कर रही है, लेकिन इन सारी चीजों के लिए अच्छे डॉक्टर की उपलब्धता भी जरूरी है। विशेषज्ञ डॉक्टर भी होना जरूरी है. इसके साथ-साथ निजी क्षेत्र को भी आगे बढऩा जरूरी है। कोरोना के बाद लोगों में स्वास्थ्य के प्रति सजगता आई है लोग अपना इलाज अच्छे से करना चाहते हैं।

छत्तीसगढ़ में जो नया विवाद शुरू हुआ है। इसका जल्द ही पटाक्षेप होगा और जैसा कि स्वास्थ्य मंत्री ने कहा इसके लिए समिति भी बनाएंगे। डॉक्टर से बातचीत भी करेंगे तो देखना होगा कि आने वाले समय में छत्तीसगढ़ में जो थोड़ी बहुत स्वास्थ्य में बाधित हो रही है और डॉक्टर बड़े पैमाने पर इस्तीफा देने के लिए आमादा है इसमें सुधार होगा। संविदा डॉक्टर को भी आश्वासन मिलना चाहिए। नियमों में सुधार होना चाहिए. उनको लगे कि उनकी नौकरी सुरक्षित है, अगर उन्हें निजी क्षेत्र में ज्यादा पैसे मिल रहे हैं तो सरकार को यह भी करना चाहिए। डॉक्टरों की बहुत जरूरत है। उनके वेतन में भी सुधार करना चाहिए, ताकि यहां के लोगों को किसी प्रकार की परेशानी का सामना न करना पड़े।

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